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अजीब दास्तां है ये.. - 7

(7)

मुकुल इस बात से खुश था कि रेवती भी उसे प्यार करती है। उसने कहा था कि उससे अच्छा जीवनसाथी उसे नहीं मिल सकता है। नेहा ने जिस तरह से उसे छोड़ दिया था उसने उसे बहुत चोट पहुँचाई थी। जबकी उसने खुद को एक अच्छा जीवनसाथी साबित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। एक लंबे समय तक वह नेहा की दी हुई चोट के दर्द को महसूस करता रहा था।

रेवती मान रही थी कि वह एक अच्छा जीवनसाथी है। अब वह इस बात को प्रमाणित करना चाहता था। उसने रेवती से कहा,

"तुम्हारे अतीत को हराने के लिए यह ज़रूरी है कि हम उसके बारे में जाने। तुम अपने और उपेंद्र के बारे में बताओ।"

 

रेवती ने अपनी कहानी सुनाई.....

 

संगीत से रेवती को लगाव था। लेकिन शुरू से ही उसे ड्रॉइंग का भी बहुत शौक था। बचपन में वह अपनी स्केचबुक लेकर किसी एकांत स्थान पर बैठ जाती थी और कोई मनपसंद गीत गुनगुनाते हुए स्केच बनाती थी। घरवाले समझ नहीं पाते थे कि उसे किस चीज़ से अधिक लगाव है।

इसलिए उसकी कर्नाटक संगीत की शिक्षा के साथ साथ डॉइंग क्लासेज़ भी चल रही थीं। लेकिन टेंथ पास करने के बाद रेवती ने बात साफ कर दी। उसने कहा कि म्यूज़िक उसे खुशी देता है पर वह अपना करियर ड्रॉइंग से संबंधित फील्ड में ही बनाएगी।

ट्वेल्थ के बाद उसने फाइन आर्ट्स में डिग्री लेने के लिए बीएचयू में एडमीशन लिया। वहीं उसकी मुलाकात उसी कोर्स में सेकेंड इयर स्टूडेंट उपेंद्र राय से हुई।

उपेंद्र दूसरे लड़कों से कुछ अलग था। कंधे तक लंबे घुंघराले बाल, चेहरे पर दाढ़ी, लंबी नाक। लेकिन सबसे अधिक आकर्षक थीं उसकी बड़ी बड़ी आँखें। उनमें बहुत गहराई थी। ऐसा लगता था कि जैसे किसी दार्शनिक की आँखें हैं। रेवती उनकी गहराई में ही डूब गई थी।

उपेंद्र के साथ उसकी पहली मुलाकात भी बड़ी दिलचस्प थी। कॉलेज कैंपस के एक एकांत स्थान में बैठी हमेशा की तरह अपनी स्केचबुक लिए वह एक गीत गुनगुना रही थी। यह एक तमिल गीत था। गाते हुए अचानक वह एक लाइन पर अटक गई। वह सोचने लगी। तभी किसी लड़के की आवाज़ सुनाई पड़ी। वह वही लाइन गा रहा था। रेवती ने पलट कर देखा। जींस पर आधी बांह का कुर्ता पहने बड़ी बड़ी आँखों वाला लड़का गाते हुए मुस्कुरा रहा था। रेवती ने उससे पूँछा कि क्या वह भी तमिल है। उसके जवाब में उसने बताया कि वैसे तो वह बिहार का है पर अपनी ज़िंदगी का एक बड़ा हिस्सा उसने तमिलनाडु में बिताया है। उसे तमिल आती है। जो गीत वह गुनगुना रही थी वह उसका भी पसंदीदा गीत है।

रेवती ने उसे बताया कि उसके साथ भी कुछ ऐसा ही है। उसके पापा आईएएस अधिकारी हैं। उनकी पोस्टिंग कई सालों तक मध्यप्रदेश में रही थी। इसलिए उसे भी हिंदी आती है।

उसके बाद कैंपस में अक्सर ही उनकी मुलाकात होती थी। उपेंद्र तमिल जानता था। अच्छा गाता नहीं था पर संगीत की समझ थी। ये दोनों बातें उनको एक दूसरे के करीब ले आईं। दोनों में अच्छी दोस्ती हो गई।

उपेंद्र के परिवार की एक समय बिहार में ज़मींदारी थी। अभी भी उनके पास बहुत सी ज़मीन थी। उसके पिता का तमिलनाडु के कुन्नूर जिले में एक टी स्टेट था। बनारस में भी उनके परिवार की एक हवेली थी। हवेली का बाकी हिस्सा तो किराए पर था। पर एक हिस्सा उपेंद्र ने अपने लिए रखा हुआ था। वह उसी हिस्से में रहता था।

यहाँ एक कमरे में उसने अपना स्टूडियो बना रखा था। उसकी खिड़की से गंगा नदी दिखाई पड़ती थी। रेवती उसके साथ उसके घर जाती रहती थी। जहाँ वो दोनों देर तक अलग अलग विषयों पर बात करते रहते थे।

उन दोनों की दोस्ती का एक साल पूरा हो गया था। एक दिन दोनों हवेली के पास गंगा के किनारे बैठे थे। रेवती ने उपेंद्र से कहा,

"तुम इतनी सुंदर पेंटिंग बनाते हो। एक दिन तुम देश के सबसे बड़े पेंटर बनोगे।"

उपेंद्र ने कहा,

"मैं किसी दौड़ में शामिल नहीं होना चाहता हूँ। ऐसा होता तो मैं फाइन आर्ट्स में एडमीशन ना लेता। मैं किसी ऐसे कोर्स में जाता जहाँ डिग्री लेने के बाद बहुत सा पैसा कमा सकता। ऐसा भी हो सकता था कि मैं अपने पापा का टी स्टेट संभाल लेता। कोई और बिज़नेस कर लेता। पर मैं ज़िंदगी को एक रेस नहीं समझता हूंँ।"

"लेकिन कुछ तो सोचा होगा। ग्रैजुएशन के बाद क्या करोगे ? पैसों के लिए कुछ तो करना होगा।"

"मेरे घर में पैसों की कोई कमी नहीं है रेवती। जब ज़रूरत होगी तो कमा भी लूँगा। पेंटिंग मैं सबसे आगे आने या पैसों के लिए नहीं करता हूँ। पेंटिंग मैं इसलिए करता हूँ क्योंकी उस वक्त मैं सब कुछ भूलकर पूरी तरह से उसमें डूब जाता हूँ।"

उपेंद्र ने अपनी बड़ी बड़ी आँखों से उसकी तरफ देखा। रेवती जब भी उन आँखों की तरफ देखती थी उसे एक गहराई नज़र आती थी। पर उस गहराई में झांककर वह उसके मन में क्या है यह नहीं जान पाती थी। इस समय भी वह नहीं समझ पा रही थी कि उसके मन में क्या चल रहा है।

उपेंद्र जीवन और उसकी सच्चाई के बारे में रेवती के साथ बहुत फिलॉसॉफिकल बातें करता था। उसकी कुछ बातें कई बार उसे समझ में भी नहीं आती थीं। उपेंद्र का चरित्र उसे रहस्यमई लगता था। लेकिन यही रहस्य उसे और अधिक आकर्षित करता था। वह उसकी आँखों की गहराई में डूबती जा रही थी।

एक दूसरे से एकदम विपरीत वस्तुओं में आकर्षण होता है। रेवती के उपेंद्र की तरफ आकर्षण का कारण भी दोनों के स्वभाव में अंतर था। रेवती बहुत खुली हुई थी। जो मन में होता था कह देती थी। सबसे बात करती थी। उपेंद्र उससे ठीक उलटे स्वभाव का था। अपने आप में खोया रहने वाला। वह बहुत कम किसी से बात करता था। रेवती के अलावा शायद ही उसका कोई दोस्त था।

इतना अंतर होने पर भी रेवती को उपेंद्र बहुत अच्छा लगता था। दूसरा साल खत्म होते होते रेवती पूरी तरह से उसके प्यार में डूब चुकी थी। लेकिन उपेंद्र के मन में क्या है वह नहीं जान पा रही थी। उसने इंतज़ार किया कि शायद उपेंद्र उससे वह कह दे जो वह सुनना चाहती है। उपेंद्र उससे हर तरह की बात करता था। लेकिन कभी भी यह नहीं बताता था कि वह उसके बारे में क्या सोचता है। अंततः रेवती को ही अपने मन की बात कहनी पड़ी।

उस दिन शाम को दोनों नाव में बैठकर गंगा के बीच में गए थे। होली का त्यौहार बीते हुए पंद्रह दिन हुए थे। गर्मी पड़ने लगी थी। लेकिन शाम के समय मौसम बहुत सुहावना था। उपेंद्र प्यार का कोई गीत गुनगुना रहा था।‌ उसका मूड अच्छा देखकर रेवती ने बात शुरू की।

"एक बात बताओ उपेंद्र तुम्हारे लिए प्यार का क्या मतलब है ?"

उपेंद्र ने गंगा की लहरों को ताकते हुए कहा,

"मेरे लिए तो प्यार एक मृगतृष्णा की तरह है। दूर से जितना आकर्षक लगता है पास जाओ तो तपती हुई रेत।"

उसकी यह बात सुनकर रेवती ने कहा,

"तुम ऐसा कैसे कह सकते हो ? क्या तुम्हें ऐसा कोई अनुभव हुआ है।"

"मेरा अपना तो कोई अनुभव नहीं है। लेकिन मैंने कई लोगों को देखा है जो प्यार की चाह में भटकते रहते हैं।"

रेवती ने उसके चेहरे की तरफ देखकर कहा,

"यह जरूरी तो नहीं है कि जो दूसरों के साथ हुआ वह तुम्हारे साथ भी हो। तुम चाहो तो तुम्हें सच्चा प्यार मिल सकता है।"

उपेंद्र ने प्रश्न किया,

"चाहने से क्या सच्चा प्यार मिल जाता है ?"

"हाँ..."

"तुम कैसे कह सकती हो ?"

रेवती ने उसका हाथ पकड़ कर कहा,

"मेरे दिल में तुम्हारे लिए सच्चा प्यार है। तुमने कभी महसूस करने की कोशिश ही नहीं की।"

उपेंद्र कुछ देर रेवती के चेहरे को देखता रहा। उसके बाद बोला,

"महसूस तो कई बार किया था। लेकिन डर था कि कहीं ओस की बूंद की तरह हाथ लगाने से जो प्यार मैं महसूस कर रहा हूंँ गायब ना हो जाए।"

"यकीन करो उपेंद्र मेरा प्यार ना तो ओस की बूंद है और ना ही मृगतृष्णा। वह तो मेरे और तुम्हारे दिल की धड़कन की तरह सच्चा है।"

 

उसके बाद रेवती ने महसूस किया था कि ‌उपेंद्र भी ‌उसे उतना ही प्यार करता है जितना वह उससे। वह रेवती की हर ज़रूरत का खयाल रखने लगा था।

उपेंद्र का ग्रेजुएशन पूरा हो गया था। उसने मास्टर्स कोर्स एडमीशन ले लिया था। रेवती का अभी एक साल बाकी था। लेकिन दोनों के लिए अब एक दूसरे से दूर रहना संभव नहीं हो पा रहा था। इसलिए रेवती हॉस्टल छोड़कर उसके साथ हवेली में रहने के लिए आ गई।

वह दिन बहुत अच्छे थे। उपेंद्र उसकी हर बात का ध्यान रखता था। वह खुश थी कि उसे इतना अच्छा जीवन साथी मिलने वाला है। लेकिन एक बात मन को कचोटती थी। वह अपने मम्मी पापा से छिपाकर बिना शादी के उपेंद्र के साथ रह रही थी।

कहानी सुनाते हुए रेवती रुकी। वह उठकर किचन में गई। वहाँ से तीन ग्लासेज़ में जूस डालकर लाई। एक गिलास उठाते हुए बोली,

"गला सूख रहा था। कुछ पीने का मन कर रहा था।"

नीली और मुकुल ने भी अपना अपना गिलास उठा लिया। कुछ सिप लेने के बाद रेवती ने कहानी आगे बढ़ाई।

 

उसका थर्ड इयर कंप्लीट होने में कुछ ही महीने बचे थे जब उसके घर से खबर आई कि मम्मी बहुत सीरियस हैं। खबर सुनकर वह बहुत परेशान हो गई। उसे परेशान देखकर उपेंद्र ने फ्लाइट का टिकट बुक करा दिया। वह उसे एयरपोर्ट छोड़ने भी गया। चलते समय उसने रेवती से कहा कि अगर कोई जरूरत पड़े तो उसे फोन करके बता दे।

रेवती की मम्मी की हालत बहुत गंभीर थी। डॉक्टर का कहना था कि उनके बचने की उम्मीद बहुत कम है। उसके पहुँचने के चार दिन बाद उसकी मम्मी की मृत्यु हो गई।

उसकी मम्मी के जाने से पापा बहुत अकेले पड़ गए थे। वह कुछ दिनों के लिए उनके पास रुक गई। लेकिन उसके फाइनल ईयर के एग्जाम पास आने वाले थे। उसका मन भी उपेंद्र के बिना नहीं लगता था। इसलिए वह बनारस वापस चली गई।

ग्रैजुएशन करने के बाद वह सोच रही थी कि आगे क्या करे। उपेंद्र ने उससे भी मास्टर्स कोर्स में एडमीशन लेने के लिए कहा। रेवती ने भी फार्म भर दिया।

उपेंद्र के साथ वह खुश थी। पर एक बात उसे परेशान कर रही थी। जब वह अपने पापा के पास थी तो वह उससे कहते थे कि उसकी मम्मी किसी बड़े घर में उसकी शादी का सपना लेकर चली गईं। अब उनकी ज़िम्मेदारी है कि वह किसी अच्छे से तमिल लड़के के साथ उसकी शादी कराएं। वह चाहते थे कि रेवती अपनी पढ़ाई पूरी कर शादी कर ले। रेवती चाहती थी कि वह उपेंद्र के साथ शादी कर ले। इससे वह अपने मम्मी पापा की इच्छा पूरी कर सकती है।

रेवती ने इस विषय में उपेंद्र से बात की। उसकी बात सुनकर उसने कहा,

"रेवती तुमको लगता है कि तुम मेरे साथ पूरा जीवन बिता पाओगी।"

"यह कैसा सवाल है ? हम एक दूसरे को प्यार करते हैं। इतने दिनों से एक साथ रह रहे हैं। फिर तुम्हें यह सवाल क्यों किया ?"

"मैं बस चाहता हूँ कि तुम एक बार सोच लो। मैं औरों से अलग हूँ। जीवन में कुछ पाने या बनने का सपना नहीं है मेरा। दुनिया वालों की भाषा में कहूंँ तो मैं थका हुआ हूंँ। हालांकि यह उनका सोचना है। मेरा ज़िंदगी को जीने का अपना तरीका है।"

"उपेंद्र कुछ सोचने का सवाल कहाँ उठता है। दूसरे क्या सोचते हैं इससे मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता है। मैंने अपने दिल के कहने पर तुमसे प्यार किया। अब मेरा दिल कहता है मैं तुम्हारे साथ शादी करूँ।"

"तो ठीक है। हम दोनों शादी कर लेते हैं।"

बनारस के एक मंदिर में उन दोनों ने शादी कर ली। शादी के बाद रेवती उपेंद्र को लेकर अपने पापा के पास गई। उसके पापा इस शादी से बिल्कुल भी खुश नहीं हुए थे। उनका कहना था कि रेवती ने अपनी मम्मी की अंतिम इच्छा का भी खयाल नहीं रखा। उन्होंने कहा कि उसने अपनी इच्छा से शादी की है तो अब जैसे चाहे निभाए। वह उससे कोई संबंध नहीं रखना चाहते हैं।

रेवती के कहने पर उपेंद्र उसे कुन्नूर अपने पापा के टी स्टेट पर ले गया। उसकी शादी की खबर सुनकर उसके पापा की कोई प्रतिक्रिया ही नहीं थी। रेवती को अजीब लगा। वह ऐसा बर्ताव कर रहे थे जैसे उन्हें कोई फर्क ही ना पड़ा हो।

फिर भी रेवती बहुत खुश थी।

पर वह नहीं जानती थी कि जिस बिजली की चमक से वह खुश हो रही है वह उस पर ही गिरने वाली है।

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