अजीब दास्तां है ये.. - 10 - अंतिम भाग Ashish Kumar Trivedi द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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अजीब दास्तां है ये.. - 10 - अंतिम भाग

(10)

उसकी आँखों को देखकर रेवती पहचान गई कि वह उपेंद्र है। वह डरकर मुकुल के पीछे छिप गई। उपेंद्र ने कहा,

"मैं कहता था ना कि तुम औरतें धोखेबाज़ होती हो। मुझे जेल भिजवाकर इसके साथ ऐश कर रही हो।"

मुकुल समझ रहा था कि इस समय ज़रा सी चूक भारी पड़ सकती है। उसे बड़ी होशियारी से काम लेना होगा। उसने खुद को संयत करके कहा,

"देखो तुम कोई ऐसी वैसी हरकत मत करो। पुलिस तुम्हें तलाश रही है।"

"मुझे पता है कि पुलिस मेरे पीछे है। फिर भी खुद को खतरे में डालकर यहाँ आया हूँ। मेरे सर पर जुनून सवार है। मैं इसे ज़िंदा नहीं छोडू़ँगा।"

उसने पिस्तौल तानते हुए मुकुल से कहा,

"तुम हट जाओ। बेवजह मारे जाओगे। मुझे सिर्फ इससे बदला लेना है।"

मुकुल ने कहा,

"मेरे रहते हुए तुम रेवती का कुछ भी नहीं बिगाड़ सकते हो। मेरी बात मानो अक्ल से काम लो।"

"मुझे अपनी परवाह नहीं है। मैं बस अपना बदला लेना चाहता हूँ।"

उसकी बात सुनकर रेवती आगे आकर बोली,

"मुझसे क्यों बदला लेना चाहते हो ? तुम्हारी माँ ने जो किया उसकी सज़ा तुमने मुझे दी। अपने घर में कैद करके रखा। मैंने तुम्हें गिरफ्तार करवाकर कुछ गलत नहीं किया था।"

उसकी बात सुनकर उपेंद्र चिढ़ गया। उसने आगे बढ़कर रेवती के सर पिस्तौल लगा दी। मुकुल जानता था कि स्थिति बहुत ही नाज़ुक है। जल्दी ही कुछ करना पड़ेगा। वरना उपेंद्र कुछ भी कर सकता है। उसने अक्ल से काम लेते हुए कहा,

"रेवती से तुमने शादी की थी। तुम उसे मारना क्यों चाहते हो ? तुम चाहो तो इत्मिनान से बैठकर बात कर सकते हो। इसे समझा सकते हो।"

रेवती भी समझ गई कि मुकुल किसी मकसद से यह बात कर रहा है। उसने भी बड़ी चतुराई से कहा,

"मैंने तो तुमसे प्यार किया था। कितने अरमानों से तुम्हारे साथ शादी की थी। तुमने ही मुझे ठुकरा दिया। अपनी माँ के किए की सज़ा मुझे दी।"

मुकुल ने महसूस किया कि रेवती की बात सुनकर उपेंद्र कुछ नरम पड़ा है। लेकिन वह जानता था कि इसका असर बहुत देर तक नहीं रहेगा। उसे रिस्क लेना पड़ेगा। एक डर यह भी था कि इसी बीच नीली या बच्चों में से कोई यहाँ ना आ जाए। या उसे फोन ना कर दे। ऐसा होने पर मुश्किल और बढ़ जाती। उसे जो करना था जल्दी करना था।

रेवती उपेंद्र को अपने पुराने प्यार की याद दिला रही थी। मुकुल इधर उधर नजर दौड़ा रहा था। उसकी नजर पास पड़े एक छोटे से प्लास्टिक स्टूल पर गई। उपेंद्र का ध्यान रेवती की तरफ था। सही मौका देखकर मुकुल ने फुर्ती से वह स्टूल  उठाया और उपेंद्र के हाथ की तरफ फेंका। उपेंद्र हड़बड़ा गया। उसकी हड़बड़ाहट का फायदा उठाकर मुकुल उस पर झपट पड़ा। उन दोनों के बीच संघर्ष होने लगा। इसी में पिस्तौल की गोली चली। वह गोली उनमें से किसी को भी ना लगकर खिड़की के कांँच में जाकर लगी।

गोली की आवज़ ने बिल्डिंग के शांत माहौल में एक हलचल पैदा कर दी। वॉचमैन सहित कुछ और लोग भी सिक्सथ फ्लोर की तरफ भागे।

रेवती फ्लैट का दरवाज़ा खोलकर बाहर आई। तब तक नीली भी आवाज़ सुनकर निकल आई थी। रेवती भागकर उसके गले से लग गई।‌ उसने बताया कि मुकुल उपेंद्र के साथ उलझा हुआ है। नीली ने फौरन रेवती को अपने फ्लैट के अंदर किया। आजी और बच्चे घबराए हुए थे। नीली ने उनसे अंदर ही रहने को कहा। उसके बाद उसने पुलिस को फोन कर दिया।

मुकुल ने उपेंद्र की गर्दन को अपनी बांह से कसकर दबा रखा था। इससे उपेंद्र की पकड़ ढीली पड़ गई। पिस्तौल उसके हाथ से छूट गई। तब तक वॉचमैन के साथ कुछ और लोग ऊपर आ गए। उन्होंने उपेंद्र को कब्जे में ले लिया।

रेवती मुकुल की सलामती के लिए परेशान थी। नीली ने जब उसे बताया कि उपेंद्र को कब्जे में कर लिया गया है तो वह भाग कर आई और मुकुल के गले से लगकर रोने लगी। अनय भी सब जानकर डर गया था। वह भी भागकर अपने पापा के पैरों से चिपक गया। मुकुल ने उसे अपनी गोद में उठाकर सीने से लगा लिया।

कुछ देर में पुलिस आ गई। उन्होंने उपेंद्र को गिरफ्तार कर लिया।

वॉचमैन ने बताया कि वह पूरी सावधानी बरत रहा था। लेकिन कुछ देर पहले बिल्डिंग में घुसती एक कार की टक्कर मोटरसाइकिल से हो गई। दोनों के बीच झगड़ा होने लगा। वॉचमैन कुछ समय के लिए उनके पास गया था। शायद तभी उपेंद्र उस मौके का फायदा उठाकर बिल्डिंग में घुस गया होगा।

सारी बिल्डिंग में मुकुल की बहादुरी की बात फैल गई थी। सभी उसकी हिम्मत की तारीफ कर रहे थे। उनका कहना था कि यदि मुकुल ने हिम्मत ना दिखाई होती तो बहुत बड़ा हादसा हो सकता था।

चार दिन बाद पुलिस ने सूचना दी कि उपेंद्र मानसिक रूप से विक्षिप्त हो गया था। इसलिए बिहार पुलिस ने उसे जेल से एक मेंटल फैसिलिटी में भेज दिया था। पिछले एक साल से वहाँ उसका इलाज चल रहा था। उपेंद्र पहले की अपेक्षा बहुत शांत हो गया था। ऐसा लग रहा था जैसे इलाज अपना असर कर रहा है। लेकिन कोई एक महीने पहले वह मेंटल फैसिलिटी के कुछ कर्मचारियों को घायल कर भाग निकला। बिहार पुलिस ने उसकी खूब तलाश की लेकिन उसका कोई पता नहीं चला।

पकड़े जाने पर उपेंद्र ने ही सारी बात बताई। उसने यह भी बताया कि मेंटल फैसिलिटी से भागने के बाद वह एक ट्रक में बैठकर दरभंगा चला गया। वहाँ वह पुलिस से बचता हुआ इधर उधर भटकता रहा। वह पागलों की तरह सड़क पर फिर रहा था। कोई अगर कुछ खाने को दे देता तो खा लेता था। उसके मन में रेवती के लिए नफरत थी। वह उससे बदला लेना चाहता था। उसे लगता था कि रेवती तमिलनाडु में अपने पापा के पास होगी। उसने तमिलनाडु जाने का फैसला किया।

उसके पास पैसे नहीं थे। बिना पैसों के तमिलनाडु जाना संभव नहीं था। लेकिन रेवती से बदला लेने की चाह उसे परेशान कर रही थी। उसने तय कर लिया कि कैसे भी पैसों का इंतजाम करेगा। वह बाजार में घूमता था। वह कई दिनों से गौर कर रहा था कि एक व्यापारी रोज़ अपने साथ एक बैग लेकर घर जाता था। बैग को अपने स्कूटर की डिक्की में रखते हुए इधर उधर बड़े ध्यान से देखता था। उपेंद्र समझ गया कि उस बैग में वह गल्ले का कैश रखकर ले जाता है। वह उसके जाने के रास्ते पर नजर रखने लगा। घर जाते समय वह एक सुनसान गली से गुजरता था। उपेंद्र ने उसे लूटने का मन बनाया।

उसने सब्जी वाले के पास से कद्दू कटहल वगैरह काटने वाला बड़ा चाकू चुरा लिया। उसे लेकर वह उस गली में छिप गया जहांँ से वह व्यापारी गुजरता था। जब वह व्यापारी गली में घुसा तो उपेंद्र अचानक ही उसकी स्कूटर के सामने आकर खड़ा हो गया। अचानक उपेंद्र को स्कूटर के सामने देखकर वह व्यापारी घबरा गया। स्कूटर पर नियंत्रण नहीं रख पाया और गिर पड़ा। उपेंद्र ने चाकू उसकी गर्दन पर रखकर उससे बैग ले लिया। उस व्यापारी ने एक अंगूठी और सोने की चेन पहन रखी थी। उपेंद्र ने वह भी उतरवा लीं।

बैग में बीस हजार रुपए थे। उपेंद्र ने पहले तो उन पैसों में से कुछ अच्छे कपड़ों के लिए खर्च किए। फिर एक देसी पिस्तौल खरीदी। उसके बाद तमिलनाडु का टिकट लेकर वह मदुरई चला गया। अंगूठी और चेन उसने कठिन समय के लिए संभाल कर रख लिए थे। मदुरई पहुँचकर उसे पता चला कि रेवती के पिता का देहांत हो चुका है। उसने आस-पड़ोस में रेवती के बारे में पता करने का प्रयास किया। एक पड़ोसी ने बताया कि वह चेन्नई से ग्रैफिक डिज़ाइनिंग का कोर्स करने के बाद वहीं पर नौकरी कर रही है। उस आदमी ने कंपनी के दफ्तर की लोकेशन बता दी थी। उपेंद्र चेन्नई चला गया।

वह खोजते हुए कंपनी के दफ्तर पहुँच गया। वहाँ उसे पता चला कि रेवती नौकरी छोड़कर दिल्ली चली गई है। वह दिल्ली आ गया। कई दिनों से इधर उधर भटकने के बाद भी उसे रेवती का कोई पता नहीं चल रहा था। वह परेशान हो गया था। उसके पैसे खत्म हो रहे थे। इसलिए उसने अंगूंठी बेचकर पैसों की व्यवस्था की थी। वह चाह रहा था कि जल्द से जल्द रेवती का पता करके अपना बदला ले।

उस दिन भटकते हुए उसे गर्मी लग रही थी। आइसक्रीम खाने के लिए वह पार्लर के अंदर घुसा तो रेवती पर उसकी नज़र पड़ गई। वह गुस्से से उबल पड़ा। अपने आप पर काबू रखना मुश्किल हो गया। रेवती के पास जाकर उसे धमकाने लगा। जब वहाँ लोग इकट्ठे होने लगे तो वह वहाँ से भाग गया। बाहर निकलकर वह छिपकर रेवती के बाहर आने की राह देखने लगा। जब रेवती सबके साथ कार में बैठकर वहांँ से चली तो ऑटो पकड़कर उसका पीछा करने लगा।

रेवती की कार सोसाइटी के गेट में घुसी। नज़र बचाकर वह भी सोसाइटी में घुस गया। लेकिन उस समय चहल पहल अधिक थी। इसलिए वह सोसाइटी में छिप गया। इंतज़ार करने लगा कि शांति हो तो पता करे कि रेवती किस बिल्डिंग में रहती है। जब कुछ शांति हुई तो उसने एक आदमी से रेवती के बारे में पूँछा। उसने बता दिया कि रेवती कहाँ रहती है।

उपेंद्र रेवती के फ्लैट में जाने की सोच रहा था तभी उसे रेवती फिर उसी बुज़ुर्ग औरत के साथ दिखी जो आइसक्रीम पार्लर में उसके साथ थी। एक बार फिर उपेंद्र अपने आप पर काबू नहीं रख पाया। वह फिर उसके पास जाकर धमकाने लगा। पर वॉचमैन और कुछ लोगों को आता देखकर भाग गया।

वह समझ गया था कि रेवती पुलिस कंप्लेंट करने गई है। पर उससे बदला लेने का जुनून उसके सर पर चढ़कर बोल रहा था। वह खुद को खतरे में डालकर भी रेवती से बदला लेना चाहता था। पर इस बार उसने दिमाग से काम लिया। अपना भेष बदलकर वह सोसाइटी के गेट के पास चक्कर लगा रहा था। उसके पास एक बैग था जिसमें पिस्तौल थी। तभी दो लोगों के झगड़े ने उसे मौका दे दिया और वह सोसाइटी में घुस गया। वह सीधे सिक्सथ फ्लोर पर रेवती के फ्लैट पर पहुँचा। वह सफल हो जाता पर रेवती ने उससे पुराने प्यार की बातें करनी शुरू कर दीं। वह असावधान हो गया। मुकुल ने मौका देखकर उसे अपने कब्ज़े में ले लिया।

रेवती पर उस हादसे का गहरा असर हुआ था। मुकुल उसका खास खयाल रख रहा था। नीली आजी और बच्चे भी उसे सदमे से उबरने में मदद कर रहे थे। रेवती को कुछ दिन लगे उस सदमे से उबरने में। इस बीच मुकुल ने एक बार भी उससे अपने और उसके रिश्ते के बारे में बात नहीं की थी। पर वह चाहता था कि रेवती उसे अपना फैसला सुना दे।

मुकुल ने भले ही उससे कोई बात ना की हो पर रेवती के मन में वही बात घूमती रहती थी। वह मुकुल को प्यार करती थी। उससे शादी करना चाहती थी। लेकिन उसके मन में एक डर था कि कहीं उसका अतीत फिर कोई समस्या खड़ी ना करे।

नीली दोनों के मन के भाव को समझ रही थी। उसने कुछ करने का फैसला किया। सबसे पहले उसने अनय को अपने पास बुलाकर उससे बात की। उसने कहा,

"अनय तुम्हारे पापा तुम्हें बहुत चाहते हैं। वह रेवती आंटी से शादी कर लें तो तुम्हें बुरा तो नहीं लगेगा।"

अनय ने कुछ सोचकर कहा,

"बुआ मुझे रेवती आंटी बहुत अच्छी लगती हैं। अगर पापा उनके साथ खुश रहेंगे तो मुझे अच्छा लगेगा।"

नीली ने उसे गले लगा लिया। उसके बाद उसे एक प्लान समझाया।

मुकुल रेवती के फ्लैट में था। कॉलबेल बजी। उसने दरवाज़ा खोला तो अनय खड़ा था।‌ वह बिना कुछ बोले अंदर चला गया। मुकुल ने पूँछा,

"बेटा कोई काम है ?"

अनय ने बिना कोई जवाब दिए दोनों का हाथ पकड़कर सामने सोफे पर बैठा दिया। मुकुल और रेवती समझ नहीं पा रहे थे कि अनय क्या करना चाहता है। अनय ने रेवती से कहा,

"आंटी क्या आप मेरे पापा से शादी करेंगी ?"

अनय का यह सवाल सुनकर मुकुल और रेवती दोनों ही अचरज में पड़ गए। मुकुल ने उसे रोकना चाहा। रेवती कुछ क्षण चुप रही। उसके बाद उसने अनय को अपनी गोद में बैठाकर पूँछा,

"मैं तुम्हारी मम्मी बनूँ यह तुम्हें अच्छा लगेगा ?"

अनय ने बेझिझक हाँ कर दिया।

"तो अपने पापा से पूँछो कि क्या वह मुझसे शादी करेंगे ?"

मुकुल ने कहा,

"हाँ.... मैं वादा करता हूँ कि एक अच्छा जीवनसाथी बनूँगा।"

उसके बाद दोनों ने अनय के एक एक गाल पर किस किया। अनय गोद से उतर कर दरवाज़े पर गया। दरवाज़ा खोलकर बोला,

"बुआ दोनों मान गए।"

नीली आजी और रिया अंदर आ गए। मुकुल और रेवती ने आजी के पैर छूकर आशीर्वाद लिया।

कुछ दिन बाद कानूनी तौर पर मुकुल और रेवती की शादी हो गई।

 

Ashish Kumar Trivedi