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राजनारायण बोहरे का इज्जत-आबरू -देवशंकर नवीन

भयावह परिस्थितियों पर विजय की आकांक्षा

देवशंकर नवीन

इज्जत-आबरू राजनारायण बोहरे की बारह कहानियाँ का ताजा संकलन है। आज की युवा पीढ़ी के सामने कथा लेखन के आयाम काफी विस्तृत है। विषय और शिल्प की विस्तृति की जितनी गुंजाइश इनके सामने है, इतनी पूर्व के कथाकारों के पास नहीं थी। आज की पीढ़ी के लिए ऐसा अवसर जुटाने में कुछ तो भूमिका समय के बदलते तेवर की है, वैज्ञानिक विकास की है, भौतिक संसाधन की है, और कुछ श्रम से और बड़ी साधना से आज की पीढ़ी के लिए प्रशिक्षित और प्रबुद्ध और दिशा सिद्ध पाठकों की परम्परा बनाई है। आज के कथाकार और आज की कहानी सीधे-सीधे और बड़ें व्यंग्यात्मक अथवा सांधातिक शैली में समय सत्य से मुखातिब होती है और आज के पाठक बड़ी आसानी से उन कहानियों से दो चार हो जाते हैं, उन्हें कोई दिक्कत नहीं होती इसमें पूर्ववर्ती कथा-परम्परा का महत्वपूर्ण योगदान है राजनारायण बोहरे को ये पूरी बिरासत प्राप्त थी। कौशल के प्रशिक्षण के लिए पूरी कथा-परम्परा और विषय चयन के लिए बुन्देलखण्ड़ और आस-पास का जनपद, इन दोनों उपादानों के बीच राजनारायण के भीतर के कथाकार का वजूद बनाता है।

इज्जत-आबरू कहानी संकलन की चर्चा करते हुए आच्छापद पृष्ठ पर लिखा गया है कि संग्रह की बारह कहानियों में बुंदेलखण्ड के गांवों-करबों का अनगढ. व अनावृत जीवन है समाज की विसंगतियाँ है, पीड़ाएँ है और विड़म्बनाएँ भी। इन कहानियों में आम आदमी के जीवन का स्पन्दन और गहरी हलचल है। इन कहानियों के माध्यम से आम आदमी के आत्म संघर्ष को पूरी ईमानदारी से व्यक्त किया गया है। उनमें अन्तर्व्याप्त करूणा और संवेदना आम आदमी की चिन्ताओं को गहरे सामाजिक सरोकारों से भी जोड़ती है। वस्तुतः ये सारी बातें इन कहानियों में है, सच ही लिखा गया है पर केवल इतनी ही बातें किसी कहानी को उम्दा बनाने के लिए पर्याप्त नहीं है। इन कहानियों के विषय जैसे उठाए गए है, वह मात्र बुंदेलखण्ड़ क्षेत्र की सच्चाई नहीं, पूरे भारतवर्ष के जनपद का सच है। मजदूरों के श्रम और उसकी इज्जत से सम्पन्न वर्गों का खिलवाड़ करना पूरे भारतवर्ष की विकृति है। श्रमिक वर्ग अपना श्रम और पसीना तो बेचना चाहता है पर अपनी बहू-बेटियाँ की इज्जत को सुरक्षित रखना चाहता है। अपने श्रम के मूल्य और अपने परिवार की स़्ित्रयों के आबरू के प्रति वह पर्याप्त सचेत रहता है। इज्जत-आबरू कथा में ये बातें झलकती है। कथा का नायक खेता आज के सुबोध मजदूर का प्रतीक है। कहा जाता रहा है कि भूखों के लिए पैसा सबसे बड़ी चीज होती है, पैसे के बल पर उससे कुछ भी करवाया जाइ सकता है। भारत के सम्पन्न लोग आज तक यही समझते आए है। वस्तुतः शिक्षित वर्गों द्वारा की गई हरकतों को भारत देश मेंयदि देखा जाए, तो लगता भी यही है कि वे पैसे के लिए घृणित से घृणित काम कर रहें है। देश की अस्मिता और दन्सानी वजूद की दलाली से लेकर तरह-तरह के अनाचार और दुर्वृत्ति मेंलिप्त है। पर चूकि ये काम वे मजदेरों की तरह अस्तित्व रक्षा के लिए नहीं, रोटी के लिए बल्कि ऐशोंआराम के संसाधन जुटाने के लिए करता है, इसलिए सामन्तों को यह समझ लेना चाहिए कि आज के मजदेरों का शोषण रोटी के मूल्य पर नहीं किया जा सकता, नैतिकता और अपनी श्रम शक्ति पर आस्था कहीं बची हुई है, तो वह खेता किस्म के मजदूरों के पास ही है। खेता के सहयोगी अपने इज्जत-आबरू के शोषण के प्रति सचंेत नहीं हैं, उनका पूरा समर्थन उन्हें प्राप्त नहीं हैं, पर उसे केवल अपनी ही शंक्ति पर इतनी बड़ी आस्था हो जाती है कि वह अपने अन्नदाता, रोजगारदाता खन्ना साहब की बातों का विरोध करले मंे, उसकी करनी पर थूकने मेंनहीं हिचकता। पूरी कहानी शोषण की विड़म्बनाओं से लबालब है, पर कहानी का अन्त एक अच्छे परिणाम केे साथ होता है, खेता उस चुनी हुई युवती को लेकर, रोजगार से मुंह फेरकर निकल जाता है। यद्यपि आज के कुछ फैशनपरस्त कथाकार, संभव है कि खेता द्वारा जुलूस निकलवाकर खन्ना साहब की बोटी-बोटी नांेचवा सकते थें। पर, राजनारायण ने ऐसा नहीं किया। कहानी का अंत पूरी कहानी के फ्रेम की औकात के अनुकूल हुआ, हो सकता है कि खेता की इस हरकत से अन्य मजदेरों के मन मेंथोड़ी सी ताकत की ललकार उठे या हो सकता है कि खेता ने ड़िप्लोमेटिकली सोचा हो कि भूख के आतंक मेंये श्रमजीवी मेरी बात पर विश्वास न करे।..... ये सारें सोच सही है। पर जैसा कि कहा गया है कि आज की हिन्दी कहानी अपनी विशिष्ट शिल्प और भंगिमा के कारण पाठकों का ध्यान विशेष रूप से आकृष्ट करती है राजनारायण बोहरे ने खुद अपनी भाषा चुनी है और शिल्प का विस्तार किया है जिसमेंउनकी मौलिकता झलकती है। पर राजनारायण की यह मौलिकता और शिल्प का यह विस्तार थोड़ी-सी चमक और तराश की अपेक्षा रखता है।

ये सारी कहानियाँ दारूण अंधकार और भयावह परिस्थितियों मेंनिष्ठा और नैतिकता के विजय की बात करती है। हर जगह मानवता के सकारात्मक पहलू की जीत हुई है, पर ये कहानियाँ एक घटना निवेदन की शैली मेंखत्म होती रही है। शिल्प की मौलिकता मेंतराइश की गुंजाइश यहीं थी। यह तो प्रमाणित सत्य है कि उत्तम कोटि की कहानी अपने समाप्ति स्थल से शुरू होती है। आज के साहित्य की काम टाइम-पास तो नहीं है। साहित्य आज पीड़ित जनता को स्वोत्थान के लिए प्रेरित और उद्बुद्ध करता है और एक सुखद परिवेश के निर्माण की ओर इशारा करता है और यह काम साहित्य-पाठ के बाद पाठकों की अनतः प्रक्रिया से जुड़ा हुआ होता है, असरकारी होता है। राजनारायण अपने शिल्प-विस्तार मेंइस बिन्दुं पर तरह सफल नहीं हो पाए है।

बुल्ड़ोजर कहानी बुल्ड़ोजर के सारे अर्थों को ध्वनित करती हुई चलती रहती है। अपनी पूरी आयत मेंयह कहानी मैं और मोहिनी की इच्छा आकांक्षा श्रम, निष्ठा, लगन....सब पर कितनी-कितनी बार बुल्ड़ोजर चलाती है, नायक कितनी-कितनी बार ध्वस्त होकर फिर से अपने को संकलित, संग्रहित और पुनर्रचित करता है, पर अनीति और अन्याय के ठेकेदार, जिसमेंप्रशासनिक अधिकारी भी शामिल हैं, उसे सिर उठाने के काबिल नहीं रहने देता है। पूर्वाग्रह और धन मद मेंचूर सेठ उसे बेईमान करार देता है, फिर भी वह अपना सर्वस्व लगाकर नई दुकान प्रारम्भ करता है। इस दुकान की प्रगति, नैतिकता और निष्ठा की विजय का संकेत देती है। पर आततायियों ने उसें भी नष्ट करवाने मेंजी-जान लगा दी। और यह दिलचस्प है कि इस कथा का नायक परास्त नहीं होता। यह कहानी परोक्ष रूप से नारी शक्ति के जिस उत्कर्ष की ओर इशारा करती है, उसे आज के फैशनेबुल नारीवादी नहीं समझ पाएंगे।

जब सेवा से बहिष्कृत नायक टूटने को होता है, तब उसे दंकान संभालने का साहस मोहिनी देती है। और जब बुल्ड़ोजर के नीचे अपनी तमाम आकांक्षा को ध्वस्त होने का नजारा नायक सपने मेंदेखता है, तो वहाँ भी उसें नारी शंक्ति का ही सहारा दिखता है-मैं अवश-सा उससे ऐसे लिपट गया, गोया ड़ूबने वाला बचाने को पकड़ ले। इस कथा के नायक का अपनी पत्नी मोहिनी से इस प्रकार लिपट जाना और उसमेंड़ूबते से बचाने वाले का बिम्ब देखना, निश्चित रूप से नारी के प्रति कथाकार के उत्तम सोच का परिचायक है। यहाँ नारी शक्ति के जिस संरचनात्मक पहलू के प्रति आदर भाव दिखाया गया है, वह निश्चय ही हमारे समाज और परिवार की सांगठनिक शक्ति को परिपूर्ण करेगा।

गाड़ी भर जांेक ट्रक ड्राईवर और क्लीनर के जीवन पर केन्द्रित कथा है। विषय और विवरण कें आधार पर यह कहना समीचीन होगा के राजनारायण ने जिस किसी भी विषय का स्पर्श किया है, उसकी सूक्ष्मता से भली भांति परिचय कराया है। रामबरन ड्राईवर और कल्लू क्लीनर की जिन्दगी के सहारे ड्राईवर पेशा पर इतने विस्तार से टिप्पणी हुई है कि जीवन की विड़म्बनाओं के साथ-साथ इस पेशे की कई सूक्ष्म बातें जानकारी के तौर पर भी उभर आती है। जीवन की भौतिक शर्तों को पूरा करने के लिए नौकरी चाहिए और यदि ट्रक ड्राईवर की नौकरी मिल जाए तो सब कुछ तो मिल जाएगा, बस जिन्दगी ही नहीं मिलेगी। पूरा जीवन सड़क पर बीत जाएगा। होटल से भूख शान्त करना और ढ़ाबे की पेशेवर छोकड़ियों के साथ यौन तुष्टि-यही जीवन उसे नसीब होता है। और इस दृश्य को विस्तार दिया गया है इस कहानी मंे। गाड़ी भर जोंक वाकई जांेक से लदी जिन्दगी का नमूना है, जहाँ विड़म्बना ही विड़म्बना है, पर यहाँ भी कहानी का नायक परास्त नहीं है।

ड़ूबते जलयान मेंबिपिन, दिवा और दीपू मेंप्रेम का जो त्रिकोण बना है, उसमेंकिसी के पक्ष मेंऔर किसी के विपक्ष मेंनिर्णय देना कठिन है इस कहानी के हर पात्र जलयान के यात्री हैं, जो ड़ूब रहा है। विड़म्बना यह है कि इस जलयान को ड़ूबने से कोई बचा नहीं सकता। फर्ज पूर्ति की नैतिकता मंे, अधिकार प्राप्ति के औचित्य मेंऔर आकांक्षाओं एवं सपनों की ललक मेंहर पात्र अपने-अपने तर्क के साथ अपना-अपना किरदार निभा रहा है। सामाजिक बंधन और व्यवस्था की शिकंजा यूँ कसा हुआ है कि कोई भी काम कोई भी पात्र पूरी प्रतिबद्धता और अन्य जोखिम उठाने के साहस के साथ नहीं कर रहा है। कुछ आगमन ऐसे होंते है, जिनकी प्रतीक्षा भी होती है और वे टल जाएँ तो निष्कृति बोध भी। इस पंक्ति मेंमानवीय द्वंद्व का उत्कर्ष निखरा है, जो भी हो, यह कहानी हमारे समाज मेंनैतिकता के पाखण्ड़ से प्रेम की हत्या और जीवन के काटों की फसल को चित्रित करती है। यद्यपि पूरी कहानी यातना और कल्पना मेंबीतती है, पर इसका अंत भी कथाकार ने ऋणात्मक नहीं किया है। एक शंका है कि हो न हो दीपू इस साहस के साथ आया हो कि वह हदवा को ले जाएगा और दिवा इस मनः स्थिति मेंहो कि वह दीपू का आमंत्रण स्वीकार लेगी।

भय कहानी एक नैतिकतावादी शिक्षक के मन मेंबैठे भी की कहानी है। कहानी यह तय करती है कि आज के समय मेंभय अनैतिक काम करने के बाद नहीं होता। किसी भी ईमानदार हरकत के बाद भय शुरू होता है और इनकी ईमानदारी के कारण सदा इनके मन मेंबैठा भय जब इन्हें तोडने की हद तक ले आता है, तब इन्ही की ईमानदारी की शिकार हुआ एक छात्र, इन्हें अपनी ईमानदारी पर कायम रहने की सलाह देता है। आदत कहानी फिर इसी ईमानदारी के कारण जहालत भोगते यादव जी की कहानी है। यादव जी सारी प्रतिकूल परिस्थितियो से लड़कर जीवन बिताता है, पर अपनी ईमानदारी नहीं छोड़ता।

इसी तरह हवाई जहाज, विसात, मुठभेंड़ और अन्य कहानियों भी इसी तरह के विषय पर लिखी गई हैं, जहाँ अनैतिकता की आँधी मेंनैतिकता के दीप प्रज्जवलित हैं। नैतिकता के आग्रही इस कथाकार का शिल्प-संस्कार और शैली-विस्तार थोड़ा निखरे ऐसी अपेक्षा पाठक सहज ही करेगा।

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