वीरेंद्र जैन: देखन में छोटे लगे घाव करे गंभीर
राजनारायण बोहरे
वीरेंद्र जैन दतिया का नाम व्यंग की फुटकर मार के लिए जाना जाता है |धर्म युग में वीरेंद्र जैन की रचनाएं काफी समय पहले से छपती रहीं हैं |वीरेंद्र जैन नाम के तीन लेखक हैं इनमें एक मुंबई में रहते हैं, दूसरे दिल्ली में रहते हैं और उपन्यासकार हैं और तीसरे वीरेंद्र दतिया के हैं जो व्यंग वाले हैं | इन्हीं दिनों भोपाल में रहते हैं |इन्हीं वीरेंद्र जैन का देखन में छोटे लगे नामक लघु कविताओं का संग्रह पिछले दिनों एकता प्रकाशन से प्रकाशित हुआ है|
इसके पहले वीरेंद्र जैन के सैटायर का संग्रह “एक लोहार की “पराग प्रकाशन दिल्ली से प्रकाशित हुआ था| प्रस्तुत संग्रह में कवि एक चौकन्ने व्यक्ति के रूप में अपने आसपास के जीवन, समाज ,राजनीति, घर, परिवार और वैचारिक जगत को देखता है| समाज में मौजूद आड़े, तिरछे समीकरण कवि को मजा देते हैं| इस मजे को कवि पाठकों के साथ बांटता हुआ भीतर ही भीतर जागरूक करता चलता है | फिल्मों में व्याप्त अश्लीलता को कवि वक्रोक्ति से लताड़ता है-
जानवरों वाली फिल्में
शायद इसलिए सफल होती हैं
क्योंकि
कम वस्त्र में अभिनय करने की
प्रतियोगिता में
अभिनेत्रियों के लिए चुनौती होती हैं
गिरते स्तर की कमर्शियल कविता के लिए कवि सम्मेलनों के बारे में वीरेंद्र जैन का कथन है-
जब से व्यापारी
मुशायरे में आने लगे हैं
शेर की जगह
शेयर पढ़ने जाने लगे हैं
शराब की फैक्ट्री में नाक पर रूमाल रखें घूमती कवियत्री शराब की तेज गंध से पाने का रहस्य बताती है कि-
वह मंच की कवियत्री है
मंच पर आती जाती है
और ऐसी तेज गंध
वहां रोज आती है
दूरदर्शन का झूठा प्रचार भी व्यंग की नजर से नहीं छुपता |अपने बेटे से उसका भविष्य पिता पूछता है बेट कहता है
नई पिताजी नहीं
मैं झूठ के सहारे ही
जीवन का सच्चा रास्ता चुन लूंगा
बड़ा होकर दूरदर्शन का
समाचार वाचक बनूंगा
सरकारी घोषणाओं से लाभ उठाने के लिए ग्रामवासी के अनोखे काम करते हैं, कवि लिखते हैं-
जब मेरे गांव वालों ने
पंद्रह सौ से अधिक आबादी वाले
सभी गांवों को सड़कों से जोड़ देने की
घोषणा सुनी
तो खुशी से
एक दूसरे से लिपट गए
उसी दिन से गांव की आबादी
पंद्रह सौ से अधिक करने के
पुनीत प्रयास में जुट गए
सरकारी कर्मचारी का दफ्तरों में कार्य विवरण लिखिए-
चेहरा उदास उदास
दिखते थके थके
मित्र क्या आज ऑफिस
में सो नहीं सके
वीरेंद्र जैन लिखते हैं एक गणित का सवाल हल कीजिए
सौ समाजवादी नल किसी देश को
चालीस साल में समाजवाद से भर पाते हैं
और चार सौ नल पाँच साल में
उसे खाली कर देते हैं
तो बताइए
वह देश क्या
कभी समाजवाद से भरेगा
देखें सवाल को कौन हल करेगा
महंगाई का सर्वाधिक कोप झेलती महिलाएं ही जब उसके विरोध में मुट्ठियां नहीं बांध रही तो फैशनेबल ऐसी निष्क्रिय महिलाओं के प्रति वीरेन्द्र कह देते हैं
तुमसे यदि
महंगाई का विरोध भी नहीं किया जाता
तो हे आधुनिकाये
कम से कम चूड़ियां पहन आओ
इसी क्रम की एक रचना देखिए
हमारे यहां इतनी कुशलता से वस्त्र सिले जाते हैं
कि छुपाने वाले अंग
साफ-साफ नजर आते हैं
संसद की बहुत सी चीजें वीरेन्द्र अपनी रचनाओं में लाते हैं –
संसद में
जो सबसे कम बोल पाता है
दुर्भाग्य देखिए
ह स्पीकर कहलाता है
यह भी देखिए
जब एक प्रखर संसद सदस्य
किसी बात पर अपनी पत्नी से लड़े
और उनके मुंह से
कुछ अति कठोर शब्द निकल पड़े
तो उनकी पुत्री ने टोका और कहा
पिताजी घर है [
इस बात पर ध्यान दीजिए
कृपया संसदीय भाषा का
उपयोग मत कीजिए
वीरेंद्र जैन ने किसी भी क्षेत्र को किसी भी संस्था को अपने तिरछी नजर से देखा है, लेकिन हर बात बहुत छोटे अक्षरों में छोटे शब्दों में और छोटे चरणों में कही है| उनका यह संग्रह स्मरणीय होगा |वीरेंद्र जैन एक गंभीर कवि हैं पर अपनी बातें संक्षेप में कहने में उन्हें महारत हासिल है| उनका यह लघु कविता संकलन बहुत शानदार है, इसका खूब स्वागत किया जा रहा है और इसकी कविताएं लोग मंच संचालन ओं आपसी बातचीत को रोचक बनाने के लिए करते हैं | उनके यश प्रसार के लिए और भाबीलेखन के लिए बहुत सारी शुभकामनाएं