मध्यमवर्गीय मानसिकता का प्रामाणिक दस्तावेज
मनोजकुमार पांडेय
इज्जत आबरू कथा सम्राट प्रेमचन्द्र की परम्परा की एक नवीन प्रस्तुति है। राजनारायण बोहरे के इस कहानी-संग्रह में कुल जमा एक दर्जन कहानियाँ है और लगभग सभी कहानियाँ विविध विषयों से जुड़ी हैं, जिनका सरोकार आम इंसान से है। आम इंसान के रोजमर्रा के क्रिया-कलाप से है। पुस्तक शीर्षक के अन्तर्गत लिखी गई कहानी इज्जत-आबरू प्रेमचन्द्र की स्टाइल की एक अनूठी कहानी है। इस कहानी को पढ़ते हुए प्रेमचन्द्र के पास बरबस ही याद आने लगते हैं। खेतिहर मजदूर की समस्या ही नहीं बल्कि अकाल और महामारी की मार को झेलते मानव-मात्र की जिजीविषा की तस्वीर श्री बोहरे की कहानियों में उभरी है। यथार्थ की जो ज्वलंत तस्वीर प्रेमचन्द्र ने प्रस्तुत की थी और संवेदनशील दृष्टिकोण से उसका जो कलेवर भले ही आदर्शवादी हो-प्रस्तुत किया था, वैसा ही कुछ इज्जत-आबरू में भी है। भूखे मरना कबूल मगर मजदूरी नहीं करने की अभिजात्यवादी सोच इस कहानी में देखी जा सकती है। पेट पर पत्थर रखकर सोना कबूल है। मगर मरजाद (इज्जत-आबरू) नहीं जाने देंगे।
गाँव में अकाल पड़ा है। खेत-खलिहान सूख चुके हैं। जानवर तो जानवर इंसान तक के लिए चारा-पानी मयस्सर नहीं है, पर फिर भी मजदूरी करने में तौहीन महसूस कर रहें हैं,-यहाँ के लोग। आज का नौजवान जो कि ढकोसलों में यकीन नहीं रखता, उसका प्रतिनिधित्व करता खेता घर की हालत देखकर मजदूरी करना चाहता है, मगर उसका दादा इज्जत-आबरू की दुहाई देकर उसे वैसा करने से मना करता है। इस खोखली सी इज्जत के पीछे हमारे निम्न मध्यमवर्ग की सोच आज भी यही है।
कहा जा चुका है कि इस संग्रह की अधिकांश कहानियाँ रोजमर्रा की जिन्दगी से ताल्लुक रखती है। “बुल्डोजर” कहानी को ही लें। इस कहानी की कथावस्तु बिल्कुल ताजी है। “ड़ूबते जलयान” कहानी भी आज के यथार्थ की बिल्कुल सही गाथा है। बुजुर्गो के प्रति बढ़ती लापरवाही आज एक आम नागरिक समस्या बन चुकी है। आदत कहानी आज के इंसान की एक बहुत सूक्ष्म किन्तु बहुत बड़ी सच्चाई को उजागर करती है। “साधु यह देश विराना” कहानी कलयुगी साधुओं की पोल खोलती है। नेतागिरी की तरह साधुगिरी भी आज एक पेशा बन गया है, जहाँ आत्मा-परमात्मा की चिन्ता कम भोग विलास और ऐश्वर्य का तांड़व अधिक हो रहा है।
संग्रह की अधिकांश कहानियाँ चलचित्र की तरह फ्लैश-बैक प्रणाली (शैली) में लिखी गई हैं, जिसमें जिन्दगी के कई अहम् मुद्दों को बखूबी कैद करने का प्रयास किया गया है। कथ्य वैविध्य के साथ शिल्प को भी विविधता देने की कोशिश लेखक ने ही है। अनगढ़, गँवारू भाषा-शैली और उसकी संवेदनीयता को कहानीकार ने ठीक ढंग से पकड़ा है, इसमें कोई शक नहीं। परन्तु कही-कहीं यह अनगढ़ता खटकने भी लगती है तथा कई शब्दों का प्रयोग बड़ा बेतुका है जैसे-गाड़ीबाजी। बहरहाल, ये कहानियाँ पाठकीय संवेदना जगाने में निश्चित रूप से मददगार हो सकती है। आज के परिवेश के चलाऊ मुहावरों से बचकर बोहरे ने कुछ नया देने का प्रयास किया है, जो स्वागत योग्य है।
इन्दौर म0प्र0
राजनारायण बोहरे
जन्म
बीस सितम्बर उनसठ को अशोकनगर म0प्र0
शिक्षा
पत्रकारिता एवं लॉ में स्नातक तथा हिन्दी साहित्य में स्नातकोत्तर
प्रकाशन
‘इज्जत आबरू’ एवं ‘ गोस्टा तथा अन्य कहानियां’ ‘‘हादसा’ तीन कथा संग्रह
‘मुखबिर’ एक उपन्यास एवं
किशोरों के लिए तीन उपन्यास
सम्मान
म0प्र0हिन्दी साहित्य सम्मेलन का वागीश्वरी पुरस्कार एवं
साहित्य अकादमी मध्यप्रदेश का ‘ सुभद्राकुमारी चौहान पुरस्कार’
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