एकांकी-मालती माधवम् रामगोपाल तिवारी द्वारा नाटक में हिंदी पीडीएफ

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एकांकी-मालती माधवम्

एकांकी-मालती माधवम्

भवभूति मंचपर उपस्थित होकर- मैं भवभूति आज अपने नाटकों में स्वयं को खोजने के लिये उत्सुक हूँ ! इनमें मैं कहाँ-कहाँ हूँ ? अरे ! अरे! याद आया मालती माधवम् नाटक में माधव के रूप में मैं ही तो हूँ । चलिये, इस दृष्टि से हम इस नाटक का अवलोकन करें । सूत्रधार आ रहा है मुझे सूत्रधार के आने से नेपथ्य में चले जाना चाहिये । (मंच के एक ओर से भवभूति का जाना और दूसरी ओर से सूत्रधार का आना )

सूत्रधार - दक्षिण देश में पद्मपुर नामक नगर है वहाँ पर तैतरीय शाखा वाले पंक्ति पावन कश्यप गेात्रीय, दक्षिणाग्नि आदि पाँच अग्नियों को पूजने वाले, सोमपाई, चन्द्रायण आदि व्रत करने वाले उदुम्बर नाम वाले, वेद तथा शुद्ध चैतन्य रूप ब्राह्मणत्व को जानने वाले कुछ ब्राह्म्ण रहते हैं ।

उस कुल में उत्पन्न पूज्यनीय भट्टगोपाल के पौत्र पवित्र कीर्ति वाले नीलकण्ड के पुत्र व्याकरण मीमांसा और न्याय शास्त्र के विद्वान भवभूति उपाधि वाले श्रीकण्ठ नामक कवि ने नटों में स्वाभाविक सौहार्द से व्यवहार कर ऐसे गुणों से युक्त अपनी कृति मालती माधवम् हमारे हाथों में अर्पित की है ।

(यह कहकर सूत्रधार सभी पात्रों का परिचय क्रम से कराने के बाद ,मंच से पात्रों के साथ निकल जाता है और भवभूति मंच पर आते हैं ) भवभूति-मित्रो, आपने सूत्रधार से मेरा परिचय जान लिया। अब इस एकांकी की दृष्टि से सूत्रधार का कार्य में ही करूँ -कालान्तर में भूरिवसु पद्मावती के मंत्री हुये और उसी तरह देवरात को विदर्भराज का मंत्री पद प्राप्त हुआ । अध्ययन काल में दोनों में मित्रता को परिपक्व बनाये रखने के लिये उनके यहॉं पुत्र-पुत्री होने पर उनका विवाह संबन्ध स्थापित करेंगे। समय से भूरिवसु को मालती नाम की पुत्री और देवरात को माधव नाम का पुत्र उत्पन्न हुआ । जब उन दोनों की प्रतिज्ञा पूर्ण करने का अवसर आया पद्मावती के राजा के नंदन नामक सचिव ने राजा को अनुकूल बनाकर मालती के साथ अपना विवाह करने के लिये भूरिवसु से याचना की ।

अरे ! मैने आपको सपाट कथ्य में उलझा लिया । अब क्रमशः लवंगिका मालती और कामान्दकी का अभिनय करने वाले नटों की बात सुनें (यह कहते हुये भवभूति मंच से निकल जाते है मंच पर बातें करते हुये लवंगिका मालती और कामांदकी का प्रवेश)

लवंगिका- बात यह है कि मंत्री भूरिवसु, राजा के वचन का अनुसरण कर नंदन को मालती दान करेंगे इसीलिये सब लोग उनकी निंदा कर रहे हैं ।

मालती- पिताजी ने राजा के लिये मुझको कैसे उपहार बनाया ?

कामन्दकी- आश्चर्य है, रूप और उम्र से वर के गुणों की चिन्ता न करके, यह कर्म मंत्री भूरिवसु जी ने कैसे स्वीकार कर लिया? किन्तु पिता और भाग्य ही प्रायः कुमारियों का विवाह आदि का सम्पादन कर सकते हैं।

लवंगिका - यह माधव कौन है ? जिनकी भगवती वात्सल्यपूर्ण ढंग से चिन्ता करतीं हैं।

कामान्दकी - सुनो, विदर्भराज के मंत्री सम्पूर्ण मनुष्यांे में शिरो-भूषण देवरात नाम के हैं

। जो एक ही गुरू से पढने के कारण तुम्हारे पिता जैसे हैं।

लवंगिका - भगवती आपने भूरिवसु और देवरात के साथ गुरुजन से विद्या ग्रहण की है, ऐसा उस समय को जानने वाले आपस में कहते हैं ।

कामान्दकी- यहाँ पर वात्सल्यावस्था के मित्र मकरंद के साथ माधव न्याय शास्त्र का अध्ययन कर रहे हैं ।

(तीनों बाते करते हुयें मंच से चले जाते है और भवभूति मंच पर आकर)

भवभूति - मित्रो, यहाँ मैं भवभूति स्वयं उपस्थिति होने को व्यग्र हो रहा हूँ । माधव और मैं विदर्भ प्रान्त के है । दोनों न्यायश्शास्त्र का अध्ययन करने हेतु पद्मपुर से पद्मावती आये हैं । इन तथ्यों के कारण आने वाले समय में लोग मुझे माधव पात्र में खोजेंगे और मालती माधव के प्रेम प्रसंग को मेरे जीवन से जोड़ने का प्रयास करेंगे ।

अरे ! इस समय तो मंच पर बुद्धरक्षिता, मालती और माधव बातचीत करते हुये उपस्थित हो रहे हैं?

(भवभूति का मंच से जाना और बुद्धरक्षिता, मालती और माधव का आना )

बुद्धरक्षिता - बचाओ-बचाओं..... । किन्ही के मारे जाने और किन्हीं के भाग जाने से रक्षक ,मंत्री नंदन की बहिन और हमारी प्रिय सखी मदयंन्तिका पर पिजड़े को तोडकर निकला शेर आक्रमण कर रहा है ।

मालती -लवंगिके, यह तो बहुत ही कष्ट की बात है ।

माधव - बुद्धराक्षिते वह शेर कहाँ है ?

बुद्धरक्षिता - महाभाग, वह शेर उद्यान के बाहर रास्तों के अग्रभाग में है ।

माधव - मैं उस स्थल पर पहुँचने को तैयार हूँ।

(तीनों मंच से चले जाते है और भवभूति मंच पर उपस्थित होकर )

भवभूति-मित्रों, उस शेर को माधव के मित्र मकरंद ने तलवार से मार डाला। इस तरह नंदन की बहिन मदयन्तिका और मकरंद में प्रणय का संचार हो गया। उधर राजा की आज्ञा से नंदन के साथ मालती के विवाह की बात तय हो गयी । यह जानकर मदयन्तिका खुश हुई - मेरी सखी मालती मेरी भाभी होकर हमारे साथ घर में रहेगी किन्तु मालती और माधव निराशा के समुद्र में गोते लगाने लगे। अपनी इच्छा की पूर्ति के लिये माधव वामाचार का अनुसरण करते हुये श्मशान में पिशाचों को महामांस विक्रय करने लगा । इस समय मंच पर क्रोध में वामाचरणी कपालकुण्डला आ रही है । इस निमित्त मुझे यहाँ से हटना ही पड़ेगा ।

( भवभूति का जाना और कपालकुण्डला का मंच पर आना )

कपालकुण्डला-ओ पापी! दुष्ट स्वभाव वाले, मालती के लिये हमारे गुरूजी को मारने

वाले नीच माधव, निर्दय भाव से प्रहार करने वाले स्त्री कहकर तूने

मेरी अवज्ञा की । इस कारण से तू कपालकुण्डला के क्रोध का फल

अवश्य भोगेगा। ।

(ऐसा कहकर कपालकुण्डला का मंच से जाना और भवभूति का आना )

भवभूति- मित्रों अभी मु्रझे मंच पर नहीं आना चाहिये । इस समय तो मंच पर लवंगिका, कामांदगी, मालती, माधव और मकरंद का प्रवेश है ।

(भवभूति का मंच से जाना और लवंगिका, कामान्दकी, मालती, माधव और मकरंद का प्र वेश)

लवंगिका- भगवती कृष्णपक्ष की चतुर्दशी की रात में श्मशान में जाकर कठोर साधना करने वाले एवं पाखण्डी अधोरघण्ट को मारने वाले माधव साहसी पुरुष हैं इस कारण प्रिय सखी मालती कंपित हुर्ह हैं।

कामान्दकी - लवंगिके, तुमने उचित समय पर गुरुतर अनुराग और उपकार का कार्य किया है, वत्स माधव ।

माधव- आज्ञा कीजिये ।

कामान्दकी- हमारे मंत्री भूरिवसु की मालती एक श्रेष्ठ संतान है । उसे ऐश्वर्य शाली और परस्पर गुणों में अनुरूप तुम दोनों के वैवाहिक संबंध में अनुराग करने वाले ब्रह्माजी, कामदेव और मैं , इस प्रकार से हम सब तुम्हें मालती अर्पित करते हैं।

मकरंद - तव तो भगवती का चरणानुग्रह फलित हुआ ।

माधव - भगवती का मुख अतिशय ऑसुओं से युक्त हो रहा है ।

कामान्दकी- नेत्रों का परिमार्जन, वत्स, कल्याण करने की इच्छा से है । इस सुन्दरी मालती में तुम स्नेह रूपी करूणा से युक्त हो।

माधव - आश्चर्य है यह तो वात्सल्यता से प्रसंग औचित्य का उल्लंघन होगा।

कामन्दकी- वत्स, माधव।

माधव - भगवती आज्ञा दें ।

कामन्दकी- इस मालती को स्वीकार करो ।

माधव - स्वीकार करता हूँ। आपकी आज्ञा शिरोधार्य है।

कामन्दकी- वत्स माधव, वत्से मालती !

मालती एवं माधव- भगवती आज्ञा दें कामान्दकी - पति एर्वं पत्नी से सम्पूर्ण बंधु

समूह, कुछ अभिलाषायें रखते हैं । यह तुम दोनों को ज्ञात हो ।

मकरंद - भगवती की मुझे क्या आज्ञा है ?

कामन्दकी - वत्स मकरंद, तुम विवाह प्रयोजन वाले नंदन के निमित्त मालती के वेश में विवाह के लिये तैयार हो जाओ ।

मकरंद - आपकी जो आज्ञा । मैं मालती का वेश धारण कर लेता हूँ ।

माधव - भगवती, नंदन ने पुण्य ही किया है, जो वे ऐसे वेशधारी प्रिय मित्र को मन से कुछ काल तक स्वीकार करेंगे ।

(सभी के हास्य का स्वर)

(सभी का मंच से जाना और भवभूति का आना)

भवभूति -मित्रो, बुद्धरक्षिता मंच पर आ र्गइं हैं। सुनें ये क्या कह रही है ?

(यह कहते हुये भवभूति का जाना और बुद्धरक्षिता का आना)

बूद्धरक्षिता- अरे! मालती वेश की शोभा से ठगे गये नंदन ने जिस मकरंद का

पाणिग्रहण किया है । ऐसे मकरंद जी ने मंत्री भूरिवसु के भवन में

भगवती कामन्दकी का कार्य कुशलता पूर्वक किया है। इस समय काम

के आवेग को न सहने वाला नंदन समागम के लिये उसके चरणों में

गिरकर उससे प्रार्थना करने लगता है। किन्तु उसके अस्वीकार करने

पर, बलपूर्वक पकड़ने के लिये उदत्त हो जाता है। तब मकरंद नंदन को

कठोरता से हटा देता है। नंदन लक्ष्यहीन होने से क्रोध के आवेग में

शपथके साथ प्रतिज्ञा करके उस भवन से निकल जाता है। अब मैं

नंदन की बहिन मदयन्तिका के साथ मकरंद का संयोग करांउँगी ।

मदयन्तिका के हृदय में सिंह के आक्रमण से रक्षा के कारण मकरंद से

असीम प्रणय और श्रद्धा हो गयी है ।

(बुद्धरक्षिता का मंच से जाना और माधव तथा कलहंसका प्रवेश)

माधव- कहो कलहंस क्या समाचार हैं? कलहंस-उस ओर से आने वाले हम

लोगों ने जैसे ही कोलाहल सुना, सोचता हूँ मकरंद को सैन्य पुरुषों ने घेर लिया है ।

माधव - अकेले होने पर भी बहुत लोगों के साथ मित्र का जो यह संघर्ष हो रहा हैं। यह उनके लिये सामान्य बात है । मुझे प्रिय मित्र मकरंद के पास कलहंस को लेकर शीघ्र पहुँचना चाहिये ।

(सभी के जाने के बाद भवभूति का आना)

भवभूति -मित्रो, इस समय वामाचारणी कपालकुण्डला और मालती की वार्तालाप सुनें ।

(यह कहते हुये भवभूति का मंच से जाना और कपालकुण्डला और मालती का आनाभभ्)

कपालकुण्डला-ओह, पापिनी मालती ठहर।

मालती - हे....आर्यपुत्र माधव! मेरी सहायता करो।

कपालकूुण्डला-अरी बुला-बुला! हमारे तपस्वी अघोरघण्ट का हत्यारा, तेरा प्यारा माधव यहाँ कहाँ है । कहाँ हैं तेरा वह पति ,जो तेरी रक्षा करे? बाज के आक्रमण से भयभीत मुखवाली मादा बटेर की तरह तुझे मैंने ग्रस लिया है। तू क्या यह नहीं देख रही है । अब मैं यहाँ से तुझे साथ लेकर निकलती हूँ।

(कपालकुण्डला मालती को लेकर मंच से चली जाती है भवभूति मंच पर आकर )

भवभूति- मित्रो, माधव सहायता के लिये मित्र मकरंद के पास पहुँचे । माधव मकरंद

और कलहंस के साथ राजभटों की विकट लड़ाई होने लगी। पद्मावती के

राजा छत से लड़ाई का देखने लगे । रण में कई सिपाही क्षत-विक्षत

होकर पलायन करने लगे। इस रोमाँचकारी को देखकर राजा माधव से

प्रभावित हो गये और उसे उन्होंने क्षमा कर दिया। महाराज की प्रशंसा

करते हुये ये तीनों उद्यान में पहुँचे । वहाँ पता चला, मालती लापता हो

चुकी है। वे मालती को खोजने लगे । माधव उनके न मिलने से निराश

होकर अपने मित्र मकरंद से कह रहा है ।

(भवभूति का मंच से निकलना दूसरी ओर से मकरंद और माधव का आना)

माधव - हा, प्रिय मित्र मुझे आश्वस्त करो । प्यारी मालती को पाने के लिये तो मैं निराश हो गया हॅूँ । मकरंद -मित्र, साहसी पुरुष निराश नहीं होते ।

(मंच पर इसी समय सौदामिनी उपस्थित होती है।)

मकरंद - माताजी आप कौन है और हमारे पास किसलिये आईं हैं।

सौदामिनी - वत्स, मकरंद मैं योगिनी सौदामिनी हूँ । मैं मालती के चिन्ह लेकर आई हॅूँ।

मकरंद - क्या मालती जीवित है?शीघ्र कहें! सौदामिनी -हाँ, वत्स मालती जीवित है

मुझे शीघ्र माधव के पास ले चलो ।

मकरंद - जैसी भगवती की आज्ञा । ये रहे हमारे प्रिय मित्र्र माधव।

सौदामिनी- माधव को यह वकुलमाला देने का यह समुचित अवसर है । वत्स माधव यह माला लीजिये।

माधव- मातेश्वरी , यह वकुलमाला मेरे द्वारा बनाई गई है। यह फूलों की माला आपके पास कैसे आई ?

मतकरंद- मालती के चिन्ह को लाने वाली ये योगेश्वरी हैं ।

माधव- मैं आपको प्रणाम करता हूँ । कहिये क्या मेरी प्रिया जीवित है ।

सौदामिनी - वत्स, विश्वास करें । वह कल्याणी जीवित है ।

माधव एवं मकरंद- वे कहाँ है ?

सौदामिनी -वत्स, आ वेश मत करो ।

माधव एवं मकरंद- आर्या के चरणों में हमारा सादर प्रणाम स्वीकार हो ।

सौदामिनी - तुम लोग यह जान लो- मैंने गुरू सेवा तथा विशिष्ट अनुष्ठान, तपस्या, तंत्र-मंत्र, और योग के अभ्यास से प्रभावी सिद्धि तुम लोगों के कल्याण के लिये ही अर्जित की है ।

मकरंद - आश्चर्य है ऐसी योग साधना !

(सभी का मंच से जाना और भवभूति मंच पर आकर) भवभूति - मित्रो, अब हम सब इस नाटक के अंतिम दशम अंक के पडाव पर आ पहुँचे हैं । उधर कामन्दकी, लवंगिका और मदयन्तिका आदि स्त्रियाँ शोक से व्याकुल होकर उसी वन में मालती की खोज कर रही थी । किन्तु मालती का कहीं भी पता नहीं चला । सब ने विचार कर लिया कि मालती के अभाव में हमारा जीवन व्यर्थ है । अतः वे सब अपने प्राण त्यागने के लिये पहाड की चोटी से कूदना चाहती थीं कि उसी समय मकरंद सौदामिनी के कार्य की प्रशंसा करते हुये सामने आया। मंच पर सौदामिनी के सम्बन्ध में कामन्दकी और मकरंद बातें कर रहे हैं । उसे ध्यान से सुनें -

(भवभूति का जाना और कामन्दकी और मकरंद का आना) कामन्दकी - वत्स मकरंद यहाँ कैसे आ गया ! यह तेजोमण्डल क्या है ?

मकरंद - ये योगेश्वरीअपनी महिमा से यह सब करने में समर्थ है किन्तु नेपथ्य की ये बातें - नेपथ्य से -अतिशय कारुण! लोगों की भीड़ कैसे हो रही है? मंत्री भूरिवसु मालती का विनाश जानकर जीवन से ही विरक्त होकर अग्नि में प्र वेश करने के लिये उद्दत हो रहे हैं । इसी कारण इस समय हम लोग हतप्रभ हैं । मालती और माधव का दर्शनोत्सव और उनकी उपस्थिति!

भवभूति मंच पर आकर-मित्रो, सौदामिनी मंत्री भूरिवसु को अग्नि प्रवेश से

बचा लेती है। उनकी प्रशंसा करते हुये कामन्दकी माधव मदयन्तिका

और लवंगिका मंच पर आ रही है ।

(भवभूति का यह कहते हुये जाना और कामन्दकी, माधव और मकरंद का मंच पर आते है)

कामन्दकी - वत्स, माधव, वत्स मकरंद यह क्या है ।

माधव और मकरंद - भगवती, इन आर्या योगिनी सौदामिनी ने कपालकुण्डला के क्रोध से हम लोगों का उद्धार किया है ।

कामन्दकी - यह अघोरघण्ट के बध का परिणाम है ।

लवंगिका और मदयंतिका - आश्चर्य है भाग्य से परिणाम में रमणीयता आ गई ।

सौदामिनी - भगवती, में आपकी पूर्व शिष्या सौदामिनी आपको प्रणाम करती हूँ।

कामन्दकी- अरी !सौदामिनी, तुम्हारा कल्याण हो ।

माधव और मकरंद- ये भगवती कामन्दकी का पक्षपात है अब ये बीच में ही उनकी शिष्या सौदामिनी आ गई ।

कामन्दकी - मंत्री भूरिवसु को जीवनदान करने से ये तो धर्म को धारण करने वाली हैं सौदामिनी मेरे शरीर का आलिंगन कर मुझे आनंदित करो

सौदामिनी - आप लोगों की अत्यंत सज्जनता मुझे लज्जित कर रही है । भगवती कामंदिकी का पद्मावती के राजा ने नंदन से प्रशंसित मंत्री भूरिवसु के समक्ष पत्र लिखकर चिरंजीव माधव के पास भेजा है ।

कामन्दकी - पत्र पढकर देखती हूँ-(पत्र पढ़ती हैं) राजा आज्ञा करते है, प्रशंसनीय गुणीजनों में अग्रणीय श्रेष्ठवंश वाले, विपत्ति को दूर करने वाले और अतिशय प्रिय महान जामाता! आप पर मैं अत्यंत प्रशन्न हूँ । अतः मैं आपकी नीति के लिये और आपके प्रियवर मकरंद ओैर मदयन्तिका के परिणय को अर्शीवाद देता हूँ । वत्स माधव आपने पत्र सुना ।

माधव - मातेश्वरी ! पत्र सुन लिया। मैं तो कृतकृत्य हो गया हूँ ।

लवंगिका- इस समय श्रीमान माधव की अभिलाषा पूर्ण हो गई है । मकरंद, अवलोकिता, बद्धरक्षिता और कलहंस आनंद विभोर होकर नाच रहे हैं ।

सभी मंच से हट जाते है भवभूति मंच पर आकर -आप सब लवंगिका

की बातें सुन चुके । अब आप सोच रहे होंगे इस नाटक का उपसंहार

कैसे हुआ ? इसके लिये लवंगिका और कामन्दकी मंच पर आती है ।

(भवभूति का जाना और लवंगिका और कामन्दकी का आना)

लवंगिका - भगवती कामन्दकी, इस बात का लोगों को क्या उत्तर देना है ।

कामन्दकी- इस समय मकरंद के साथ मदयंतिका का विवाह होने से नंदन के क्रोध से सब मुक्त गये हैं राजा के कोप का भी परिहार हो गया है ।

(लवंगिका, कामन्दकी की उपस्थिति में भवभूति अन्य पात्रों के साथ उपस्थित हो कर)

भवभूति - आप सभी ने मेरी नाट्यकृति मालती माधवम् का नाट्य मंचन देखा, सुना और समझा ।

इसके लिये मैं भवभूति आप सबका बहुत-बहुत आभारी हूँ । धन्यवाद् ।

(सभी पात्र हाथ जोड़कर दर्शकों का अभिवादन करते हैं ।

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नोट- दिनांक13-10-08 को अखिल भारतिय भवभूति समारोह में इस नाटक का मंचन किया जा चुका हैं। 000000