क्लीनचिट - 14 Vijay Raval द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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क्लीनचिट - 14

अंक - चौदह/१४

सुबह ६:१० के आसपास अचानक शेखर की आंखें खुलते ही सबसे पहले नज़र आलोक के बेड पर जाते ही दिल बैठ गया। आलोक बेड पर नहीं था इसलिए एकदम से बेड पर से उठकर आसपास नज़र करी लेकिन दिखा नहीं इसलिए बाल्कनी की ओर जाकर नजर डाली तो बाल्कनी में लॉन्ग चेयर पर बैठकर दोनों पैर लंबे करके बाल्कनी की किनारे पर टिकाकर आंखें बंद करके बैठे हुए आलोक को देखकर शेखर की जान मेें जान आई।

एक अनजाने डर के साथ धीरे से आलोक के पास जाकर मुश्किल से बोला,
'गुड मॉर्निंग, क्यूं इतना जल्दी जाग गया, आर यू ओ.के.?'
आंखें खोलकर शेखर की ओर थोड़ी देर तक देखता ही रहा, बाद में प्रत्युत्तर देते हुए इतना ही बोला,

'गुड मॉर्निंग।'

आलोक के ऐसे अजीब बिहेवियर पर से शेखर उसकी मनःस्थिति का कोर्इ भी अनुमान नहीं लगा सका इसलिए बोला, आगे क्या बोलना है? बोलना है भी कि नहीं? उलझ गया, कुछ भी नहीं सूझा इसलिए बोला,
'अच्छा मैं हम दोनों के लिए कॉफी लेकर आता हूं ठीक है।'इसके बाद भी आलोक की ओर से कोर्इ भी रिएक्शन नहीं आया। उसके बाद रूम में से बाहर निकलकर पेसेज मेें से किचन की जाते जाते सेकंड फ्लोर की सीढि़यों के पायदान पर अदिती को बैठे हुए देखकर शेखर को आश्चर्य हुआ, मन ही मन बोला इतनी सुबह यहां इस तरह?

'गुड मॉर्निंग अदिती, इतनी सुबह, लेकिन यहां क्यूं बैठी हो? क्या हुआ?'

'अरे पांच बजे से जाग रही हूं। आलोक की प्रतिक्रिया सुनने के इन्तज़ार में पलभर भी चैन नहीं मिला। पूरी रात घबराहट औैर बेचैनी में बीती है। वाे क्या कर रहा है? सो रहा है?'
'नहीं वो तो मुझसे भी पहले पता नहीं कब से जाग गया है, चुपचाप बैठा है बाल्कनी में।'
'कुछ बोला वाे?'
'हां, सिर्फ़ 'गुड मॉर्निंग' वाे भी एकदम अजीब तरीके से मेरी ओर देखकर।'
'तुम कहां जा रहे हो?'
'मैं कॉफी बनाने जा रहा था तभी तुम पर नज़र पड़ी।'
'शेखर तुम बैठो उसके साथ, मैं कॉफी लेकर आती हूं।
इतना कहकर अदिती किचन की ओर चली गई औैर शेखर आलोक के पास।
अपेक्षित या अनपेक्षित संभावना के प्रतीक्षा का परिणाम का स्वरूप विराट होगा या सूक्ष्म? सफ़र अनंत है सफ़र का अंत? अगर औैर मगर की तुलना के संतुलित मध्यस्थता के संज्ञा का परिणाम कैसे निर्धारित करेेंगे? इसी तरह के सब मुश्किल सवालों का आयुष्य निर्धारित था सिर्फ़ आलोक के अब आनेवाले संवाद की संवेदना के शब्दार्थ पर।
आलोक अभी भी एकदम चुपचाप उसी मुद्रा में किसी गहन विचार में डूबा बाल्कनी में बैठा था।
अदिती कॉफी लेकर आए तब तक शेखर ने चुप रहना मुनासिब समझा। शेखर को अपनी सिचुएशन अभी ऐसी लग रही थी कि खुद किसी सुषुप्त ज्वालामुखी के चट्टान पर बैठा हो। तरह तरह की अजीबोगरीब मान्यताएं की माला दिमाग में उधम मचा रही थी। अगर आलोक का व्यवहार अपेक्षा से विपरीत दिशा में घूम गया तो, इसके बाद की रणनीति को कैसे तय किया जाय उसके अनेक विचारों के भंवर में फंसकर एकटक आलोक की समझ में न आए ऐसी भाव भंगिमा का अवलोकन करता रहा। आलोक का कोर्इ रिएक्शन आए उससे पहले ही अदिती आ जाए ऐसा शेखर सोच ही रहा था तभी... आलोक बाल्कनी में से रूम में आया औैर उस ओर से अदिती कॉफी लेकर रूम में एण्ट्री करके कॉफी ट्रे टेबल पर अभी रखकर अदिती आलोक के सामने आते ही अभी कुछ बोले उससे पहले ही अचानक से आलोक को छल प्रतीत हुआ औैर आखें फट गई हो ऐसे अतिशय भावुक औैर बेहद खुश के आंसुओं के साथ अदिती को बांहों में जकड़कर बोला.,

'ओह माय गॉड अदिती.. तुम यहां? ओह..नो ओह नो।"

इस दृश्य के साथ साथ शेखर औैर अदिती के सोचने औैर समझने की शक्ति भी थोड़े क्षणों के लिए स्थिर होकर चिपक गई। आलोक के वाणी व्यवहार देखकर तो शेखर औैर अदिती उलझकर ऐसे स्तब्ध हो गए जैसे कोर्इ आर. डी. एक्स. का धमाका सुनकर थोड़े समय के लिए अपना अस्तित्व इस तरह भूल जाता है कि जीवित है या मृत्यु हो गई। वाे समझने की असमर्थता की मनोदशा में हाे ऐसा अनुभव हाे गया। आलोक के शब्द सुने ऐसा विश्वास नहीं हुआ। आलोक का नहीं लेकिन अब शेखर औैर अदिती का दिमाग घूमने लगा था।

'तुम.. तुम.. थी, कहां.. कहां.. थी? अरे... अदिती देखो, पूछो पूछो इस शेखर से पूछो कहां कहां किस तरह किस हालत में तुम्हें ढूंढने की कोशिश की थी हम दोनों ने औैर तुम? कहां थी अब तक इतने दिनों से औैर..'
औैर फ़िर अचानक कुछ याद आते ही आगे बोलते हुए रुककर सिर पकड़कर सोफ़ा पर बैठते हुए बोला,
'लेकिन शेखर मैं यहां तुम्हारे घर पर क्या कर रहा हूं? औैर येे अदिती क्यूं, कब औैर कैसे येे... येे.. सब क्या चल रहा है.. कोर्इ मुझे कुछ बतायेगा नहीं तो फ़िर से मेरा सिर'

आलोक के गाल पर पड़ रही सूर्य की कोमल किरणों की लाली के साथ साथ आई हुई खुशहाली औैर अचानक आए हुए अनोखे अनहद आश्चर्य के बहाव में डूबकर आलोक अपनी कई सारी मिश्रित भावनाओं को उसकी अस्खलित बातों के रूप में एकसाथ धाराप्रवाह बोलने के बाद खुद, सुखद आंसुओं से भीगे हुए अपने गाल पोंछने जाए उससे पहले ही अदिती चुपचाप रोते हुए आलोक के गाल को सहलाने लगी।

अदिती ने दोनों आंखों से छलक आए खुशी के आंसुओं को रोकने की बिलकुल कोशिश नहीं की। गाल से सरककर टपकते हुए आंसुओं के साथ भरी हुई आवाज़ में बोली,

'एक.. एक.. मिनट आलोक प्लीज़ रिलैक्स, बैठो, तुम पहले कॉफी पी लो बाद में हम तीनों कॉफी पीते पीते आराम से बात करते है ओ.के.।' भीगी आंखों से आलोक भी बस अदिती को देखता ही रहा। अदिती ने शेखर की ओर देखा। शेखर को तो अभी भी विश्वास नहीं हो रहा था कि सपना देख रहा है या हकीकत। बस तीनों आंसु बहाते हुए चुपचाप रो रहे थे। आलोक ने दोनों को पूछा, 'क्या हुआ था मुझे?'
'आलोक तुम्हें कुछ याद है? पिछले २ से ३ हप्तों मेें जो कुछ भी घटित हुआ वाे?' शेखर ने पूछा।
'एक मिनट..'आलोक दिमाग पर ज़ोर डालकर सोचने की कोशिश करने लगा। फ़िर शेखर ने पूछा, 'कुछ याद आ रहा है?'
'शायद हम..' बोलकर आलोक अटक गया।
'मैं याद करवाने की कोशिश करूं.. हम सब मेरे अंकल के एनिवर्सरी की पार्टी में थे और....'
'हां.. हां.. अब याद आया आया.. उस दिन हमने अदिती को लिफ्ट में देखा था औैर बाद में हम सब पागलों की तरह उसके पीछे दौड़ते रहे औैर बाद में..बाद में क्या हुआ था शेखर?'
'उसके बाद का कुछ याद आ रहा है आलोक।'
'बाद में.. बाद में कुछ याद नहीं आ रहा। शायद.. ना नहीं याद आ रहा?'

'बहुत लंबी स्टोरी है दोस्त। सुनेगा तो तुझे विश्वास भी नहीं होगा। एक एक घटना तुझे कहकर सुनाऊंगा। बस इतना समझ ले कि येे तुम्हें एक नई ज़िन्दगी मिकी है औैर इसका श्रेय अदिती को जाता है।'
इस पूरे वार्तालाप के दौरान अदिती चुपचाप एकटक बस आलोक को देखती ही रही।
'तुम्हारी एक एक हरकत के फोटोग्राफ्स अदिती ने क्लिक करके एक कलेक्शन बनाया है। औैर मैंने तुम दोनों के फोटोस क्लिक किए है वाे अलग। इसलिए कि तुझे पता चले कि हमने तुझे कितना खोया है औैर कहां से वापस लाए हैं। येे यूनिक आइडिया अदिती का था। 'लेकिन येे तुम्हें मिली कहां? कहां से ढूंढा इसको तुने?'आलोक ने पूछा।
'हमने उसे नहीं, उसने हमें ढूंढ निकाला है औैर वो भी शर्ते रखकर।'
'शर्त कैसी शर्त?'
'बताता हूं।'
जहां से आलोक के याददाश्त की कड़ी टूट गई थी वहां से लेकर कल रात तक की सब घटना जगह, समय औैर परिस्थिति का विवरण विस्तार से शेखर औैर अदिती ने एक के बाद एक आलोक को कह सुनाया। येे सब सुनकर आलोक के शरीर में से कंपकंपी छूट गईं। उसके साथ अदिती अचानक जल्दी से खड़ी होकर हथेली में मुंह छुपाकर हिचकियों को दबाकर बाल्कनी की ओर दौड़ गई औैर पीछे पीछे आलोक औैर शेखर दोनों दौड़े।

'अरे अदिती प्लीज़ अब क्यूं इतना रो रही हो? तुम तो मुझसे भी बहादुर हो औैर अब तो हमें हमारा पहले वाला आलोक मिल गया है। ट्राय टू कंट्रोल योरसेल्फ प्लीज़, लो मैं पानी लेकर आता हूं।'

शेखर इतना बोलकर अदिती के लिए पानी लेने गया तो अदिती आलोक से लिपटकर फिर से बहुत रोने लगी।

'अदिती प्लीज़ यार। हेय, इधर मेरी ओर देखो तो। येे वही बहादुर अदिती है जिससे मैं पहली बार मिली थी? तुम इस तरह से ऐसे कैसे टूट सकती हो? प्लीज़।'

शेखर पानी लेकर आया, मुश्किल से अदिती को शांत किया, बाद में तीनों सोफ़ा पर बैठे।
समय हुआ था ७:५५। शेखर बोला, 'पहले हम सब एक काम करते हैं। तीनों फटाफट तैयार होकर ब्रेकफास्ट करके अविनाश की १०:३० की अप्वाइंटमेंट है इसलिए उन्हें मिलने के लिए निकलना होगा।'
आलोक ने पूछा, 'अविनाश के वहां क्यूं? अब उनका क्या है?'

'अभी ही काम है मेरे भाई,'
ऐसा शेखर बोला इसलिए अदिती ने हल्की मुस्कान के साथ शेखर के सामने देखा। जिस मुद्रा में शेखर की ओर देखकर अदिती ने स्माइल किया वाे शेखर ने नोट किया औैर बाद में आगे बोला,

'वाे सब वहां जाकर बोलूंगा। औैर सुन आलोक तेरे पेरेंट्स पिछले हप्ते एक महीने के लिए तीर्थ यात्रा पर निकले है। सब से पहले तुझे उनके साथ बात कर लेनी जरूरी है। औैर अदिती तुम भी अपने पेरेंट्स के साथ बात करके ब्रेकफास्ट के लिए रेडी हो जाओ दोनो। डिनर टेबल पर मिलते हैं। ठीक है।'
इतना बोलकर शेखर फ्रेश होने के लिए अपने रूम में चला गया।
अदिती ने पूछा, 'शेखर मुझे जानना है कि २९ अप्रैल की उस घटना के कौन कौन से अंश तुम्हें याद है?'
कॉलेज कैम्पस से शुरू करके हम अंत में अलग होने के बाद अदिती आंखों से ओझल हुई तब तक की अंतिम घड़ी तक की एक एक मूवमेंट को शब्दों में ढालकर अदिती की नज़रों के सामने आलोक ने एक दृश्यमान चित्र खड़ा कर दिया।

शेखर के जाने के बाद अभी भी अदिती आंसुओं से भीगी आंखों से एक बुत बनकर बस आलोक को ही देख रही थी।
खुशी से भरे चेहरे के साथ अदिती की आंखों में आंखें डालकर आलोक बोला,
'क्यूं ऐसे एकटक देख रही हो अदिती? अगर ऐसे ही देखती रही तो नज़र लग जायेगी।'

एक अरसे से होठों तक आकार प्रवाहित होने के लिए मचलती अनुभूति की शब्दसरिता के प्रवाह को अनजान बनकर दूसरी दिशा में मोड़कर...

'आलोकमय हुई अदिती मन ही मन जवाब देते हुए बोली, 'तुम्हें नज़र न लगे इसलिए नज़र उतार रही हूं औैर मैं तुम्हें सिर्फ़ देख नहीं रही तुम्हें पीनेका प्रयास कर रही हूं। तुम्हारी माया के माध्यम से मेरी काया में तुम्हारी छाया अंकित करने का प्रयास कर रही हूं।' कुछ ऐसा अदिती मन ही मन बोली फ़िर जवाब दिया..

'ना ना कुछ नहीं बस यही सोच रही हूं कि एक शर्त जितने की ज़िद मेें मैं तुम्हें खो देती। इस एक शर्त में बहुत कुछ पाया औैर बहुत कुछ खोया औैर समझ में आया, अब सूर्याेदय के साथ सूर्यास्त का काउंट डाउन भी शुरू हो रहा है।'

'हेय.. अदिती क्यूं ऐसा बोल रही हो यार, कुछ मेरी समझ में आए ऐसा बोलो।'

अदिती को लगा उसकी भावनाओं की सनसनी औैर वेदना की व्यथा कथा को शब्दों में रूपांतरित करने के शायद समय के साथ एक पूरा शब्दकोश भी वामन होगा इसलिए एक क्षण में ही आलोक की दोनों हथेलियों को चूमकर अदिती ने अपने होठों की लाली औैर चेहरे की इच्छा के साथ साथ दिल की ईच्छा को भी न्याय दे दिया।

एक अजेय दिव्य अनुभूति भरे इस रोमांस के रोमांच का प्रत्युत्तर देते हुए आलोक ने धीरे से अपनी दोनों हथेलियों में अदिती का चेहरा अपने चेहरे के नज़दीक लाकर उसके माथे पर आलोक ने किए हुए चुंबन की चुंबकीय अनुभूति में अदिती अपने पूरे अस्तित्व में हो रहे विस्मरण का एक अनन्य प्रथम अनुभव की प्रतीति कब तक सहेजती रही।

अविनाश के साथ शेखर की अप्वाइंटमेंट के समय की बातचीत के अनुसार १०:३० बजे केर यूनिट पर जाने का तय हुआ उस मुताबिक शेखर, वीरेन्द्र, आलोक औैर अदिती रवाना होने की तैयारी में ही थे औैर अदिती ने संजना को कॉल करके डायरेक्ट केर यूनिट आनेकी सूचना दे दी।

वीरेन्द्र उनके ऑफिस के किसी निकट कर्मचारी की मौत हो गई थी तो वहां जाने के लिए निकल गए थे।
उसके बाद शेखर, आलोक औैर अदिती केर यूनिट की ओर रवाना हुए।

सुबह में आलोक की मानसिक अवस्था बिलकुल सामान्य हाे जाने के बाद भी अदिती का बर्ताव शेखर को कुछ एकदम अप्रत्याशित सा लग रहा था। विचारमग्न औैर शांत औैर बेध्यान। उस विषय पर शेखर ने शांति से चर्चा करने का सोचा, औैर उसके सिवाय भी शेखर के दिमाग में अभी भी बहुत सारे सवाल घूम रहे थे।

१०:४० बजे डॉक्टर अविनाश, उनकी वाइफ स्मिता जोशी, शेखर, आलोक, अदिती औैर संजना अविनाश की चैम्बर में आसपास बैठ गए, बाद में चाय कॉफी का दौर पूरा हुआ तो...
अविनाश ने आलोक से पूछा, 'हाऊ आर यू जेंटलमैन?'
'आई एम फाइन सर। बट फर्स्ट ऑफ़ ऑल आई वाँट टू टेल यू, मेरी चिकित्सा के दौरान मुझसे अगर कोई मिसबिहेवियर हो गया हो तो उसके लिए मैं आप सबकी माफ़ी मांग लू।' आलोक की बात को मज़ाक में लेते हुए अविनाश बोले,
'हम उसका ही चार्ज लेते हैं।'
'हा.. हा.. हा.. सब हंसने लगे तभी अचानक ही कोर्इ कुछ सोचे समझें उससे पहले ही अदिती उठकर एक कॉर्नर की ओर जाकर हिचकियां ले-लेकर रोने लगते ही आलोक एकदम सकते मेें आ गया औैर शेखर भी सोच में पड़ गया।
आलोक औैर संजना उसके पास गए साथ साथ संजना की आंखें भी भर आईं।
'क्या हुआ अदिती अचानक तुम्हें, क्यूं इतना रो रही हो, कुछ बोलो तो?'
संजना अदिती को पानू पिलाते हुए शांत होने के लिए बोला औैर फ़िर से चेयर पर बिठाया और आलोक भी अदिती को आश्वस्त करते हुए उसके पास बैठा और फ़िर पूछा,
'अचानक, क्या हुआ अदिती?'
अभी भी आलोक के लिए अदिती का येे बिहेवियर उसकी समझ से बाहर था़।
आलोक ने पूछा, 'घर की याद आ रही है? मम्मी पापा के पास जाना है?'
न अदिती का कोर्इ प्रतिभाव या न कोर्इ प्रत्युत्तर। बस चुपचाप नज़रें नीची किए बैठी रही। आलोक की चिंतित परिस्थिति के बीच अविनाश बोले,
'लिसन आलोक मैं बोलता हूं.....'
अविनाश अभी अपने शब्द पूरे करे उससे पहले ही अदिती का अत्यधिक रोना शुरू हुआ और साथ साथ अब संजना का संयम का बांध भी अब टूट गया।
शेखर को भी अदिती का अचानक ऐसा विचित्र बर्ताव समझ से बाहर का लगा।
अविनाश बोले,
'प्लीज़ उसे रो लेने दीजिए।'
अलोक सोच में पड़ गया कि क्या हो गया है कुछ किसीको समझ में नहीं आ रहा था।
बड़ी मुश्किल से अदिती ने अपने आप की काबू में करने के बाद,
थोड़ी देर बाद अविनाश बोले, 'प्लीज़ साइलेंट, लिसन कैरफुली।'
संजना औैर मिसेज जोशी अदिती को सोफ़ा पर बिठाकर सिर पर हाथ फेर के बाद आग्रह करके पानी पिलाया उसके बाद अदिती थोड़ा बहुत स्वस्थ हुई।
सब चुप थे तो चुप्पी तोड़ते हुए शेखर ने अविनाश को संबोधन करके बोला,
'सर, आई थिंक कि अब जाे शर्तो के आधीन आप अदिती की हमारे बीच लेकर आए थे उन शर्तों की समय सीमा पूरी हो गई है, अब मैं पूछ सकता हूं कि आपने अदिती का निशान किस तरह ढूंढा?
अदिती कहां मिलि आपको?
किस तरह?'

एक गहरी सांस लेकर अविनाश थोड़ी देर तक सबके सामने देखते रहे। बादमें, अंत में अदिती की ओर देखा। फ़िर शेखर की ओर देखकर बोले...

'मैं अदिती को नहीं पहचानता।'

'मैं अदिती को नहीं पहचानता।'

सिर्फ़ यहीं पांच ही शब्दों का वाक्य फ़िर सन्नाटे का एक इतना बड़ा विस्फोट हुआ जैसे कि आलोक औैर शेखर के कान बधिर, दिल के धड़कनों की गति अनियंत्रित औैर विचारशक्ति शून्य हो गई। सुन्न औैर शिथिल होकर आलोक जम कर रह गया। आलोक औैर शेखर एक बुत की माफिक बैठी हुई अदिती को देखते ही रहे। क्या बोले इस बात का किसीको भी होश ही नहीं था।
डॉक्टर अविनाश के शब्द देर तक शेखर औैर आलोक के कानों में गूंजते रहे फ़िर भी वाे स्वीकार नहीं कर पा रहे थे इसलिए शेखर ने कहा, 'सर आपने जो कहा वो फ़िर से कहेंगे, प्लीज़,'

'मैं अदिती को नहीं पहचानता औैर कभी अदिती से मिला भी नहीं हूं।' डाॅ. अविनाश बोले।

आगे अगले अंक में.....

© विजय रावल
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