अंक - तेरह/१३
कुछ क्षण पहले की बातचीत के दौरान एकदम सामान्य व्यवहार में से अचानक अदिती के बदले हुए चेहरे पर के हावभाव से ऐसा प्रतीत हाे रहा था, जैसे कि बड़ी मुश्किल से कोई भावना बाहर आने के लिए प्रहार करती हुई कांटों जैसी पीड़ा से जूझ रही हो इस हद तक अदिती के अस्तित्व को अस्वस्थ होते हुए देखकर कुछ देर के लिए शेखर भी विस्मित होकर सोचने लगा कि ऐसी तो कौन सी बात होगी कि इतनी दृढ़ मनोबल भी क्षण में डीग गया?
तुरन्त ही शेखर भी बाल्कनी में उसके साथ खड़े होकर उसके स्वस्थ होने की प्रतीक्षा करते हुए थोड़ी देर बाद बोला,
'व्हाट हैपेंड अदिती, एनीथिंग सीरियस?'
प्रत्युत्तर में अदिती ने सिर्फ़ ना की संज्ञा में सिर हिलाया। शेखर को लगा कि अभी भी नॉर्मल होने मेें थोड़ा समय लगेगा इसलिए वो चुपचाप खड़ा रहा। अदिती काफ़ी देर तक अपने गहरे मौन औैर गरम आंसुओं के बीच की जुगलबंदी में दर्द की सरगम सुन रही थी। और शेखर असमंजस में पड़ गया।
बाद में आंसुओं से भरे हुए चेहरे पर नकली स्माइल के साथ एक गहरी सांस भरकर शेखर की ओर देखकर सिर्फ़ इतना ही बोल सकी..
'चाय मिलेगी?'
भावुक हुआ शेखर भी हंसते हुए चेहरा से इतना ही बोल सका..
'चाय के साथ दूसरा क्या लोगी?'
मंद मुस्कान के साथ अदिती बोली,
'तुम्हारा दिमाग।'
औैर बाद में दोनों हंसते हंसते रूम में आकर सोफ़ा पर बैठे औैर आलोक को भी अदिती ने अपने पास बिठाया।
'प्लीज़ शेखर मैं पहले पापा के साथ बात कर लूं।'
ऐसा बोलकर अदिती ने अपने पापा विक्रम मजुमदार से बातचीत शुरू की। करीब २० मिनिट्स डीटेल्स में पापा के साथ कॉल पर बातचीत करने के बाद अब अदिती ऑलमोस्ट रिलैक्स फ़ील करने लगी थी।
चाय पीते पीते कुछ कहने जाय उससे पहले उसे लगा कि आलोक कुछ कहने जा रहा है इसलिए अदिती ने पूछा, 'हां, आलोक क्या कह रहे हो तुम?'
'हम जहां गए थे वहां फिर से कब जायेंगे?'
'कहां आलोक?'
'मैंने आप को रास्ता दिखाया था वहां?'
'उस भैया ने तुम्हें कहा था कि.. सलाम साब, वहां?'
'हां, हां.. वहां?'
'लेकिन तुम्हें वहां किसलिए जाना है?'
'मुझे.. मुझे वहां.. काम होता है न।'
अदिती ने शेखर की ओर देखकर स्माइल करते हुए आलोक से पूछा, 'हां, लेकिन क्या काम है?'
'वो.. तुम्हें समझ नहीं आयेगा। अगर तुम नहीं ले गई तो मैं चला जाऊंगा।'
'अच्छा, ठीक है हम जायेंगे ओ.के.'
'हां, लेकिन हम दोनों ही, वो लड़की नहीं?'
'कौन, संजना?'
'हां।'
'क्यूं?'
'उसे तो कुछ रास्तों के बारे में पता ही नहीं चलता.. मैं इधर बोलूं तो वाे उल्टी तरफ़ ही गाड़ी दोड़ाती है। एकदम मूर्ख है वो।'
खिलखिलाकर हंसते हंसते बोली...
'ओह माय गॉड मेरे आलोक अब तुम्हें क्या कहूं?'
अदिती को इतनी आनंदित होकर खिलखिलाते हंसते देखकर शेखर खुश होकर बस देखता ही रहा औैर बाद में पूछा, 'अदिती।'
'हां, बोलो शेखर।'
'सच बताना। क्या हुआ है कि तुम कॉल में बात करते करते इतनी अपसेट क्यूं हो गई थी?'
कुछ सेकंड्स के लिए चुप रहकर अदिती बोली, 'आज घर की बहुत याद आ रही है इसलिए... एक ओर मेरे औैर आलोक के बीच की इस अनबिलिवेबल सिचुएशन को लेकर सभी बहुत टेंशन में है। सिर्फ़ कुछ ही घंटों में मेरे औैर आलोक के बीच जो केमिस्ट्री क्रिएट हुई है वो मैं किसीको कैसे समझाऊं? मैं बहुत ही आसानी से हम दोनों के रिलेशन की गंभीरता औैर परिपक्वता को समझाने में सफ़ल हो सकती थी अगर आलोक पूर्ण रूप से होश में होता तो। अभी भी बिलकुल कोर्इ भी डिस्प्यूट या मनदुःख नहीं है। मेरी औैर मेरे फैमिली के बीच में इस संबंध को लेकर रत्तिभर भी मनमुटाव के कोर्इ स्थान नहीं है लेकिन... अगर मैं अपने अतिविश्वास के अपराजेय में फंसकर शर्त की लत पर नहीं गई होती तो आज आलोक मेरे साथ साथ खड़ा होता। येे सब मेरी शैतानी शर्तों का नतीजा है।'धीमी धार में बहते हुए आंसुओं से दोनों गिले गालों को हथेलियों से पोंछते हुए भीगे स्वर में बोली, 'औैर आज पापा के साथ मैं नहीं हम बात कर रहे होते औैर दोनों के एकसाथ एकाकार हुए संवाद के गूंज में गूंज रही होती हमारे प्रेम के गरिमा के गर्व की गूंज।'
अदिती रोती रही औैर शेखर ने अदिती को अपने आप शांत होती हुई औैर उसकी अवस्था की व्यवस्था में खलल डालना ठीक नहीं लगा। थोड़ी देर बाद शेखर बोला,
'अच्छा अदिती एक बात मेरी समझ में नहीं आई कि अभी तक तो तुम...'
इतना बोलकर रुके हुए शेखर से अदिती ने कहा,
'शेखर तुम नहीं कहोगे फिर भी मुझे तुम्हारे दिमाग में बार बार उठ रहे अनेक सवालों से मै अंजान नहीं हूं। मुझे अंदाज़ा है। लेकिन.. शेखर में किसी के दबाव में नहीं लेकिन स्वयं अपने आप को शर्तों में बांधकर यहां लाई हूं। लेकिन आई एम सॉरी शेखर तुम्हारे सवालों के जवाब के लिए समय मर्यादा तक तो ठहरना ही पड़ेगा। मैं तुम्हारे एक नहीं दस सवालों के जवाब दूंगी। लेकिन अभी तुम मेरी मनःस्थिति समझने का प्रयत्न करो बस।'
दोनों की बातें सुनते सुनते आलोक सो गया था।
२९ अप्रैल की वो रात आलोक औैर अदिती दोनों की संवेदना के शब्दार्थ के करीब साथ साथ चल रहे संवादों पर दोनों की मौन स्वीकृति की मुहर को प्रथम अधिकृत के तौर पर कौन अंकित करेगा? ऐसी असमंजस को संक्षिप्त समय के लिए मार्जिन धकेलकर एक अडिग आत्मविश्वास से सिर्फ़ एक शर्त के रूप में रची गई उस अल्पविराम की व्यूहरचना अब आज सबको फंसे हुए एक विराट चक्रव्यूह के स्वरूप में दिखाई दे रही है। हुकुम के पत्ते जिसके काबू में थे वाे आज हुकुम के गुलाम बन गए थे।
थोड़ी देर बाद शेखर ने बात का विषय बदलते हुए बोला,
'अदिती आज आलोक की इस तरह की पॉजिटिव साइन ध्यान में रखकर हमें कोई सॉलिड आइडिया का प्लान नहीं बना सकते?'
'हम्ममम..., चलो दोनों मिलकर कुछ सोचते हैं। लेकिन शेखर उससे पहले आज मुझे तुम्हारे बारे में जानने की इच्छा है। तो कुछ कहो।
औैर उसके लिए हमारे बीच कोई शर्त या टर्म एण्ड कंडीशंस एप्लाई नहीं है न..'
बोलते हुए अदिती हंसने लगी।
'क्या बताऊं बोलो? क्या जानना है?'
'अच्छा चलो येे कहो कि मान लो आलोक की जगह तुम होते तो क्या करते? सच सच बताना है, हां।'
'अगर तुम औैर मैं मिले होते तो तुम बिलीव नहीं करोगी अभी आलोक की जगह पर तुम होती।'
'ओह माय गॉड..'दोनों खूब हंसे.. अदिती बड़ी मुश्किल से हंसी रोककर बोली, 'लेकिन ऐसा क्यूं?'
'उसका कारण येे है क्योंकि मैं लाइफ़ में बहुत ही प्रैक्टिकल हूं। येे प्रेम नाम का भूत तो मेरा नाम सुनते ही गायब हो जाते हैं। औैर वैसे भी मेरी लाइफ़ का फंडा कुछ हटके ही है। मैंने मेरी लाइफ़ की डिक्शनरी में से टुमॉरो वर्ड हमेशा के लिए डिलीट कर दिया है। मैं हमेशा आज में जीता हूं। क्या पता एक ही क्षण में ही क्या हाे जाए? अगर लाइफ़ को समझने गए तो उसे जिएंगे कब? जहां हाे, जिस हाल में भी हाे, बस उसी क्षण को जी लो। बाकी सब वाे ऊपरवाला जाने।'
'अरे.. लेकिन तो तुम शादी किसके साथ करोगे?'
'किसी न किसी को तो बनाया होगा न ईश्वर ने मेरे जैसी पागल कि जिसके नाम से प्रेम का भूत भागता हो, ऐसी कोई कोर्इ गई तो कर लोगे शादी हा.. हा.. हा.'
'प्रेम होता है तो पलभर में हो जटा है और नहीं होता तो सदियों मेें भी नहीं होता।'
'लेकिन अदिती तुम्हें इस एलियन से किस तरह प्रेम हो गया?'
'बस उसी तरह जैसा अभी तुमने कहा ऐसे... एक पल में आलोक के साथ किसे प्रेम न हो? इतना हैंडसम औैर मासूम है कि कोई भी आलोक में स्वयं के प्रेम का प्रतिबिंब आसानी से देख सकता है। कोर्इ पुरुष किसी स्त्री को प्रेम करे वाे एक सामान्य घटना है। लेकिन कोर्इ पुरुष सिर्फ़ दो-चार घण्टों की मुलाकात में अपना अस्तित्व मिटाने की हद पार करके प्रेम करे वो तो दुनिया की सब से बड़ी अनोखी घटना कही जायेगी, शेखर। पहले मैं आलोक से सिर्फ़ प्रेम करती थी अब पूजा करती हूं।'
'सच कहूं अदिती, तुम दोनों का प्रेम देखकर आज मेरे मतानुसार प्रेम की व्याख्या बदल गई सच में। मान गए गुरु। लेकिन जितनी प्रतीक्षा आलोक के नॉर्मल होने की है उससे ज्यादा प्रतीक्षा मुझे उस बात की है कि तुमने जिस दृढ़ता से इतनी बड़ी शर्त रखने के बाद तुमने एक बार भी आलोक के बारे में कुछ भी जानने की कोशिश नहीं की..... आई एम सॉरी।'
'प्लीज़ डॉन्ट से सॉरी। तुम्हारे हर एक सवाल के जवाब में मैं सिर्फ़ इतना ही कहूंगी कि तुम जो सुन रहे हो, जाे देख रहे हो, वाे सब एक अर्धसत्य है। आलोक की मानसिक अवस्था के जैसे। जिस दिन वाे पूर्ण रूप से मानसिक तौर पर स्वस्थ हाे जायेगा उस दिन शायद तुम सत्य सुनकर उसे स्वीकार नहीं कर पाओगे। क्योंकि आलोक के नॉर्मल होने के बाद भी कुछ सवाल ऐसे सामने आयेंगे कि जिनके जवाब ईश्वर के पास भी नहीं होंगे। तुम अपनी जगह पर सही ही हाे लेकिन प्लीज़ ट्रस्ट मी फॉर मोर फ्यू डेज़।'
'ठीक है अदिती आज के बाद मैं तुम्हें कोई भी सवाल नहीं पूछूंगा। वाे इसलिए कि अब मुझे ऐसा आभास हाे रहा है कि रहस्य के सच का कद मेरी विचारशक्ति के कई गुना बड़ा है। ठीक है अदिती, तुम आराम करो। गुड नाईट।'
'गुड नाईट शेखर।'
नेक्स्ट डे रात को ९ बजे समय के आसपास शेखर ने घर आते ही अदिती के साथ मिलकर दोनों ने तय की हुई व्यूह रचना के मुताबिक सब तैयारी कर ली।
अदिती ने आलोक के रूम में जाकर देखा तो आलोक अपने रूम में सोफ़ा पर आंखें बंद कर के बैठा था, तभी धीरे से करीब जाकर अदिती ने जैसे ही अपने रेश्मी दुपट्टे से आलोक का चेहरा ढंक दिया तभी आलोक बोला... 'येे क्या कर रही हो?'
'क्यों, बस तुम्हें परेशान करने का मन हुआ इसलिए... वाे भी तुम्हें पूछकर करने का ऐसा?'
बाद में आलोक की गोद में बैठकर बोली, 'आलोक चलो न आज डिनर के लिए किसी रोमांटिक डेस्टिनेशन पर चलते हैं।'
अदिती के इस नए रूप के असमंजस सोचने औैर समझने की आलोक की असमर्थता का प्रयास अदिती, आलोक की आंखों में स्पष्ट देख सकती थी। आलोक ने जब अव्यक्त भावनाओं को शब्दार्थ को सहजता से अदिती के मुलायम हथेलियों में हल्के स्पर्श के स्वरूप में सरकाई तब अदिती को अपने सपनों के अनुमानित स्नेहचित्र के स्पंदन के साथ एक खूबसूरत मनमाफिक सानिध्य मिलने का अदिती की भीगी हुई आंखों के कोनों में पढ़ी जा रही थी।
अब मौन की पाश्चात्य भूमि पर आलोक और अदिती परस्पर धीरे धीरे एक दूसरे से अविरत चक्षु वार्तालाप से एक अनन्य अनंत प्रेमकथा के प्रस्तावना की पहल कर चुके थे।
एक एक क्षण जोड़कर सजाए हुए असंख्य क्षणों का एक विराट हथेलियों में अंजलि समान भव्य औैर दिव्य स्नेहाधीन प्रथम मधुर मिलन का येे दृश्य दृष्टिगोचर होते ही शेखर की गति औैर मति भी थोड़ी क्षणों के लिए स्थिर हाे गई।
अचानक अदिती की नज़र शेखर की ओर जाते ही तुरन्त ही वाे अपने तन औैर मन की स्थिति को सामान्य करने की चेष्टा करने ही जा रही थी, तभी शेखर इस गतिविधि से खुद जैसे एकदम ही अनजान है ऐसा व्यवहार करते हुए बोला.. 'अरे भाई चलो अब कितनी देर है? डिनर के लिए देर हाे रही है अब। भूख नहीं लगी है क्या?'
'शेखर, डॉक्टर अविनाश के साथ तुम्हारी बात हो गई है न?' ऐसा अदिती ने पूछा।
'हां हां हो गई है अब चलो।'
'हां.. चलो चलो।'
शेखर ड्राइविंग सीट बैठकर अदिती के सामने स्माइल के साथ इशारा करके बोला, 'आलोक तु यहां आगे की सीट पर आ जा मेरे साथ।'
'मैं.. मैं यहां पीछे बैठूंगा, अदिती के साथ।'
इसलिए शेखर औैर अदिती बहुत हंसे। आलोक औैर अदिती बेक सीट पर बैठ गए बाद में कार स्टार्ट करते हुए शेखर बोला, 'साला कामीना यार है।'
जवाब देते हुए अदिती बोली,
'कमीना है, फिर भी प्यारा है औैर मेरा है।'
'अदिती तुम पर वाे एड परफेक्ट सूट करती है हा।' शेखर बोला।
'कौन सी?'
'टेढ़ा है पर मेरा है।'
दोनों हंस पड़े।
रेस्टोरेंट पहुंचे तब तक आलोक ने अदिती का हाथ पकड़कर रखा।
साउथ इंडियन स्वाद पसंद लोगों की फर्स्ट चॉइस यानि बैंगलुरू शहर की "ताज़ा थिंडी" रेस्टोरेंट। शेखर ने पहले से कॉल करके स्पेशियली एक कॉर्नर टेबल गार्डन में बुक करवाया था। वहां अदिती औैर आलोक ने स्थान लिया। औैर शेखर ने कहा,
'मैं जस्ट आया। टैब तक तुम ऑर्डर दो।'
१० से १५ मिनट के बाद भी शेखर नहीं आया तो आलोक ने अदिती से पूछा, 'शेखर क्यूं नहीं आ रहा। बुलाओ न उसको?'
'वो आ जायेगा अभी मुझे कहकर गया है कि कोई काम है इसलिए आ रहा हूं थोड़ी देर में।'
कुछ ही क्षणों में रेस्टोरेंट के एक स्टाफ मेम्बर ने आकर आदर औैर विवेक से आलोक के हाथ में मेरी गोल्ड फ्लॉवर का बुके देते हुए कहा, 'वेल कम सर, वेल कम मेडम।'
'थैंक यू,' अदिती ने आभार मानते हुए कहा।
'येे.. येे.. तो मैंने दिया था वही है न, अदिती?'
'तुमने? तुमने कब दिया था? किसको दिया था?'
'तुम्हें ही तो दिया था क्यूं भूल गई? उस दिन।'
'कहां? रेस्टोरेंट में?'
'वाे शायद हां.. लेकिन याद नहीं लेकिन दिया था लेकिन तुम कैसे भूल गई?'
'कौन से रेस्टोरेंट में?'
आलोक अपनी याददाश्त को जगाने की कोशिश करने लगा लेकिन कुछ भी सूझा नहीं।
तभी वेटर ने आकर रेड बुल ड्रिंक्स के दो टीन सर्व किए तब से बस... अदिती ने नोट किया कि आलोक के एक्सप्रेशंस बदल गए। थोड़े समय पहले एकदम नॉर्मल दिखने वाला आलोक थोड़ा नर्वस औैर उलझा हुआ दिखने लगा। थोड़ी थोड़ी देर बाद बस रेड बुल डिंक्स के टीन को ही बिना पलक झपकाए देखता रहा। इसलिए दोनों टीन ओपन करके अदिती एक टीन आलोक के हाथ में दिया औैर उसका टीन टच करके बोली,
'हेयईईई.. चीयर्स आलोक।'
अब धीरे धीरे आलोक को वर्तमान समय औैर जगह की विस्मृति होने का आभास होने लगा औैर भूतकाल की कोर्इ भयंकर भूतों के जैसे विचारों का एक झुंड उसके मन मस्तिष्क पर तांडव करते हो ऐसी फीलिंग्स से उसके शरीर में कंपकंपी दौड़ने लगी।
'आलोक, आर यू ओ.के.? क्या हो रहा है तुम्हें?'
'हम कहां है, अदिती?'
'रेस्टोरेंट में।'
'हम पहले भी आए थे यहां?'
'कब?'
'तब तुम..'आलोक आगे कुछ बोले तभी म्यूजि़क सिस्टम पर सॉन्ग प्ले हुआ..
"आगे भी जाने ना तू.. पीछे भी जाने ना..."
रेड बुल का टीन आलोक के हाथ में ऐसे ही रह गया उसी मुद्रा में आलोक थम गया।
मस्तिष्क में धीमी गति से शुरू हुए दर्द की मात्रा अब गति पकड़ रही थी।
'अदिती मुझे.. मेरे सिर में कुछ... मुझे अब... कोर्इ मुझे..'आलोक कोर्इ एक वाक्य पूरा नहीं पा रहा था। कोर्इ उसे एक ओर तो कोर्इ दूसरी ओर खींच रहा हो औैर कोर्इ जायंट व्हील में बिठाकर अनियंत्रित गति से ऊपर नीचे फेंकता हो ऐसा प्रतीत होने लगा तो उसने अपना सिर दोनों हाथ से पूरी ताकत लगाकर दबाया और सिर टेबल पर डाल देते ही एक चीख लगाई.. 'अदितीतीतीतीती..............'
उस चीख के साथ ही शेखर दौड़कर आया औैर आसपास के कस्टमर्स भी चौंक गए। होटल का स्टाफ भी मदद के लिए दौड़कर आया। अदिती औैर शेखर ने आलोक को उठाने की कोशिश की लेकिन सफ़ल नहीं हुए तो स्टाफ को आराम से उसकी कार की तक आलोक को ले जाने की सूचना देते हुए धीरे से संभालकर बेक सीट पर सुलाया और अदिती फ्रंट सीट पर बैठते ही शेखर ने कार घर की ओर ले ली।
शेखर औैर अदिती ने डॉक्टर अविनाश के साथ किए हुए कन्वर्सेशन के बाद सुनियोजित तरीके से बनाए हुए प्लान के अनुसार टाईम मशीन के कांटे को उल्टी दिशा में घुमाकर एकदम २९ अप्रैल की घटना के अनुरूप प्रत्यक्ष या परोक्ष आसपास के माहौल के माध्यम से स्क्रिप्टेड प्रिप्लान के एक एक दृश्य को बैकवर्ड करने की कोशिश के अंजाम के अंत में आलोक की येे स्थिति होने के बाद अब क्या परिणाम आयेगा उसके लिए शेखर औैर अदिती दोनों एक अशांति से भरे हुए बैचेनी में बहुत देर तक चुप रहे। बाद में अदिती बोली, 'शेखर तुम्हें लगता है कि अभी अविनाश को कॉल करना चाहिए?'
'ना, अभी नहीं, जब तक आलोक का कोई रिएक्शन नहीं आता तब तक हमें किस तरह पता चलेगा कि हम अपने मिशन में सक्सेस हुए है कि नहीं, औैर हुए है तो फॉरवर्ड या बैकवर्ड, प्लस या माइनस क्या पता?
अब आलोक होश में आने के बाद कुछ बोलेगा तभी पता चलेगा। हमने हिम्मत करके तीर तो छोड़ दिया है। अब मर्ज़ी ऊपर वाले की जो होगा वही सही।'
घर आकर आलोक को उसी स्थिति में उसके बेड पर सुला दिया। अब आनेवाले किसी भी हद के प्लस, माइनस परिणाम के लिए मानसिक रूप से तैयारी के साथ अदिती अपने रूम में जाने लगी औैर शेखर ने भी मानसिक थकान के साथ सोने का प्रयत्न किया।
अदिती औैर शेखर दोनों को ऐसा था कि कल का सूर्योदय सिर्फ़ सुबह नहीं लेकिन सुबह के साथ साथ कुछ सवालों के भी सूर्योदय लेकर आयेगा। और अगर ईश्वरकृपा हुई तो शायद सब सवालों को हमेशा के लिए सूर्यास्त का स्वरूप भी मिल सकता है। क्षण प्रतिक्षण कल्पना, शंका-कुशंका, डर, बैचेनी, अनिश्चितता, जैसे बेमानी से आते हुए असंख्य विचारों के घनघोर जंगल में से दोनों रातभर गुजरते रहे।
सुबह में ६:१० के आसपास अचानक शेखर की आंख खुलते ही पहली नज़र आलोक के बेड की ओर जाते ही दिल बैठ गया। आलोक बेड पर नहीं था तो एकदम से बेड पर से उठकर आसपास नज़र दौड़ाई लेकिन नहीं दिखाई दिया।
आगे अगले अंक में....
© विजय रावल
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