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क्लीनचिट - 10

अंक -दसवां/१०

शेखर अभी कुछ समझे और पूछने जाय उससे पहले अविनाश बोले,
'अभी आप दोनों मेरी बात ध्यान से सुनिए। मैंने आपको पहले ही बोला उस अनुसार मुझे या अदिती को किसी भी तरह के सवाल नहीं पूछ सकेेंगे। जब तक मैं न कहूं तब तक। इट्स क्लीयर?

मैं और अदिती आपके सभी सवालों के जवाब देंगे, लेकिन उसकी समयमर्यदा मैं औैर अदिती तय करेंगे। दूसरी ओर बात आलोक को टोटली नॉर्मल होने मेें शायद थोड़ा समय भी लग सकता है, तब तक आपको अदिती को पूरा सपोर्ट करना पड़ेगा। क्योंकि आलोक के सिवाय सभी अदिती के लिए एकदम ही अनजान है। आप सभी पर अदिती का ट्रस्ट ही आलोक को जितना हो सके उतना जल्दी ठीक करने में महत्वपूर्ण प्लस पॉइंट साबित होगा। मीन्स कि अदिती को फ़ैमिली मेम्बर जैसी फीलिंग आनी चाहिए। आपको कोई भी प्रॉब्लम या कुछ कन्फ्यूजन हो तो किसी भी समय पर मुझे कॉल कर सकते हैं। किसी भी परिस्थिति में इस समय हम सब का एक ही टारगेट है कि आलोक को हाे सके उतने कम समय में पहले जैसा पहले जैसे एकदम नॉर्मल पोजीशन ले आना है। औैर येे सब मैं इसलिए कह रहा हूं कि.. आप मेरे फैमिली मेम्बर जैसे हैं औैर खास तौर पर मेरे प्रोफेशन के लिए भी एक चैलेंजिंग केस है। औैर येे सब मैं आप लोगों को इसलिए बोल रहा हूं कि सब दारोमदार अदिती को मिलने के बाद आलोक की याददाश्त में कितनी हद तक रिकवरी आ रही है वो उसके ऊपर निर्भर है। येे व्युह्रचना अभी भी अगर औैर मगर पर टिकी हुई हैं। अब आप बोलिए।'

खुशी के मारे शेखर बोला, 'सर अब तो पानी पिना ही पड़ेगा।'ऐसा बोलकर शेखर दो ग्लास पानी पी लिया।
तीनों खुश होते हुए हंस दिए।

अविनाश बोले, 'बात ही कुछ ऐसी थी इसलिए मुझे आप लोगों को इस समय बुलाना पड़ा। औैर इतनी सीरियस मैटर औैर डीटेल्स में ऐसी बातें फ़ोन पर प्रॉपर तरीके से नहीं हाे सकती थी। आई थिंक अगर कल मेरी सोच के अनुसार अगर सब कुछ सही पार लगा तो हम ५०% बाज़ी जीत गए ऐसा समझिए। अब पूरा दारोमदार अदिती के ऊपर है। औैर कल जब अदिती आलोक के सामने आयेगी तब आलोक का जाे कुछ भी रिएक्शन होगा उसके लिए हमें अभी से मेंटली प्रिपेयर रहना पड़ेगा। वी ऑल विल ट्राय अवर बेस्ट ऑफ़ दी बेस्ट। बाकी सब ऊपरवाले पर छोड़ देते हैं। प्लीज़ नाउ इट्स टू लेट फॉर ऑल ऑफ़ अस। तो कल मिलते हैं। ठीक है।'
तीनों चैम्बर एसई बाहर आए। तब शेखर बोला, 'सर एक सवाल पुछु? थोड़ा कंफ्यूजन है है इसलिए।'
'येे शरतें आपकी है या अदिती की?'
'समझ लो शेखर मेरी शरतों पर अदिती आपके सामने आ रही है।'
औैर शेखर एक बात मुझे बताओ जब तक आलोक पूरी तरह से सचेत स्थिति में नहीं आता तब तक तो अदिती की उपस्थिति के बारे में कोई सवाल-जवाब नहीं करने है तो इसमें हमारी ओर से क्या दांव पर लगा है वो मुझे बताओगे? दांव पर तो आलोक की ज़िन्दगी लगी है औैर ऐसे कठिन समय में अदिती ही हमारे लिए संजीवनी साबित होगी।'

अविनाश के सही सवाल के सामने शेखर निरुत्तर हो गया। थोड़ी देर चुप रहने के बाद बोला, 'सर एक आखरी सवाल पुछू?'
'अभी से सवाल पर सवाल?'अविनाश ने हंसते हंसते पूछा।

फिर बोले, 'अच्छा ठीक है पूछो।'
'सर, आपने सच में अदिती को अपनी नज़रों से देखा है?'
'हा.. हा.. हा.. शेखर मैं पागलों का डॉक्टर हूं, पागल नहीं।'
'सॉरी सर,'
'ओ.के. गुड नाईट।'
'गुड नाईट सर।'
शेखर औैर वीरेन्द्र घर की ओर जाने के लिए निकले।
कार में बैठते ही शेखर बोला,
'अंकल मेरी समझ में एक बात नहीं आई अभी भी।'
'क्या शेखर?'
'अविनाश ने अदिती को पहले कभी देखा ही नहीं तो येे कैसे अचानक से मुमकिन है, औैर अचानक से अदिती की इस तरह शरतों के साथ एंट्री.. मेरा दिमाग एकदम सुन्न पड़ गया है।'
इस तरह की एंट्री का क्या मतलब?'
'लेकिन अंकल, अविनाश की इतनी सारी शरतें रखने का कारण मेरी समझ में नहीं आया।?'
'देखो शेखर अविनाश के साथ हमारे सालों से होमली रिलेशन है। औैर वो जाे कुछ भी कर रहा है वो सम्बन्धों को ध्यान में रखकर और सोच समझकर कर रहे होंगे न। उसमे उनका क्या व्यक्तिगत स्वार्थ हो सकता है?? औैर उनकी किसी भी बात से हमें या आलोक को कोई नुकसान पहुंचे ऐसी तो कोई भीषण या असंगत शर्त तो रखी नहीं है न। तो तुम क्यूं ऐसा सोचते हाे? तुम सिर्फ़ इतना सोचो कि अदिती को ढूंढकर हार की कगार की बाज़ी भी जीत ली और साथ साथ आलोक की ज़िन्दगी भी।'
'लेकिन अंकल अविनाश ने ही अदिती को ढूंढा है ऐसा हम कैसे कह सकते है?'अदिती की ऐसी अप्रत्याशित एंट्री औैर कोई भी प्रश्न नहीं पूछने के पीछे कोई बड़ा रहस्य तो है ही।'
'लेकिन शेखर, डॉक्टर ने कहा तो है कि सभी प्रश्नों के उत्तर देंगे। तुम इस समय बिना किसी कारण के अविनाश पर संदेह कर रहे हो।'
'ठीक है अंकल आपकी बात मुझे कबूल करता हूं।'
सिर्फ़ औपचारिकता के लिए शेखर ने वीरेन्द्र को जवाब दिया।

घर आए। समय हुआ था रात के १:२५। शेखर की नींद उड़ गई थी। वास्तविकता औैर काल्पनिक विचारधारा पर तर्क-वितर्क का आमने सामने का मनोमंथन का दौर शुरू हुआ। शेखर को अभी भी अविनाश की बनाई हुई व्यूहरचना पर भरोसा नहीं हाे रहा था। शेखर को लगा कि कल दोपहर १२ बजे के बाद आखरी घड़ी में बोलेंगे अविनाश शायद ऐसा निवेदन भी आ सकता है कि सॉरी... अदिती आनेवाली ही थी लेकिन किसी कारणवश अचानक ही चली गई। और सवाल नहीं पूछने की शर्त किसकी होगी .. अदिती की या डॉक्टर की? या फ़िर शर्त की आड़ में कोई साजिश? शर्तो के सहारे अदिती की एंट्री हो रही है इसका मतलब कि कोई बड़ी गेम खेलने की जबरदस्त पूर्वभूमिका रची जा रही है वाे बात तो तय है। क्या होगी? किसकी व्यूहरचना? किसके लिए येे सारा खेल खेला जा रहा है?

जब तक अदिती आलोक के सामने नहीं आती औैर आलोक उसे नहीं पहचानता तब तक का समय ऐसी ही असमंजस से भरी हुई अटकलॉ में ही बिताना पड़ेगा। रात के आखरी प्रहार की शुरुआत होते ही शेखर गहरी नींद में सो गया।

सुबह ९:३० बजे बड़ी मुश्किल से आखें खुली। फ्रेश होने गया तब काजिन ब्रदर ने मैसेज दिया कि अंकल ऑफिस जाने के लिए निकल गए हैं औैर आपको कॉल करने के लिए बोला है।

थोड़ी देर बाद आलोक भी जाग गया तो शेखर ने उसे फ्रेश होने के लिए बोला.. इसलिए अलोज ने पूछा..'अदिती को ढूंढने जाना है न?'थोड़ी देर आलोक की ओर देखता रहा।। फिर बोला, 'हां, मेरे प्यारेलाल। आज तो तेरी राजकुमारी का कुछ न कुछ तो फाइनल करके ही आना है। अब तो मुझे लग रहा है कि आज तो तेरी अदिती माता धरती चीरकर भी प्रकट होनी ही चाहिए।'
'यानि?'
'यानि कि तू मोर की तरह सुंदर से तैयार हो जा तेरी बरात निकालनी है आज।' हा.. हा.. हा.. अरे कुछ नहीं तू फटाफट तैयार हो जा बाद में ब्रेकफास्ट करके निकलते हैं ऐसा।'

तैयार होकर दोनों डाइनिंग टेबल पर नाश्ता कर रहे थे तब शेखर ने वीरेन्द्र को कॉल लगाया।
'गुड मॉर्निंग अंकल।'
'हां, शेखर ब्रेकफास्ट किया?'
'हा, वही कर रहे हैं।'
'सुनो, तुम आलोक को लेकर यहां ऑफिस पर आ जाओ बाद में यहां से सब साथ में १२ बजे से पहले निकलेंगे।'
'ओ. के..'

आलोक की अपने पैरेंट्स के साथ करवानी जरूरी थी। इसलिए शेखर ने इंद्रवदन को कॉल लगाया। नेटवर्क प्रॉब्लम की वजह से नहीं लगा। थोड़ी देर बाद दो से तीन बार कोशिश की लेकिन सफ़लता नहीं मिली। इसलिए बाद में यात्रा की शुभेच्छा, तबियत का ध्यान रखने के लिए सूचना और नेटवर्क प्रॉब्लम की वजह से अभी बात नहीं हाे पायेगी इसलिए शाम को या रात को शांति से बात करेेंगे ऐसा संदेश टाईप करके शेखर ने इंद्रवदन को सेंड किया।

११:५० बजे शेखर, आलोक औैर वीरेन्द्र तीनों डॉ. अविनाश के केर यूनिट पर आ पहुंचे। शेखर के दिल धड़कन की गति अनियंत्रित थी। आलोक को किसी भी बात से अवगत नहीं कराया गया था। वीरेन्द्र एकदम स्वस्थ थे।

तीनों वेटिंग लाउंज के सोफा पर ८ से १० आगंतुकों के साथ बैठ गए। वाे लोग आ गए हैं ऐसा संदेशा शेखर ने अविनाश की केबिन में भिजवाया। प्रत्येक मिनट के साथ साथ बाढ़ रही शेखर की चिन्ता औैर चेहरे के हावभाव देखकर वीरेन्द्र ने मंद मंद मुस्कुराते हुए इशारे से कुल रहने को समझाया।

समय १२:१७ मिनट। अपना अविनाश के चैम्बर में जाने की सूचना मिली। चैम्बर में एंटर होते ही शेखर ने देखा कि अविनाश अकेले ही थे। तीनों चेयर पर बैठ गए। आलोक के साथ हाथ मिलाते हुए अविनाश बोले,
'हाय, जेंटलमैन। हाऊ आर यू?'
आलोक ने हाथ के इशारे से कहा, 'ठीक।' बाद में धीमी आवाज़ में शेखर से पूछा, 'येे साहब कौन है?'
शेखर ने कहा, 'दोस्त बस थोड़ी देर वेट कर सब कुछ समझ में आ जायेगा।'
चैम्बर में आने के बाद शेखर का ध्यान तीन बार वॉल क्लॉक पर गया। उस ओर ध्यान देते हुए अविनाश ने शेखर की ओर देखकर कहा, 'हेय यंग मैन यू आर टू नर्वस। कंट्रोल योर हार्ट बीट्स, जस्ट रिलैक्स एंड वैट फॉर फ्यु मिनट्स। ऑल विल बी गुड।'

पांच मिनिट्स के बाड़ शेखर की बैठक के पीछे की ओर से केबिन से सटकर आई हुई अविनाश के प्राइवेट चेम्बर् में से तीन औरतों ने एण्ट्री की। सिर्फ़ शेखर का ध्यान ही उस तरफ गया। बाई औैर दाईं ओर की दोनों गर्ल्स यंग थी। बीच की लेडी अविनाश की हमउम्र थी।
अविनाश ने उनकी ओर हाथ दिखाते हुए परिचय करवाते हुए कहा..'येे है मेरी वाइफ स्मिता औैर......'अभी आगे आधा शब्द भी बोलने जाए या कुछ समझे उससे पहले ... दाईं ओर की गर्ल को देखते ही आलोक,

'अदिती..............' के नाम से एकदम से चीख के साथ दोड़कर अदिती को गले लगाकर रोने लगा।

२९ अप्रैल से लेकर अभी तक की घड़ी तक शंका-कुशंका, तर्क-वितर्क, संवाद-विसंवाद, छल-कपट, बेमतलब अकल्पनीय, षड़यंत्र औैर सपनों जैसी कुछ विसंगतता जाे मान्यताओं की धरा पर असंतुलित होकर घूम रही थी वाे एक ही क्षण में इस दृश्य के सामने स्थिर होकर चिपक गई। औैर उस दृश्य के साथ साथ सबके चेहरे पर एक जैसे प्रश्न चिन्ह दिखने लगे..

अब क्या?

शेखर की आंखें भीग गई। कहां कितनी सारी तो गलतफहमी और षड़यंत्र की बू घड़ीभर में भाप बन गई। दिमाग में भारी भरकम होकर घूम रही मान्यताएं तो टूटकर चूरचूर हो गई। घूमा देने वाली विचार चक्रों की गति थम गई। जाे अदिती कल तक सब के लिए एक सवा लाख का सवाल औैर कड़वी पहेली थी वही अदिती आज मनपसंद मीठे हलवे जैसी सरल जवाब बनकर सब के गले से उतर गई। अब आलोक विचारहीन हाे गया।

अविनाश ने सब को इशारा करते हुए कहा कि, अदिती औैर आलोक दोनों अपने हिसाब से कम्फ़र्टेबल होकर रिलैक्स होने दिया जाय।

अविनाश ने स्मिता के साथ उस गर्ल को इशारे से बैठने को बोला और स्मिता को कहा, 'स्मिता प्लीज़ ऑर्डर समथिंग हॉट और कोल्ड ड्रिंक्स फॉर ऑल।' बादमें अविनाश ने शेखर औैर वीरेन्द्र दोनों को अपने प्राइवेट चैम्बर में अपने साथ आने के लिए बोला। आलोक औैर अदिती दोनों एक दूसरे के गले लगकर आंसु बहा रहे थे। स्मिता ने दोनों को एक ओर सोफ़ा पर बिठाया।

तीनों चैम्बर में दाखिल होते ही शेखर भावुक होकर अविनाश के गले लगकर एकदम से भरी हुई आवाज़ में इतना ही बोल सका,
'सर, आई हैव नो वर्ड्स।'
वीरेन्द्र शेखर से बोले, येे सब मुरलीधर की लीला है।'
अविनाश बोले, 'थैंक गॉड, मुझे एक ही डर था कि अगर आलोक, अदिती को नहीं पहचान पाया तो क्या होगा? नाऊ आई एम १००% स्योर कि हम आधी बाज़ी जीत गए हैं।' 'शेखर अब आलोक को नॉर्मल करने के लिए अदिती को हमारे १००% देने की जिम्मेदारी तुम्हारी रहेगी। अदिती को अनकम्फर्टेबल फील न हो उसका ध्यान रखना।'
अविनाश ने वीरेन्द्र से कहा, 'देखो वीरेन्द्र, आपकी परमिशन हो तो.. जब तक आलोक नॉर्मल नहीं हो जाता तब तक वो अदिती के साथ आपके घर में ही रहेगा, वो इसलिए कि अदिती को एक सेफ, ट्रस्टेबल औैर कम्फ़र्टेबल फैमिली एटमॉस्फियर आपके घर पर ही मिल सकता है। औैर अदिती को अनजाने शहर औैर अनजाने लोगों के बीच भरोसा दिलाना वो हमारी जिम्मेदारी औैर ज़रूरियात दोनो है। मेरी अदिती के साथ सब बातें हो गई है। बाकी की कसर अब मेरी ट्रीटमेंट और अदिती के प्रयास पूरे करेेंगे।'
वीरेन्द्र ने अविनाश का हाथ पाकड़कर कहा, 'डॉक्टर साहब, अदिती औैर आलोक दोनों भी मेरे लिए शेखर के जैसे मेरी संतान के समान ही है। हम सब साथ मिलकर आपके विश्वास पर खरे उतरेंगे।'
शेखर ने पूछा, 'वाे लड़की कौन है?' अविनाश ने कहा, 'वो अदिती की क्लोज फ्रेंड है संजना, संजना पारेख। यहीं रहती है बैंगलुरू में। अदिती की कॉलेजमेट।'

बैंगलुरू स्थित संजना पारेख यानि कि धनी चिमनलाल पारेख की इकलौती लाड़ली बेटी। पिताजी चिमनलाल बैंगलुरू के एक नामीगिरामी बिल्डर के साथ साथ महत्वपूर्ण व्यक्तित्व के स्वामी थे।

बातें करते करते तीनों चैम्बर में से आने से पहले वीरेन्द्र ने घर पर कॉल करके अपनी पत्नी वंदना को सब संक्षेप समझा दिया। आलोक और अदिती एक दूसरे का हाथ पकड़कर एक तरफ़ सोफ़ा पर बैठे थे और आलोक उसे बार बार धीमी आवाज़ में सवाल पर सवाल पूछ रहा था इसलिए शेखर ने उसके पास जाकर समझाने की कोशिश करने लगा तब अदिती ने शेखर के साथ हाथ मिलाते हुए 'हेल्लो' कहकर हंसते हंसते बोली,
'शेखर आप चिंता मत कीजिए अब येे मेरा मरीज़ है।'
येे सुनकर सब हंसने लगे। आलोक चुपचाप सब के चेहरे देखने लगा। अविनाश ने सब से एक दूसरे का परिचय करवाया। संजना औैर शेखर ने एक दूसरे को 'हाय, हेल्लो' कहा।
लंच टाइम खतम होने को आया था इसलिए सबने जाने का सोचा।
अविनाश ने वीरेन्द्र औैर शेखर से कहा, 'बाकी का डिस्कसन हम आराम से कॉल पर करेेंगे। ऑल द बेस्ट। एण्ड टेक केर।'
अदिती ने अविनाश को एक ओर बुलाकर थोड़ा कन्फ्यूजन था वाे क्लीयर कर लिया।
अविनाश ने अदिती से कहा, 'आप अभी शेखर के साथ उनके घर जा रहे हो, हाे सके तो संजना को भी आप साथ ले जा सकते हो।'
'हां, वो हमारे साथ ही आ रही है।'
सभी डॉक्टर दंपत्ति का आभार मानकर घर तरफ रवाना हुए।
वीरेन्द्र, शेखर, आलोक, अदिती औैर संजना भव्य विला में दाखिल होते ही सभी फैमिली मेम्बर्स ने अदिती औैर संजना का गर्मजोशी से स्वागत किया।
आलोक ने अभी भी अदिती का हाथ पकड़कर ही रखा था। शेखर ने आलोक को अपने पास आकर बैठने के लिए बोला। थोड़ी देर अदिती की ओर देखने के बाद वाे शेखर के पास जाकर बैठा। वीरेन्द्र को जरूरी काम से ऑफिस जाना था तो वह तुरन्त ही निकल गए। सबने साथ में लंच किया। बाद में शेखर आलोक, अदिती औैर संजना को लेकर गेस्टरूम में आया। अदिती को बोला, 'मैडम इफ यू डॉन्ट माइंड अदिती जी, मुझे थोड़ा काम है तो एक घण्टे के अन्दर वापस आता हूं।'

हम्ममम... सोचते हुए अदिती बोली, 'इट्स ओ.के. सर। बट ओन्ली अदिती बोलिए।'
'सर,?' मैं कोई सर नहीं हूं।
'तो शेखर जी मैं भी कोर्इ मैडम नहीं हूं।'
औैर दोनों हंसने लगे।
'अदिती, ठीक है?'
'परफेक्ट'
'तो अब मैं निकलता हूं रात को मिलते हैं।'
इतना कहकर वंदना आंटी के साथ थोड़ी जरूरी चर्चा करने के बाद ऑफिस जाने के लिए निकल गया।

कार में जाते हुए शेखर सोच के भंवर में घूमता रहा। किसी एक प्रश्न का जवाब शेखर को नहीं मिल रहा था। अविनाश को अदिती का अनुसंधान कहां से औैर किस तरह मिला? या तो अदिती को अविनाश का? इतने समय से अदिती बैंगलुरू में क्या कर रही है? शर्तें रखने के क्या मायने हैं? बट राइट नाउ आलोक का नॉर्मल होना ज्यादा जरूरी है। इसलिए अभी के लिए उस ओर के विचारों को ज्यादा अहमियत देना ज़रूरी लगा।

समय था ८ पी. एम. इसलिए संजना ने अदिती को बोला, 'चल अब मैं इजाज़त लूंगी। दोपहर से तुम्हारे साथ हूं तो मम्मी, पापा भी वैट कर रहे होंगे। तो मुझे अब निकलना चाहिए। आर यू फीलिंग कम्फ़र्टेबल अदिती?'
'हम्ममम.. मुझे लग रहा है कि अभी थोड़ा समय लगेगा।' अदिती ने जवाब दिया।
'अच्छा चल बाय, मैं निकल रही हूं। सी यू।'
अदिती बोली, 'अच्छा ठीक है। मैं तुम्हें रात को कॉल करूंगी। तब शांति से बात करेंगे। थैंक यू सो मच संजना। बाय। टेक केर, सी यू।'

आलोक स्वस्थ और शांत था। आलोक की मानसिक विचारशक्ति की दृष्टि से उसका मिशन पूरा हाे गया था। क्योंकि कौन? कहां? क्यूं? कैसे? ऐसे किसी भी प्रश्न उठाने की अब कोई सम्भावना ही नहीं थी। उसका यही कारण था कि आलोक के लिए इस स्टेज पर अदिती के सिवाय सबकुछ भूली हुई याददाश्त जैसा था। अदिती भी एकदम से आलोक को कुछ भी पूछकर उसके ऊपर मानसिक दबाव लाना नहीं चाह रही थी। सोच रही थी कि रात को शेखर के साथ बात करने के बाद ही २९ अप्रैल से लेकर अभी तक आलोक की इस परिस्थिति की कहानी जानने के बाद आलोक की मानसिक स्थिति को कहां और किस तरह कौनसी दिशा में ले जाकर सामान्य करनी है औैर उसका डॉक्टर अविनाश की सूचना औैर पहले से तय किए हुए प्लान के हिसाब से व्यवस्थित किस तरह आयोजन करना है कि जितना हो सके कम समय में आलोक को एकदम सामान्य अवस्था में ला सके।

रात को सबका डिनर हो जाने के बाद वीरेन्द्र ने अदिती से पूछा, 'अदिती बेटा, आर यू कम्फ़र्टेबल हीयर?'
'जी अंकल।'
'कोर्इ तकलीफ?'
'जी बिलकुल नहीं अंकल।'
'कभी भी किसी भी चीज़ की ज़रूरत हो, या कोई तकलीफ़ हो तो मुझे या अपनी आंटी या डॉक्टर अविनाश किसी को भी बिना किसी संकोच कह सकती हो। इसे अपना ही घर समझना।'
'तुम्हारे पेरेंट्स के साथ बात हो गई है?'
'हां अंकल।'
'ठीक है, आप सब बातें करो, मैं अपने रूम में जा रहा हूं। गुड नाईट बेटा।'
'जी, गुड नाईट अंकल।'

तीनों गेस्ट रूम में आए। अदिती सोफ़ा पर बैठी तो आलोक भी उसके पास बैठ गया और शेखर सामने के सोफ़ा पर बैठा

शेखर ने सोचना शुरू किया कि कहां से बातों का दौर शुरू किया जाए। अभी शेखर अपने विचारों को अमल में लाता उससे पहले अदिती ने पूछा, 'अच्छा शेखर सब से पहले आपके परिचय से हमारे वार्तालाप की शुरुआत करते हैं, क यही ठीक रहेगा

आगे अगले अंक में....

© विजय रावल



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