क्लीनचिट - 11 Vijay Raval द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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क्लीनचिट - 11

अंक - ग्यारहवां/११

शेखर ने संक्षेप में अपने परिवार, सगे संबंधी, दोस्तों, व्यवसाय औैर अपने शोख और पसंदीदा प्रवृत्ति के बारे में संक्षेप में जानकारी दी। बाद में अदिती ने पूछा,

'अब तुम्हारी लाइफ में आलोक की कब, कहां औैर किस तरह एण्ट्री हुई वाे बताओगे?'

शेखर ने आलोक के साथ हुई पहली मुलाकात से बात शुरू की।
आलोक की बोलचाल, व्यवहार, स्वभाव, पारदर्शी व्यक्त्तित्व, काम के प्रति निष्ठा, समय पालन का परफेक्शन, काबिलियत उन सभी पहलुओं का शेखर ने विस्तार से अदिती के सामने वर्णन किया। उसके बाद शेखर बोला,

'अदिती, आलोक में एक भी माइनस प्वाइंट नहीं था। आलोक का सब से बड़ा प्लस प्वाइंट था, खुली आंखों से भी दिखाई दे ऐसी उसका निर्दोष औैर स्वभाव का खुलापन। मेरी २७ साल की लाइफ में आलोक के साथ मेरा जाे एक अद्वितीय मित्रता का जाे समीकरण बना वो दोनों की फ़ैमिली और मेरे बाकी के दिस्तों के लिए आज भी एक आश्चर्य का विषय है। हम दोनों के बीच की बातचीत, व्यवहार देखकर कोई भी अनजान व्यक्ति हम दोनों को सागा भाई ही समझते हैं। औैर ऐसे किस्से भी बहुत बार हुए हैं वो भी बहुत ही कम समय में।'

बिना पलक झपकाए पूरी ध्यान से अदिती शेखर का एक एक शब्द सुनती रही।

तभी बीच में आलोक ने अदिती को पूछा, 'आप दोनों किसकी बातें कर रहे हो। मेरे साथ क्यूं कोई बात नहीं कर रहा?'

अदिती ने कहा, 'वो तो अपने किसी फ्रेंड की बात कर रहे हैं। चलो अब तुम्हारी बारी बस, तुम बोलो।'
'नहीं अब मुझे तुम्हारे साथ बात नहीं करनी। मुझे सो जाना है। मैं यहां तुम्हारे पास सो जाऊंगा।' ऐसा बोलकर अदिती की गोद में सिर रखकर सो गया।

थोड़ी देर बाद अदिती ने पूछा, 'शेखर मुझे एक बात बताओगे कि मेरे बारे में आलोक ने तुम्हें क्या क्या बताया है? कौन कौन सी बातें? औैर हम दोनों अलग होने के बाद ऐसा क्या हुआ कि आज आलोक को मैं ऐसी हालत में देख रही हूं? प्लीज़।'

'अदिती, येे परिस्थिति तो कुछ भी नहीं है। ईश्वर का धन्यवाद करो कि आज आलोक जीवित है। तुम्हें ढूंढने की ज़िद में वाे मौत के मुंह से वापस आया है। वाे दृश्य याद करता हूं आज भी मेरे रोंगटे खड़े हो जाते हैं। उस दिन अगर मैं सही समय पर नहीं पहुंचा होता तो शायद आज आलोक...' इतना बोलते हुए शेखर की आंखों में पानी आते ही गला भर आया।
अदिती ने शेखर को पानी ग्लास देते हुए कहा, 'प्लीज़ रिलैक्स।'
थोड़े समय के लिए छाई हुई चुप्पी तोड़ते हुए अदिती बोली, 'शेखर आर यू ओ.के.?'
'या अदिती, आई एम ओ.के.'
'शेखर तुम्हें अगर आराम करना हो तो हम कल बात करेेंगे।'
'जी नहीं मैं ठीक हूं। तुम चाय या कॉफी कुछ लोगी?'
'चाय पीने का मन तो है, अगर पॉसिबल हो तो।'
'अरे.. स्योर क्यूं नहीं.. मैं भी तुम्हें कंपनी दूंगा।'
कजिन ब्रदर को बुलाकर शेखर ने एक चाय औैर एक कॉफी बनाकर लाने को बोलने के बाद शेखर बोला, 'मैं चेंज करके आता हूं बाद में हम शांति से बात करेंगे।'
शेखर आए तब तक अदिती ने संजना को कॉल करके बोला कि..'हम कल बात करेेंगे।'
शेखर वापस आया तब तक चाय, कॉफी भी आ गई। चाय का मग अदिती को देने के बाद शेखर कॉफी की चुस्की लेते हुए बातों का दौर शुरू करें उससे पहले अदिती ने पूछा, 'आलोक ने हमारी मुलाकात की बात तुम्हें कब बताई?'

एक महीने बाद, वाे भी तब कि जब उसकी मानसिक पीड़ा उसकी सहनशीलता की सीमा पार करके असहनीय मुकाम पर पहुंच गई थी।' शेखर ने जवाब दिया।

'औैर उससे पहले?'अदिती ने पूछा।

'वाे जब बैंगलुरू आया था तब बहुत ही खुश था। नई नई जॉब औैर खुली आंखों से तुम्हारे देखे हुए सपनों के साथ। अदिती, आलोक हमेशा हरेक आहट, हरेक परछाई में तुम्हें ढूंढता रहा। धीरे धीरे एक के बाद एक ऐसी ऐसी घटनाएं उसके साथ घटती गई कि तुम्हारे व्यक्तित्व ने उसके मन, मस्तिष्क पर ऐसा तो कब्जा जमाया था कि वाे दूसरा कुछ सोचने, समझने या किसीको समझाने के लिए सक्षम नहीं रहा। तुम्हारी शर्तों के शब्द जैसे उसकी ज़िन्दगी का अन्तिम सत्य बन गया। मां, बाप, सगे संबंधी, प्रतिष्ठा, जॉब, खाना, पीना, सोना दिन, रात सबकुछ ही भूल गया। बस याद रहा तो सिर्फ़ एक... अदिती.. अदिती.. औैर अदिती।
एक छोटे से अंकुर के रूप में फूटी हुई वेदना की बेल धीरे धीरे एक समय के बाद एक विराट वटवृक्ष का स्वरूप लेकर आलोक को जकड़ लिया। औैर वाे मूक अदृश्य असह्य वेदना का निरूपण मेरे सिवाय किसके आगे जाकर करे? औैर उसे इस बात का डर सताता था कि अगर मैं भी उसकी वेदना की भाषा समझने में असफल रहा तो?

बाद में शेखर ने आलोक की बर्थडे पार्टी के रात की घटना के बाद आलोक का मानसिक चिंता औैर शर्मिंदगी जब उसकी पराकाष्ठा पर आ गई, उसके बाद आलोक ने शेखर को जो २९ अप्रैल की घटना का शब्दशः वर्णन शेखर को कह सुनाया था वही वर्णन शेखर ने अदिती को कह सुनाया। अदिती की शर्तो के एक एक शब्द आलोक ने अपने दिमाग में ऐसे बिठाए थे कि एक महीने के बाद भी आलोक को मुंह ज़ुबानी थे। मेरी गोल्ड फ्लावर का बुके, रेड बुल ड्रिंक औैर "आगे भी जाने ना तू, पीछे भी..." सॉन्ग.. 'अदिती, बस येे सब रखने में जीना भूल गया। २९ अप्रैल का वाे दिन तुम्हारे जीवन का किस्सा रहा औैर आलोक की जिन्दगी का हिस्सा बन गया। तुम सोचो अदिती, एक वो आलोक था और एक येे आलोक है... अदिती तुम अंदाज़ा लगा सकती हाे कि आलोक के भीतर सिर्फ़ और सिर्फ़ तुम्हारे लिए ही पल पल जलाती वो अनंत अविरत पीड़ा? जिस पीड़ा में वाे पल पल मरता रहा, कराहता रहा मात्र अपनी अदिती की एक झलक पाने के लिए औैर सुनने के लिए, औैर तुम.... एक पल के लिए भी...'
शेखर ओर आगे कुछ बोले उससे पहले...
अदिती अपने मुंह को तकिए में छुपाते हुए ज़ोर ज़ोर से रोते हुए बड़ी मुश्किल से बोली... 'प्लीज़ प्लीज़ प्लीज़ शेखर स्टॉप इट। मेरे दिमाग की नसें फट जायेगी।'
अदिती तुम्हें सिर्फ़ सुनकर जाे पीड़ा हाे रही है, जब कि आलोक ने तो अकेले हररोज चारों ओर से उदासी की रणभूमि में निराशा से घिरा हुआ एक निहत्थे औैर निसहाय योद्धा की माफिक अनेक मोचों पर तन, मन औैर धन से बरबाद होकर अभी भी लड़ रहा है अपनी अदिती के लिए। अपने निःस्वार्थ प्रेम के विजय के लिए। तब उसकी मानसिक हालत क्या होगी?
अदिती एक रोता हुआ पूतला बनकर आंसु बहाती चुपचाप बिना पलक झपकाये उसकी गोद में सिर रखकर सोए हुए आलोक को देखती रही। थोड़े समय के लिए रूम में लंबी खामोशी छाई रही।
उसके बाद शेखर बोला,
'अदिती अगर तुम्हें बुरा न लगे तो एक बात कहूं?'
'शेखर, आलोक को आज जिस हाल में देख रही हूं, इससे ज़्यादा भी बुरा क्या हाे सकता है? तुम बोलो।'
'माफ़ करना, लेकिन इतना तो तुम्हें जरूर कहूंगा अदिती कि, एक सीधेसाधे एकदम निर्दोष सच्चे दिल के व्यक्ति को आज तुम जिस हालत में देख रही हो, उसके लिए सिर्फ़ और सिर्फ़ तुम अकेली ही पूरी तरह से जिम्मेदार हो, सॉरी।'

दोनों हाथ जोड़कर अदिती बोली बोली,

'शेखर, मैं कुबूल करती हूं। औैर उसके लिए कोई भी सजा मंजूर है।'

'सजा.... सजा नहीं अदिती मैं तुम्हें सिर्फ़ इतनी गुजारिश करूंगा कि, हाे सके तो हमें हमारा पहले जैसा हंसता हंसाता आलोक वापस कर दो बस।'
रोते रोते अदिती ने आधे अधूरे स्वर में आलोक के सिर पर हाथ फिराते फिराते कहा... 'शेखर... आलोक के लिए मैं मेरा अस्तित्व तक मिटाने को तैयार हूं। उसके एक एक सांसों की मैं ऋणी हूं। मैं उसी आलोक के साथ सब को रूबरू करवाऊंगी। लेकिन...

वो सिर्फ़ मेरा होगा।'

थोड़ी देर के लिए दोनों चुप हो गए।

'अदिती मुझे लगता है कि अब काफ़ी देर हो चुकी है। हम आराम करें?'
'जी शेखर.,'
'जी मैं तुम्हारी मम्मी के रूम में सोने जा रही हूं।'
'ठीक है।'
'गुड नाईट अदिती।'
'गुड नाईट शेखर।'

दोनों देर तक जागते औैर सोचते रहे..
शेखर को लगा कि पहली मुलाकात में ही उसने अदिती को इस हद तक मेंटली डिस्टर्ब किया वो सही नहीं था। लेकिन आलोक की परेशानी से वाे अंदर ही अंदर पीड़ा भोग रहा था। तो अब अदिती के सिवाय किसके सामने व्यक्त करता? लेकिन इतने कम परिचय में ही अदिती के साथ की हुई चर्चा के बाद अब शेखर ने अपने मन मस्तिष्क में बेतरतीब अनुमान से अंकित की हुई अदिती की धुंधली शंकासपद तस्वीर अब क्रिस्टल क्लीयर दृश्यमान हो रही थी। आलोक की पीड़ा की संचार का प्रसार अदिती के अंदर हाे रहा हो ऐसा एहसास शेखर को हुआ तो अब उसने अदिती के लिए उठ रहे नकारात्मक विचार की हवा को अपने में दबा दिया।

इस ओर अदिती सोच रही थी कि सिर्फ़ दो लाइन की शर्त के शब्दों को अपने जीवनमंत्र का स्वरूप देने के लिए कोई पुरुष एकदम स्व (अपने) के अस्तित्व की आहुति देने की चरमसीमा के अंत तक पहुंच जायेगा ऐसी कल्पना मात्र से ही अदिती के स्त्रीत्व को कंपकंपा गया।

विचारों के साथ साथ अदिती के आंखों से आंसु भी बह रहे थे। मन में बोली, 'आलोक, अदिती को जीता है, सांस में भरता है। ऐसी व्यक्ति से तो प्रेम हर कोई करेगा। लेकिन प्रेम का कद छोटा औैर कम होगा। उससे प्रेम नहीं पूजा करनी चाहिए।

सुबह सुबह आलोक की आंखें खुलते ही सबसे पहला खयाल आया अदिती का। आलोक का सिर्फ़ शरीर ही सोता है। मन मस्तिष्क तो हमेशा जागृत औैर कार्यरत रहते हैं, अदिती के खयालों में ही। अदिती नजर नहीं आते ही उसे ढूंढने लगा। रूम, रूम के बाहर, बाल्कनी सब जगह घूमकर देख लिया। सिर खुजाते हुए सोचने लगा कि किसे पूछूं? शेखर अभी सो रहा था। फिर भी उसे नींद में से जगाया। आंखें मलते हुए शेखर ने घड़ी देखी, समय ७:२५ । बाद में पूछा,

'अबे क्या हुआ तुझे सुबह सुबह?'

'अदिती कहां है?' आलोक ने पूछा।

कच्ची नींद में से जगाया था इसलिए थोड़ा गुस्सा होते हुए शेखर को लगा कि इन दोनों को ज़ंजीर से बांध ही दूं ताकि येे मजनू महाराज उसकी माला जपना बंध करे।

'वाे अभी आ रही है, तेरे लिए कुछ लेने गई है मार्केट में।' शेखर को जैसा सूझा वैसा जवाब दे दिया।

'कब गई? कब आयेगी? मुझ से बिना पूछे क्यूं गई? मुझे साथ क्यूं नहीं ले गई? फिर से कहीं चली गई तो? अरे पर तू ने उसे अकेले जाने ही क्यूं दिया? कितना बेदरकर है तू।' ए. के. ४७ में से मकाई के दाने के जैसे बुलेट्स छूटती है ऐसे एकसाथ प्रश्नों के प्रहार हुए।

'मेरे साहब, अरे वाे कहकर गई है कि तू फ्रेश हो जायेगा तब तक आ जायेगी मेरे बाप।'
'हायें.. मैं फ्रेश हो जाऊंगा तो आ जाएगी?'
'हां।'
फटाफट भागा बाथरूम की ओर।
समय हुआ ९:३५। उससे पहले डाइनिंग टेबल पर सभी अपने अपने अनुकूल समय से ब्रेकफास्ट लेकर चले गए थे। अंत में शेखर, उसकी मम्मी, उसकी आंटी, अदिती औैर आलोक।

जाते जाते शेखर ने अदिती को आलोक का मोबाइल दिखाते हुए कहा, 'आलोक के पैरेंट्स एक महीने के लिए चारधाम की यात्रा पर गए हैं। येे दोनों नंबर आलोक के मॉम, डैड के के हैं। तो जब भी कॉल आए तब थोड़ा अपनी ओर से संभाल लेना। ठीक है। मैं जा रहा हूं। कोर्इ भी काम हाे तो कॉल कर सकती हो, एनी टाईम ओ. के.'

शेखर के जाने के बाद शेखर की मम्मी ने अदिती से कहा,
'बेटा कभी हमें भी सुनाना तुम दोनों की प्रेम कहानी।'
उसके साथ ही सब हंस पड़े। आलोक सबको देखता रहा। अदिती ने कहा, 'जि आंटी जरूर। लेकिन उससे पहले मेरे हीरो को ठीक हो जाने दीजिए बाद में दोनों साथ में सुनाएंगे आपको।'
'अरे.. बेटा मैं तो दो पल के लिए मज़ाक कर रही हूं।'
'आंटी मैं आलोक के साथ थोड़ी देर के लिए रूम में बैठती हूं। कोर्इ भी काम हो मुझे बुला लीजिएगा हा।'
'ठीक है बेटा, औैर तुम्हे भी कुछ चाहिए हो तो बोलना।'
'जी आंटी।'
उसके बाद अदिती औैर आलोक रूम में आए। अदिती कब तक आलोक को देखती ही रही आलोक अपनी मस्ती में था।
'आलोक, चलो तुम्हें ऑफिस जाने के लिए देर नहीं हो रही?'
'ऑफिस? कौन सी ऑफिस? ना, मुझे कहीं भी नहीं जाना। मैं जाऊंगा तो तुम फिर से चली जाओगी। मैं तुम्हें भी कहीं जाने नहीं दूंगी।'
'मैं कहां गई थी?'
'तुम.. तुम है न मुझे.. एकबार वहां छोड़कर कहीं...'
'आलोक चलो हम दोनों चेस खेलते हैं।'
'तुम खेलोगे मेरे साथ?'
अदिती चेसबार्ड लगाते हुए बोली, 'आओ आलोक' आलोक थोड़ी देर चैसबोर्ड की ओर चुपचाप एकटक देखता रहा। बाद में बोला, 'येे क्या है?'
तब अदिती ने टॉपिक चेंज करते हुए पूछा, 'आलोक अपने मम्मी पापा के साथ बात नहीं करनी? वाे दोनों तुम्हें कितना याद करते हैं, तुम्हें पता है? रोज पूछ रहे हैं कि आलोक कॉल क्यूं नहीं करता?'
'वो.. वाे.. लोग तो अभी आयेंगे तो बात करूंगा मैं। अभी हम दोनों बात करते हैं।'
'तुम कहां मेरे साथ कोई बात कर रहे हो। अगर तुम ऐसा ही करते रहे तो मैं फिर से चली जाऊंगी देख लेना हां।'
ऐसा सुनकर आलोक रूठ गया औैर मुंह फुलाकर दूसरी ओर चेहरा करके बैठ गया। अदिती मन ही मन में हंसते हुए आलोक के सामने जाकर बोली, 'हे मेरे देवाधिदेव, येे तीसरा नेत्र खोलने का प्रयोजन अभी थोड़े दिनों के लिए स्थगित रखें तो सही रहेगा।'
'आलोक चलोना हम दोनों कहीं बाहर घूमने चलते हैं।'
'ओओओ.... सच्ची? तुम आओगी मेरे साथ?'
'हां, बोलो कहां ले जाओगे मुझे?'
'वाे... मैं.. मैं.. है न तुम्हें.. मैं... हम'
अदिती बोली, 'बड़ौदा?'
'क्यूं, बड़ौदा?'आलोक ने पूछा।
'वहां हम दोनों तुम्हारी कॉलेज जायेंगे। तुम्हारे दोस्तों से मिलेंगे। फ़ुटबॉल खेलेंगे। मस्ती करेंगे।'अदिती ने जवाब दिया।
'हां.. लेकिन वाे सब कहां है?' फिर से आलोक ने पूछा।
'कौन, तुम्हारे दोस्त?' अदिती ने सामने प्रश्न किया।
'हां।'
'क्या नाम था तुम्हारे दोस्त का वही तुम्हारा बेस्ट फ्रेंड है वो.. क्या नाम?' अदिती ने पूछा। अदिती ने इस तरह अंधेरे में ही तीर छोड़कर आलोक को धीरे धीरे ट्रैक पर लाना था।
'उसका नाम तो मैं... बोलूं.. वाे मोटू था वाे?' याद करते हुए आलोक ने पूछा।
'हां.. हां.. वही मोटू था वाे.. क्या नाम है उस मोटू का?'सामने अदिती ने पूछा।
'उस मोटू.. का नाम तो.. मुझे हां... हे... हेमंत... हेमंत। हां हेमंत नाम था, वाे मोटू साला।'आलोक बोला। अदिती ने फटाफट आलोक के मोबाइल में कॉन्टैक्ट नंबर में सर्च किया.. "हेमंत" ... ओह माय गॉड.. अदिती की आंखें भीग गई .. स्क्रीन पर "हेमंत उपाध्याय" नाम पढ़कर। अदिती ने इस तरह से इधर उधर बिखरी पड़ी हुई स्मृति की एक एक कड़ी जोड़नी थी। अदिती ने अपने मोबाइल में से हेमंत के नंबर पर कॉल लगाया। 'हेल्लो.. गुड मॉर्निंग, मैं हेमंत उपाध्याय से बात कर सकती हूं?' 'गुड मॉर्निंग, आप हेमंत उपाध्याय से ही बात कर रही है। आपका परिचय देंगी?' 'मैं आलोक देसाई की रिलेटिव बोल रही हूं। अदिती मजुमदार। आपका नंबर मुझे आलोक ने ही दिया है। 'ओह ओह ओह आलोक, वो तो हमारी कॉलेज का हीरो था मैडम, वाे बैंगलुरू में था या है? मेरा कॉल भी रिसीव नहीं करता औैर करता है तो ठीक से बात भी नहीं करता। सॉरी मैडम, बोलिए मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूं?' 'हां, मेरी भी उससे काफ़ी समय से बात नहीं हुई। आप अभी कहां पर हो?' 'जी मैडम, मैं बड़ौदा में ही स्थाई हूं। आई एम ए चार्टर्ड एकाउंटेंट।'
'हां, मुझे अकाउंट्स से सम्बन्धित ही काम था। इसलिए आलोक ने आपका नंबर मुझे दिया था।'
'पिछली बार जब हम मिले तब आपके बारे में बहुत कुछ बताया था आलोक ने'
'क्या कह रहा था वाे जीनियस?'
'सॉरी सर, लेकिन वो आपके नाम के बदले मोटू बोलकर उल्लेख कर रहा था।'
'हा.. हा.. हा.. वो मेरा जिगरी है औैर मुझे कॉलेज में मोटू कहकर बुलाने का कॉपीराइट सिर्फ़ आलोक के पास ही था। आपके साथ कॉन्टैक्ट हो तो प्लीज़ एक बार मेरे साथ बात करवाना प्लीज़।'
'मैं आपसे बाद में शांति से कॉल करूंगी, थैंक यू मि. हेमंत। बाय।'
'इट्स माय प्लेजर, बाय।'
अदिती ने आंख बंद करके एक लंबी लेने के बाद मस्ती में आकर दोनों हाथों से आलोक की हेयर स्टाइल बिखेर दी।
'अरे.. येे तुमने क्या किया अदिती.. देखो मेरे बाल..'
'अरे.. अरे.. एक मिनट आलोक..'
इतना बोलकर अदिती ने अपने मोबाइल में आलोक की डिफरेंट लुक्स मेें फोटो क्लिक किए।
ऐसा तो मैं करूंगी ही, जाओ जो बन पड़े वो कर लो।' ऐसा बोलकर फिर से बाल बिखेर दिए.. बाद में..

अदिती ने शेखर का नंबर डायल किया।
'हेल्लो.. शेखर, मैं अदिती, अभी बात हो पायेगी या थोड़ी देर बाद कॉल करू?'
'अरे हां, बिलकुल अदिती, बोलो सब ठीक है? या मजनूं ने फ़िर कोर्इ हंगामा किया?'
'जी, नहीं' कहकर बाद आलोक के साथ के कन्वर्सेशन की पूरी बात बताई।
'ओह.. धेट्स गुड़, अभी तो आज पहला ही दिन है। तुम्हारा जादू इतनी जल्दी कामयाब होगा, ऐसा तो शायद अविनाश ने भी नहीं सोचा होगा। थैंक्स अदिती। दूसरा कोई काम है?'
'जी नहीं, बाय।'
'बाय।' बोलने के बाद शेखर एकदम हैप्पी मूड में आ गया।

इसी तरह से धीरे धीरे हररोज अदिती बहुत ही धैर्य और दिमाग शांत रखकर आलोक को किसी भी बहाने से कोई न कोई क्लू देकर उसे उसके भूतकाल की मानसिक औैर भौगोलिक सफ़र पर ले जाती औैर उसमें कभी अचानक सफ़लता भी मिल जाती। अदिती आलोक को चिढ़ाती, मस्ती करती तो कभी एक छोटे बच्चे के जैसे दुलार से लाड़ प्यार करते हुए खुद भी आलोक के जैसे बन जाती। इन सब पलों को अदिती कैमरे में कैद करती गई।

एक हफ्ते बाद एक दिन सूर्यास्त के समय बाल्कनी में एकदम शांत मन से फ्रेश मूड में चेयर मेें बैठकर आलोक कॉफी पी रहा था। उसी चेयर के सहयोग से खड़े होकर आलोक के बालों में धीरे धीरे उंगलियां फेरते फेरते कॉफी का घूंट भरते हुए अदिती बोली...
'आलोक, तुमने मुझे कल कहा था कि तुम मुझे एक बात बताने वाले थे? वाे कौनसी बात है, जरा बताओगे मुझे?' अदिती ने ऐसे ही तुक्का लगाया।
'कौनसी बात अदिती?'
'तुमने बोला था कि एक खास बात है, जाे मैं तुम्हें कहूंगा।'
'वाे तो मैं भूल गया।'
'अच्छा आलोक, अगर तुम अब मेरे साथ कोई बात शेयर नहीं करोगे तो अब मैं अपने घर चली जाऊंगी।'
'ना.. ना... अदिती लेकिन तुम ऐसा मत करो न। तो मैं भी तुम्हारे साथ ही आऊंगा।'

'अच्छा ठीक है, मैं तुम्हें मेरे साथ ले जाऊंगी, लेकिन मेरी एक शर्त है।'

आगे अगले अंक में....


© विजय रावल


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