अपने-अपने कारागृह - 26 Sudha Adesh द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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अपने-अपने कारागृह - 26

अपने-अपने कारागृह-26

अजय तो पहले भी अपने ऑफिशियल टूर के कारण विदेश यात्रा कर चुके थे पर यह उषा की पहली विदेश यात्रा थी । दिल्ली एयरपोर्ट पर जब उषा लंदन जाने वाले एयर इंडिया के विमान में बैठी तो उसने पाया कि घरेलू उड़ानों में उपयोग किये जाने वाले विमानों की तुलना में यह विमान काफी बड़ा है । इस विमान में बीच में चार तथा दोनों किनारे तीन-तीन सीट हैं । आने जाने के लिए दो रास्ते हैं । इसमें बिजनिस क्लास भी है । बिजनिस क्लास में यात्रियों को मिलने वाली सुविधाएं तथा खाना-पीना इकोनॉमी क्लास वालों से बेहतर रहता है पर इसका किराया इतना होता है कि हाई इनकम वाले ही इसमें जाना एफोर्ड कर सकते हैं, हम जैसे आम आदमी नहीं ।

विमान में बैठते ही नाश्ता पेश कर दिया गया । रात में खाया तो नहीं जा रहा था किन्तु घर से छह बजे ही निकल गए थे अतः खा लिया तथा सीट पर बैठे-बैठे ही सोने का प्रयत्न करने लगे । अंततः 9 बजे के लगभग हमारे विमान ने जमीन छू ही ली । उषा ने लंदन के हीथ्रो एयरपोर्ट पर कदम रखा तो वह रोमांचित हो उठी थी ।

कस्टम क्लीयरेंस में लगभग एक घंटा लग गया । लगभग आठ, साढ़े आठ घंटे की यात्रा के पश्चात जब वे एयरपोर्ट से बाहर निकले तो पदम और डेनियल के साथ अनिला भी उनका इंतजार कर रही थी । पदम को देखकर उषा चौंकी थी पर कुछ पूछ पाती उससे पहले ही अनिला उसे देखकर दौड़ती हुई आई तथा उसने उससे चिपकते हुए कहा, ' आई लव यू दादी ।'

' आई लव यू टू बेटा ।'कहते हुए उषा ने उसके सिर पर प्यार से हाथ फेरा था ।

उसी समय पदम अपने पापा के हाथ से ट्रॉली लेने आया । उषा ने उसका हाथ छूकर कहा, ' बेटा, तुम्हारा बुखार कैसा है ?'

' बुखार, मैं तो ठीक हूँ माँ । यह नाटक आपकी पोती अनिला का लिखा हुआ था । हम तो केवल किरदार थे ।' कहकर पदम मुस्कुरा उठा ।

' दादी आप आ नहीं रही थी अतः मैंने यह प्लान सोचा । मुझे लगा जब आप दादी के बीमार होने पर रुक सकती हो तो पापा के बीमार होने पर आप आ भी सकती हो । सॉरी दादी मेरी वजह से ममा को भी झूठ बोलना पड़ा ।' दस वर्षीय अनिला ने कान पकड़ते हुए कहा ।

' अनिला बेटा लेकिन आगे कभी झूठ मत बोलना क्योंकि झूठ बोलना गंदी बात है ।'

' ओ.के. दादी ।'

गाड़ी सड़क पर दौड़ रही थी । ऊंची ऊंची इमारतें, साफ और चौड़ी सड़कें किसी दूसरी दुनिया में पहुंचने का एहसास करा रहे थे । घर भी बहुत ही अच्छा है और साफ सुथरा था ।

घर पहुंचकर अनिला उनका हाथ पकड़कर उन्हें अपने कमरे में लेकर गई । उसका डबल डेकर बेड , डिजाइनर स्टडी टेबल, एक अलमारी में उसके खिलौने…सब पद्म और डेनियल की परिष्कृत रुचि को दर्शा रहा था । अपनी एक-एक चीज अनिला उसे बड़े चाव से दिखा रही थी ।

' अनिला, दादी को कुछ खाने पीने और आराम करने भी दोगी ।' डेनियल ने कमरे में आते हुए अनिला से कहा ।

' चलिए दादी, ममा ने आपके और दादाजी के लिए कुछ स्पेशल बनाया है ।'

' पहले फ्रेश तो हो लें बेटा ।'

'ओ.के. दादी । चलिए मैं आपको आपके कमरे में ले चलती हूँ ।' अनिला ने कहा ।

उषा अनिला के साथ अपने कमरे में आई । कमरा अच्छा और हवादार था । अजय वॉशरूम में थे । इस बीच उषा ने अपना सूटकेस खोलकर अनिला के लिए लाई बार्बी डॉल उसे दी ।

' वेरी ब्यूटीफुल दादी, मैं इसे ममा को दिखा कर आती हूँ।' कहते हुए वह जैसे दौड़ी हुई गई, वैसे ही लौट भी आई ।

अनिला के चेहरे पर छाई खुशी देखकर उषा को लग रहा था कि सच बचपन से अच्छी जीवन की निष्पाप अवस्था कोई नहीं है ।

खाने में पनीर बटर मसाला की सब्जी के साथ आलू गोभी देखकर उषा ने डेनियल की तरफ देखा तो उसने कहा , ' मां आज मैंने वही बनाया है जो आप से सीखा है । खाकर बताइए कैसा बना है ?'

' बहुत अच्छा...।' खाते ही उषा ने कहा तथा उसकी बात का समर्थन अजय ने भी कर दिया था ।

वीक डेज में तो अनिला का स्कूल रहता था वहीं पदम और डेनियल अपने ऑफिस के कार्यों में बहुत बिजी रहते थे । स्कूल से आकर अनिला का पूरा समय उन्हीं के साथ बीतता था । शाम को वे घर के पास स्थित पार्क में अनिला के साथ चले जाते थे जिससे उन्हें खालीपन का एहसास नहीं होता था । सच कहें तो उसकी प्यारी- प्यारी बातें उनके खुश रहने का जरिया थीं । उसकी निश्चल और प्रेमपगी बातें सुनकर कभी-कभी उषा सोचती कि न जाने लोग क्यों लड़कियां नहीं चाहते जबकि लड़कियां दिल से जुड़ी रहती हैं।

सप्ताहांत में उन्हें डेनियल के डैडी ने बुलाया था । वे अच्छे मेजबान थे । बातों -बातों में डेनियल के पिताजी ने कहा,' पद्म के भारतीय होने के कारण हम अपनी इकलौती बेटी डेनियल का विवाह पद्म से करने में हिचकिचा रहे थे । हमें लग रहा था कि वह पदम के साथ निभा पाएगी या नहीं किन्तु उसकी जिद के आगे हमें झुकना पड़ा । डेनियल को खुश देखकर हम भी बेहद खुश हैं । ' डेनियल के पापा ने अपने मन की बात कही ।

'वैसे हम भारतीय सभ्यता और संस्कृति से बेहद प्रभावित रहे हैं विशेषता भारतीयों।की परिवार को जोड़े रखने की प्रवृत्ति तथा बुजुर्गों का सम्मान...। हमारे देश में तो सब अपने लिए ही जीते हैं इसलिए यहां ओल्ड एज में सीनियर सिटीजन होम में रहने का प्रचलन है । ' डेनियल की मां ने कहा ।

अब हम उनसे क्या कहते कि अब हम भारतीय भी पाश्चात्य संस्कृति की चकाचौंध से भ्रमित अपनी संवेदनशीलता तथा सांस्कृतिक पहचान खोने लगे हैं । उन्हें भारत आने का निमंत्रण देकर हम लौट आए ।

अगले हफ्ते पद्म ने लंदन की प्रसिद्ध थेम्स नदी में वोटिंग के कार्यक्रम के साथ सेंट पॉल कैथेड्रल, लंदन आई, टावर ब्रिज देखने का भी कार्यक्रम बना लिया। थेम्स नदी ब्रिटेन की सबसे बड़ी नदी है लगभग 215 मील लंबी है...। इस नदी पर 1894 में बना टावर ब्रिज देखने लायक है । अगर किसी बड़े जहाज को इस ब्रिज के नीचे से जाना होता है तो यह ब्रिज बीच से खुल जाता है । ठीक ऐसा ही ब्रिज हमने रामेश्वरम जाते हुए समुन्द्र पर बना पामबन ब्रिज देखा था । इस ब्रिज पर ट्रेन चलती है । 'लंदन आई' के कैप्सूल मैं बैठकर जहाँ लंदन शहर के बिहंगम दृश्य ने मन को मोहा वहीं वेस्टमिनिस्टर एबी के पुल पर चलते हुए बिग बेन, ब्रिटिश पार्लियामेंट को देखा । क्रुसी से हमने लंदन की स्काई लाइन के साथ ग्रीन विच लाइन को भी देखा । उस दिन इंडियन रेस्टोरेंट में खाना खाकर देर रात लौटे थे । पूरे दिन घूमने के पश्चात भी थकान का नामोनिशान नहीं था ।

दूसरे दिन बंकिघम पैलेस गये । बंकिघम पैलेस ब्रिटिश राजशाही का आधिकारिक निवास स्थान है । बंकिघम पैलेस अपनी भव्य रेलिंगों दरवाजों और विशाल बालकनी के साथ मुख्य द्वार के सामने महारानी विक्टोरिया की विशालकाय प्रतिमा तथा चारों ओर फैले खूबसूरत नजारों के लिए प्रसिद्ध है । हमने रॉयल कलेक्शन के साथ यहाँ के चेंजिंग ऑफ गॉर्ड सेरेमनी भी देखी ।

इसके पश्चात हम मैडम तुसाद म्यूजियम गये । ये मूर्तियाँ इतनी सजीव लग रहीं थीं कि विश्वास ही नहीं हो रहा था कि ये मोम की बनी हैं । ये मूर्तियाँ फ्रांसीसी मूर्तिकार मैडम तुसाद ने बनाई हैं । यह म्यूजियम कई तलों में बना है । विदेशी राजनयिकों , कलाकारों के साथ हमारे देश के भी प्रसिद्ध कलाकारों और राजनयिकों की मूर्तियां भी आकर्षित कर रही थीं ।

दूसरे हफ्ते पद्म और डेनियल विंडसर कैसल लेकर गए । लंदन से इस कैसल तक पहुंचने में लगभग एक घंटा लग गया । यह किला थेम्स नदी के किनारे स्थित पहाड़ियों पर बना विशाल किला है । कहा जाता है कि महारानी एलिजाबेथ यहाँ छुट्टियां मनाने यहां आती हैं । दर्शकों के लिए इस महल का कुछ ही भाग खुला है ।

इसी तरह पद्म और डेनियल हमें लोंगलीट सफारी और ब्राइटन बीच लेकर गए । ब्राइटन बीच हमें अपने मुम्बई जैसा लगा वहीं लॉन्गलीट सफारी में जानवरों को खुला घूमते देखना , आधे घंटे की क्रुसी की यात्रा में समुन्द्री शेरों को लेक में डॉलफिन की तरह उछलते देखने के साथ टॉय ट्रेन में बैठकर घूमना अच्छा लगा ।

हमें यहाँ आये लगभग 2 महीने हो गए थे । अगले हफ्ते हमें यूरोपियन टूर पर निकलना था और उसके कुछ दिन पश्चात ही हमें भारत लौटना था । यद्यपि अनिला के साथ पदम और डेनियल भी हमारे छोटे ट्रिप से नाराज थे पर अगले महीने मम्मा-डैडी की गोल्डन जुबली वेडिंग एनिवर्सरी की वजह से हमें लौटना ही था । वेडिंग एनीवर्सरी में जाना तो पदम और डेनियल भी चाहते थे किंतु उसी समय अनिला की परीक्षाएं थीं । चाहे छोटी क्लास ही क्यों न हो आजकल के माता-पिता अपने बच्चों की पढ़ाई से कोई समझौता नहीं करना चाहते ।

पदम और डेनियल ऑफिस तथा अनिला स्कूल गई हुई थी । अजय ने कहा कि कुछ पैकिंग कर लें । हमने अभी पैकिंग प्रारंभ ही की थी कि अंजना का फोन आया, उसने कहा, ' भाभी, एक खुशखबरी है ।'

' क्या…?'

' मम्मा पापा घर आ गए हैं ।'

' सच...यह तो बहुत खुशी की बात है पर कैसे ?'

' एक दिन पापा जी की तबीयत खराब हो गई थी । रंजना मेम ने मुझे फोन किया । हम तुरंत पहुंच गए । पापा को अस्पताल में एडमिट करवाना पड़ा । उन्हें हार्ट अटैक आया था । डॉक्टर ने कहा अगर आने में थोड़ी भी देरी हो जाती तो आप इन्हें खो देते । मयंक और मेरी देखभाल ने सासू मां का ह्रदय परिवर्तन कर दिया और वे हमारे पास लौटने के लिए तैयार हो गईं ।'

' मैंने कहा था ना कि एक दिन वे अवश्य वापस लौटेंगे । लौट आए ना...। अब कोई गलतफहमी न पनपने देना ।'

' ओ.के. भाभी ।'

फोन कट गया था टूटे रिश्ते जुड़ने की गंध दूर देश में भी आने लगी थी।

आखिर वह दिन भी आ गया जब उन्हें यूरोप टूर के लिए निकालना था । आखिर उषा का स्वप्न साकार होने जा रहा था... वेनिस में गोंडोला बोट द्वारा वोटिंग करते हुए वेनिस शहर की खूबसूरती ने मन मोहा वहीं पर पेरिस के एफिल टावर के तृतीय तल से पेरिस शहर के मनमोहक दृश्य को देखकर मन अभिभूत हो उठा। इटली के मिलान में पीसा की झुकी हुई मीनार संसार का अजूबा लगी वहीं वेटिकन सिटी की भव्यता ने मन को अपार शांति से भर दिया ।

स्विट्जरलैंड की वादियों में घूमते हुए उषा सोच रही थी कि जिंदगी तो अभी प्रारंभ हुई है । अभी तक वह विभिन्न दायित्वों और बंदिशों में बंधी, झूठी मान प्रतिष्ठा के भंवर जाल में फंसी जीवन का आनंद ही कब ले पाई थी !! सच तो यह है कि अभी तक वह जो जिंदगी जी रही थी वह उधार की थी । अब वह जियेगी तो सिर्फ अपने लिए पर यह अवश्य है वह अपनी जिंदगी को कभी हाशिया नहीं बनने देगी .. .। इसके साथ ही वह हाशिये में पड़ी जिंदगियों को समाज की मुख्यधारा से जोड़ने का हरसंभव प्रयत्न करेगी । अपनी इसी सोच के तहत उसने एक निर्णय लिया कि मम्मा डैडी के विवाह की स्वर्ण जयंती समारोह में वह ' परंपरा ' के सभी लोगों को भी आमंत्रित करेगी ।

सुधा आदेश

क्रमशः