अपने-अपने कारागृह - 25 Sudha Adesh द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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अपने-अपने कारागृह - 25

अपने-अपने कारागृह -25

सुबह उसने अजय का मनपसंद दलिया और आलू पोहा के साथ थोड़ी पनीर भुजिया भी बना ली ।

' क्या हो गया है आज आपको यह स्पेशल ट्रीटमेंट !!' अजय ने कहा ।

' स्पेशल तो आप मेरे लिए सदा से ही हो पर अपने-अपने दायरे में व्यस्त हम बस अपने लिए समय ही नहीं निकाल पाए ।'

' शायद तुम ठीक कह रही हो । हमने पाया तो बहुत पर शायद जिंदगी नहीं जी पाए । आज भी भाग ही रहे हैं ।'

' शायद आपकी बात ठीक है पर इस भागमभाग के बीच सुकून मिले थोड़े से ही पल जीवन को जीवंत बना देने की क्षमता रखते हैं वरना जीवन नदी के ठहरे हुए जल की तरह ठहर कर सड़ने लगेगा । हमें जीवन में काम के क्षणों एवं आराम के क्षणों का निर्धारण करना होगा तभी शायद हम जीवन का आनंद ले पाएंगे ।'

' तुम तो पूरी फिलॉस्फर पर ही बन गई हो ।'
अजय ने पेपर लेकर पढ़ने का उपक्रम करते हुए कहा ।

' क्या आज आपको अपने मिशन नहीं जाना है ।' उन्हें अपने मिशन पर जाने के लिए तैयार न होते देख कर उषा ने पूछा ।

' मैंने एन.जी.ओ. के कार्यों से स्वयं को पृथक कर लिया है ।'

' पर क्यों ?'उषा ने आश्चर्य से पूछा ।

' जहां पारदर्शिता न हो ,गरीबों और शोषितों के उत्थान के लिए मिलने वाली रकम का सिर्फ 20% ही उन पर खर्च किया जाता हो । बाकी सब प्रबंधकों की जेबों में जाए ऐसी जगह मेरा काम करना संभव नहीं है ।'

अजय की बात सुनकर उषा आश्चर्यचकित रह गई थी । माना भ्रष्टाचार का भूत इस देश की नस नस में व्याप्त है पर एन.जी.ओ. जैसे संस्थान जिन्होंने समाज के वंचित वर्गों के उत्थान का बीड़ा उठाया है वह भी अपने लक्ष्य से भटकते हैं तब शायद ही कोई समाज सुधार की काम ना कर पाए ।

फोन की लगातार बजती घंटी ने उषा के विचारों पर ब्रेक लगाई .. फोन अजय ने उठाया, ' गुड मॉर्निंग बेटा कैसी हो ?'

'…..'

' क्या पद्म की तबियत ठीक नहीं है ?'

'......'

' ठीक है बेटा, हम शीघ्र से शीघ्र आने का प्रयत्न करते हैं ।'

' ……'

' टिकट बुक करा दीं हैं लेकिन इसकी क्या आवश्यकता थी । हम टिकट बुक करा लेते ।'

' क्या हुआ पदम को ? मुझे फोन दीजिए । मैं बात करती हूँ । ' उषा ने अजय से फोन लेने का प्रयास करते हुए कहा पर तब तक फोन कर चुका था ।

उषा ने फोन मिलाने का प्रयत्न किया पर अनरिचेएबल बता रहा था उसने अजय से पूछा तो उन्होंने कहा, ' डेनियल कह रही थी की पदम को हफ्ते भर से बुखार चल रहा है । वह बेहोशी में तुम्हें याद कर रहा है अतः उसने कल की टिकट बुक करा दी है । हमें कल ही निकलना होगा ।'

' क्या...इतनी जल्दी कैसे निकल पायेंगे ? '

' क्यों अभी तो पूरे 36 घंटे बाकी हैं । कल दिल्ली से रात्रि 1 बजे की फ्लाइट है ।'

' लेकिन लखनऊ से तो जल्दी निकलना पड़ेगा ।'

' हाँ कल रात्रि आठ बजे की फ्लाइट है ।'

' ओह ! आज मुझे परंपरा भी जाना है । शमीम का आज जन्मदिन है । उसके बेटे ने उसका जन्मदिन मनाने के लिए 'परंपरा 'के सभी सदस्यों के साथ मुझे भी आमंत्रित किया है । दो महीने के लिए लंदन जाएंगे तो ममा -पापा से मिलने भी जाना होगा ।'

' सब हो जाएगा, चिंता मत करो ।'

' चिंता मत करो, बड़े आराम से कह दिया इन सब कामों के साथ पैकिंग भी करनी होगी । अनिला के लिए बेसन के लड्डू भी बनाने होंगे ।'

' परेशान क्यों होती हो, लड्डू, गुंझिया बाजार से ले लेंगे ।' अजय ने कहा ।

उषा बड़बड़ाती जा रही थी तथा साथ ही फोन पर भी ट्राई करती जा रही थी आखिर फोन मिल ही गया डेनियल ने कहा , ' मम्मा चिंता की कोई बात नहीं है । अभी डॉक्टर को दिखा कर आई हूँ । उन्होंने वायरल फीवर बताया है । दवा भी दे दी है । फायदा हो जाएगा । अभी पद्म सो रहे हैं वरना बात करा देती । कल रात पद्म नींद में आपको याद कर रहे थे अतः सुबह उठते ही मैंने आपकी फ्लाइट बुक करा दी ।'

डेनियल से बात करने के पश्चात मन थोड़ा शांत हुआ । 30 वर्ष पूर्व की घटना याद आई । एक बार पदम गर्मी की छुट्टियों में घर आया हुआ था । उसे लू लग गई थी जिसके कारण उसे काफी तेज बुखार आ गया था । उस दरमियान वह उसे एक मिनट के लिए भी कहीं नहीं जाने देता था । इसी बीच उसे अत्यावश्यक कार्य से बाहर जाना पड़ा । उस समय पदम सो रहा था उसने सोचा कि वह शीघ्र लौट आएगी । वह लौट भी आई थी पर इसी बीच पदम की नींद खुल गई और उसने यह कहते हुए घर सिर पर उठा लिया कि मम्मा को बुलाओ । जब वह आई तब उसे देखकर उसने कहा, ' आप अब क्यों आई हो ,जाओ ...आपको मुझसे अधिक अपना काम प्यारा है ।'

उषा को अपनी गलती का एहसास था पर दुख इस बात का था कि उस दिन अजय भी उस पर क्रोधित हुए थे । आज फिर वही स्थिति... पर आज उसे पदम पर क्रोध नहीं वरन प्यार आ रहा था । कम से कम आज के माहौल में जब वह वृद्धों को अपने ही बच्चों द्वारा उपेक्षित एवं तिरस्कृत होते हुए देखती है तब आज वह यह सोच कर सुकून महसूस कर रही थी कि कम से कम उसका अपना पुत्र और पुत्र वधू उसकी केयर करते हैं । कौन कहता है कि आज के युवा सिर्फ और सिर्फ अपने लिए जीता है!! उनमें संवेदनाएं, भावनाएं मर गई हैं । उनमें संवेदनाएं भी हैं, भावनाएं भी । बस परिजनों को भी युवाओं की भावनाओं का सम्मान करना आना चाहिए । बेवजह टोकना, यह न करो, वह न करो की पाबंदी, न केवल रिश्तो में कटुता घोलती है वरन उन्हें शनै शनै दूर ले जाती है ।

कभी-कभी स्थिति इतनी विस्फोटक हो जाती है कि वे एक दूसरे को देखना या पहचाना भी नहीं चाहते । यह जीवन के मधुर रिश्तों की बहुत बड़ी असफलता ही नहीं, इंसान की रिश्तो को न सहेज पाने की विफलता भी है । यह सच है कि वह पदम और डेनियल के विवाह से प्रसन्न नहीं थी । उसने अपना विरोध जताया था पर उसके इस गलत कदम को अजय ने रोक दिया था । पता नहीं कैसी मनःस्थिति है हम बुजुर्गों की , बचपन से हम अपने बच्चे की हर इच्छा पूरी करने का प्रयास करते हैं , जो वह चाहता है या मांगता है,अपनी सामर्थ्य के अनुसार उसे देने का प्रयास करते हैं । यहाँ तक कि उसे स्वतंत्र निर्णय लेने के लिए भी प्रेरित करते हैं पर वही बच्चा जब बड़ा होता है , अपने मनपसंद जीवनसाथी के साथ जीवन बिताने की इच्छा जाहिर करता है तब हम सदियों पुरानी रूढ़िवादिता से ग्रस्त होकर कभी कुंडली मिलाने, स्वजाति में विवाह करने की बात करके उस पर दबाव बनाने लगते हैं । उस समय हम भूल जाते हैं कि विवाह को सफल बनाने के लिए ग्रह नक्षत्र, कुंडली मिलान नहीं वरन व्यक्ति की आपसी समझ, सामंजस्य एवं एक दूसरे को सम्मान देने की प्रवृत्ति बनाती है । आज वह दोनों के मध्य सामंजस्य देखकर प्रसन्नता का अनुभव करती है ।

शाम को उषा परंपरा होते हुए अपनी ममा से मिलने गई । वह अपने कमरे में आराम कर रही थीं अतः वह भी वहीं चली गई । अब वह पहले से ठीक थीं पर परहेज अभी भी चल रहा था । उसे देखते ही उन्होंने कहा, ' देख बेटा नंदिता ने मुझ पर धारा 420 लगा रखी है । हर समय पहरा ...न किचन में जाने देती है, न ही कुछ करने देती है और न ही मन का खाने देती है ।'

' ममा, दीदी आ गई हैं । अपने मन की सारी भड़ास निकाल दीजिए । कम से कम पेट का दर्द ठीक हो जाएगा । दीदी आप ममा से बात कीजिए, जब तक मैं आपके और जीजू के लिए गर्मागर्म पकोड़े बनाती हूँ ।' कहकर नंदिता हंसते हुए चली गई ।

वह मम्मा और नंदिता की बातें सुनकर निष्कर्ष निकालने का प्रयत्न कर ही रही थी कि नंदिता के जाते हुए ममा ने कहा, ' बहुत ध्यान रखती है नंदिता मेरा , समय से दवाई , समय से खाना, मेरे लिए अलग से बिना मिर्च की सब्जी और सबसे बड़ी बात हर समय मुस्कुराते रहना, चाहे कितना भी काम क्यों ना हो । बहुत खुशनसीब हूँ मैं जो मुझे नंदिता जैसी बहू मिली ।'

' पर ममा अभी तो आप धारा 420... पहरा न जाने क्या क्या बोल रही थीं ।'

' बेटा वह तो मैं मजाक में कह रही थी । नंदिता को भी पता है । वह भी मेरी बेटी जैसी ही है । मेरे सुख- दुख की साथी ।'

' ममा रहने भी दीजिए मेरी तारीफ़ .. चलिए दीदी और ममा आप भी, रामदीन ने दीदी और जीजाजी को देखते ही भजिया बनाने का इंतजाम कर लिया था । आपके लिए भी बिना मिर्च के लौकी की भुजिया बनाने के लिए कह दिया है ।'

नंदिता ने कमरे में प्रवेश करते हुए कहा ।

लौटते हुए उषा सोच रही थी माना एकल परिवार के कारण बुजुर्गों की परेशानियां बढ़ी है पर अगर वे दोनों एक दूसरे की भावनाओं को समझें तो कुछ हद तक इन समस्याओं से निजात पाई जा सकती है ।

दूसरे दिन उषा पेकिंग कर ही रही थी कि नमिता आई । उसने बैग से सामान निकलते हुए कहा, ' दीदी, यह अनिला के लिए बेसन के लड्डू तथा परिमल के लिए गुंझिया हैं । इन्हें भी आप रख लीजिए ।'

' अरे, इन सबकी क्या आवश्यकता थी । अजय कह रहे थे जाते हुए नीलकंठ से खरीद लेंगे ।'

' बाजार में तो सब मिल ही जाता है दीदी लेकिन घर की बात दूसरी ही है । आपको तो समय नहीं था अतः में बना लाई । आखिर परिमल और अनिला मेरे भी तो बच्चे हैं । ' नमिता ने कहा ।

' थैंक्स नमिता । चाय बनाती हूँ ।'

' नहीं दी, अब चलती हूँ । माँ जी को खाना भी देना है ।अब आपके आने के बाद ही आपके हाथ की चाय पिऊंगी । हैप्पी एन्ड सेफ जर्नी ।' कहकर नंदिता चली गई थी ।

नंदिता को विदा करके आते हुए उषा सोच रही थी कि अगर आपस में सामंजस्य हो तो ननद भाभी से अच्छा रिश्ता कोई हो ही नहीं सकता ।



सुधा आदेश

क्रमशः