बेनज़ीर - दरिया किनारे का ख्वाब - 21 Pradeep Shrivastava द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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बेनज़ीर - दरिया किनारे का ख्वाब - 21

भाग - २१

एक मुराव परिवार वहां रहता है। भला परिवार है। हमारे यहां भी आता-जाता है। उनके तीन लड़का हैं। सब सब्जी बेचने के काम में लगे रहे। करीब चार-पांच बरस पहले एक लड़का ऑटो-रिक्शा चलाने लगा । ऑटो-रिक्शा चलाते हुए छः सात महीना ही बीता होगा कि एक दिन एक कोरियन लड़की टूरिस्ट उसे मिली। दिन भर के लिए उसे बुक कर लिया। दिन भर घूमी-फिरी। शाम को पैसा देते समय थोड़ा चख-चख की लेकिन साथ ही अगले दिन के लिए भी बुक कर लिया। उसका नंबर ले लिया। अगले दिन भी वह पूरे दिन शहर घूमी, शहर के पुराने से पुराने मंदिरों में चलने को कहती रही।

रास्ते में कोई ज्यादा बुजुर्ग आदमी मिलता तो ऑटो रुकवाकर उससे बात करती। सारी बातचीत अपने मोबाइल में रिकॉर्ड कर लेती। उस आदमी का फोटो और परिचय जरूर पूछती। मंदिर के पुजारियों से भी वह शहर के बारे में, यहां के रहन-सहन के बारे में बात करती। खाने-पीने की भी बात करती।'

'वह और यहां के लोग कैसे एक दूसरे की बात समझते थे, भाषा आड़े नहीं आती थी क्या?' 'का है बाबूजी कि वह टूटी-फूटी हिंदी और अंग्रेज़ी में बात करती थी। यहां के कवियों लेखकों के पास भी वह जाती। जितने संगीत-घराने हैं उनके पास भी गई। काफी बाद में उसने पुनीतम को बताया कि वह एक बड़ी किताब लिख रही है।'

'पुनीतम मतलब ऑटो वाला।'

'जी उसका नाम पुनीतम है। बड़ा होनहार लड़का था, पढ़-लिख भी रहा था। लेकिन दसवीं में पहुंचते-पहुंचते भांग-गांजा का लती हो गया। पढाई-लिखाई सब बर्बाद कर ली। कई साल तक नशा किए कभी कहीं, कभी कहीं, किसी घाट पर पड़ा रहता था। कई-कई दिन तक नहीं लौटता था।

घरवाले वाले भी ऊबकर उसको छोड़ दिए थे। एक दिन किसी मंदिर के बाहर नशा किए पड़ा था। जाड़े का दिन था। उस मंदिर में कई दिन से एक साधु हरिद्वार से आकर ठहरे हुए थे। उन्होंने पता नहीं क्या सोचा कि उसको होश में ले आए। थोड़ा बहुत खिलाया-पिलाया। नशे की हालत के कारण वह कुछ खा-पी नहीं पा रहा था। जब वह ठीक से होश में आ गया तो उन्होंने उसे खूब समझाया-बुझाया। उसको लेकर घर आए। घर की हालत देखकर उन्हें बड़ी दया आई। घरवालों ने कहा, ' सुधरेगा नहीं, आपके जाते फिर से नशा करेगा।'

यह सुनकर साधु उसे अपने साथ लेते गए। जाते-जाते बोले, 'हरिद्वार वापस जाने से पहले आपका बेटा आपको वापस सौंप जाऊँगा। भगवान भोलेनाथ ने चाहा तो उस समय तक यह इस बुरी आदत से मुक्ति पा चुका होगा। एक अच्छा इंसान बन चुका होगा।' सच में भोले बाबा की कृपा हुई। बाबा दस दिन बाद उसे घर छोड़ गए। पुनीतम सुधर चुका था। लेकिन कब तक सुधरा रहेगा इस बात को लेकर पूरे घर को आशंका थी, लेकिन पुनीतम ने सबकी आशंका को झुठला दिया। तब से आज तक उसने कभी नशा नहीं किया। हां दिन भर में सात-आठ बार रानी गुल मंजन जरूर करता है।'

'वाकई पुनीतम दिलचस्प आदमी है।'

मैंने देखा मुन्ना गंगा राम की बातें जरूर सुन रहे थे, लेकिन साथ ही मार्केट पर गहरी नजर डालते चल रहे थे।

अपनी बात को आगे बढाते हुए उन्होंने पूछा, 'अच्छा तो उस कोरियन लड़की की बात आगे कहां तक पहुंची।'

' बाबू जी बात तो बड़ी दूर तक पहुंची, इतनी दूर तक कि उससे आगे कोई दूरी होती ही नहीं।'

उसकी यह बात सुनकर मुझे हंसी आ गई। ऐसी कि बड़ी देर तक रोक नहीं पाई। मुन्ना भी मुस्कुराते हुए उसे देखता रहा। फिर मेरे हाथ को दबाते हुए बोला, 'अब आगे भी सुनो ना कि कोरियन बाला की आखिरी दूरी क्या है, जहां से आगे कोई दूरी होती ही नहीं।'

गंगाराम को मेरी हंसी पर न जाने क्या समझ में आया कि बड़ी विनम्रता से कहा, 'नहीं बाबू जी, हमने बात ही ऐसी कही है कि, हंसी आएगी ही।'

'उसकी बात का आपने ऐसा क्या अर्थ निकाला कि आपकी हँसी नहीं रुक रही थी।'

बेनज़ीर ने मेरे प्रश्न को टालते हुए कहा, 'छोड़िये, जाने भी दीजिये उस बात को, मेरी हँसी कम हुई तो गंगा राम बोला, 'असल में बात यह है कि हम बनारसी हर हाल में मस्त रहने वाले आदमी हैं। बाबू जी एक बात पहले और बता दें कि अब हमें बनारसी कहे के बजाय काशियन कहना बढियाँ लगता है। यहां की मस्ती ही ऐसी है कि, एक बार दुनिया भर की धन संपत्ति वाला, ताकत वाला, सारी खुशियों से भरा रहने वाला आदमी उदास हो सकता है, लेकिन एक काशियन एक लत्ता (चिथड़ा कपड़ा)लपेट के, बिना कुछ खाए-पिए भी मस्ती में ठहाका लगा सकता है। खुलके हंसता रह सकता है। बाबूजी ऐसी मस्ती दुनिया में कहीं और नहीं मिलेगी। अपरंपार मस्ती का एक और नमूना देखिए कि, दुनिया में लोग श्मशान में अपने परिवार, नातेदार-रिश्तेदार का दाह संस्कार करने के बाद उदास मन से ही घर लौटते हैं। जबकि यहां पर अंतिम संस्कार करने के बाद मिठाई, पूड़ी-कचौड़ी सब खाई जाती है। साथ में आया एक-एक आदमी खाता है। तब कहीं जाकर घर वापस लौटता है।'

यह सुनकर मैं हैरत में पड़ गई। मुन्ना ने कहा, 'कमाल की मस्ती है भाई। हां तो कोरियन लड़की कितनी दूर तक गई, वह सब बताओ। जरा देखें यहां की मस्ती ने कोरियन लड़की को कितना मस्त कर दिया।'

इतना कहते हुए मुन्ना ने अचानक ही मेरी कमर पर एक जगह अपने अंगूठे और एक उंगली से मांसपेशियों को कस कर दबा दिया। इतना तेज़ कि मेरे मुंह से सिसकारी निकल गई और वह आसमान की तरफ सिर करके मुस्कुराते जा रहे थे। मैंने भी हिसाब बराबर करने के लिए उसी तरह उसकी कमर पर करना चाहा लेकिन कर नहीं पाई। एक तो उनकी बेहद सख्त मांसपेशियां, ऊपर से उन्होंने ऐन टाइम पर अपना शरीर एकदम टाइट कर लिया था। मैं जब असफल रही तो एक घूंसा उनकी कमर पर जड़ दिया। तभी गंगाराम आगे बोला, 'बाबू वह भी यहां की मस्ती में इतना मस्त हो गई कि ऊंच-नीच, काला-गोरा, धर्म-जाति सब भूलकर पुनीतम से ही शादी कर ली।'

यह सुनते ही हम दोनों चौंक गए। मुन्ना ने कहा, 'अरे, यह क्या कह रहे हैं।' तो उसने कहा, 'हाँ बाबूजी एक मंदिर में शादी कर ली। अब आप ही बताइए इससे ज्यादा मस्ती का कोई दूसरा उदाहरण हो सकता है क्या?

इतनी मस्ती कि, जो भा गया उसे दिल खोलकर अपना लिया। सारे बंधन तोड़ दिए। सारी दीवारें पल में गिरा दीं। पुनीतम आज भी मिज़ांग के साथ घूमता है। वह खुद सांवला है और मिज़ांग बहुत गोरी। वह बहुत ही ज्यादा पढी-लिखी है, और पुनीतम उसके सामने अंगूठा टेक से ज्यादा नहीं है। हर मामले में मिज़ांग पेड़ की फुनगी है, तो पुनीतम पेड़ की जड़ पर गिरा पत्ता। लेकिन दोनों ऐसे मिल गए हैं, जैसे चाय में शक्कर घुल गई हो।'

'वाह पुनीतम कमाल कर दिया तुमने। और गंगाराम जी आप भी कम कमाल के नहीं हैं। इतने बढिया ढंग से बता रहे हैं जैसे कि, कोई बड़ा कहानीकार कहानी सुना रहा हो। आपकी मस्ती भी कमाल की है। लेकिन यह बताइए कि पुनीतम ने कोरियन लड़की मिज़ांग से शादी कर ली, इससे उसके घरवालों को ऐतराज नहीं हुआ। मिज़ांग को उन्होंने अपनी बहू माना कि नहीं।'

'बाबूजी क्या है कि, बहुत सी बातों में हम लोग थोड़ा पिछड़ा लोग हैं। कुछ मामलों में हमारी सोच दुनिया से उल्टा या फिर थोड़ा पीछे-पीछे चलती है। अरे जब आज के लड़का-लड़की माने वाला नहीं हैं। अपने मन का करना ही है उनको, तो करने दीजिए। पहले से ही उनकी बात मान लेने में कौन सी खराबी है। लेकिन नहीं पहले दुनिया भर के ठंगन करेंगे, ना-नुकुर करेंगे । जब देखेंगे कि लड़का-लड़की ने ठेंगे पर रख दिया है और छोड़ कर जाने वाले हैं, तब मुंह निपोर के मान जायेंगे। पुनीतम के साथ भी यही हुआ। लेकिन तब-तक बहुत देर हो चुकी थी।

दोनों शादी-वादी की रस्म को पूरे किए बिना ही किराए के मकान में साथ रहने लगे। मिज़ांग कभी-कभी बिंदी लगा लेती, कभी सलवार-कुर्ता नहीं तो हमेशा जींस और बांह कटी झबला अस टी शर्ट पहनती थी। बहुत दिन तक पुनीतम के घर वालों ने उससे बात ही नहीं की। पूरा घर उसको देख कर मुंह फेर लेता था। इसी चिंता में सब झुराए जा रहे थे कि, मोहल्ले में नाक कट गई। लेकिन मोहल्ले वाले तो कुछ और ही सोच रहे थे। पीछे पड़ गए कि, पहले तुम दावत दो। बेवजह लड़का-बहुरिया को बहिरियाए हुए हो। यह सब बहानेबाजी नहीं चलेगी।' पूरा मोहल्ला इतना पीछे पड़ा कि मजबूर होकर बोले, 'ठीक है हम दावत दे देंगे, लेकिन यह बताओ अगर वह दोनों ही दावत में नहीं आए तो?' लेकिन मोहल्ले वाले ना माने तो ना माने।

कई जने बोले कि, 'उन दोनों को लाने की जिम्मेदारी हमारी है।' आखिर दावत देनी पड़ी। लोग भी बड़े चतुर निकले। दोनों को घेर लिए। खैर लड़के ने मां-बाप का मान रख लिया, और दोनों आए। लोगों ने उनको अच्छी तरह संभाला हुआ था। उनकी सलाह पर ही पुनीतम मिज़ांग को बनारसी साड़ी में, पूरे सोलह श्रृंगार ब्यूटी पार्लर में कराकर ले आया था। मिज़ांग गजब की सुंदर लग रही थी। पुनीतम भी एकदम अलग तरह से सजा था। मैरून रंग का कुर्ता और पीले रंग की धोती पहनी थी। जिसका किनारा गहरे मैरून रंग का था और चमड़े का आधा कटा वाला जूता।

वह बहुत जंच रहा था। पूरा मोहल्ला दोनों को देखने के लिए उमड़-पड़ा। घर वाले भी खुश होकर दोनों को हाथों-हाथ लिए। एक बात के लिए तो पूरे मोहल्ले ने पुनीतम की तारीफ की कि, उसने मिज़ांग को इतना सिखाया-पढाया था कि, एक भारतीय लड़की की तरह उसने सास-ससुर सब के पैर छुए। एक रात दोनों घर पर रह कर, अगले दिन फिर अपने ठिकाने पर चले गए। अब दोनों का आना-जाना लगा रहता है। लेकिन अब एक दूसरी बात ने तनाव पैदा किया हुआ है। सास-ससुर ने बच्चे के लिए कहा तो मिज़ांग ने साफ कहा कि, वह बच्चे पैदा नहीं करेगी, इससे उसके काम में बाधा पड़ेगी। इसके अलावा उसका शरीर खराब हो जाएगा। जब जरूरत होगी तो कोई बच्चा गोद ले लेगी ।

आखिरकार सास-ससुर ने बच्चे की बात ही बंद कर दी। लेकिन तनाव लिए बैठे हैं। अब तो पुनीतम ऑटो छोड़ कर मलदहिया के पास ही चाय-पानी का होटल खोल लिए है। मिज़ांग पहले वाले ही काम पर है। होटल पर भी अक्सर बैठ जाती है।'

'मानना पड़ेगा गंगा राम, बहुत मस्ती है यहां के लोगों में। अच्छा लल्लापुर अभी और कितनी दूर है।'

'बस पांच मिनट और बाबूजी।'