बेनज़ीर - दरिया किनारे का ख्वाब - 20 Pradeep Shrivastava द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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बेनज़ीर - दरिया किनारे का ख्वाब - 20

भाग - २०

पंडाल काफी बड़ा था। भीड़ भी काफी थी। हमें निकलने में छः सात मिनट लग-गए। पंडाल के अन्दर मैं अचानक ही बहुत घुटन महसूस करने लगी थी तो मुन्ना के कहते ही मैं ऐसे बाहर आई, जैसे बेसब्री से इसी का इंतजार कर रही थी कि, मुन्ना कहें और हम चलें। बाहर आकर मैंने इस तरह गहरी सांस ली, मानो बहुत देर से रोके हुए थी। मैंने तुरन्त कहा, 'यहां पूरे समय बैठे रहने से अच्छा है कि बड़ी तेज़ी से अपना रंग-रूप बदल रहे शहर को देखा जाए। अपने काम की मार्केट तलाशी जाए।'

मुन्ना ने कहा, 'अभी कुछ देर पहले ही मेरे दिमाग में आया कि, तुमने जो सैकड़ों तरह की नई-नई डिज़ाइन्स बनाई हैं, उसके बारे में यहां जहां पर बनारसी साड़ियां बनती हैं, वहां चलकर संपर्क किया जाए। मुझे उम्मीद है कि ट्रेंड से हटकर तुम्हारी डिजाइनें इन लोगों को पसंद आएंगी, और एक बार काम शुरू हो गया तो बात बहुत आगे भी जा सकती है।'

'हाँ, लेकिन बनती कहां हैं, कुछ पता तो है नहीं। इतने बड़े और घने बसे शहर में कहां ढूढेंगे ।'

'गंगाराम सब बताएगा। इसीलिए तो उसका मोबाइल नंबर ले लिया था। भोला, ईमानदार और बहुत जानकार आदमी है। पूरे शहर की जानकारी रखता है। इसकी हर एक धड़कन को गिनता है।'

'ये तो है। पूरे शहर का खाका उसके दिमाग में बसा हुआ है। लेकिन उसकी एक बात मेरी समझ में बिल्कुल नहीं आई।'

'कौन सी?' मुन्ना ने गंगा राम को फोन मिलाते हुए पूछा।

'यही कि यह शहर तब भी था जब यह पृथ्वी भी नहीं थी।'

'हाँ, यह बात मैं भी ठीक से समझ नहीं पाया था। आए तो पूछता हूं। तुम्हारे मन में प्रश्न था तो उसी समय पूछना चाहिए था। लेकिन तुम तो बिल्कुल मूर्ति बन कर बैठ जाती हो। बार-बार मेरे चुटकी काटने और मुस्कुराने के अलावा कुछ भी नहीं बोलती।'

'मैं क्या बोलती, संकोच कर रही थी कि क्या पूछूं, बात पूरी तरह समझ नहीं पा रही थी।' मुन्ना को फोन पर देर तक लगा देखकर मैंने पूछा, 'क्या हुआ, उससे बात नहीं हो पा रही है क्या ?'

'नहीं, बार-बार एंगेज बता रहा है।'

'इतनी लंबी बात किससे कर रहा होगा?'

'अपनी बेगम से करेगा और किससे।'

'तुम्हें भी मजाक सूझता है। इस उमर में बेगम से इतनी देर तक कौन बात करता है।'

'क्यों उम्र हो गई तो क्या बेगम से प्यार भी नहीं करेगा। यह कहां का नियम है। कल तुमने भले ना देखा हो, मैंने पूरा ध्यान दिया था। अपनी बेगम की बात करते हुए वह इतना वो गया था कि...।'

'क्या हो गया था?'

'अरे क्या कहते हैं उसको, मतलब कि उसकी आवाज में बेइंतेहा मोहब्बत झलक रही थी। अच्छा, पहले देखें कि उससे बात हो पाएगी कि नहीं।'

करीब दो मिनट में बात करने के बाद मुन्ना ने कहा, 'उसे यहां आने में करीब पन्द्रह मिनट लगेंगे। तब-तक इंतजार करना पड़ेगा।'

'करते हैं, और कोई रास्ता भी तो नहीं है, किसी और को कर लिया तो पैसे भी खर्च हो जाएंगे और कोई काम भी नहीं बनेगा, यहां का हाल देख कर तो लगता है कि, इस कार्यक्रम में आने का फैसला गलत था।'

'यह सब सोचने में इतनी जल्दबाजी ना करो। आज पहला दिन है। बहुत से लोग तो अभी तक आए ही नहीं हैं। एक-दो दिन बाद तस्वीर पूरी तरह साफ होगी। देखो अपना उद्देश्य खाली बड़ी ट्रॉफी लेकर उसे घर के किसी कोने में सजा देना बिल्कुल नहीं है।

मेरा एक ही उद्देश्य होता है ऐसी जगहों पर जाने का, कि वहां अपनी फील्ड के लोगों से मिलूं -जुलूं, इससे हमें तमाम नई-नई तरह की बातें पता चलती हैं। अपने काम को और बढ़ाने के नए रास्ते पता चलते हैं। यहां जिस तरह की मार्केट है, मेरे दिमाग में उसे देख कर कुछ और भी चल रहा है।'

'क्या चल रहा है?'

'अभी, मैं स्वयं पूरी तरह साफ-साफ समझ लूं, फिर बताता हूं कैसे कोई रास्ता हम दोनों के लिए निकल सकता है। पहले गंगाराम आ जाए, तो आज उसी के साथ और ज्यादा पता करते हैं। जरूरत हुई तो और कई दिन चलेंगे। कुछ ना कुछ तो यहां से बड़ा करके ही लौटेंगे। छोटी या बड़ी ट्रॉफी मिले या ना मिले। लेकिन इस भोले बाबा की नगरी से हमारे काम का कोई बड़ा रास्ता जरूर खुल जाएगा। मुझे इसका पूरा भरोसा है।'

'अरे अभी ऐसा क्या जान लिया है यहां के बारे में जो इतना भरोसा कर बैठे। देखा जाए तो अभी तो शहर में कदम रखा भर है, कुछ देखा जाना कहां है।'

'सही कह रही हो कि अभी कदम रखा भर है। लेकिन इतने समय में ही जो देखा है उससे पूरा विश्वास है कि कोई ना कोई रास्ता जरूर ढूँढ लूंगा।'

'तुम्हारी बातें, तुम्हारा भरोसा सही निकले। यही दुआ करती हूं। मैं तो यह सारी बातें अभी समझ ही नहीं पा रही हूं। लेकिन कल गंगाराम बनारसी साड़ियों के बारे में जैसा बता रहा था, अपने यहां भी बचपन से ही हम लोग यह सब सुनते ही आ रहे हैं। यदि यहां किसी तरह कुछ काम-धाम हाथ लग जाए तो आना सफल हो जाएगा।'

'हाँ, अगर कोई ट्रॉफी भी जीत लेंगे तो उससे नाम तो होगा ही, काम पाना आसान होगा।' 'अच्छा सामने देखो वह गंगा राम ही आ रहा है ना।'

'हाँ, वही है। टाइम का पंचुअल लग रहा है। पन्द्रह मिनट कहा था करीब-करीब उतना ही हो रहा है।'

'हाँ, एक बात तो है कि हमें अपने मकसद में कामयाबी मिलेगी या नहीं, यह तो अगले कुछ दिन में पता चलेगा, लेकिन गंगा राम को हम लोगों की वजह से अच्छा काम मिल गया है। कल बढियाँ कमाई हो गई थी और आज भी होनी है।'

'लेकिन मेहनत भी तो जी-जान से कर रहा है।'

'वह तो हम लोग भी कर रहे हैं। पिछले एक महीने से पूरी नींद सो नहीं पा रहे हैं।'

इसी बीच वह आ गया तो मुन्ना ने उससे कहा, 'गंगा राम जी आज भी हमें अपने भोले बाबा की नगरी और दिखाइए और हां कोशिश करियेगा कि, ऐसी जगह पहले चलें जहां कपड़ों की कढाई मेरा मतलब है कि, जैसे बनारसी साड़ियां जहां बनती हों वहां ले चलना। अगर किसी कारखाने वगैरह के बारे में पता हो तो सीधे वहां चलना। हमें उसके बारे में जानना है कि कैसे काम होता है। उसका बिजनेस कैसे होता है।'

'ठीक है बाबूजी, हम समझ गए। आपको पहले लल्लापुरा, मदनपुरा ले चलेंगे। वहां काम बन जाए आपका तो ठीक है, नहीं तो फिर और कई जगह हैं, वहां भी ले चलेंगे।'

रिक्शे पर बैठते ही मुन्ना ने उससे बतकही शुरू करते हुए पूछा, 'एक बात बताइए, यहां विदेशी भी बहुत दिख रहे हैं। क्या यहां यह सब घूमने आते हैं या फिर कुछ काम-धाम भी करते हैं।'

'बाबू जी ज्यादातर तो घूमने ही आते हैं। लेकिन फिर बहुत से यहीं रह जाते हैं। कई बरस यहीं पड़े रहते हैं। कुछ दिन के लिए जाते हैं अपने देश, फिर लौट आते हैं। सब यहीं की बोली-बानी, खाना-पीना सीखते यहीं रम जाते हैं। तमाम लड़कियां तो यहीं के लड़कों से शादी करके यहीं की हो जाती हैं। लड़का-बच्चा सब हैं। कोई-कोई तो धोखा देकर चली जाती हैं। कुछ बच्चा भी यहीं छोड़ जाती हैं।'

'यह क्या कह रहे हैं? ऐसा कैसे हो जाएगा।'

'बाबू जी, अभी तो आपने कुछ जाना ही नहीं।'

'क्या ?'

'कभी-कभी यह भी सुनाई देता है कि फलां जनें किसी लड़की के साथ बड़ी हंसी-खुशी रह रहे थे। फिर लड़की कुछ दिन बाद अपने देश जाकर लौटने की बात कह कर जाती है। लेकिन जाकर फिर वापस लौटी ही नहीं। यही गम में कई जने मूर्खता किए और आत्महत्या कर ली। एक बार एक जने रूस की लड़की के साथ शादी करके कई साल से रह रहे थे। कागज-पत्तर कराए बिना। अचानक एक दिन लड़की अपने देश रूस जाने के लिए तैयार हो गई। वह उसे जाने नहीं देना चाह रहा था।

उसे शक था कि, यह जाएगी तो फिर वापस ही नहीं लौटेगी। जब उसने जाने की जिद कर ली तो उस बेवकूफ ने उसको भी मार कर खुद भी आत्महत्या करने की कोशिश की। लेकिन भोले बाबा की कृपा से दोनों हॉस्पिटल में बच गए। मगर जेल जाने से दोनों नहीं बच पाए। बाद में समझौता हुआ और लड़की अपने देश गई, और फिर वापस आकर अपना वचन पूरा किया। आकर बोली जो आदमी मुझे इतना चाहता है कि जान ले सकता है, दे भी सकता है। उसे छोड़कर कैसे जा सकती हूँ। मुकदमा खत्म कराने की कोशिश की, लेकिन कानून तो अपना काम किए बिना नहीं मानता। दोनों फिलहाल जमानत पर बाहर हैं। विधिवत शादी करके रह रहे हैं।'

'मेरे लिए तो यह वाकई आश्चर्यजनक है। लेकिन यह सब भाषा वगैरह कैसे इतनी जल्दी सीख लेते हैं।'

'साथ रहते-रहते सब सीख जातें हैं। वह रूसी, अंग्रेज़ी यहां की बोली-बानी सब सीख चुकी है। यहां की कशिका बोली बहुत अच्छी बोलती है। एक स्कूल में अंग्रेज़ी, गणित पढाती है। बहुत भली औरत है। पक्की शिव भक्त है। शिव स्त्रोत जब मंजीरा बजा-बजा के गाती है, तो यहां के बड़े-बड़े तिलकधारी पंडित भी दांतों तले उंगली दबा लेते हैं। उसे एकटक देखते और सुनते ही रह जाते हैं।'

'तो क्या सारी विदेशी औरतें ऐसी ही होती हैं।'

'नहीं बाबूजी, बताया ना कि बहुत सी आती हैं। घूमती-फिरती हैं, यहीं के किसी आदमी को साथ ले लेती हैं, और जब यहां से निकलती हैं तो एकदम तोता हो जाती हैं। पलट के नहीं देखतीं। लेकिन कुछ ऐसी होती हैं, जिनकी आत्मा इस पवित्र धर्म नगरी के रंग में ऐसी रंग जाती है कि, वो अपना पिछ्ला सब भूल जातीं हैं। ऐसी एक विदेशी महिला हैं। जिनको मैं खूब जानता हूँ। उनका पिछ्ला नाम लूसी है। लेकिन यहाँ की सनातन संस्कृति में ऐसी रची-बसीं कि अपना पिछ्ला नाम, धर्म सब छोड़ दिया।

सनातन धर्म अपना कर, अपना नाम रख लिया दिव्य प्रभा। और सुनिए बाबू जी, सुनकर आश्चर्य में पड़ जायेंगे कि वो अंग्रेज़ी, संस्कृति, हिंदी यहाँ की बोली, इतना जानती हैं कि बड़े-बड़े पंडित उनके सामने कुछ नहीं हैं। सनातन धर्म के सारे ग्रन्थ पढ़-पढ़ कर अपने दिमाग में भर लिया है। धर्म के बड़े-बड़े ज्ञानिओं से कम नहीं हैं। हमेशा सफेद धोती पहनती हैं, बड़ा सा तिलक लगातीं हैं। उनसे मिलकर लगता है, जैसे हज़ारों साल पुरानी किसी दिव्य संन्यासिनी से मिल रहे हैं। उन्होंने दिव्य प्रभा नाम एकदम सही रखा है। आप कहेंगे तो आपको भी मिलवा दूंगा। '

गंगाराम की बातें सुनकर मुन्ना ने बड़ी आँखें कर मुझे देखते हुए उससे पूछा, 'आप हमेशा साधु-संन्यासियों के साथ रहते हैं क्या?'

'बाबूजी हम हफ्ता में एक दिन कोई काम-धाम नहीं करते। बस साधु-संतों के साथ रहते हैं।उनकी वाणी सुन-सुन कर थोड़ा-बहुत जान लेते हैं ।'

'अच्छा! पहले काम कर लूँ, तब चलूँगा तुम्हारी तरह दिव्य प्रभा जी के पास, लेकिन यह बताइये कि, क्या यहां के लोगों को भारतीय लड़कियां नहीं मिलतीं जो उन विदेशियों के चक्कर में पड़ जाते हैं।'

'बात अइसन है बाबूजी कि मन का कोई ठिकाना नहीं है। बड़ा चंचल है।'

गंगा राम आराम से रिक्शा खींचे जा रहा था और अपनी बात भी बड़े आराम से कह रहा था। उसकी इस बात पर बगल में बैठे मुन्ना की जांघ पर मैंने हल्की सी चुटकी काट ली। मेरा हाथ रिक्शे पर बैठने के बाद से ही मुन्ना की जांघ पर ही था और मुन्ना का एक हाथ मेरी कमर को पीछे से पकड़े हुए था। गंगा राम ने बात को आगे बढाते हुए कहा, 'अपने भोले बाबा के देश में ना अच्छी लड़कियों की कमी नहीं है, ना लड़कों की, और ना ही अच्छे घरों की। बात सब मन की है। हम ऐसे ही एक-दो जन की बात बताते हैं, जिससे आप जान जाएंगे कि मन कितना चंचल है। इसको बांध के रखना बड़े-बड़े योगी, संत-महात्मा के वश का भी नहीं है।'

'अच्छा, तो बताइए कुछ लोगों की कहानी।'

इसके साथ ही मुन्ना मिनरल वाटर की बोतल खोल कर पानी पीने लगे। कुछ घूंट पीने के बाद जब वह बोतल बंद करने चले तो मैंने भी लेकर पी लिया। तभी गंगाराम बोला, 'ठीक है बाबूजी, आपका मन सुनने का है तो हम अपने घर के पास की आंखों देखी घटना बताते हैं।