बेनज़ीर - दरिया किनारे का ख्वाब - 22 Pradeep Shrivastava द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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बेनज़ीर - दरिया किनारे का ख्वाब - 22

भाग - २२

....तो हम दोनों गए तो थे कार्यक्रम में भाग लेने, लेकिन पहुँच गए लल्लापुरा। हमने बनारसी साड़ी, उसके व्यवसाय आदि के बारे में जानकारी की। यह सब करने में हमें तीन घंटे लग गए। इस बीच गंगाराम हमारे साथ एक रिक्शेवाला, गाइड से ज्यादा दोस्त बन कर रहा। मैं और मुन्ना वहां का व्यवसाय, कारीगरी देखकर दंग रह गए। वहां से जब निकले तो मैंने कहा, 'यहाँ तो इतना कुछ है कि मेरा तो सिर ही घूम गया है। कैसे क्या करा जाएगा, क्या-क्या करा जाएगा ?'

मुन्ना ने कहा, 'परेशान ना हो सब हो जाएगा। तुम्हें यह सब बहुत लग रहा है, मगर वह सब कह रहे हैं कि, ''अब पहले वाली बात नहीं रही। दुनिया में सब चल रहा है, तो यह भी चले जा रहा है बस।''

'मतलब ?'

'मतलब कि इस बिजनेस का अब पहले वाला क्रेज नहीं रहा, मगर फिर भी इतना बड़ा है कि अब भी बहुत कुछ है।'

इसी के साथ उन्होंने गंगा राम से किसी होटल पर चलने के लिए कहा, जिससे खाना-पीना हो सके।

तो मैंने कहा, ' यह टाइम खाने का नहीं है। हल्का-फुल्का कुछ नाश्ता कर लिया जाए तो अच्छा है।'

'ठीक कह रही हो। गंगा राम जी ऐसे होटल पर चलिए जहां चाय-नाश्ता हो सके।'

'ठीक है बाबूजी। यहां से थोड़ी दूर पर अपने पुनीतम के होटल पर ले चलते हैं। देखिए कैसे क्या से क्या बन गया है।'

'ठीक चलिए, देखें कोरियन और बनारसी बाबू मिलकर कहां तक पहुंचे हैं। बनारसी नहीं बल्कि कोरियन, क्यों गंगाराम।'

यह कहकर मुन्ना हंस दिए। उसको भी हंसी आ गई।

हम करीब बीस मिनट के बाद पुनीतम के होटल ''भोला-भंडारी होटल'' पहुंचे। कुल मिलाकर अच्छा खासा चाय-नाश्ते का होटल था। हम अंदर गए, बेंचऔर मेजें लगी थीं। छः सात पुरुष खाने-पीने में लगे थे। होटल सादगीपूर्ण, लेकिन खूब साफ-सफाई वाला था। एक काउंटर पर स्टाइलिश मूछों वाला अच्छी सेहत का युवक बैठा था। उसने बड़ा सा तिलक लगा रखा था। उसके बगल में ही एक महिला लैपटॉप खोले, चश्मा लगाए काम में जुटी थी। मुन्ना और मुझे पुनीतम और मिज़ांग को पहचानने में देर नहीं लगी। मुन्ना ने गंगा राम को भी बुलाकर चाय-नाश्ता करने के लिए कहा।

उसने लगे हाथ हमारा पुनीतम, मिज़ांग से परिचय भी कराया। वहीं हमने यह एहसास किया कि गंगाराम का पुनीतम के यहां से बड़ा करीबी रिश्ता है। हम बड़े आश्चर्य में थे कि, मिज़ांग पुनीतम के साथ शादी कर बिजनेस भी चला रही है। अपना काम भी कर रही है और लोगों से रिश्ते कैसे बनाना है यह भी जानती है। क्योंकि उसने जिस तरह से गंगाराम और हम दोनों से बात की वह किसी कुशल मिलनसार, व्यावहारिक व्यक्ति के लिए ही संभव था। हमें आश्चर्य इस बात का भी हुआ कि, वह बड़ी साफ-सुथरी हिंदी बोल रही थी। हम होटल में करीब आधा घंटा रहे और चाय-नाश्ता कर वापस आ गए। आते वक्त रात का खाना भी ले आए थे। आकर हमने करीब घंटे भर आराम किया।

इस बीच मुन्ना कार्यक्रम में भाग लेने आए अपने जैसे कई साथियों से बातचीत भी करते रहे। क्या ख़ास हुआ यह जानने का प्रयास किया। मैंने भी उन दोनों लड़कियों से बात की जो मथुरा से आई थीं। मधुबनी शैली की कला को वह कपड़ों में डिज़ाइन करने की कला की जबरदस्त आर्टिस्टि थीं, और बातचीत में भी बहुत मधुर। एक ही मुलाकात में दोनों मेरे बड़े करीब आ गई थीं। वह मेरी कला के साथ-साथ अपनी कला मिक्स कर एक नए प्रयोग की कोशिश में थीं।

हम दोनों बेड पर लेटे-लेटे ही बात कर रहे थे। हमें यहां आने का कुछ ख़ास फायदा नहीं दिख रहा था। मैं मुन्ना पर ही डिपेंड थी। मुझे ज्यादा निराश देख मुन्ना ने कहा, 'इतनी चिंता करने की जरूरत नहीं है। अभी सब शुरू ही हुआ है। तुम निश्चिंत रहो। मैं यहां से कुछ ना कुछ बड़ा हासिल करके ही चलूँगा।'

मगर मैं यकीन नहीं कर पा रही थी। असमंजस में थी तो मैंने कहा, 'मगर मैं तो लगता है कि छोटा भी हासिल नहीं कर पाऊँगी।'

'कैसी बेकार की बातें कर रही हो। मेरा ''मैं'' से मतलब हम-दोनों से होता है। सही मायने में मैं बड़ा तभी हासिल कर पाऊंगा, जब मैं जिस उद्देश्य के साथ तुम यहां आई हो, उसे भी पूरा करवा दूं। बिना इसके मैं कुछ भी कर लूं। सब बेकार है मेरे लिए।'

'लेकिन वहां मुझे कैसे मिलेगा कुछ। वहां तो हर तरफ एक से बढ़ कर एक बड़ी-बड़ी पहुंच वालों का कब्जा है। हमारी कौन सुनेगा, कहां बात बन पाएगी, मैं तो उन लोगों के सामने दबकर रह जाऊँगी, पता ही नहीं चलेगा कि, कहां से आई थी और कहां चली गई।'

'सब पता चलेगा कि कहां से आई थी, तुममें क्या खास बात थी और क्या ख़ास लेकर गई।'

'दुआ करती हूं कि तुम्हारी बात सच हो, नहीं तो अम्मी को बड़ा दुख होगा। वह बड़ा निराश हो जाएंगी। बड़ी मुश्किलों, बड़ी मेहनत से मैं उनके चेहरे पर खुशी, मुस्कान ला पाई हूं। इसके पहले जीवन में मैंने उनके चेहरे पर हंसी क्या, हल्की मुस्कान की एक धुंधली सी लकीर भी नहीं देखी थी। इसीलिए मेरी कोशिश यही है कि, अब जो भी जीवन बाकी बचा है उनका, उसमें मैं उनको भरपूर हंसी-खुशी दूं। उन्हें वह सब दूं जो एक अच्छे इंसान के नाते अच्छी ज़िंदगी के लिए उन्हें मिलना चाहिए, इसके लिए मुझे जो भी करना पड़ेगा, मैं वह हर हाल में करूंगी।'

इतना कहते-कहते मैं भावुक हो उठी तो मुन्ना ने कहा, 'परेशान क्यों होती हो, अब उनकी मुस्कान कभी नहीं जाएगी। तुम्हारे घर की सभी समस्याओं की जड़ में से प्रमुख जड़ थी पैसों की तंगी, जो अब तुमने अपनी मेहनत से करीब-करीब दूर कर दी है। मगर अभी तुम्हें बहुत कुछ करना है। इतना पैसा कमाना है, उन्हें इतनी खुशी देनी है, जितनी उन्होंने कल्पना भी न की हो।'

'तुमने तो मेरे ही मन की बात कह दी। मुझे पक्का यकीन है कि तुम्हारे साथ ऐसे ही आगे बढ़कर मैं अम्मी को सच में इतनी खुशियों से नवाजूँगी, जिसकी उन्होंने कल्पना भी ना की होगी। बस तुम मेरा साथ ना छोड़ना।'

इतना कहते हुए मैं मुन्ना से लिपट गई।

हम अब भी बेड पर लेटे हुए ही बातें कर रहे थे। मेरा चेहरा मुन्ना की छाती पर अठखेलियां कर रहा था। मैंने खुद को बहुत रोका लेकिन मैं सिसक पड़ी, तो मुन्ना ने अपनी बाहों में लेकर समझाते हुए कहा, 'तुम मुझ पर अपना भरोसा बनाए रखो। हम कभी अलग नहीं होंगे। यह तुम सपने में भी मत सोचा करो। मैं तो ऐसा कभी सोचता ही नहीं, क्योंकि मैं जानता हूं कि मैं तुम्हारे बिना रह भी नहीं सकता। कुछ कर ही नहीं सकता। हम दोनों एक-दूसरे के लिए ही हैं।'

हम दोनों ऐसी ही बातें करते रहे, फिर कुछ देर बाद नहा-धोकर ताजा हुए और अगले दिन की तैयारी में लग गए। तैयारियां हमारी करीब-करीब पूरी ही थीं। हमें ज्यादा समय नहीं लगा। इसलिए हम फिर से काम-धंधे को विस्तार देने की योजनाओं पर बात करने लगे।'

इतना कहकर बेनज़ीर ने अचानक ही अपनी बातों को ब्रेक देते हुए, बिल्कुल मेरी ही शैली में मेरी आँखों में देखते हुए कहा, 'मैं आपको शुक्रिया कहतीं हूं, कि आप इतनी देर से चुप बैठे हैं। जिससे मैं आसानी से लगातार अपनी बात कह पा रही हूं। आप बीच-बीच में प्रश्न कर देते हैं तो मैं भटक जाती हूं।'

'आप निश्चिंत होकर अपनी बात कहती रहिए। मैं बीच में कोई प्रश्न नहीं करूंगा, क्योंकि मैं देख रहा हूं कि मेरी चुप्पी पर ही आप इतनी बातें बताए जा रही हैं कि, यदि मैं प्रश्न करता तो शायद इतनी बात ना मालूम हो पातीं। इसलिए आप जारी रखें कि, अगली योजनाओं पर क्या बातें कर रही थीं।'

मेरी बात पर वह थोड़ा मुस्कुराती हुई बोलीं, 

'फिर कहती हूँ कि, यह तो मानना पड़ेगा कि दूसरों से बात जान लेने की आप में बहुत बड़ी क्षमता है। वैसे हम बिजनेस के विस्तार को लेकर चर्चा कर रहे थे। बनारसी साड़ी पर डिज़ाइन को लेकर मैं मुन्ना से बोली, 'मैंने सोचा था कि, मेरे डिज़ाइन्स से लल्लापुरा में कुछ बात बनेगी। लेकिन वह आदमी जल्दी-जल्दी न जाने क्या बोलता गया कि, मेरी समझ में कुछ आया ही नहीं।'

'सब बताता हूं कि उसने क्या कहा। वह तुम्हारी डिज़ाइन्स की बात सुनकर बोला था, 'मैटिफ तो बहुत हैं।अनगिनत मैटिफ आती रहती हैं। इनकी तो भरमार है।'

'मैटिफ क्या है, यही तो अब-तक समझ नहीं पाई। मतलब क्या है मैटिफ का?'

'मतलब होता है डिजाइन। उसका कहना था कि, कितनी तो डिज़ाइनें आती रहती हैं। लेकिन कस्टमर के बीच ज्यादा मांग पारंपरिक डिज़ाइनों की ही है। उनमें भी ज्यादातर जाल, जंगल, कोनिया, झालर, बूटी-बूटा की। समझी।'

'मतलब कि मेरे लिए कुछ नहीं है।'

'बहुत कुछ है तुम्हारे लिए। उसका कहना था कि, नई डिज़ाइन बहुत आती हैं। अब तुम ऐसी  डिज़ाइन बनाओ जो यहां पारंपरिक डिजाइनों के बीच अपना स्थान बना सकें। काम बहुत कठिन जरूर है लेकिन असंभव नहीं है। जो डिज़ाइन तुमने बनाई हैं, उस समय कुछ साथ में होतीं तो, उसे दिखा कर ज्यादा समझाया जा सकता था।'

'हाँ, लेकिन वहां जाना तो पहले से तय था नहीं। नहीं तो साथ ले चलते, कल फिर चला जाए क्या?'

'अगर कल भी कार्यक्रम में आज जैसा रहा तो जरूर चलेंगे, और मदनपुरा भी। गंगा राम कह रहा था कि, वहां भी बहुत बड़े पैमाने पर बनारसी साड़ियां बनती हैं। सुनो एक काम करो, अपनी जितनी भी डिज़ाइन लाई हो वह सब निकालो, सबकी फोटो मोबाइल में सेव कर लेते हैं। वहां दिखाने में आसानी रहेगी।'

' हाँ, यह सही रहेगा।'

मुन्ना का यह आइडिया मुझे पसंद आया। मैं जितनी डिज़ाइनें ले गई थी, मुन्ना ने मेरे और अपने दोनों ही मोबाइल में सारी फोटो स्टोर की और कहा, ' यदि कल चलना हुआ तो यह सब ले भी चलना, फोटो से ज्यादा अच्छा प्रभाव इनका पड़ेगा।'

'तो फोटो बेकार ही खींची।, 

'नहीं, अचानक ही आज जैसी कोई स्थिति आने पर मोबाइल काम आएगा।'

'ठीक है। अब जितनी डिज़ाइन बनाऊँगी सबकी तुरंत फोटो भी खींच लिया करूँगी।'

'बिलकुल यहां से लौटने पर और जितनी घर पर रखी हो, उनकी भी। तुम्हारी प्रोफाइल बनवा दूंगा। तुम्हारे काम की सारी डिटेल्स के साथ ही सारी डिज़ाइन्स भी उनमें होंगी। उन्हें कैटिगराइज भी कर दूंगा। यह सब टेबलेट में भी रहेगा। जिससे किसी के सामने अच्छे से प्रेजेंटेशन दिया जा सके।'

'प्रोफ़ाइल मतलब?'

'प्रोफ़ाइल मतलब तुम्हारे काम का पूरा ब्योरा इस ढंग से दिया गया होगा, कि किसी को आसानी से दिखाया जा सके। लोगों पर उसका अच्छा प्रभाव पड़ेगा, हमारा काम आसान होगा। टेबलेट जानती हो कि नहीं?'

'जानती हूं।'

'ठीक है। चलोअब खाना खाते हैं। ग्यारह बजने वाले हैं। वैसे भी ठंडा-ठंडा खाना अच्छा नहीं लगेगा।'

' लगेगा, उसने दही, पूड़ी-कचौड़ी, दोनों सब्जी जब पैक की थीं, तो उसे देखकर ही मैंने सोचा

था कि, हो ना हो, खाना बहुत जायकेदार होगा। पुनीतम के होटल की पकौड़ियों, चाय की तरह।'

खाने के बाद हम दोनों बेड पर लेटे-लेटे ही टीवी देखते रहे और बातें करते रहे। मैं बोली, 'मैंने कहा था ना कि खाना जायकेदार होगा।'

' गर्म होता तो और भी टेस्टी होता। कल यहां जिस तरह का खाना ऑर्गनाइज़र ने सर्व कराया उससे मुझे बड़ी गुस्सा आई। बातें इतनी लंबी-लंबी की थीं, लेकिन इंतजाम थर्ड क्लास का था। दिन में और कई लोग भी यही सब बातें कर रहे थे। मैंने कल रात खाते समय ही सोच लिया था कि चाय-नाश्ता के अलावा अब जब-तक यहां हूं तब-तक खाना बाहर ही खाएंगे।'

'लेकिन अभी कई दिन ठहरना है। रोज-रोज बाहर खाना बहुत महंगा पड़ेगा।'

'तो क्या हुआ, हम लोग इतनी मेहनत करते हैं, पैसा कमाते हैं तो अच्छा खाने-पीने, रहने, मजा लेने के लिए ही ना। अगर यह भी नहीं करेंगे, तो फायदा क्या मेहनत करने का, कमाने का।'

इतना कहते ही बेनज़ीर फिर चुप हो मुझे देखने लगीं, और मैं उन्हें ऐसा करते देखता रहा मूर्तिवत तो वह बोलीं, 'अब आप बहुत ध्यान से सुनियेगा, जो बताने जा रही हूँ वह आपने सोचा भी नहीं होगा, एक बात और बता दूँ, कि एक शब्द भी रिपीट नहीं कराइयेगा, क्योंकि मैं हरगिज-हरगिज नहीं करूंगी।'

यह कह कर वह हा..हा..कर बड़ी तेज़ी से हँसी, मैं समझ गया कि यह कुछ ज्यादा ही धमाकेदार बताने वाली हैं, 'मैंने कहा आप निश्चिन्त होकर बताईये, एक शब्द तो क्या, एक अक्षर भी दुबारा नहीं पूछूँगा। आप बताईये ..।'

'हूँ..तो हुआ क्या किअपनी यह बात पूरी करते-करते मुन्ना ने शैतानी शुरू कर दी तो मैंने कहा, 'अरे-अरे अब यह क्या कर रहे हो।'

'काम करने के बाद अगला स्टेप मजा करने का आता है, वही कर रहा हूं।'

यह कहते हुए उन्होंने मेरी खुद की बनाई हुई स्टाइलिश गाउन की स्ट्रिप खोल दी और कुछ ऐसी हरकत की, कि मेरे मुंह से जैसे अपने आप ही बहुत ही सेक्सी आवाज में निकल गया। 'अकेले ही सारा मजा ना लूट लेना।'

'आज तक ऐसा हुआ है क्या?', 

मुन्ना ने बहुत ही आक्रामक अंदाज में सक्रिय होते हुए कहा। उसकी सक्रियता से मैं कसमसाते हुए बोली, 'अब इधर आओ मुझे गुदगुदी लग रही है।' मैं अपने दोनों हाथ नीचे पेट के पास मुन्ना के सिर पर रखे, उसके बालों को मसाज करने की स्टाइल में चलाते हुए बोली तो उन्होंने गहरी सांस लेते हुए कहा, 'बस थोड़ी गुदगुदी और लगने दो फिर ऊपर ही आता हूं।'

वह मेरे पेट पर चेहरे से बिल्कुल वैसी ही हरकतें कर रहे थे, जैसी दक्षिण भारतीय फिल्मों के नायक, नायिका के साथ करते हैं। और मैं उन्हीं नायिकाओं की तरह कसमसा सी रही थी। मुन्ना ने इसी उठा-पटक के बीच अपने व मेरे कपड़े निकाल कर बेड के किनारे सेंटर टेबिल पर डाल दिए, और इसी के साथ बेड पर बड़ा, बहुत बड़ा तूफ़ान जोर-शोर से उठ खड़ा हुआ। इतना तेज़ कि बेड सहित कमरे की हर चीज ही नहीं, कमरा भी थरथरा उठा। यह तूफ़ान जितनी तेज़ आया था, उतनी ही तेज़ गया नहीं, बल्कि मंद चलती हवा की तरह बड़ी देर में गुजरा।

जब गुजर गया तो हम दोनों बेड पर बड़ी देर तक पड़े रहे। मुन्ना के बदन पर जगह-जगह पसीने की बूंदें चमक रही थीं। मेरी छातियों पर सिर रखे तिरछा लेटे हुए थे। मैं एक हाथ से उसके सिर को सहलाए जा रही थी। तूफ़ान गुजर जाने के बाद हम दोनों को बड़े जोरों की नींद आ गई और हम सो गए। एकदम निढाल होकर, अस्त-व्यस्त, आड़े-तिरछे ही।'