"बेचारी गृहस्वामिनी"
जब हम नारी मुक्ति और नारी उत्कर्ष की बात करते हैं तब हम नारियों को अपने अंदर भी झाँकना चाहिए कि समाज की अन्य स्त्रियाँ इस आजादी और अधिकारों का गलत उपयोग तो नहीं कर रहीं? "बेचारी गृहस्वामिनी" कोई कहानी नहीं, एक सच्चाई है ,जो स्त्री के अधिकारों का दुरुपयोग और उसकी वजह से हुए एक आदर्श परिवार की समाप्ति दर्शाता है।यह हमारे समाज के ही एक परिवार की सत्य घटना पर आधारित है।
अजीब फितरत थी सोनाली की... विवाह भी करना है, और ससुराल में नहीं रहना है... आदर्श बहू भी कहलाना है और ससुराल वालों को ताने भी देने हैं... अधिकार भी सारे चाहिए और कर्तव्य भी नहीं करना है…. दुनिया वालों से सहानुभूति भी चाहिए और घर में दादागिरी भी करनी है... "बेचारी" भी कहलाना है और ससुराल वालों को घर से निकाल भी देना है...ससुराल से सारे गहने, जमीनें अधिकार के नाम पर चाहिए जिन्हें अपने भाई-बहनों में बाँटकर उदारता दिखानी है…. खुदगर्जी भी करनी है और उदार भी कहलाना है...झूठ जमकर बोलना है और लोगों की नजर में सच्ची बने रहने के लिए आँसू भी बहाने हैं…।विवाह के बाद से ही
सोनाली अपने इरादों को बखूबी अंजाम दे रही थी पर उसके रास्ते में एक जबरदस्त बाधा थी और वह था उसका पति रंजन। संस्कारी व्यक्तित्व का मालिक, रंजन सोनाली के इस दोहरे रूप को भलीभांति समझने लगा था और समय-समय पर डाँटता भी रहता था।गलत इल्जाम लगाकर बेटे की नजर में माता-पिता को दोषी ठहराकर सोनाली ने पहले तो वृद्ध सास-ससुर को घर से निकाला फिर बारी आयी जेठानी और उसके बच्चों की। रंजन का बड़ा भाई विवाह के एक दो वर्षों के बाद ही भगवान को प्यारा हो गया था।दोहरे चरित्र वाली सोनाली की मधुर वाणी और ऊपर से सद्गुणों की खान दिखने वाले मुखौटे के कारण रंजन के माता पिता ने सोनाली को सारे परिवार को एकसूत्र में बाँधकर चलने वाली लड़की समझा और रंजन की शादी कर दी।हालांकि, रंजन घर की आर्थिक और भावनात्मक हालत सँभालने में लगा था और विवाह के लिए तैयार नहीं था परन्तु सोनाली के छलावे से बेखबर रंजन के माता-पिता को उसमें अपनी बेटी की छवि होने का भ्रम हुआ और उन्होंने रंजन को विवाह के लिए मना लिया। अपने बड़े भाई की मृत्यु से आहत रंजन अपनी भाभी और अपनी भतीजियों से बेहद करीब था और उन्हें अपने साथ ही रखना चाहता था। दोहरा चरित्र जीने वाली सोनाली ने अपनी जेठानी के बच्चों को अपने पास रखा तो जरूर पर जल्दी ही चोरी और धोखे का इल्जाम लगा कर घर से हटा भी दिया। रंजन को विश्वास तो नहीं हुआ पर प्रमाण के आगे वह कुछ नहीं बोल पाया। अब सोनाली ने अपने अकेले और तबीयत खराब होने का बहाना कर अपने छोटे भाई को अपने साथ रख लिया और फिर धीरे-धीरे हर बात में रंजन की अवहेलना करने लगी।अगर कभी रंजन गुस्सा करता या समझाने की कोशिश करता तो सोनाली अपनी जान दे देने की धमकी देकर इमोशनल ब्लैकमेल कर उसे विवश कर देती।रंजन को सोनाली का यह व्यवहार बिल्कुल पसंद नहीं था परन्तु, दुनिया के सामने सोनाली के ड्रामों के आगे वह कुछ कह नहीं पाया, लाचार सा हो गया। धीरे-धीरे सोनाली के सभी मायके वालों का जमावड़ा लगने लगा और रंजन के परिवार वालों का प्रवेश रंजन के घर में लगभग बंद हो गया।दोहरे चेहरे वाली सोनाली ने इसका इल्जाम भी ससुराल वालों पर मढ़ा यह कहकर कि हमें कुछ भी हो जाये, अम्मा-बाबूजी हमारी सुध तक लेने नहीं आते जैसे कि रंजन उनका सौतेला बेटा है...लोगों के समक्ष नादान चेहरे से बोल-बोलकर सोनाली खूब रोती।उसे ऐसा करते देख आस पड़ोस वाले सोनाली के सास ससुर को खूब कोसते और सोनाली को सतायी हुई बहू बताकर उसके साथ सहानुभूति दिखाते।वैसे भी इस तरह की परिस्थितियों में अक्सर दुनिया लड़के वालों की ही गलती मानती है, सच्चाई चाहे कुछ भी हो।यहाँ भी वही हुआ। रंजन के माता-पिता हर बात पर दोषी ठहराये गए और सोनाली "बेचारी" बन गई। बस, क्या था...सोनाली की मुराद पूरी होने लगी।रंजन सोनाली के दोहरे व्यवहार से बहुत दुखी था और अक्सर इस बात पर दोनों की बहस हो जाती थी और फिर….एक दिन सुबह- सुबह खबर आई कि रंजन नहीं रहा।यहाँ भी वह इल्जाम लगाने से बाज नहीं आयी। सोनाली और उसके मायके वालों ने रंजन के माता-पिता पर यह आरोप लगाया कि रंजन को कई तरह की गुप्त बीमारियाँ थीं.. वह तो पिता बनने के काबिल ही नहीं था….रंजन के माता-पिता ने सोनाली के सीधे सादे घर वालों को धोखा देकर शादी कर दी थी। बेटों के जाने और बहू के इल्जाम से आहत रंजन के पिता यह सदमा बर्दाश्त नहीं कर सके और जल्दी ही वह भी चल बसे। रंजन की माँ तो वैसे ही कुछ नहीं कहती थीं...अब और भी खामोश हो गईं। सोनाली को अब केवल सम्पत्ति अपने नाम पर ट्रान्सफर करनी थी।अपने मायके वालों की मदद से सोनाली ने घर,मकान सब झूठ बोलकर और गलत हस्ताक्षर करके अपने नाम करवा लिया और लोगों में यह प्रचारित किया कि सारी सम्पत्ति मेरे पति की अर्जित की हुई थी और बाबूजी की अंतिम इच्छा थी कि सारी सम्पत्ति बेटे-बहू के नाम पर ही हो..इसीलिये उनकी अंतिम इच्छा का मान रखते हुए ऐसा करना पड़ रहा है वरना मुझे अब इन सबसे क्या लेना-देना..।फिर,यह कहकर किनारे हो गई कि जिन्होंने मुझे इतना दुख और दर्द दिया है, उनसे अब क्या संबंध रखना..?हालांकि रंजन की माताजी के पास उसके इस दावे को झूठा साबित करने के सारे प्रमाण थे लेकिन वह अपने संस्कारों से लाचार थीं। कहतीं-"भले ही मेरी बहू ने गलत किया पर मैं उसकी सजा ईश्वर पर छोड़ती हूँ...धन- सम्पत्ति कौन साथ लेकर गया है..मैं अपने कर्म खराब नहीं करूँगी..।"
अब तो सोनाली की सारी प्लानिंग कामयाब रही।फरेब से हासिल घर-सम्पत्ति को भाई-बहन अपना बताकर ऐश कर रहे हैं। रंजन के नहीं रहने पर वह समाज की नजर में "बेचारी" भी बनी हुई है और जब बेचारी हो गई तो फिर कर्तव्य से क्या लेना देना..? रंजन की माँ अकेली ठोकरें खाने पर विवश कहीं किराए के मकान में रह रही हैं और उनके पति द्वारा अर्जित मकान की स्वामिनी है दुनिया की नजर में "बेचारी गृहस्वामिनी"।
सोचती हूँ, नारी मुक्ति के लिए प्रयासरत लोगों की नजर में क्या वह अकेली, लाचार वृद्धा नारी नहीं?
अर्चना अनुप्रिया।