खुला पत्र (शराबी पति के नाम) Alok Mishra द्वारा पत्र में हिंदी पीडीएफ

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खुला पत्र (शराबी पति के नाम)




हे प्राणनाथ,

यहाँ सब लोग कुशल मंगल है। इस पत्र को लिखते हुए मुझे अपने वे दिन याद आ रहे है, जब हम पहली बार राशन की दुकान पर मिले थे। तुमने मुझे देखा और देखते रह गए, मैं सावली सी दुबली-पतली लड़की थी। जिसे देखकर शायद ही कोई आकर्षित होता, पर तुम हुए ,पहली ही नजर मे तुम भी मुझे अच्छे लगे। फिर मुझे अपनी मां से पता लगा कि वो तुम ही हो जिससे मेरी शादी की बात चल रही है। मेरे घर में सब तुम्हारी तारीफ करते थे, भाई ने बताया की तुम मकान मिस्त्री का काम सीख गए हो और थोड़ी बहुत कमाई भी करने लगे हो। हमारी शादी बहुत सामान्य तरीके से हुई। तुम अपनी सायकल के डण्डे पर बिठाकर मुझे बिदा कर लाए।

घर पहुॅंच कर मुझे मालूम चला कि तुम शराब का नशा भी करते हो। मैं अब कुछ कहने बोलने की स्थिति में नहीं थी। तुम्हारी नशे की आदत पहले कम थी मगर वो धीरे-धीरे बढ़ने लगी। नशा बढ़ा तो तुम्हारी कमाई हमारे परिवार के लिए कम पड़ने लगी। ऐसे में मुझे भी काम करने निकलना पड़ा। मैंने दो-चार घरों के बर्तन चौके का काम कर लिया। इससे तो तू और बेफ्रिक हो गया अब तो तूने घर पर पैसे देना ही बंद कर दिया। इस दौरान पहले पप्पू फिर मुनिया भी इस दुनियां में आ गए। कभी तू कसमें खाता कि आज आखरी दिन कल से नशा बंद कभी तू नशे में आकर मुझे पप्पू और मुनिया को मारता। अड़ोसी-पड़ोसी से तेरी लड़ाई होना तो रोज की बात हो गई थी। एक बार तू घर से निकला तो रात तक घर ही नही लौटा, मैंने और पप्पू तुझे शराब के ठेकों पर ढूंढ़ते रहे, तू दो दिन बाद आया। पूंछने पर तूने मूझे बहुत मारा पप्पू बीच-बचाव में आया तो उस मासूम को भी मारा। हम दोनों तेरे इस व्यवहार पर बहुत रोए। जब पड़ोसियों ने बीच-बचाव की कोशिश की तो तू उन्हे भी मारने के लिए दौड़ा। मोहल्ले के लोग तो अब तुझसे बात भी नहीं करना चाहते है। अब तू कभी घर आता कभी-कभी नहीं भी आता। हमें मालूम है जब तेरा नशा उतर जाएगा तू घर आ जाएगा इसलिए तुझे ढूंढने भी नही जाते हैै। उस दिन तो तूने हद ही कर दी पप्पू की स्कूल की किताबे रद्दी में बेच दी। उस रात तू नहीं आया पप्पू रात भर अपनी किताबों के लिए रोता रहा। तेरे घर आने की राह मैंने तीन दिन तक देखी तीसरे दिन तूने आते ही पप्पू को दो चपत लगा दी। मैं अपने गुस्से को काबू करती भी तो कैसे ? मैने गुस्से में आकर तूझे थप्पड़ लगाना शुरू कर दिया। अब हम दोनों एक दूसरे को मार रहे थे और मोहल्ले के लोग हमारे घर के सामने जमा थे कुछ लोगाें ने हिम्मत की और हमें अलग किया। मैं तो शायद शांत भी हो जाती परन्तु तू तो पूरे मोहल्ले के सामने औरत से पिटा था, तेरा अहम तूझे और लड़ने को उकसाता रहा। तूने मूझे और आस-पास वालों को गालियां दी किसी को नहीं बख्सा। फिर भगवान के पास रखे पैसे लेकर चला गया। तब से तू अब तक नहीं लौटा। इस तरह तीन साल गुजर चुके है।


मुझे मालूम है, तुम जहां भी होंगे दारू के ठेके के पास ही होंगे इसलिए इस पत्र को खुला रखकर दारू के ठेकों पर चिपकवाने की व्यवस्था करूंगी। तुम्हारे जाने के बाद से हमें ऐसा लगने लगा है कि हम भी जीवित है। मुनिया भी अब पढ़ने जाने लगी है। पप्पू अच्छा पढ़ रहा है। मुझे दो घर का काम ज्यादा करना पड़ता है। पड़ोसी भी ठीक से रहने लगे है जो रिश्तेदार पहले हमें पूछते नहीं थे अब पूछने लगे है। मैं अब कुछ पैसे बचा पाती हॅूं, जो पप्पू और मुनियां के भविष्य में काम आएंगें। कुल मिलाकर देखा जाए तो परिवार सुख से है। जब तक मुझे तुम्हारी मृत्यु की खबर नहीं मिलती मैं अपनी मांग में सिन्दूर के साथ तुम्हारी सुहागन ही रहूंगी। तुमनें परिवार से अधिक अपने नशे को महत्व दिया है। तुम भी जहां हो वहां पूरे नशे में मस्त और आनन्द में होंगे। तुमसे निवेदन है कि तुम अपने आनन्द को कम न होने देना, हमारी फिक्र बिलकुल न करना। हमने तुम्हें कभी भी ढ़ुंढने की कोशिश नहीं की है। यदि आप यह पत्र पढ़ रहे हो तो कृपया वापस आने की गलती मत करना। यदि वापस आना ही हो तो, अकेले ही आना नशे को वहीं छोड़कर आना।
हमेशा आपकी


सुहागन


लेखक का निवेदन - आपने यह पत्र पढ़ा यदि आप भी नशे की लत का शिकार है तो कृपया नशे को छोड़कर अपने परिवार के पास जाने का प्रयास करें।





आलोक मिश्रा" मनमौजी "