आदरणीय,
लक्ष्मी माता
चरण स्पर्श
यहाँ यह बस जैसे-तैसे जी रहे है । हमें पूर्ण विश्वास है कि आप पूर्ण वैभव के साथ कुशलता पूर्वक होंगी । मैने अपनी माँ से सुना है कि आप दीपावली के पावन पर्व पर धरती के भ्रमण हेतु आती है । उन्होनें मुझे यह भी बताया था कि आप सबसे साफ सुथरे और रोशन घर में अवश्य जाती है । मुझे यह जानकर बहुत निराशा हुई क्योंकि फिर तो आपको शायद हमारा झोपड़ा दिखाई ही न दे । हमारे झोपड़े की सफाई तो माँ बहुत करती है लेकिन पाँच दिए इतने कम तेल से जलाती है कि वे कुछ ही देर में बुझ जाते है । इसमें गलती मेरी माँ की भी नही है वो जो चौका-बर्तन करके कमाती है उसमें त्यौहार मनाने के लिये बचता ही क्या है । लक्ष्मी माता मेरे घर में भले ही अंधेरा हो मै यह पत्र लिखकर आपको अपना पता बता देता हॅं ये गली में गंदे नाले के ठीक बाजु मे है। मेरे दोस्तों के माता-पिता ने उनके लिए नए कपड़े भी खरीदे है । मेरी तो हाफ पेंट भी बैठने वाली जगह से फट गई है । माँ कहती है कुछ दिन रूक कर लेंगी । जब आप आओगी तो यदि मै फटी पैन्ट दिखुं तो आप अपना अपमान नहीं मेरी मजबूरी और शर्म ही समझना । हम आपके स्वागत में फटाके भी नहीं फोड़ते है, ला ही नहीं सकते फोडेंगे कहाँ से ? मुझे फूटते फटाके देखने का शौक है इसलिये मै कुछ हवेलीनुमा घरों के पास खड़ा होकर देख लेता हॅूं । इस बार मै आपके स्वागत में फटाके देखने भी नही जाऊॅगा ।
आप तो जगत की माता है आपसे क्या छुपा है ? यहाँ बहुत सी चीजों की कमी है । मै आपसे निवेदन करता हुँ कि इस बार जब आप आए तो हो सके तो उनमें से कुछ तो अपने साथ अवश्य ही लेते आइए । मेरे सहित यहाँ सभी लोग स्वार्थी है इसलिये जब मै आपसे कुछ लाने के लिये कहुँगा तो अपने लिए ही कहॅुगा । लक्ष्मी माँ यहाँ मिठाइयाँ बहुत मंहगी हो गई है इसलिये मेरी माँ बताशे को मिठाई बताकर मुझे खिलाती है । मिठाई खाए तो बहुत समय हो गया है आप जब आए तो मिठाई साथ अवश्य लाए ।
माता मेरे मोहल्ले में बहुत से लोग रोज ही नशे की हालत में पूरा मोहल्ला सिर पर उठा लेते है । माँ आप जब धरती पर आए और आपका भ्रमण समाप्त होने लगे तो जाते समय ये सारे नशीले पदार्थ अपने साथ नही ले जा सकती क्या?मुझे लगता है कि देव लोक इसलिये देव लोक होगा क्योंकि वहाँ से नशीले पदार्थ नही है ।
कहीं ऐसा तो नहीं कि ये नशीले पदार्थ देव लोक का कचरा हो जो यहाँ के लोग सेवन कर राक्षस बन जाते है । आप इस कचरे को न ले जा सकती हो तो कुछ उपाय तो कर ही सकती होंगी कृपया करके वो उपाय अपने साथ अवश्य लाना ।
हे माता यहाँ भूख है, गरीबी है और लाचारी है ये सब केवल और केवल आपके कारण है । आप केवल एक दिन भ्रमण करके चली जाती है जो जैसा है वैसा ही रह जाता है । आप यहीं क्यो नही रह जाती । आप अगर यहीं रहेगी तो दिन के उजाले में आपको हमारी समस्याएॅं साफ-साफ दिखाई देंगी । आप तो अनावश्यक ही काली रात में आती है । उस समय आप हमारी समस्याए तो क्या हमें भी नही पहचान पाती होंगी ।
आप भी अपने भ्रमण में बड़ी-बड़ी हवेलियों में ही जाती होंगी तभी तो गरीब और गरीब और अमीर और अमीर होता जा रहा है । हे माँ आपका यह बालक आपसे निवेदन कर रहा है इस बार आप किसी झोपड़े में पधारे । पधारे ही क्यों वापस जाए ही नहीं ताकि दिन की रोशनी में सारे झोपड़े दिख सके ।
हे माँ यहाँ आपसी भाईचारे की कमी है । यहाँ इसांनियत और सभ्यता की भी कमी है । जब आप आए तो इनको भी साथ लेते आए । धरती पर दया, करूणा और प्रेम जैसे भाव भी दिखावटी और सस्ती लोकप्रियता के साधन होते जा रहे है । वास्तविकता तो ये है कि ये भाव धरती पर कम और कम होते जा रहे है । आप जब पधारे तो अपने बच्चों के लिये इन मूल्यवान चीजों को अवश्य लाए ।
हे लक्ष्मी माँ मैने अपनी अबोध कलम से तुम्हें पत्र लिखकर अपनी कमियों को गिनाया है । यह केवल इसलिये कि आप जब पधारे तो हमारी कमियों को दूर करके उपाय अवश्य साथ लाए ।
हे माता यदि आप मेरे झोपड़े पर पधारती है तो शेष बातें वहीं होगी ।
लेखक - आलोक मिश्रा "मनमौजी "
mishraalokok@gmail.com