A Dark Night – A tale of Love, Lust and Haunt - 17 Sarvesh Saxena द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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A Dark Night – A tale of Love, Lust and Haunt - 17

हॉरर साझा उपन्यास

A Dark Night – A tale of Love, Lust and Haunt

संपादक – सर्वेश सक्सेना

भाग- 17

लेखक:- देवेन्द्र प्रसाद

“ल... ल... लेकिन वहाँ अनुज है मुझे भी ऐसा लगा। उसे यहाँ नहीं होना चाहिए था।” यह कहते हुए अखिल ने फिर अपना कदम बढ़ाया कि तभी उस तांत्रिक ने उसके बाजू को सख्ती से पकड़ते हुए कहा, “देखो तुम अब व्यर्थ की चिंता करने लगे हो? वहाँ अनुज नहीं है इस बात का मैं तुम्हें आश्वासन दिलाता हूँ। तुम बस अपने काम पर ध्यान एकाग्रचित्त करो।”

यह सुनते ही अखिल बोला, “ऐसे कैसे कर लूँ? तू विश्वास के लायक नहीं, मेरी बेटी पूजा यहाँ ज़िंदगी और मौत के बीच लड़ रही है। इतना भी तुझसे नहीं देखा गया तो तूने अनुज को भी बुला लिया।”

अखिल ने इतना कहा ही था कि उस शैतान तांत्रिक ने आसमान कि तरफ अपना सिर किया और जोर जोर से हँसने लगा। उसकी हँसी की गूंज पूरे वीरान जंगल में गूंज उठी। उसकी आवाज के साथ ही भेड़ियों का रुदन भी शुरू हो गया जो कि उसके आवाज के साथ मिलकर और भी वीभत्स पैदा कर रहे थे। अखिल को इस हँसी के पीछे का कारण समझ नहीं आ रहा था। उसने उसके शांत होने का इंतजार किया।

जब कुछ क्षणों बाद वह शांत हुआ तो बोला, “तुझे मेरी बात पर यकीन नहीं हो रहा है ना? रुक तुझे मैं उसके यहाँ ना होने के सुबूत देता हूँ तभी शायद तुझे विश्वास होगा। इतना तो मैं तेरे लिए कर ही सकता हूँ लेकिन...!”

यह कहने के साथ वह शैतान तांत्रिक रुक गया और उसके होंठों पर शैतानी हँसी बिफर गई। अखिल घबराता हुआ बोला, “लेकिन क्या? आखिर तुम कहना क्या चाहते हो? पूरी बात क्यों नहीं बताते?”

उसकी बात सुनते ही तांत्रिक ने उसके कंधे पर अपनी भुजा से जोर देकर बैठाते हुए कहा, “यही कि यदि मैंने अनुज के यहाँ ना होने के सुबूत दे दिए तो तुझे बिना रुके इस किताब को पूरा करना होगा। वर्ना ये रात तेरी बेटी की आखिरी रात साबित हो जाएगी? बोल मंजूर है तुझे...?”

यह कहते ही तांत्रिक ने अपनी हथेली उसकी तरफ बढ़ा दी।

यह सुनते ही अखिल घबराता हुआ बोला, “हाँ...हाँ मंजूर है।

यह कहने के साथ अखिल ने अपने हाथ उसकी हथेली पर रख दिए। उसकी हथेली के तांत्रिक की हथेली से स्पर्श होते ही वह एड़ी से लेकर चोटी तक एकदम से कांप गया। उसने बिजली कि फुर्ती के साथ अपनी हथेली को पीछे खींच लिया। उससे पहले कि उसके अक्ल के घोड़े दौड़ते उस तांत्रिक ने सामने शैतान कि विशालकाय मूर्ती कि तरफ देखा। उसके चेहरे पर फिर से शैतानी हँसी बिफर गई।

तांत्रिक अपने हाथों को गोल-गोल घुमाने लगा। कुछ देर ऐसा करते ही हवाएं काफी तेज चलने लगीं। अगले ही पल अब चारों तरफ एकदम सन्नाटा पसर गया।

उस तांत्रिक ने अपने हाथों को घुमाना बंद किया। उसके ऐसा करते ही अचानक तेज हवा का झोंका आया। वह झोंका किसी चक्रवात की तरह था। वह गोल गोल घूमते हुए अपने अंदर चीजों को समाहित करता जा रहा था। वह चक्रवात इतना तेज था कि अखिल को अपनी आँखें बंद करनी पड़ गईं। बस आखिर तांत्रिक यही तो चाहता था। उसे यही पल भर का अवसर चाहिए था। उसने अपनी आँखों से उस चक्रवात को उस विशालकाय शैतान की मूर्ती के तरफ जाने का इशारा किया और वह उस तरफ जाने लगा। अगले ही पल अनुज को कुछ समझ में आता कि वह उसमें समा गया और वह चक्रवात उसे किसी अंजान मंजिल कि तरफ लेकर रवाना हो गया जिसका पता केवल उस तांत्रिक को ही था।

अखिल ने जब आँखें खोली तो देखा कि वह शैतान अपने मंसूबों में कामयाब हो चुका था और उसने बिना किसी को बताए बड़े चालाकी से अनुज को वापिस उस हवेली में पहुंचा दिया था। इससे पहले कि अखिल कुछ कहता तांत्रिक ने उसकी आँखों के सामने दो बार चुटकी बजाई और उसे उस शैतान के उस मूर्ती के तरफ देखने का इशारा किया।

उसके ऐसा करते ही आसमान में दो बार बिजली कौंधी। उस बिजली का प्रकाश इतना तेज था कि कुछ पल के लिए वह पूरा मैदान प्रकाशमान हो उठा। बिजली के कड़कते ही पहले जहां नीरव सन्नाटा पसरा हुआ था वहां कुत्तों और भेड़ियों के एक साथ रुदन से वातावरण भयावह हो चला था। एक साथ इतने कुत्तों और भेड़ियों का रोना अशुभ होता है। अचानक से वहां तेज तेज हवाओं के झोंके चलने लगे।

पूजा अब डर गई थी। वह डर कर उस तांत्रिक को बड़े ध्यान से देखने लगी। अचानक उन भेड़ियों और कुत्तों का रुदन शांत हुआ तो सफेद उजाले सी दूधिया रोशनी दिखी। वह रौशनी उस शैतान कि मूर्ती के अंदर से आ रही थी। वह रौशनी इतनी चमकीली थी कि अखिल और पूजा की आंखे चौंधिया गई।

अखिल ने देखा कि उस शैतान कि मूर्ती के पीछे कोई भी शख्स नहीं दिख रहा था। उसने इस बात कि पुष्टि के लिए अपनी बेटी पूजा कि तरफ नजर घुमाई जिसके जवाब में पूजा ने अपने सिर को ना में हिलाकर अनुज के वहाँ ना होने कि पुष्टि की। उसके ऐसा करते ही उस शैतान की विशालकाय मूर्ती पहले कि भांति हो गई। अब उससे किसी भी प्रकार का प्रकाश नहीं आ रहा था।

पूजा को भी लगा कि वह सब शायद उसके नजरों का धोखा हो क्योंकि उसने स्पष्ट तौर पर अनुज को नहीं देखा था और अब तो उसने इस बात पर अपनी स्वीकृति देकर मुहर लगा दी थी।

इधर अनुज उस विशालकाय हवाई चक्रवात के अंदर समा गया था। वह महसूस कर रहा था जैसे वो किसी कुवें कि गहराई से ऊपर कि ओर उठता जा रहा था।

ऐसी गुरुत्वहीनता उसने पहले कभी महसूस नहीं की थी। अँधेरा इतना घना था कि उसे अपना हाथ तक नहीं दिखाई दे रहा था, समय की इस धारा में वो कहाँ बहता जा रहा था यह उसे भी नहीं पता था। इससे पहले उसे इस तरह का अनुभव कभी नहीं हुआ था। वह बिल्कुल हस्तप्रबढ़ था कि आखिर यह कैसे सम्भव है?

"क्या मैं किसी अंतरिक्ष में हूँ?" अचानक उसके मुँह से निकला लेकिन कोई जवाब नहीं। बदले में उसकी ही आवाज कुछ देर तक गूँजती रही। ना जाने कितनी देर तक वो इस अनंत शून्य में तैरता रहा। थोड़ी देर बाद अनुज ने खुद को कहीं लेटा हुआ महसूस किया। उसने अपनी नजरें फेरी तो देखा कि वह तो उसी हवेली में वापिस आ चुका था। उसने अपने सिर को दोनों हाथों से जकड़ा और जोर से बोला, “ओहह! माय गॉड, हाउ कुड बी पॉसिबल? आई कान्ट बिलिव दैट!”

यह कहने के बाद वह किसी गहरी सोच में डूब गया। उसे समझ नहीं आ रहा था कि उसके साथ जो हो रहा है वह सपना है या हकीकत!

उसने कई बार अपनी आँखें बंद की और खोली इस उम्मीद में कि अगर यह सपना है तो वो टूट जाए लेकिन हर बार आँखें खुलते ही उसे उस हवेली की चारदीवारी के अंदर का वो कमरा ही दिख रहा था जिसके बिस्तर पर वह लेटा हुआ था।

इधर दूसरी तरफ अखिल के दिमाग में बहुत कुछ चल रहा था जिसे वह तांत्रिक भलीभाँति समझ रहा था। वह इस बार अखिल कि तरफ देखता हुआ बोला, “मुझे पता है तू अभी पूरी तरह संतुष्ट नहीं हुआ है और तू यही सोच रहा है ना कि अनुज यहाँ नहीं तो फिर कहाँ है?”

जवाब में अखिल ने अपनी गर्दन हिला दी। वह तांत्रिक मुस्कुराता हुआ आगे बढ़ा और उसने अखिल के सिर पर हथेली रखते हुए कहा, “अपनी आँखें कुछ पल के लिए बंद करो। मैं जो तुम्हें दिखाने की कोशिश करूंगा उसके लिए आँखें बंद होना आवश्यक है।”

यह सुनते अखिल ने अपनी दोनों आँखें बंद कर दी। आँखें बंद करते ही उसकी चेतना हवेली में जा पहुंची जहां इस वक़्त अनुज मौजूद था।

हवेली में नीरस शांति थी। अनुज समझ नहीं पा रहा था कि वो जिंदा है या यह एक डरावना सपना है। वह हिम्मत करके उठा और उसने हवेली कि खिड़की से बाहर देखने कि कोशिश की तो पाया बाहर अभी भी बारिश हो रही थी और हर तरफ़ अँधेरे का साम्राज्य विस्तार था। अभी वो इस असमंजस की अवस्था में ही था कि उसे अचानक किसी की दर्द भरी चीख सुनाई पड़ी और वो बेचैनी से उस चीख की दिशा में बढ़ने लगा।

“य... यह चीख तो ऊपर के कमरे से आ रही है? कहीं ये पूजा तो नहीं है!!! पर वो तो....। कुछ भी हो इस बार मैं कोई भी ऐसी भूल नहीं करूंगा जिसकी वजह से मैं फिर से किसी मुसीबत को गले लगा बैठूँ।”

जैसे-जैसे अनुज उस दिशा में बढ़ रहा था। वैसे ही चीखें और भी तीव्र होती जा रही थीं। उसकी धड़कन हर चीख के साथ बढ़ती जा रही थी। वह सीढ़ी के सहारे ऊपर कमरे तक आ पहुंचा था और उस कमरे का दरवाजा अंदर से बंद था। वह जैसे ही अपने हाथ आगे बढ़ाकर उस दरवाजे को खोलने को होता है कि तभी एक स्वर पीछे से आती है।

"खबरदार! ठहर जाओ।"

अनुज ने चौंक कर पीछे देखा पर चारों तरफ सिवाय अंधेरे के कुछ हासिल न हुआ। लेकिन वह कुछ पल तक लगातार उसी दिशा में देखता रहा जहां से वो वह आवाज आई थी। उसने फिर अपनी नजर वापिस उस दरवाजे पर टिकाई और उसे खोलने के लिए अपने हाथ बढ़ाए कि तभी इस बार फिर से वह आवाज उसके पीछे से आती है-

"मैंने कहाँ ना खबरदार! ठहर जाओ।"

यह सुनते ही इस बार वह बिजली कि फुर्ती से पलटता है लेकिन इस बार उसे किसी के कदमों कि आहट सुनाई देती है। वह आहट समय के साथ साथ उसके करीब होने का एहसास करवाती हैं। कि अगले ही पल वह देखकर चौंक जाता है और चीख के बोलता है, “अरे... आंटी आप और यहाँ?”

अनुज ने यह कहा ही था कि उसने देखा कि वह शख्स कोई और नहीं बल्कि पूजा कि माँ मेघा थी। उसे देखते ही अनुज के होश उड़ गए थे। उसने आज तक उनको तस्वीर में ही देखा था। उसने कभी उम्मीद नहीं कि थी कि उनसे उसकी इस तरह मुलाकात हो जाएगी, वो भी इस रहस्यमयी हवेली में लेकिन अगले ही पल उसे लगा कि ये वही तांत्रिक है जो पूजा को उठा ले गया।

मेघा बिना कुछ कहे आगे बढ़ी और तभी वह दरवाजा अपने आप खुल गया। यह देखते ही अनुज चौंक गया कि यह दरवाजा बिना हाथ लगाए कैसे खुल सकता है। वह मेघा कि तरफ देखा हुआ बोला, “मेघा आंटी...क...क्या आप सच में.... मैं जानता था कि पूजा सही कहती थी कि आप भी जीवित हो? मैं हमेशा उसे कहता था कि एक दिन उसकी मुलाकात जरूर आपसे होगी।”

जवाब में मेघा ने बिना कुछ कहने के रहस्यमयी मुस्कान दिखाकर इस बार कुछ प्रतिक्रिया दी। जैसे वह सब जानती हो कि अनुज पूजा को किस तरह से दिलासा देता था। मेघा कि मुस्कान विस्मयकारी थी। उस मुस्कान को देखकर अनुज को उस पर थोड़ा भरोसा हुआ लेकिन वह बातों का सिलसिला जारी रखना चाहता था इसलिए वह अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए बोला, “ओहह! माय गॉड इसका मतलब कि पूजा के डैडी और आप दोनों इस खतरनाक हवेली के रहस्य में भटक गए थे? मतलब पूजा सही कहती थी कि आप दोनों एक ना एक दिन जरूर वापिस आओगे?”

“श... श... श... sss…!”

उसका इतना कहना ही था कि तभी मेघा ने अपने दोनों होंठों के बीच अपनी तर्जनी उंगली को रखते हुए खामोश रहने का इशारा किया। उसके इस तरह की अजीब हरकत से अनुज अब संशय भरी नजरों से उसे देख रहा था।

अब वे दोनों उस कमरे के अंदर थे। मेघा ने सामने अलमारी की तरफ इशारा किया और अनुज को आगे बढ़कर उसे खोलने को कहा।

वह अगले ही पल उस अलमारी के पास पहुंचा। उसने देखा कि वह एक लकड़ी से बनी हुई अलमारी थी जिस पर अजीब सी कलाकृति बनी हुई थी। उस अलमारी के चारों कोने पर लाल रंग का स्वास्तिक का निशान बना हुआ था। लेकिन वह चारों के चारों स्वास्तिक के निशान उल्टे बनाए हुए थे। इस तरह उल्टे निशान का क्या मतलब था अनुज को पता नहीं था।

उसने एक गहरी सांस अंदर खींची और झटके से उस लकड़ी के अलमारी में लगे लोहे के कुंडे को खींच के खोल दिया। अलमारी के खुलते ही उसके होश फाख्ता हो गए। वह जोर से चीखा-

बचाओssss...!

यह कहता हुआ वह पछाड़ खा कर गिर पड़ा। वह अब एड़ी से लेकर चोटी तक कांप रहा था। उसकी परिस्थिति को देखकर लग रहा था जैसे उसने अलमारी में कोई भूत देख लिया हो।

वह हिम्मत करके इस बार काँपते हुए उठा और दुबारा पुष्टि करने के लिए उस तरफ नजर दौड़ाई तो देखा कि वहाँ वह इंसानी खोपड़ी अब भी मौजूद थी। उसने ध्यान से देखा तो वह इंसानी खोपड़ी और किसी की नहीं बल्कि मेघा की थी जो विक्षिप्त अवस्था मे थी।

उसने पलटकर देखा तो वहाँ मेघा उस कमरे में मौजूद नहीं थी। वह अब बुरी तरह घबरा गया था। उसे समझ में आने लगा था कि मेघा खुद उसके साथ आई थी हो ना हो उनके साथ जरूर कुछ बुरा हुआ होगा इसीलिये वह उसके हाथों से उस अलमारी को खुलवाना चाहती थी। ये सोचते ही अनुज की आँखों मे आंसू आ गये।

इधर उस तांत्रिक ने ये सब देख अखिल के सिर से हाथ हटा दिया। उसके हाथ हटाते ही अखिल जोर से चीख पड़ा, “न... नहीं वो... वो मेघा नहीं हो सकती? वो नहीं मर सकती? वो जरूर कोई छलावा है?”

मेघा के कटे सिर को देख उसे विश्वास नहीं हो रहा था कि वह मेघा थी। उसका दिल इस बात को स्वीकारने को तैयार नहीं था लेकिन इस वक़्त दिमाग पर दिल हावी था जिसकी वजह से उसे मेघा के सिर को छलावा का नाम देने कि कोशिश कर रहा था।

इससे पहले कि अखिल कोई निर्णय ले पाता तभी हवनकुंड पर उल्टी लटकी हुई पूजा चीखी, “क्या हुआ मम्मा को? बोलो ना डैडी उन्हें क्या हुआ? वो ठिक तो हैं ना?”

उसके सवाल सुनते ही अखिल भरे मन से बोला, “बेटी मैने मेघा को उसी हवेली में देखा। वो अनुज को हवेली के किसी ऊपरी कमरे में लेकर जाती है और एक पुरानी अलमारी खोलने को कहती है। अनुज जैसे ही उस लकड़ी कि अलमारी को खोलता है तो....!”

इतना कहते ही उसके शब्द बीच में ही अधूरे छूट गए। उस शैतान तांत्रिक ने अखिल के मुंह पर अपना हाथ रख दिया। वह तांत्रिक, अखिल के कान के पास अपने मुंह को लाते हुए बोला, “क्यों अपनी बेटी की जान के दुश्मन बने पड़े हो? मत भूलो कि अपनी माँ कि यह दुर्दशा सुनकर उस पर क्या बीतेगी? तुमने अनुज के सुरक्षित होने कि बात कही थी वह वादा मैंने पूरा किया और अब बारी तुम्हारी है। जल्दी से आखिरी अध्याय पूरा करो और अपनी बेटी को उसकी दुनिया में वापिस ले जाओ।”

उसने इतना कहा ही था कि तभी पूजा बोली, “डैडी बोलो ना क्या हुआ मम्मा को? वो ठीक तो हैं ना? आपने क्या देखा वहाँ अलमारी में?”