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A Dark Night – A tale of Love, Lust and Haunt - 16

हॉरर साझा उपन्यास

A Dark Night – A tale of Love, Lust and Haunt

संपादक – सर्वेश सक्सेना

भाग – 16

लेखक – अभिषेक हाडा

अखिल ने सोचते हुए कहा “पर उसके लिए एक इन्सान की चमड़ी की जरूरत है| वो कहाँ से लायेंगे|” “उसकी चिंता तुम मत करो| मेरे पास एक ताजा मुर्दा है जिसकी चमड़ी मैं तुम्हे दूंगा, तुम बस किताब लिखना शुरू करो|” तांत्रिक ने कहा|

“पर पहले तुम वादा करो कि मेरी बेटी और उसके दोस्त को कुछ नहीं होगा|”

“हाँ! तुम बेफिक्र रहो, उन्हें कुछ नहीं होगा, तुम जब तक यहाँ बैठ कर किताब लिखो, तुम्हारी बेटी और उसका दोस्त जिन्दा रहेंगे|”

“पर वो किताब लिखने के लिए मुझे उस हवेली में वापस जाना होगा| वो किताब तो हवेली में ही है|” अखिल बोला|

“हा हा हा हा, वो किताब वहां पहुचाई किसने थी ? मैंने.... और वापस भी मैं ही लाऊंगा|”- कहते हुए तांत्रिक ने अपने दोनों हाथ उठा कर कुछ मन्त्र बोलना शुरू किया तभी एक जोरदार बिजली कड़की और उसके सामने वो शैतानी किताब आ गयी|

“लो ये किताब और अब उस जगह पर बैठ कर इसे लिखना शुरू करो| जितनी जल्दी तुम उस किताब को पूरा करोगे| उतनी जल्दी तुम्हारी बेटी तुम्हे मिल जाएगी|” - उसने किताब की ओर इशारा करते हुये कहा|

और फिर अखिल तांत्रिक की बताई जगह पर आंखें बन्द कर के बैठ गया और तांत्रिक कुछ मंत्र पढ़ने लगा|

तभी एकाएक अखिल घबराते हुये बोला “ पर मुझे सूर्योदय से पहले ही पूजा को यहां से लेकर जाना है वरना हम दोनों इस पाताल लोक में ही फंस जायेंगे|”

“ हा..हा..हा...तुम बेकार की चिंता मत करो, तुम शैतान का काम कर रहे हो इसलिये सूर्योदय के बाद भी तुम दोनों को कुछ नही होगा और तुम लोग यहां से जा सकोगे| अब देर ना करो और विधी शुरू करो” तांत्रिक ने एक कुटिल मुस्कान के साथ कहा|

अखिल ने वहां पहले से रखे खून मे अपने और पूजा के खून की कुछ बूंदे मिलाईं और शैतान को समर्पित करने लगा, जिससे बाद उस शैतान की मूर्ती से एक ध्वनि निकली जिसका मतलब था कि शैतान भी अब किताब लिखवाने के लिये राजी है| अखिल के चेहरे पे एक शैतान उभरने लगा और उसकी आखें सुर्ख लाल हों गईं, उसके हांथ तेज तेज उस किताब पर चलने लगे|

उधर हवेली में अखिल के जाने के बाद अनुज डरा हुआ सा बैठा था| वो उस पल को याद कर के बार बार खुद को कोस रहा था| जब उसने पूजा को इस जगह पर आने के लिए कहा था| उसे अभी तक पता नहीं था कि पूजा कहाँ है? वो जिन्दा भी है या . . .

वो इसके आगे कुछ सोचना ही नहीं चाहता था| एक तो वैसे ही हवेली बहुत सुनसान जगह पर थी| उस पर एक के बाद एक इस घर में होने वाली रहस्यमयी घटनाओं ने उसे अन्दर तक डरा दिया था| जब तक अखिल था, उसे थोड़ी हिम्मत थी पर अब उसके जाने के बाद उसे समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या करे ?

“मुझे कुछ भी कर के इस भूतिया डरावनी हवेली से निकलना होगा| वरना शायद ये रात खत्म होते होते मैं जिन्दा न रहूँ|” अनुज ने अपने मन में सोचा|

और फिर उसने बाहर निकलने के लिए इधर उधर खोज बीन करना शुरू किया|

उसने सारे दरवाजे खिड़कियाँ खोलने की कोशिश की लेकिन पूरी ताकत लगाने के बाद भी वो उनको हिला तक न पाया|

“लगता है ये तन्त्र मन्त्र से बंद किये गये है इसलिए कुछ नहीं हो रहा है ? अब क्या करूँ?” उसने मन ही मन में खुद से कहा|

अचानक उसे याद आया किस तरह अखिल ने इस हवेली की आत्माओं को बुलाया था और उनसे मदद मांगी थी|

“एक बार मुझे भी कोशिश करना चाहिए शायद मेरे बुलाने से भी आत्माएं आ जाए|” - उसने मन में सोचा|

और उसने अपने दोनों हाथ हवा में ऊपर उठाये और फिर अखिल की कही बातो को याद कर के दोहराने लगा – “इस हवेली के कोने कोने में रहने वाली अतृप्त आत्माओ.. जागो.... जागो... मेरी मदद करो... मेरी मदद करो...मुझे तुम्हारी मदद की जरूरत है, जहाँ भी हो मेरे सामने आओ... मेरी मदद करो... जागो... जागो... |”

पर उसकी इन बातों से कुछ नहीं हुआ|

उसने बार बार इन शब्दों को दोहराया जो सब बेकार था|

उसने सोचा- “पहली बार में तो अंकल के बुलाने से भी आत्माए नहीं आई थी तो फिर मेरे बुलाने से कैसे आ सकती है?

अंकल ने तो अपने खून से कुछ आकृति बनायीं थी और फिर कुछ मन्त्र पढ़े थे पर मुझसे ये सब नहीं होगा, कहीं अच्छी आत्माओं की जगह शैतानी आत्माओं को ही न बुला लूँ, कुछ और सोचना पड़ेगा|”

मुझे एक बार ऊपर के कमरे में जा कर देखना चाहिए| शायद कुछ ऐसा मिल जाये जिससे मुझे बाहर जाने का कुछ रास्ता मिल जाये|”

अनुज ने अपने मन में सोचा और फिर वो ऊपर वाले कमरे की ओर जाने वाली सीढियो पर चलने लगा|

पर उसे अचानक ऐसा लगा कि जैसे कोई और भी उसके साथ चल रहा है| उसने खुद के कदम को रोका पर वो आवाज भी रुक गयी|

उसने फिर से चलना शुरू किया पर फिर से उसे ऐसा लगा कि कोई उसके साथ चल रहा है और इस बार वो जल्दी से भागता हुआ ऊपर के कमरे में चला गया|

उस कमरे में भी अँधेरा ही अँधेरा था पर बार बार चमकती बिजलियों से वहां कुछ देर के लिए प्रकाश हो जाता था| उसने देखा कि सामने एक बडी सी खिड़की है और उसने उसे खोलने की कोशिश की पर वो खिड़की नहीं खुली और वो एक झटके के साथ पीछे की ओर गिर गया| अचानक से उसे लगा कि खिड़की के कांच के चमकीले भाग पर किसी खतरनाक रहस्यमयी व्यक्ति का चेहरा उभरा| उसे एक पल को लगा कि जैसे कोई शैतानी चेहरा हो पर अगले ही पल वो गायब हो गया|

उसने वहां रखी एक पुरानी कुर्सी उठाई और उससे उस खिड़की को तोड़ने की कोशिश की लेकिन बार बार कोशिश करने पर भी उस खिड़की के खरोच तक नहीं आई|

उसने खिड़की के छेद में से बाहर की तरफ झाँकने की कोशिश की| बाहर केवल अँधेरा ही अँधेरा था और अचानक से उसे हवेली के चारो तरफ काले कपड़ो में लिपटे कुछ साए नजर आये| उनकी शैतानी आँखे चमक रही थी| उनके हाथ में भाले की तरह का कुछ हथियार था और वो एक झुडं बना कर वहां कुछ कर रहे थे पर उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था|

अनुज ने अपनी आँखे बड़ी कर के और ठीक से देखने की कोशिश की लेकिन अगले ही पल उनमे से एक साए की नजर उस पर पड़ गयी और वो उसे ही घूरने लगा और फिर वो हवा में उड़ा और उड़ता हुआ उसकी तरफ आ गया| जैसे कि उसकी आँख में ही भाले की नोक घुसा देगा| वो डर कर एक बार फिर पीछे की तरफ गिर गया|

थोड़ी थोड़ी देर में चमकती बिजलियों के प्रकाश में उसे अचानक वहां कमरे के पलंग के नीचे कुछ नजर आया|

अनुज ने देखा वहां कोई लेटा हुआ था जिसके पैर उसे नजर आये| उसने डरते ही पूछा- “क . .क. .कौन है वहां ? और पलंग के नीचे क्यों सो रहे हो ? और कब से सो रहे हो ?”

पर कोई जवाब नहीं आया|

“देखो तुम जो कोई भी जल्दी से बाहर आओ|” - कहते हुए उसने पलंग के नीचे झांक कर देखा|

पर उसे केवल अँधेरा ही अंधेरा नजर आया|

मैंने कहा – “बाहर निकलो मैं पहले ही बहुत डरा हुआ हूँ|”

उसने सोचा कि क्यों न इसके पैर खिंच कर इसको जगा कर देखूं|

लेकिन जब उसने ऐसा किया तो डर की वजह से वो जोर से चिल्ला उठा| उसके हाथ में केवल उसका पैर था, बाकी शरीर का हिस्सा कहाँ था? उसे समझ नहीं आया|

उसने डरते हुए उस कटे हुए पैर को दूर फेंक दिया| उसकी हिम्मत भी नहीं हुई कि वो वहां रुक कर एक बार ध्यान से देखता कि आखिर वो पैर किसका था ?

वो नीचे की तरफ भागने के लिए खड़ा हुआ पर उसे लगा की जैसी किसी ने उसका पैर पकड़ लिया हो|

पर जब उसने नीचे देखा तो उसे कोई नजर नहीं आया| वो बिना एक पल की देर किये जल्दी से सीढ़ी उतर कर नीचे आ गया|

और हांफता हुआ वहां पड़ी एक पुरानी कुर्सी पर बैठ गया| उसे याद आया कि कमरे में एक किताब रखी थी| शायद उसके अंदर कुछ हो पर जब उसने अन्दर जा कर देखा तो उसे वहां कोई किताब नहीं दिखी|

उसने पूरे कमरे में उस किताब को खोजा पर उसे किताब नहीं मिली|

तभी अचानक उसकी नजर एक दरवाजे पर पड़ी|

“ये दरवाजा पहले तो यहाँ नहीं था या हो सकता है कि डर और घबराहट में मैं इस दरवाजे की तरफ देखना ही भूल गया| एक बार इसे भी देख लेना चाहिए|” उसने खुद से कहा और उस दरवाजे की तरफ बढ़ गया|

उसके पास जाकर जोर से धक्का मारने की कोशिश की पर वो बहुत आसानी से खुल गया| उसने देखा दरवाजे के दूसरी तरफ नीचे की ओर जाने के लिए कुछ सीढियां थीं|

डरते डरते वो नीचे की तरफ उतरा तभी उसे ऐसा लगा कि जैसे एक सफेद साया सा उसके पास से गुजरा जो उसे उस दरवाजे की विपरीत दिशा मे खींच रहा था,ये वही साया था जो अखिल को हवेली में आने पर दिखा था|

पर अनुज ने इस बात को नजर अन्दाज करते हुये सोचा कि अब जा कर वो इस हवेली से बाहर निकल जायेगा पर ये उसकी भूल थी अगले ही पल वो दरवाजा धम्म की आवाज के साथ बंद हो गया|

उस जगह पर अँधेरा ही अँधेरा था| बिजलियों के चमकने से होने वाला प्रकाश भी वहां तक नहीं आ रहा था| वो अब न ऊपर जा सकता था और न नीचे|

पर फिर जैसे कोई चमत्कार हुआ|

अनुज को वहां उजाला देख कर ख़ुशी हुई| लेकिन उसकी ये ख़ुशी चंद पल से ज्यादा की नहीं थी|

क्योंकि जिन शैतानी सायों को उसने उस खिड़की से देखा था| वो वहीँ उसका इंतजार कर रहे थे| उसे देखते ही वो जोर जोर से खौफनाक हसीं हँसने लगे|

अनुज वापस दरवाजे की तरफ पहुँचने वाला था| लेकिन एक काला साया हवा में उड़ा और ठीक उसके सामने आ गया|

और फिर उसके चारो तरफ बस काले साए घुमने लगे अनुज एक जोरदार चीख के साथ बेहोश हो गया लेकिन वहां उसकी चीख सुनने वाला कोई नहीं था|

जब अनुज की आंखे खुली तो उसने खुद को एक खुली जगह पर पाया| जहाँ पर वो बेहोश पड़ा हुआ था| इस जगह पर न तो बरसात हो रही थी और न ही दूर दूर तक कोई हवेली या घर नजर आ रहा था| वो अपने सर को पकड़ते हुए बैठा और फिर उसने खुद से कहा “ये कहाँ आ गया मैं ? और मैं तो उस तहखाने के अन्दर था ?”

कुछ ही देर में उसे सब कुछ याद आ गया| उन काले सायों ने उसे पकड़ कर यहाँ फेंक दिया था| उसने चारो तरफ नजर घुमायी| वो साए अभी उसके चारो तरफ थे पर फिर तभी उसकी नजर सामने एक विशालकाय मूर्ति पर पड़ी|

वो किसी विशाल मूर्ति की पीछे की तरफ खड़ा था| जहाँ से उसकी पीठ और शरीर का पिछला हिस्सा दिखाई दे रहा था| उसकी भुजाये और पैर अत्यंत बलिष्ट दिख रहे थे| उसे लग रहा था कि जैसे वो किसी शैतान की मूर्ति है पर इस सुनसान वीरान जगह पर ये मूर्ति क्या कर रही थी और उसे इस जगह पर क्यों लाया गया था ? उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था|

वो काले साये चुपचाप शांति से खड़े उसे देख रहे| जैसे अपने लिए किसी के आदेश की प्रतीक्षा में खड़े हो कि कब उन्हें आदेश मिले और वो फिर अपना कार्य शुरू करें|

अनुज भी उन्हें चुपचाप खड़ा देख कर आश्चर्यचकित था| उसने मौका देख कर वहां से भाग जाने का सोचा क्योंकि उसे लग रहा था कि उसका मरना तो शायद अब पक्का था| वो चाहता था कि मरने से पहले एक बार अपनी जान बचाने की कोशिश कर ले|

और फिर भगवान को याद करते हुए वो बड़ी फुर्ती से वहां से भागा और भाग कर मूर्ति की पास जाकर जब उसने देखा तो उसके होश उड़ गये|

पूजा वहां हवा में लटकी हुई थी और उससे कुछ ही दूरी पर उसके डैड खून में डुबो डुबो कर भेडिये के नाखून से उस शैतानी किताब में कुछ लिख रहे थे|

वो चिल्लाया- “पूजा $$$”

पर अगले ही पल वहां काले सायों ने उसे घेर लिया और फिर वो उसे पीछे की तरफ ले गये| एक साए ने उसे गुस्से में जमीन पर फेंक दिया|

उसकी खून से चमकती आँखों को देख कर अनुज डर गया और तभी वहां पर अचानक से बिजली चमकी और फिर हवा में एक भीमकाय पुरुष उसके सामने खड़ा था| ये वही तांत्रिक था जो अखिल से वो शैतानी किताब लिखवा रहा था|

अनुज को कुछ समझ नहीं आया कि उसके साथ ये क्या हो रहा है और क्यों हो रहा है? वो बस वहां से भाग जाना चाहता था पर उन काले सायों ने उसे चारो तरफ से घेर रखा था|

उस तांत्रिक ने अपने गुलाम सायों को कुछ इशारा किया और फिर एक साथ मिल कर सभी ने अनुज को पकड़ कर धरती पर गिरा दिया और फिर दर्दभरी चीख उस सुनसान जगह पर गूंज उठी|

उधर दूसरी तरफ जब अनुज ने पूजा को पुकारा था तो उस समय पूजा ने उसकी आवाज सुन ली थी और जल्दी से उस तरफ देखा था सेकंड के दसवे हिस्से में उसे लगा था कि उसने अनुज को वहां देखा था|

पर अगले ही पल वो गायब हो गया था साथ ही उसने वहां किसी एक साये को देखा पर वो उसे पहचान नही पायी थी|

उसने चिल्ला कर कहा – “अनुज, अनुज, क्या ये तुम हो? अनुज ?”

उसकी आवाज सुन कर अखिल का ध्यान टूट गया| उसने लिखना बंद किया और पूजा से पूछा – “क्या हुआ पूजा| तुमने अनुज का नाम क्यों पुकारा ?”

“पापा मुझे लगा कि अनुज वहां है|” - पूजा ने बताया|

“पर मैं तो उसे हवेली में छोड़ कर आया हूँ वो यहाँ आ ही नहीं सकता है| ये शायद तुम्हारा वहम होगा|” - अखिल ने कहा|

“हां पर मुझे उसके साथ कुछ काले साये और वो खुद दिखा|” - पूजा ने फिर से मूर्ति के पीछे की तरफ झांकते हुए कहा|

“नहीं, ऐसा नहीं हो सकता, वो सही होगा.. तुम मुझे अभी लिखने दो| जितनी जल्दी मैं इस किताब को पूरा करूँगा| उतना जल्दी मैं तुम्हे बचा सकूंगा|” अखिल ने फिर से किताब लिखना शुरू करते हुए कहा|

पर अचानक उसका ध्यान पूजा के अंतिम वाक्य पर गया – “मुझे उसके साथ कुछ काले साये और वो खुद दिखा|”

“काले साए तो उसे यहाँ तक ला सकते है पर वो उसे यहाँ क्यों लायेंगे ? वो मेरे पीछे इसलिए पड़े थे क्योंकि ये किताब मैं ही लिख सकता हूँ और पूजा में मेरा ही अंश है पर अनुज से उन्हें क्या लेना होगा ? नहीं नहीं मैं कुछ ज्यादा ही सोच रहा हूँ? अनुज यहाँ नहीं हो सकता पर अनुज सच में यहाँ हुआ तो ....? नहीं मुझे मूर्ति की पीछे जाकर देखना होगा कि कहीं अनुज तो वहां नहीं है|”

उसने अपने मन में एक योजना बनायीं और फिर खड़ा हो गया| उसी समय उस तांत्रिक ने गुस्से में कहा – “कहाँ जा रहे हो ? तुम इस तरह से इस किताब को बीच में लिखना नहीं छोड़ सकते, इस किताब के पूरी होने के बाद ही तुम यहाँ से जा सकते हो|”

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