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A Dark Night – A tale of Love, Lust and Haunt - 7

हॉरर साझा उपन्यास

A Dark Night – A tale of Love, Lust and Haunt

संपादक – सर्वेश सक्सेना

भाग – 7

लेखक – अजय शर्मा

जैसे ही अखिल उस कुयें में कूदा तो वह बडी देर तक कुएं में नीचे ही नीचे धंसता गया। हैरानी की बात यह थी कि इसमें पानी ही नहीं था। कुछ समय बाद जब समतल जमीन आ गई तो वह वहां खड़ा होकर ‘पूजा....पूजा...’ पुकारने लगा लेकिन उसे कोई जवाब नही मिला।

अखिल कुछ सोचने लगा कि तभी उसे किसी की आहट हुई और वह उसी दिशा मे जाने लगा जहां उसने पाया कि वहां घुमावदार सीढ़ियां थीं। उन सीढ़ियों के दोनों तरफ लोग खड़े थे जिनके मुंह तो भेड़िए जैसे थे, लेकिन शरीर काले साये जैसे, जिनकी आँखें आग जैसी जल रहीं थीं।

अखिल धीरे धीरे उन घुमावदार सीढियों से होते हुये नीचे की ओर जाने लगा, हर तरफ एक सन्नाटा छाया हुआ था।

इससे पहले वो और आगे जाता उसे एक आदमी की आवाज सुनाई दी जो बेहद धीमी और डरी हुई थी “ श्श्श्श......यहां जो आया बचकर नहीं गया, वो आदमी नही राक्षस है....जो इंसानों को यहां कैद करता है।’

अखिल ने पूछा, ‘क...क....कौन राक्षस....क..कहाँ है वो ? मैं उसे देखना चाहता हूं।”

उस आदमी के पीछे से एक औरत धीरे से बोली, “ तुम उसके आने से पहले जा सकते हो तो चले जाओ।”

“ अब कहां जाऊं..? यहां तो कोई रास्ता ही दिखाई नहीं देता?” अखिल ने बेचैन होकर कहा।

“ तुम्हें नहीं पता, यह कुआं नहीं बल्कि उसी की बनाई हुई भूल भुलैय्या है। अगर भाग सकते हो तो भाग जाओ। जहां पर तुम खड़े हो, इन्हीं सीढ़ियों से नीचे उतरते जाओ। इससे ज्यादा हमें नहीं पता।” उस बेजान सी दिखने वाली औरत ने कहा।

अखिल उसकी बात सुनते ही बोला, “ तुम्हे कैसे पता कि मैं उस घर से आया हूं?”

तभी एक तीसरा आदमी बोला, “ घबराओ नहीं, यहां जितने भी लोग हैं, वो वही हैं जो पहले उस शैतानी घर मे ना जाने कैसे आ गये और बाद में यहां आकर कैद हो गए। यह उसी शैतान की चाल है जिसका असली चेहरा मधुम्खियों के छ्त्ते जैसा बेहद डरावना और घिनौना है।”

अखिल ने हैरानी से पूछा, “ तुम लोगों ने भी उसको देखा है...?”

‘वही तो है जो इंसानों को अपने मोहजाल में फांसता है और पहले उस घर मे फिर किसी तरह अंत में उन्हें इस कुएं में आने के लिए प्रेरित करता है।” उस आदमी ने बडे रहस्यमई ढंग से कहा।

अखिल को याद आया कि वह तो यहां आया था पूजा को ढूंढ़ने के लिए, तो पूजा कहां है?

वह अचानक पूछता है, “ पूजा कहां है?”

एक कैदी कहने लगा, “ पूजा.? कौन पूजा? वैसे एक बात तुम्हें बता दें कि यहां जो भी आता है, वो बचता नही.... ।”

उसकी बात सुनते ही अखिल ने कहा, “ अरे वही पूजा जो अभी-अभी यहाँ आई थी।”

ये सुनते ही उनमे से एक और बेढंगा आदमी बोला, “ यहां तो एक लंबा अरसा हो गया, कोई भी लड़की नहीं आई। हां, एक लड़की आई थी पर उसे तो आये कई साल हो गये।”

उस आदमी की बात सुनकर अखिल गुस्से से बोला, ‘क्या बकवास कर रहे हो? वो अभी बस मेरे आगे आगे ही आई है और उसके साथ मे वो शैतान तांत्रिक भी था।

अखिल उन सब लोगों की बातों को अनसुना करके पूजा को ढूँढ़ने के लिये आगे बढ़ गया तो उसे कुछ अजीब सा एहसास हुआ, वो पीछे मुड़कर देखता है तो उसका शरीर काँप जाता है, वो लोग जो अभी अखिल से बातें कर रहे थे वो कंकाल में बदल चुके थे और उनके कंकालों पर ना जाने कितने कीडे रेंग रहे थे, उनके कपडों के चीथडों से साफ साफ पता चल रहा था कि ये वही लोग थे जो अभी अभी अखिल से बात कर रहे थे।

वो डरकर आगे भागने लगा, उसे फिर वही काले जानवरों की खाल पहने लोग नजर आने लगे, उनकी तेज चीखों से अखिल का सर फटने लगा, वो पूजा के बारे मे सोच कर बहुत घबरा गया और पूजा को पुकारता हुआ आगे भागने लगा।

भागते भागते अखिल ना जाने किस चीज से टकराया और जमीन पर गिर पडा। वो जल्दी से उठकर पूजा को बचाने के लिये फिर भागने लगा पर ये क्या वो तो उसी हवेली मे आ चुका था “ प...पर ये कैसे .....मै तो उस कुयें मे था, मेरी बेटी....नहीं ..नहीं....ऐसा नही हो सकता..... ।”

अखिल जोर जोर से रोने लगा और पागलों की तरह वो कुयें को ढूंढ़ने लगा, पर उसके हाँथ सिर्फ मायूसी ही लगी तभी उसे अनुज की याद आई और वो उस कमरे मे गया जहां ना तो वो किताब थी और ना हि अनुज।

अखिल का दिल ऐसे घबरा रहा था जैसे उसे हार्ट अटैक आ रहा हो।

उसने कई कमरों मे देखा पर अनुज कहीं नही था। बाहर अभी भी मूसलाधार बारिश हो रही थी और बिजली किसी बम की तरह ग़ड्गडा रही थी। उसने गुस्से मे एक कुर्सी उठाई और घर के खिड़की दरवाजे तोड़ने लगा पर उसे इस बार भी निराशा ही मिली। वो खिड़की के काँच से बाहर जंगल में हो रही बारिश को देखने लगा और तभी उसे शीशे में उसके पीछे कोई दिखा, उसने जल्दी से पीछे मुड़कर देखा तो मेघा थी, जो अखिल के कुछ कहने से पहले ही बोल पडी “ क्या कर रहे फिर से डर गये, मै कोई भूत नही हूं, अब चलो हांथ मूंह धो लो और खाना खा लो।”

ये सुनकर वो जोर से चिल्ला पडा “ चली जाओ....चली जाओ यहां से, तुम सब शैतानों के भेजे हुये आदमी हो ....चली जाओ यहां से , तुम मेघा नही हो ....तुम मेरी मेघा नही हो सकती।” ये कहते हुये अखिल ने पास पढी टूटी हुई कुर्सी उठाई और मेघा की तरफ फेंक दी। मेघा कहीं गायब हो गई और घर मे फिर सन्नाटा हो गया। अखिल जोर जोर से रोने लगा और तभी उसे ऊपर के कमरे से कुछ आवाज सी आती सुनाई दी, ये वही कमरा था जहां अखिल को वो कटा हुया हांथ और वो षटकोण दिखा था।

वो ना चाहते हुये भी ऊपर उस कमरे मे गया जहां अनुज उस बेड पर वही शैतानी किताब लिये बैठा था। अनुज को देखकर उसको कुछ राहत मिली।

“ अरे बेटा...तुम...तुम यहां हो.. मैं तुम्हे कब से ढूंढ़ रहा हूं, पर तुम ये किताब ऊपर कैसे लाये......” अखिल ने उसके पास आते हुये कहा।

अनुज ने अखिल की बात का कोई जवाब नही दिया और ज्यों का त्यों बैठा रहा। अखिल ने जैसे ही उसके कंधे पर हाँथ रखा, अनुज की गर्दन पीछे की ओर घूम गयी, उसकी आँखे बिना पुतली की बिल्कुल सफेद थीं और चेहरा ऐसा जैसे वो ना जाने कब का मर चुका हो, वो हंसता हुआ बोला “ हा..हा...हा...हा...आ गया तू......तुझे तो आना ही था...अब चुप चाप यहां बैठ जा।”

अखिल समझ चुका था कि वो शैतान है अनुज नही इसलिये बिना कुछ कहे चुपचाप बैठ गया।

अनुज ने अपनी आंखे बन्द कीं और कुछ बुदबुदाने लगा, तभी वो किताब अपने आप खुल गयी और उसके शब्द एक सुनहरी रोशनी के साथ हवा मे उड़कर अखिल की छाती मे बने उस चिन्ह में समाने लगे जिसके बाद अखिल को अजीब अजीब से द्र्श्य दिखने लगे ....वो घबराने लगा....उसका दिमाग फटने सा लगा। उसे देखकर अनुज जोर जोर से हंसने लगा और कमरे मे स्याह अन्धेरा हो गया, अखिल को ऐसा लग रहा था जैसे वो इस अन्धेरे मे खोता जा रहा हो और फिर एकाएक रोशनी होने लगी।

उस रोशनी के उस पार सुन्दर सी पहाडियां और घने घने पेडों के बीच कुछ घर थे। इस जगह को देख कर ऐसा लग रहा था जैसे ये कोई स्वर्ग हो और इन्ही सबके एक बडी सी और सुन्दर हवेली थी जो किसी महल से कम नही थी।

“अरे छोटे मालिक .....बग्घी तैयार है” रामदास ने बग्घी संभालते हुये कहा।

“ बस आया रामदास” हवेली के अन्दर से आवाज आई।

रामदास बैठ कर गुनगुनाने लगा तभी हवेली का दरवाजा खुला और उसमे से एक लम्बा चौडा पतली मूछों वाला सुन्दर आदमी बाहर आया और उसने बग्घी में बैठते हुये कहा “ चलो रामदास वरना मेरे साथ साथ तुम्हे भी पिता जी की बातें सुननी पडेंगी।”

रामदास ने बग्घी को चलाते हुये कहा “ हाँ छोटे मालिक बस अभी पंहुचाये दिये देता हूं।”

बग्घी उन सुन्दर हरी वादियों के घुमावदार रास्तों पे दौड़ने लगी।

कुछ देर बाद अचानक बग्घी रुकी तो वो नौजवान बोला “ अरे ...क्या हुआ रामदास, बग्घी क्यों रोक दी?”

“ का बतायें मालिक ये बंजारे भी अपनी बकरिया ऐसे खुल्ला छोड़ देते हैं कि कोई जिये या मरे इन्हे का।” रामदास ने बकरी को हटाते हुये कहा।

नौजवान हंसते हुये बोला “ अरे कोई बात नही, तुम जल्दी चलो अब।”

रामदास ने बग्घी फिर शुरु कर दी और दोनों हँसते गाते हुये उन हसीन वादियों में आगे बढ़ने लगे।

बग्घी एक आलीशान हवेली के सामने आ कर रुक गयी और नौजवान जल्दी से बग्घी से उतर कर सामने बनी आलीशान हवेली मे घुस गया।

“ ये कोई वक़्त है आने का ...” ये कहते हुये जमींदार सुजान प्रताप सिंह उस नौजवान पर बरस पडे और वहां बैठे सभी लोग सहम गये।

“ तुम जमींदार सुजान सिंह के इकलौते बेटे रुद्रांश प्रताप सिंह हो, लेकिन हमारे नियमों और कानून का पालन तुम्हे भी करना होगा ....समझे तुम...अब बैठक शुरु की जाये” ये कहते हुये जमींदार ने एक बैठक शुरु कर दी।

जमींदार सुजान सिंह से पूरा गांव डरता था क्युं कि सत्ता होने के साथ साथ वो एक निर्दय और क्रूर व्यक्ति था, पर रुद्रांश उससे बिल्कुल अलग था इसलिये बाप बेटे का आमना सामना कम ही होता था।

बैठक होने के बाद वो फिर बग्घी मे बैठा और घर की ओर चल दिया। रास्ते में उन बंजारों के छोटे छोटे घर देखकर उसने रामदास से कहा “ रामदास, पिता जी चाहते हैं कि ये सारी जमीन खाली करा के इस पर अफीम की खेती शुरु की जाये, जिससे उन्हे बहुत ज्यादा मुनाफा होगा, क्या ऐसा करना सही है, अगर ऐसा हो गया तो ये कहाँ जायेंगे?”

“ अरे मालिक हम का कहें, हम तो ठहरे अंगूठा छाप...ये सब जमीदारीं की बातें हैं, हमारी समझ के बाहर हैं, ये तो बंजारें हैं मालिक कहीं और चले जायेंगे।” रामदास ने दो टूक जवाब दिया जो उसे पसन्द नही आया।

तभी अचानक फिर से बग्घी रुक गयी और रुद्रांश बग्घी से नीचे उतर कर आया तो देखा रामदास एक लड़की से तू..तू मै..मै...कर रहा था, जिसकी वेशभूषा से वो एक बंजारन सी लग रही थी।

“ देखिये ना मालिक..अब जानवर है इसे कोई कैसे सारा दिन बांध सकता है, भूल हो गयी माफी चाहते हैं” ये कहते हुये उस बंजारन ने रुद्रांश की ओर देखा तो दोनों ने अपने होश खो दिये। उस बंजारन की रूप मोहिनी देख कर तो अप्सरायें भी जल कर भस्म हो जातीं। दोनों एक दुसरे को एक टक देखते ही रहे तभी रामदास ने कहा “ अरे मालिक घर चलेंगें या यहीं कबीले में आप के लिये छ्प्पर लगवा दूं।”

रामदास की बात सुनकर दोनों झेंप गये और अपने अपने घर आ गये।

किसे पता था कि ये पल भर की मुलाकात एक दिन ऐसी प्रेम कहानी बन जायेगी जो सदियों तक याद रखी जायेगी।

रुद्रांश ने जब से उस बंजारन को देखा उसकी रातों की नींद उड़ गई, वो उससे मिलने को बेचैन रहने लगा।

कुछ दिनों बाद रुद्रांश ने गांव मे घूमते हुये उस बंजारन को उसकी सहेलियों के साथ देखा जिससे पता चला कि उसका नाम मोहिनी है और वो पेट पालने के लिये और बंजारन लड़कियों के साथ गांव के रईस लोगों के यहां काम करती है।

रुद्रांश तो उसके रूप पर पहले से ही मोहित था।

मोहिनी रोज गांव काम करने आती और वो रोज उसे छुप-छुपकर देखता रहता। मोहिनी भी देख चुकी थी कि रुद्रांश उसे रोज छुप-छुपकर देखता है लेकिन कुछ बात नहीं करता।

मोहिनी खुद हैरान थी कि यह कैसा लड़का है जो मुझसे मन ही मन प्यार तो करता है लेकिन इजहार नहीं करता ? ये सब कई महीनों तक चलता रहा और फिर एक दिन मोहिनी ने ही हारकर उससे कहा, “ कुछ दिनों के बाद हम लोग यहां से चले जाएंगे।”

रुद्रांश ने तुरंत कहा, “ क्यों..मेरा मतलब है कहां जाएंगे?”

मोहिनी ने फिर से जवाब दिया, “ भला बंजारों का भी कोई ठिकाना होता है, जहां मन किया, वहीं डेरा डाल लिया लेकिन मैंने सुना है जो रईस लोग होते हैं उनका तो डेरा भी इंसान नहीं, जमीन-जायदाद देखकर होता है।”

उसने मोहिनी की बात सुनते ही कहा, ‘तुम्हें किसने कहा?’

मोहिनी ने तुरंत जवाब दिया, ‘ऐसा देखा है मैंने। सारा दिन घूमना-फिरना होता है। बहुत से लोगों की बहुत सी कहानियां लेकर फिरते हैं हम लोग।”

मोहिनी ने इसके आगे के शब्द मुँह मे ही दबा लिये।

रुद्रांश बोला “ कहो न... क्या कहना चाहती थी? बोलते-बोलते चुप क्यों हो गई?”

“ नहीं मैं चुप नहीं हुई, ऐसे ही मेरे मुंह से कुछ उल्टे सीधे लफ्ज ना निकल जायें इस बात से डरती हूं।” मोहिनी भावुक होकर बोली।

रुद्रांश थोड़ी देर के लिए चुप हो गया और फिर बोला “ असल में मैं तुमसे.... ।” वह भी आधी बात कहकर चुप हो गया।

मोहिनी ने तुरंत कहा, ‘कहो न रुक क्यों गए?’

रुद्रांश फिर बोला, ‘असल में मैंने जिस दिन से तुम्हें देखा है, मन ही मन तुम्हें चाहने लगा हूं। पता नहीं तुम्हारी देह में कैसा आकर्षण है?’

मोहिनी उसकी बात सुनते ही बोल पडी, “ बस देह में ही आकर्षण है? तुम सारे मर्द एक ही जैसे होते हो। मैं तुम्हें कुछ और समझ बैठी थी लेकिन तुम तो बिल्कुल ही उसके उल्ट निकले। मैंने तो तुम्हें देवता समझा था लेकिन तुम भी शैतान निकले।”

रुद्रांश ने घबराते हुये कहा, “नहीं ऐसी बात नहीं है। मेरे शब्द गड़बड़ा गए तुम्हें देखकर क्योंकि मैं बहुत दिनों से तुमसे बात करने की कोशिश कर रहा था लेकिन नाकाम रहा। आज दिन आया तो मेरे तो पांव ही जमीन पर नहीं लग रहे थे। सच कहूं तो तुम पूर्णिमा का चांद हो और मैं वो चकोर जो सारी जिंदगी उस पूर्णिमा के चांद को देखता रहना चाहता हूं।”

उसकी बात सुनकर मोहिनी भावुक हो गई और बोली, “ तुम सच कहते हो? अगर ऐसा है तो बंजारे अपने प्यार के लिए जान की बाजी लगाने से भी नहीं डरते लेकिन मैं एक बंजारन हूं और तुम तो बडे रईस मालूम होते हो, हमारा मेल सम्भव नही।”

अपनी बात को विराम देकर कुछ समय बाद वह फिर से कहती है ‘अच्छा तो मैं चलती हूं, पहले ही काफी देर हो गई है। ऊपर से दिन ढलने को है। हम बंजारों का यह उसूल है कि शाम ढलने से पहले हम सब लोग अपने-अपने ठिकाने पर पहुंच जाते हैं। ठीक उन पंछीयों के समान जो शाम होते ही अपने घौसलों की तरफ लौट आते हैं।”

रुद्रांश ने कुछ सोचकर कहा “ मोहिनी मै कोई रईस खानदान का नही, मै तो बस..... ।” उसकी बात पूरी होती कि इससे पहले मोहिनी बोल पडी “ तो फिर उस दिन वो बग्घी...?”

रुद्रांश ने हंसते हुये कहा “ वो...वो तो मेरे दोस्त की थी, जो गांव के जमींदार का बेटा है, वो मन का बहुत भला है।”

ये सुनते ही मोहिनी के मन मे प्रेम के सितार बजने लगे जिन पर वो अपनी प्रेम कहानी के गीत गाने लगी और हंसते हुये बोली “ मैं भी अभी कहीं नही जा रही, बस तुम्हारे मन का भेद जानने के लिये झूठ कहा था।”

ये कहकर वो वहां से चली गई।

जैसे ही मोहिनी ने कबीले में कदम रखा तो कबीले के सरदार बहादुर ने जो उसका बाप भी था, उसने पूछा “ क्या बात है आज शाम ज्यादा ढल गई है और तुम इतनी देर से क्यों आई हो?”

सवाल सुनते ही मोहिनी ने कहा, ‘नहीं ऐसी तो कोई बात नहीं, बस आज जरा आखिर में एक ऐसा काम फंस गया, मैं चाहकर भी जल्द नहीं छोड़ सकी।

सरदार ने सुनते ही कहा, “ चल कोई बात नहीं आगे से ध्यान रखना, कबीले के नियम सबके लिये बराबर हैं...समझीं।”

अब ये दोनों प्रेमी रोज मिलने लगे और ये प्रेम कहानी बढ़ती रही।

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