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A Dark Night – A tale of Love, Lust and Haunt - 3

हॉरर साझा उपन्यास

A Dark Night – A tale of Love, Lust and Haunt

संपादक – सर्वेश सक्सेना

भाग – 3

लेखक – सोहैल सैफी

अन्धेरा होते ही अखिल को ऐसा लग रहा था जैसे किसी ने उसकी आंखों पर अपने हांथ रख दिये हों, जिससे आखें खुली होते हुये भी उसे कुछ नजर नही आ रहा था पर शुक्र था कि बिजली अभी भी कौंध कौंध कर थोडी रोशनी कर रही थी।

वो घबराकर इधर उधर अंधेरे मे उस हवेली में भटकने लगा पर उसके हाथ कुछ नही लगा। काफी देर बाद उसको एक हल्की सी रोशनी दिखी जिसके साथ किसी के रोने की आवाजें भी उसके कानों मे पडीं और वो उस रोशनी की तरफ चलता चला गया। उस रोशनी को देख कर ऐसा लग रहा था जैसे कोई दरवाजा हल्का सा खुला हो और उसके पीछे से वो हल्की रोशनी आ रही हो।

वो उस रोशनी की तरफ बढ़ता गया तभी अचानक उसने खुद को उस हवेली से बाहर पाया, जहां बारिश और तूफान का नामो निशान तक नही था। वो बहुत खुश हो गया और उसने आगे बढ् कर देखा की ये तो एक अलग ही जगह थी, अमावस्या सी भयानक रात का समय था और वो एक घने डरावने जंगल में था। वो उस घने जंगल के बीच से हो कर एक बड़े से मैदान में पहुंच गया, उसे लगा कि अब वो उस हवेली से बाहर है और आजाद है।

चलते चलते उसने दूर सामने देखा कि उस मैदान मे एक भव्य मूर्ति कुछ लोगों द्वारा पूजन के लिए निर्मित की गई है, मगर ये मूर्ति किसी देवता की नही थी बल्कि नर्क के राजा शैतान की थी। वो मूर्ति दिखने में इतनी भयंकर और डरावनी थी की किसी भी साधारण मनुष्य का उससे सीधा संपर्क प्राण घातक हो सकता था।

उस विशालकाय मूर्ति के नुकीले पंजे बेहद ही अजीब थे, उन पंजो में केवल तीन उंगलियां और एक अंगूठा था यानि मनुष्य के हाथों से बिलकुल भिन्न केवल चार उंगलियों वाला नुकीला पंजा, उस मूर्ति को घेरे कुछ लोग खड़े थे । उन लोगों ने एक खास किस्म का लिबास पहना हुआ था जो ऊपर से नीचे तक काला था, उन लोगों के चेहरे नहीं थे बल्कि उसकी जगह जानवरों के चेहरों की खाल उन्होंने पहनी हुई थी।

वहाँ उपस्थित प्रत्येक व्यक्ति के सर पर सींग थे जिससे उनका अस्तित्व और भी रूद्र और भयभीत कर देने वाला लग रहा था जिसने अखिल के भीतर एक खौफ सा पैदा कर दिया अचानक अखिल ने महसूस किया की वो मूर्ति समान जम सा गया और वो लाख चाहने पर भी हिल नहीं पा रहा था यहाँ तक की उसकी आवाज़ भी निकलनी बंद हो गई, वो किसी का भी ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने के लिए बोलने की कोशिश करता मगर वो अपना मुँह खोल ही नहीं पाता, जैसे उसके होंठ आपस में जुड़ गए थे। अखिल इस बात से समझ गया की उसके साथ जो कुछ भी हो रहा है वो किसी शक्ति द्वारा हो रहा है और वो शक्ति नहीं चाहती की अखिल इन सब में किसी प्रकार का हस्तक्षेप करे, वो चाहती है की ये सब अखिल केवल देखे।

अंत में विवशतावश वो चुपचाप खडा देखता रहा। उस स्थान पर मौजूद लोग शैतान की मूर्ति के इर्द गिर्द घूमते हुए किसी प्रकार के मंत्रो का निरंतर उच्चारण करते जा रहे थे, उस मूर्ति के मुँह से दो भाग में विभाजित घुमावदार जीभ बहार निकली हुई थी जो शैतान के दोगले स्व्भाव को दर्शा रही थी।

तभी वहाँ पर वो काले साये कुछ लोगों को लाते हुये दिखे। उन्होने सुन्दर वस्त्र और आभूषण धारण की हुई तीन महिलाओ को बंधक बनाया हुआ था, महिलाओं के वस्त्रो और आभूषणों से लग रहा था कि अखिल सदियों पहले के समय मे आ गया हो, और उन महिलाओं को किसी नवविवाहित कन्या की तरह से सजाया हुआ था।

उन तीनों महिलाओं को देख कर लग रहा था कि उन्हे किसी प्रकार का नशीला पदार्थ सेवन कराया गया था जिससे वो अपने पुरे होशो हवास में ना रहे। उन लोगों के साथ तीन नवजात शिशु भी थे जो संभवत उन तीन महिलाओं के ही थे। जिनको देख कर लग रहा था की वो इन लोगों और इनके उद्देश्य से अनजान थीं।

अब तक शैतान की पूजा करने वाले काले साये जैसे लोगों का समूह सैकड़ो की संख्या में पहुंच चुका था।

उन लोगों में से एक व्यक्ति जिसने भेड़ के चेहरे की खाल और सींग पहने हुए थे वो उन नवजात बच्चों की ओर अपने एक अन्य सदस्य की आज्ञा पा कर आगे बढा। जिस सदस्य के निर्देशों का पालन वो भेड़ के चेहरे वाला व्यक्ति कर रहा था, वहाँ उपस्थित हर एक व्यक्ति उसके अधीन था। अब वो भेड़ का चेहरा पहने हुआ आदमी उन तीन नवजात शिशु में से एक को उठाता है, जिसे देख कर बाकी के लोग मंत्रो का उच्चारण और भी अधिक ऊंची आवाज़ में करने लगे।

अपने बच्चे को किसी अज्ञात खतरे की ओर जाता देख उसकी माँ का कलेजा मानो कोई खींचे जा रहा था, वो बिन पानी की मछली की भांति झटपटा उठी और अपने बच्चे को सुरक्षित करने की कोशिश करते हुए आगे बढी, भले ही वो नशे में थी पर जब कोई माँ अपनी संतान पर खतरा आते देखती है तो अपनी पूरी शक्ति से उसके रक्षा के लिए छट पटाती है पर वहाँ खड़े अन्य लोगों ने उसको जकड़ रखा था, वो रोती बिलखती रही पर उसको किसी ने नहीं जाने दिया, उस व्यक्ति के हाथ में आया बालक भी रोने लगा जैसे वो जान गया हो की वो सुरक्षित हाथों में नहीं था।

अगले ही क्षण बालक पकड़े व्यक्ति के पास एक अन्य व्यक्ति आया जिसने दहकती आग में से एक गर्म सुलगती हुई लोहे की छड़ निकाल कर अपने हाथों में थामी हुई थी, शिशु के पास आ कर वो लोहे की छड़ पकड़ा हुआ व्यक्ति बड़ी ही निर्दयता से उस शिशु की नर्म नाजुक पीठ पर लाल अँगारे समान छड़ से कुछ गोदने लगा, इसके कारण वो नवजात शिशु असहनीय पीड़ा से तड़प तड़प कर मर गया लेकिन उसकी सहायता के लिए कोई नहीं आया और वो माँ भी अपने पुत्र की मृत्यु होते देख शोक और दुख से निढाल सी पड़ गई, जैसे उसकी आत्मा ही छीन ली गई हो।

किसी भी मनुष्य के लिए ये दृश्य दिल दहला देने वाला था मगर उन पापियों पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा, शायद वो मनुष्य ही नहीं थे केवल इतना ही नहीं उन की बर्बरता और भी अधिक निर्दई, क्रूर और हिंसक हो गई थी।

उन्होंने मनुष्य द्वारा किए जाने वाले पापों की सारी सीमाओं को लाँघ कर उस मृत बालक के शरीर से उसकी नर्म चमड़ी को दरिंदो की भांति खींच लिया और उसका सारा रक्त एक बड़े से प्याले में एकत्रित किया, फिर उस बालक की चमड़ी को वहीं जमीन पर फैला दिया, वहाँ पहले से ही कुछ और चमड़ी रखी हुई थी जो इस बात का प्रमाण थी की उनके द्वारा ये क्रूर क्रिया पहले भी कई बार की जा चुकी थी।

उसके बाद वो भेड़ की शक्ल वाला निर्दयी कठोर व्यक्ति दो अन्य साथियों को इशारा कर उसकी माँ को भी अपने पास बुला लेता है और उस महिला को नग्न कर एक धारदार छुरे से उसके जीवित रहते हुए ही उसकी चमड़ी को किसी जानवर की तरह खींचने लगता है, महिला के लिए ये पीड़ा असहनीय थी, कानो को चीर देने वाली उसकी दर्दनाक आवाज़ पुरे जंगल में गूंज उठी, किन्तु वो ना रुके।

पूरी चमड़ी उतरने के बाद भी उसके प्राण नहीं निकले, ऐसा भयानक द्र्श्य किसी की भी रूह कँपा दे सकता था लेकिन उस स्थान पर उन लोगों द्वारा ये सब किसी सामान्य कार्य की भांति किया जा रहा था फिर उस अधमरी महिला के दोनों हाथों को अलग अलग पेड़ से बांध दिया गया, उसके बाद उस समूह का प्रत्येक व्यक्ति उस महिला के पास आता और उसके मांस को अपने नाखूनों से नोच कर थोड़ा सा खाता और देखते ही देखते उस महिला के शरीर का सारा मांस वे लोग चील और गिद्धों की तरह नोच नोच कर खा गए जिसके बाद यदि कुछ शेष बचा तो केवल उस अभागी महिला का कंकाल।

एक माँ के लिए अपनी संतान की रक्षा सर्व प्रथम कर्तव्य होता है फिर भले ही उसको अपना बलिदान ही क्यों ना देना पड़े, वही माँ के समक्ष हुई संतान की मृत्यु उसके लिए प्रलय समान होती है, किन्तु इन राक्षसों द्वारा हो रहे अनुष्ठान में अपनी अभी-अभी जन्मी संतान को ऐसा कष्ट भोगते देखने से तो अच्छा वो स्वयं ही अपने हाथों से उसका गला घोंट कर उसको मार दे और उसको आने वाली अपार पीड़ा से मुक्त करे।

कुछ इसी प्रकार के विचार उन दो बची महिलाओं में से एक के मन में बैठ गया और उसने अवसर पा कर तेजी से अपनी संतान पर झपट उसके पास में पड़े एक चाकू से उसकी हत्या कर दी।

अपने अनुष्ठान में बाधा पड़ते देख वहाँ उपस्थित प्रत्येक व्यक्ति भयभीत हो गया शायद इस प्रकार से क्रिया भंग होने के कारण उनको दुष्ट परिणाम भोगने का भय था।

दो लोग आकर उस महिला को वापिस अपनी कैद में लें लेते हैं परन्तु अब वो निश्चिन्त लग रही थी, और अन्य लोगों के भीतर खलबली सी मच गई थी लेकिन उनका मुखिया एक दम स्थिर खड़ा था। जैसे कुछ अनुचित ना हुआ हो फिर वो संकेत कर उस व्यक्ति को बुलाता है जिसके चंगुल से वो महिला छूटी थी उसी की लापरवाही के कारण ये सब हुआ था।

उसके पास आते ही मुखिया उसको कुछ करने का इशारा करता है जिस पर पहले तो उस व्यक्ति की आँखे फटी की फटी रह जाती हैं लेकिन अगले ही क्षण वो अपने पास से एक नोकीला तेज धार चाकू निकाल कर अपनी छाती के बीचों बीच एक गहरा घाव बना कर अपने सीने के भीतर हाथ डाल दिया और अपना हृदय बाहर निकालने लगा पर ऐसा करते हुए उसको अपार पीड़ा होने लगी और असहनीय कष्ट के कारण वो अधमरा हो कर घुटनो के बल आ गिरा और उसका आधा हृदय ही बहार आ पाया।

मगर उसी समय मुखिया आगे बड़ा और अपने विशाल हाथों द्वारा उसके हाथों के ऊपर से अपनी पकड़ बना कर उसका हृदय उसके हाथों से ही बहार निकाल कर जोर जोर हंसने लगा।

हृदय के बाहर आते ही वो व्यक्ति वहीं जम सा गया किन्तु चमत्कारिक रूप से अब भी उसकी सांसे चल रही थी और उसका ह्रदय मुखिया के हाथों में धड़क रहा था, जिसे वो आसमान की ओर कर कुछ मंत्र पढ़ने लगा। जैसे जैसे मुखिया मन्त्र पढ़ता वैसे वैसे उस व्यक्ति का शरीर और हृदय काला होता जाता, साथ ही एक और अविश्वासनिय घटना होने लगी, जो शिशु मृत धरती पर पड़ा था उसका जमीन पर बह चूका सारा रक्त वापिस उसी के शरीर में प्रवेश करने लगा और देखते ही देखते वो शिशु पुनः जीवित हो गया, लेकिन वो व्यक्ति जिसका हृदय मुखिया के हाथों में था वो अब तक राख़ हो गया था।

इस क्रिया ने साबित कर दिया की वो माँ इन लोगों के आगे बेबस निर्बल और असहाय थी।

तभी एक खटाक की सी ध्वनि ने अखिल का ध्यान भंग कर दिया, इस अनअपेक्षित आवाज़ को सुन अखिल की दिल की धड़कन अपनी चरम सीमा पर पहुंच गई और उसका पसीना छुट गया। उसने अपनी धड़कनों पे काबू पाते हुये अपने आस पास देखा तो वो हवेली में उसी किताब के पास बैठा था, उसे समझ नही आ रहा था कि जो भी उसने देखा वो सच था या ..... ।

उसने आवाज़ आने वाली दिशा की ओर देखा तो उसको एक लकड़ी का दरवाजा अपने सामने नज़र आया जो हल्का सा खुला हुआ था वो दरवाजा कुछ इस प्रकार से बनाया हुआ था जिसके बंद होने पर ये बता पाना की वहाँ कोई दरवाजा है असंभव था। वो उस दरवाजे को खुला देख कर उस की तरफ धीरे धीरे बढ़ने लगा।

जब उसने दरवाजा खोला तो उसे नीचे जाने के लिए लकड़ी से बनी पुराने दौर की घुमावदार सीढिया दिखीं, नीचे बेहद मधम रौशनी थी जैसे कही अंदर किसी कोने में एक मोमबत्ती जल रही हो तभी अखिल को किसी महिला का सफ़ेद साया दिखा, दिखने में उसका शारीरिक ढाँचा बिल्कुल अपनी पत्नी मेघा के जैसा लग रहा था। वो समझ नहीं पा रहा था की ये उसका भ्रम है या सत्य इसलिए अखिल वो उस मेघा जैसी आकृति को पुकारने लगा पर उसे कोई जवाब नही मिला।

अखिल नीचे उतर कर उसे देखने का साहस नहीं कर पा रहा था और ना ही उसका मन उस महिला को अनदेखा करने का था। खुद की इस दुविधा में फंसा अखिल बेहद ध्यान से उस महिला को देखने लगा ताकि वो जान पाए ये मेघा है या केवल उसका भ्रम, लेकिन तभी कोई पीछे से बड़ी ही दर्द भरी डरावनी आवाज़ में उसके कान के पास आ कर चीखता है, जिसकी चीख को सुन वो दहशत से भर कर हड़बड़ी में पीछे मुड़ा और उसने अपना संतुलन खो दिया, वो उन लकड़ीयों की सीढ़ी से लुढ़क कर नीचे जा गिरा और वही बेहोश हो गया।

जब उसे होश आया तो उसने खुद को जमीन पर पीठ के बल पड़ा हुआ पाया। वो उठने की कोशिश करने लगा पर उठ नहीं पाया जैसे किसी अदृश्य शक्ति ने उसके हाथो और पैरों को जकड़ रखा हो। वो खुद को छुड़ाने की पूरी कोशिश करता पर नहीं छुड़ा पाता। इन सब घटनाओं से वो बुरी तरह डर गया, उसकी हालत किसी बेबस डरे हुए बच्चे के समान थी जो अँधेरे में भय के कारण रोने लगता है। वो इस उम्मीद से मेघा.. मेघा.. आवाज़ लगाता है कि शायद उसने जो देखा वो सच हो।

भले ही कही ना कही वो भी जानता था की मेघा का यहाँ होना असम्भव था पर वो कहते है ना किसी भी इंसान को हालातों से पहले निराशा मारती है और कई बार मरते हुए व्यक्ति का जीवन एक छोटी सी आशा के कारण ही जीवित हो जाता है और अखिल के लिए इस समय मेघा अपने संकट निवारण की एक मात्र आशा लग रही थी जो उसका जीवन बचा सके।

वो खुद को छुड़ाने का असफल प्रयास करता रहा तभी उसको अपने पास किसी का साया नजर आया और उसके भीतर ख़ुशी की लहर दौड़ पडी किन्तु वो लहर अधिक देर तक नही टिक पाई, वो कुछ ही पलों मे डर मे बदल गई क्योंकि अगले ही क्षण उन सायों की गिनती बढ़ती चली गई और एकाएक उसके इर्द गिर्द कई काले साये कुछ मंत्र पढ्ते हुये उसको घेरने लगे।

तभी उनमे में से एक साया निकल कर उसके पास आया और उसके सीने पर एक जलती हुई लोहे की छड़ से एक प्रकार का चिह्न गोद दिया जिस के दर्द के कारण अखिल जोर जोर से चीखता हुआ वापिस बेहोश हो गया।

कुछ देर बाद जब उसे होश आया तो उसने खुद को उसी किताब के पास पाया, उसको लगा कि वो किताब को पढ़ते पढ़ते सो गया था और उसने कोई भयानक सपना देखा था पर तभी वो अपनी छाती को देखता है जिस पर वो चिह्न अब भी उसकी छाती पर था, पर उसको देख कर ऐसा लग रहा था मानो वो सालों पुराना निशान हो।

वो कुछ समझ नहीं पा रहा था कि उसके साथ क्या हो रहा था। वो वापिस भाग कर उस दरवाजे की ओर जाता है पर अब वहाँ कोई दरवाजा नहीं था बस एक सपाट दीवार थी। अखिल बहुत देर तक वहाँ पर मौजूद किसी गुप्त द्वार को खोजता रहा पर सब व्यर्थ सिद्ध हुआ। आखिर कार वो थक कर वापिस उस किताब के पास आकर बैठ गया।

बाहर अब भी मुसलाधार बारिश हो रही थी और बीच बीच में बिजली की चमक और बादलो की गड़गड़ाहट इस द्रश्य को और भयावह बना रही थी। अखिल के भीतर अब उस किताब के प्रति एक विचित्र लगाव सा पैदा हो रहा था।

वो सोच में पड़ गया की वो किताब को आगे पढे या ना पढे तभी उस किताब में लिखें शब्द अपने आप बहार निकलने लगे, वो सभी शब्द अंगारो की तरह दहक रहे थे और एक एक कर उसकी छाती पर बने चिह्न में समाते जा रहे थे। उसकी आंखे ऊपर चढ़ गई और अब उसको कुछ अजीब और खौफनाक दिखने लगा।

कुछ ऐसा जिसने उसकी साँसो को तेज कर दिया।

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