A Dark Night – A tale of Love, Lust and Haunt - 8 Sarvesh Saxena द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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A Dark Night – A tale of Love, Lust and Haunt - 8

हॉरर साझा उपन्यास

A Dark Night – A tale of Love, Lust and Haunt

संपादक – सर्वेश सक्सेना

भाग – 8

लेखक – अजय शर्मा

एक दिन रुद्रांश जब घर पहुंचा तो उसके बाप ने उसके जाते ही पूछा, “ क्या बात है? आजकल मैं देख रहा हूं कि तुम घर के कामकाज में ध्यान नहीं देते और हां, कई दिन हो गए कई घरों का अभी तक लगान नहीं आया, ऊपर से वो बंजारे जमीन खाली करने को राजी नहीं। मैंने तो ये सुना है तुम बावरों की तरह फिरते रहते हो गांव में?”

रुदांश ने जवाब दिया, “ नहीं ऐसी तो कोई बात नहीं।”

“ बात तो कुछ कुछ ऐसी ही है मेरे बच्चे। चल आराम कर और खाना खाकर बैठक हवेली में आ जाना मै वहीं जा रहा हूं।”

रुद्रांश ने विनम्रतापूर्वक कहा, ‘ठीक है पिता जी।’

कुछ घंटो बाद रुद्रांश रामदास को लेकर बग्घी मे बैठा और बैठक हवेली की ओर चल दिया। वहां पहुंच कर रुद्रांश जमींदार के पास जाकर खडा हो गया।

“ चल मेरे पीछे पीछे आजा बेटा” ये कहकर दोनों हवेली के गुप्त कमरों की तरफ चल पडे। जहां घुमावदार सीढियों के पास कई लोग बँधे पडे थे।

रुद्रांश ये देखकर भयभीत हो गया पर कुछ बोला नही और एक बडे से कमरे में आ गया जहां ढंग से कुर्सियां मेज पड़े थे और बिस्तर लगा हुआ था।

‘बैठ जाओ’ जमींदार ने जैसे फरमान सा दिया।

उसके बैठते ही जमींदार ने कहा, “ देख बेटा, हम लोग जमींदार हैं हमारा रिश्ता-नाता किसी छोटे कुनबे वालों से बिल्कुल नहीं हो सकता और बंजारों से तो कतई नहीं।”

बेटा हैरानी भरी नजर से अपने पिता की तरफ देखता है और कहता है,

“ आपको किसने कहा? ऐसा तो कुछ नहीं है मेरी जिंदगी में।”

उसकी बात सुनते ही जमींदार बोला, “ देख इस गांव में परिंदा भी पर मारता है तो मेरी मर्जी से। इस गांव के कान भी मेरे हैं और आंखें भी जो हर समय सबकी हर हरकत पर नजर रखते हैं।”

रुद्रांश अपने पिता का मुंह ताकने लगा।

“ तुम अब भी उस बंजारन से मिलकर आए हो। आए हो कि नहीं? मेरी बात का जवाब दो।”

रुद्रांश झट से बोला, “ जी मिलकर आया हूं।”

‘क्यों.?’ कड़कती आवाज में जमींदार ने कहा।

‘जी मैं उससे प्यार करता हूं।’ बेटे ने जरा सकुचाते हुए कहा।

‘उससे शादी भी करना चाहते हो?’ जमींदार ने एक प्रश्न और दाग दिया।

रुद्रांश ने झट से कहा, ‘जी बिल्कुल. आपने तो मेरे दिल की बात जान ली।’

उसकी बात सुनते ही जमींदार आग बबूला होते हुए बोला, “ खबरदार आगे से ऐसी बात भी जुबान से निकाली तो तेरी जुबान खींच लूंगा। अरे, तुम्हारी शादी करूंगा तो दूर-दूर से लोग आएंगे देखने के लिए और यह बंजारन?

उससे शादी की क्या जरूरत है? ज्यादा है तो खा-पीकर छोड़ दो। जब तुम छोड़ दोगे तो उसका स्वाद बाद में हम भी चख लेंगे। मैंने सुना है बड़ा भरा हुआ बदन है उसका।”

‘पिता जी..’ रुद्रांश गुस्से में चिल्लाता है और फिर कहता है, “ क्या बकवास कर रहे हैं आप?”

जमींदार ने कड़कड़ाती हुई आवाज में कहा, “ खामोश हो जा लड़के। जो आज तक मुझसे नजर से नजर मिलाकर बात नहीं करता था, आज उस बंजारन से चंद ही मुलाकातों के बाद मुझसे कह रहा है कि मैं बकवास कर रहा हूं... और सुनो, मैं बकवास नहीं कर रहा बल्कि फरमा रहा हूं। इसी में तुम्हारी भलाई है। आज मैं तुम्हें यहां इसलिए लेकर आया हूं क्योंकि मैं तुमसे एक राज की बात करना चाहता हूं। ये सब तो चलता रहेगा, देख बेटा.... मुझे पता चला है कि गांव से कोसों दूर पहाडी पे एक तांत्रिक घोर साधना कर रहा है, वो अपनी काली शक्तियों से सब कुछ कर सकता है, मैं चाहता हूं कि उससे मैं ऐसी शक्तियाँ हासिल कर लूं जिससे ये सारा गांव मुझसे थर थर कांपे और आस पास के गाँव भी मेरे कब्जे मे हो जायें, मै और शक्तिशाली और धनवान बन जाऊं।

मेरे आदमी गए हैं, उसे लेने के लिए। वह कल तक वापस लौट आएंगे। इसलिए इस प्यार-व्यार के चक्कर को छोड़ो। हम लोग राज करेंगे राज। एक बार बस वो तांत्रिक मेरे कब्जे मे आ जाये और रही बात उस बंजारन की तो, अरे तू कहे तो रातो रात उस बंजारन को उठवाकर तुम्हारे बिस्तर पर फैंक दूं।”

“ पिता जी. बस! इसके आगे मैं एक लफ्ज भी नहीं सुनूंगा।” रुद्रांश ने तैश में आते हुए कहा।

जमींदार फिर से कड़कती हुई आवाज में बोला, “ लगता है घी सीधी उंगली से नहीं निकलेगा। इसका मतलब तो यही हुआ न कि उसे पहले मैं भोगूंगा फिर तेरे सामने फैंक दूंगा। मैं उसकी बोटी-बोटी नोच दूंगा। उसके बाद वह तुम्हारे सामने आने से भी कतराएगी।”

“ मैं कहता हूं बस कीजिए पिता जी.... इससे आगे अगर आपने कुछ भी कहा तो मैं अपनी जान दे दूंगा या आपकी जान ले लूंगा।” ये कहता हुआ वो वहां से बाहर निकल आया, और वापिस उन्ही सीढियों से बाहर जाने लगा। जिसके पास कुछ औरतें और आदमी बंधुआ मजदूरों की भांति बंधे हुए थे।

वह उनकी तरफ देखता है और कहता है ‘अगर जिंदगी रही तो मैं आप लोगों को इस कैद से छुड़वाने की कोशिश करूंगा।”

ये कहता हुआ वह तेज कदमों से हवेली से निकला और तभी उसके सामने से एक भोली भाली लड़की उस हवेली मे जाते हुये उसे उदास नजरों से देखने लगी जिसे देखकर उसे अपने पिता पे शर्म महसूस हुई, वो अपने दिल मे एक तूफान लिये हुए बग्घी मे बैठ गया।

बग्घी अन्धेरे और सन्नाटे को चीरती हुई उन पहाडियों के घुमावदार रास्तों पे दौड़ती हुई घर आ गई।

रुद्रांश घर में घुसते ही जलती हुई लालटेन को बुझा कर बिस्तर पे लेट गया। उसके मन में उसके बाप की आवाजें गूंज रही थीं। उसके सामने अचानक मोहिनी का चेहरा घूमने लगा।

उसे याद आता है, जब वह छोटा था तो बहुत सी लड़कियां और महिलाएं कई बार इस हवेली में भी आती थीं और पिता जी उन्हें लेकर अपने कमरे में जाते थे। इसी बात को लेकर मां के साथ कई बार झगड़ा भी होता था। अपनी इन्ही करतूतों को छिपाने के लिये और माँ के सवालों से बचने ले लिये उन्होने बैठक हवेली बनवाई, जहां उनकी अईयाशियां और बढ़ गयीं, तब वो छोटा था बातों को कम समझता था लेकिन याद उसे सब कुछ था। उसे ऐसा लगता है कि उसके बाप ने जरूर उसकी मां को जिंदा लाश बनाकर ही घर में रखा होगा। आखिर जिंदा लाशें कब तक जी सकती और कब तक किसी का सितम सह सकतीं? वह धीरे-धीरे सुलगती रहीं।

जिस दिन बहुत ज्यादा सुलगी होगी उस दिन उसने अपने आपको शांत करने के लिए पास ही बहती नदी में कूदकर जान दे दी। पिता को तो अफसोस भी नहीं हुआ। लड़कियों का आना-जाना तो लगा रहा। लेकिन उसने कभी परवाह नहीं की लेकिन आज तो उसके पिता ने शर्म की सारी हदें पार कर दीं तो वह कैसे सहन कर पाता? उसकी हिम्मत जवाब दे गई थी।

उसे आज भी अपनी मां की सोने की चूडियों से भरी कलाइयां याद हैं जो उसे लोरी सुनाते वक़्त खन खन बजती थीं जो उसके अन्दर के दर्द को बडी आसानी से छुपा लेतीं।

वो रात भर करवटें लेता रहा। उसकी नींद भी कहीं चांद तारों से भी दूर चली गई थी। वह फिर से मां के बारे में सोचने लगा। वह बिस्तर पर पड़ा पुकारने लगा, “ मां तुम मुझको अपने साथ क्यों नहीं ले गई? मैं समझ सकता हूं कि तुम पर क्या बीतती होगी? जब तुम्हें पता था तो इस भड़िये के पास मुझे अकेला क्यों छोड़ गई? मां सच बता रहा हूं अगर ऐसा ही चलता रहा तो पता नहीं मुझे किस दिन तुम्हारे पास आना पड़ जाए।”

यही सब सोच-सोच कर रुद्रांश का बुरा हाल हो रहा था। वह अपने बिस्तर से उठा और हवेली के बाहर आ गया। उसे बाहर कुछ राहत की सांस मिली वरना हवेली में तो उसका दम घुटने लगा था। उसके मन में पता नहीं क्या आया कि वह बग्घी पे बैठा और खुद ही आधी रात को बंजारों के कबीले की तरफ चल पड़ा।

वो वहां पहुंचा तो उसने पाया कि सारा कबीला सोया पड़ा था और उसमें दो बड़ी-बड़ी मशालें जल रही थीं। अचानक उसकी नजर कबीले के बाहर एक ऊंची पहाडी पर लगे पेड़ पर पड़ी। उसे वहां कोई साया नजर आ रहा था। वह उसे देखकर डर गया फिर भी ना जाने क्यूं उसके पास चला गया, जब वो उस साये के पास आया तो देखा वहां तो मोहिनी बैठी हुई थी। मोहिनी को देखते ही वह सब कुछ भूल गया और उसे उठाकर अपने सीने से लगा लिया और पूछने लगा, “ मोहिनी क्या बात है, सारे लोग सो रहे हैं और तुम जाग रही हो?”

मोहिनी ने फौरन कहा, ‘तुम भी तो जाग रहे हो ।’ कहते हुए उसने रुद्रांश पर अपने बाहुपाश को जोर से कस लिया।

मोहिनी ने फिर कहा, ‘ मैं चाहती हूं कि तुम सारी जिंदगी मुझे ऐसे ही कसकर पकड़े रखना। मुझे छोड़कर मत जाना। मैं तुम्हें खोना नहीं चाहती। मैं तो चाहती हूं कि सात जन्मों का साथ हो हमारा। हमें कोई अलग न कर पाए।

रुद्रांश ने उसकी बात सुनते ही कहा, “ मोहिनी तु...तुम ऐसी बातें क्युं कर रही हो, आखिर क्या बात है कहो....?”

मोहिनी बुझी लौ सी बेजान उसकी गोद मे बिना कुछ कहे ही लेट गयी।

ठंडी हवाओं के झोंके उनके बदन को जमा रहे थे और आसमान मे काले बादल उमड़ रहे थे।

रुद्रांश ने मोहिनी के सिर पर हांथ फेरते हुये कहा “ हाल तो मेरा भी तुम्हारे ही जैसा है, तुम चिंता मत करो। मैं अपने जीते जी तुम्हें अपने से अलग नहीं होने दूंगा। जो भी हमारे रास्ते में आएगा उसे मुंह की खानी पड़ेगी, भले ही वो मेरा बाप ही क्यों न हो।”

मोहिनी ने रुद्रांश को अपने गले से लगा लिया और कहा “ मुझे अपने मे समा लो .....ऐसी जगह छुपा लो कि कोई मुझे देख ना पाये” ये कहते हुये दोनों एक दुसरे के आगोश मे खो गये।

हवाओं का रुख अब और तेज हो चला था, कबीले मे जलती मशालें भी अब बुझ गयीं थीं। रुद्रांश ने उठकर मोहिनी का हाँथ पकडा और पहाडी के नीचे बहती नदी की ओर इशारा करते हुये कहा “ वहाँ चलोगी.?? तुम्हे पता है....मेरी माँ ने उस नदी मे कूदकर अपनी जान दी थी।”

रुद्रांश की बात सुनते ही वो बोली, “ ये नदियां भी ना जाने कितने लोगों को मिला देती हैं और कितनो को बिछोड़ देती हैं, चलो ना हम भी इस नदी की धार संग बह जायें दो जिस्म एक जान हो जाएं।”

दोनो घने अंधेरे मे नदी के पास चले आये, जहां पहले से ही दो किश्तियां बंधी थीं, दोनों उन्हीं में से एक किश्ती पर बैठ गये और नदी के बीचोंबीच खड़े होकर एक-दूसरे का होने की कस्में खाने लगे। उन्हें इस बात की भी खबर नहीं रही कि वहां एक बहुत बड़ा भंवर था और हवायें धीरे धीरे अब तूफान मे बदल गयीं थीं।

मोहिनी ने कहा “ ऐसा लगता है तुम पिछले जन्म में भी मेरे ही साथी थे। इस जन्म में तो हम साथ रहेंगे ही लेकिन हम लोग अगले जन्म में भी मिलेंगे।”

उसकी बात सुनते ही रुद्रांश ने कहा, “ मुझे तो किसी जन्म का नहीं पता लेकिन इतना जरूर जानता हूं कि इस जन्म में तुम केवल मेरी ही होकर रहोगी। तुम पर कोई गंदी नजर भी डालेगा तो उसकी आंखें निकाल लूंगा।” ये कहते हुये उसने मोहिनी के बदन पर अपना कसाव कस दिया।

तूफान और तेज हो जाता है जिसके साथ जोर जोर से बिजली कड़कने लगती है। मोहिनी कहती है “ लगता है भगवान भी यही चाहते हैं कि आज हम दोनों यहां से दूर चले जायें, कोई इस तूफान मे जान नही पायेगा कि हम कहां गये...... ।”

“ हम ऐसा ही करेंगे....” कहकर रुद्रांश जल्दी से नाव को हवा के रुख की ओर बढाने लगा।” बिजली फिर एक बार जोर से कड़की और बारिश होने लगी, बिजली की रोशनी मे दोनो ने देखा कि तीन-चार कश्तियां नदी में उनकी तरफ आ रही थीं।

रुद्रांश को हैरानी होती है कि भला इतनी रात और इस तूफान मे ये कश्तियां क्यों और कहां से आ रही थीं? दोनों घबरा गये और

धीरे-धीरे वे कश्तियां उनके पास आ गयीं और उनके चारों तरफ से घेरा डालकर खड़ी हो गयीं।

रुद्रांश ने पूछा, ‘कौन हैं आप लोग और क्या चाहते हैं?’

एक आवाज हवा में आती है और कहती है, ‘रुद्रांश बाबू हम लोग तुम्हारे दुश्मन नहीं है लेकिन मोहिनी हमारे हवाले कर दे।”

रुद्रांश गुस्से से बोला, ‘तुम लोगों को क्या लगता है कि तुम लोग बोलोगे और मैं कहूंगा ले जाओ मोहिनी को ?’

‘देखो हमें जबरदस्ती करने पर मजबूर न ही करो तो अच्छी बात है। नहीं तो हमें जबरदस्ती करनी पड़ेगी।’

रुद्रांश ने जवाब दिया, “ मोहिनी का जाना तो मेरी लाश से गुजर कर ही हो सकता है। जब तक मेरे शरीर में एक भी सांस जिंदा है मोहिनी को कहीं नहीं जाने दूंगा। मोहिनी मेरी है और मेरी ही रहेगी।”

तभी एक आवाज और उभरती है, ‘देखो हम लोग तुम्हें आखिरी चेतावनी दे रहे हैं चुपचाप मोहिनी को हमारे हवाले कर दो।’

रुद्रांश फिर गुस्से से बोला, ‘मेरा जवाब पहले भी वही था और अब भी वही है। मोहिनी जाएगी तो मेरी लाश से गुजर कर।’

अभी वे लोग बात कर ही रहे होते हैं कि मोहिनी जोर से चीखती है और कहती है, ‘रुद्रांश वो लोग कश्ती में चढ़ने की कोशिश कर रहे हैं।’

रुद्रांश ने देखा कि दो लोग कश्ती में चढ़ गए और जिनके हाथ में कुल्हाड़ियां थीं। उनके मुंह कपड़े से बंधे हुए थे।

रुद्रांश फिर से चीखता है, ‘देखो हमारी आपस में कोई दुश्मनी नहीं है। हमें छोड़ दो हम लोगों ने आपका क्या बिगाड़ा है?’

‘हमें नहीं मालूम हम लोग तो जो काम करने आए हैं करके ही जाएंगे ।’ आगे से जवाब उभरता है।’

उनकी बात सुनते ही रुद्रांश मोहिनी के आगे खड़ा हो गया और बोला, ‘आप लोगों को मोहिनी चाहिए ना..? तो लो मैं आपके बीच की दीवार हूं।’

तभी एक व्यक्ति रुद्रांश को धक्का मारता है और दूसरा मोहिनी पर तेजधार हथियार से वार करता है। इतने में रुद्रांश बीच में आ जाता है। वह तेज धार हथियार रुद्रांश के सिर पर लगता है और उसके सिर से खून की धारा बहनी शुरू हो जाती है जिससे रुद्रांश बेहोश होने लगता है।

इतने मे एक व्यक्ति बोला, ‘सरदार यह तो मर गया। अब जमींदार हमें नहीं छोड़ेगा। खाली हाथ जाते तो बचने का भी मौका था पर अब...., अब छोटे मालिक साथ नहीं गये तो जमींदार हमारी खाल खींच लेगा।’

दूसरा व्यक्ति पूछता है, ‘अब क्या किया जाए सरदार?’

सरदार सुनते ही कहता है, ‘अगर इसकी सांस रुक गई है तो हमारी जिंदगी भी समझो थम गई।’

वह व्यक्ति फिर कहता है, ‘सरदार इस लड़की का क्या करें?’

सरदार सुनते ही कहता है, “ पकड़ लो इसे, बना देंगे कुछ बहाना और सौंप देंगे इसको, कम से कम उनका बिस्तर ही गर्म करेगी ये और शायद हमारी भी जान बच जाये।”

ये सुनकर मोहिनी जोर से चीख पडी, पर इस तूफान मे कोई नही था जो इसकी चीख सुनता। उनमे से दो आदमी मोहिनी को दबोच कर उसे बाहों मे भरने लगे पर ना जाने मोहिनी को कहां से इतनी शक्ति आ गयी कि उसने अपने आपको छुडा लिया और उस नदी मे कूद गयी। ये देखकर वो आदमी चिल्लाने लगे “ अरे ये तो नदी के भंवर की ओर जा रही है और वो भी इस तेज बारिश मे ......” नदी मे जोर का उफान आ रहा था जैसे नदी भी आज इन दो प्रेमियों की लाचारी पर क्रोध दिखा रही हो।

उनका सरदार बोला “ अब तो ये दोनों मर गये, इस लड़के की लाश को नदी मे ही फेंक दो ... वर्ना मालिक को अगर पता चल गया तो हमारी खाल खींच लेगा, जमींदार से कह देंगे दोनों हमे चकमा देकर नदी में कूद गये और बह गये।”

उन्होने रुद्रांश को भी नदी की तेज धार मे बहा दिया। चारों ओर तूफान रह रह कर तेज हो रहा था जैसे वो इन दो प्रेमियों की मौत का गवाह बन रहा हो।

बात पूरे गांव मे फैल गई। उधर जब जमींदार को पता चला कि उसके बेटे और मोहिनी की नदी मे डूबकर मौत हो गई और तूफान के कारण उन्हें दोनों की लाश भी नहीं मिली तो वह उसके गम में पागलों जैसी हरकतें करने लगा, उसे अपने बेटे की मौत से ज्यादा दुख मोहिनी के मरने का था जिससे वो अपना बदला लेना चाहता था।

आखिर इन सबकी वजह वो मोहिनी को ही मानता था। वो अपने बेटे की मौत के प्रतिशोध में कस्में खाने लगा, ‘मैं सबको बर्बाद कर दूंगा। किसी को नहीं छोड़ूंगा पूरा कबीले मे आग लगा दूंगा वैसे भी मुझे उनकी जमीन खाली करानी है, सब मरेंगें......सब मरेंगें.... ।’

तभी जमींदार के पास दो आदमी आये और बोले “ मालिक वो तांत्रिक कह रहा है कि मै किसी का गुलाम नही, अपने जमींदार से कह दो वो खुद आये मुझसे मिलने।”

ये सुनकर जमींदार के क्रोध की आग और भड़क गई और वो बोला “ एक बार... बस एक बार मुझे शैतानी शक्तियां हासिल हो जायें फिर मै उसे भी देख लूंगा, तब तक तुम लोग जाओ और उस कबीले में आग लगा दो और उसमे रहने वाली हर लड़की को बन्दी बना कर बैठक हवेली मे कैद कर दो...अगर कोई आदमी अपना मूंह खोले तो उसे भी बन्दी बना कर ले आना।”

जमींदार के आदमी कबीले मे पहुंच गये और दोनों गुटों मे जंग होने लगी जिनमे कई लोग मारे गये, कई बन्दी बना लिये गये तो कुछ वहां से भाग गये, पर अजीब बात ये थी कि कबीले मे मोहिनी की मौत से कोई दुखी नही था, और जमींदार के बेटे के मरने से सब खुश थे।”