खिचड़ी खा (व्यंग्य)
अब सब कुछ खिचड़ी सा हो गया है याने यह समझना मुस्किल है कि कब आप समाचार देख रहे हैं और कब विज्ञापन । यह समझना भी कठिन हो गया है कि कब आप आश्वासन सुन रहे है और कब जुमले । ऐसे समय में जब चावल और दाल को अलग - अलग करना कठिन हो जाए तब खिचड़ी का महत्व बढ़ जाता है । वैसे आज -कल बाजार में सब्जी तरकारी की बढ़ी हुई कीमत के कारण भी खिचड़ी की पूछ - परख बढ़ गई है । कभी बीमारों का खाद्य समझा जाने वाला ये पकवान आज थालियों की शोभा बढ़ा रहा है ।
अब जब खिचड़ी की पूछ - परख बढ़ने लगी है तो कुछ खिचड़ीवादी लोग उसे राष्ट्रिय खाद्य घोषित करने पर जोर दे कर अपनी राष्ट्रभक्ति का परिचय देने से नहीं चूकने वाले । ऐसा ही खिचड़ी के साथ भी हुआ । वैसे खिचड़ी को राष्ट्रिय आहार घोषित करने की मांग से वे एक तीर से दो निशानें साधना चाहते थे । पहला तो यह कि हम खिचड़ीभक्त है और दूसरा यह कि हमारा विरोध करने वाले राष्ट्रद्रोही । वैसे देश में राष्ट्रभक्ति भले ही बहुत मुखर न हो तो भी देश का बच्चा बच्चा राष्ट्रभक्त है फिर भला इस विवाद में पड़ कर कौन अपने आपको राष्ट्रद्रोही कहलवाता । वैसे जब से खिचड़ीभक्त सक्रिय हुए है तब से ही बिरियानीभक्त ,दोसाभक्त और पूड़ीभक्त भी सक्रिय हो गए है । अब कई चैनलों पर रोज ही खिचड़ी ,बिरियानी ,दोसा और पूड़ी भक्तों के बीच वाद-विवाद होते और उनमें न जाने क्यों ऐसा लगता कि संचालक स्वयम् खिचड़ीभक्त है ।
बस आनन -फानन में खिचड़ी को राष्ट्रखाद्य घोषित कर दिया गया । सभी खिचड़ीभक्त झूम उठे । उस दिन उन्होंने पिज्जा,बर्गर और मुर्गे की पार्टी की । आम आदमी के लिए यह बात उतनी ही मायने रखती थी जितनी कि चुनाव के समय किसी नेता द्वारा की गई घोषणा । खिचड़ी तो खिचड़ी ही थी वही दाल और चावल को साथ-साथ उबाल कर बनाई गई खिचड़ी । वही खिचड़ी जिसको खाने के लिए पापड़, अचार , दही और घी का साथ होना जरूरी है । खिचड़ीभक्त धुन के पक्के होते है । उन्हें घोषणा से न संतोष होना था और न हुआ । उन्होने फतवा जारी कर दिया कि देश में सबको प्रतिदिन खिचड़ी खा कर राष्ट्रभक्ति का परिचय देना होगा । जो ऐसा नहीं करेगे उन्हें राष्ट्रद्रोही घोषित कर के किसी और देश भेज दिया जाएगा ।
लो साहब अब हमारे वर्मा जी परेशान है उनके तो गले से खिचड़ी का निवाला नीचे ही नहीं उतरता अब वे करें तो क्या करें । वे देश पर जान न्यौछावर करने लिए तैयार हैं परन्तु खिचड़ी खाना उन्हें गवारा नहीं है । वे बेचारे राष्ट्रभक्ति के चक्कर में घर से खिचड़ी का प्रसाद ग्रहण कर के निकले और बाहर निकल कर चार समोसे से अपना पेट भरा । खिचड़ीभक्त यहीं रूक जाते तो भी गनीमत थी । अब उनकी टोलियॉ मोहल्लों में घूमने लगी , यह टोह लेने के लिए कि कितने राष्ट्रद्रोही छुपे है । उन्हें जिस परिवार पर शक होता वे उसके चौके तक घुस जाते , पका हुआ खाना देखते और अगर चौके में खिचड़ी न मिले तो परिवार के सदस्यों की सामत ही आ जाती । याने अब सबका नारा ही हो गया ‘‘ खिचड़ी खा .......... देशभक्त बन ।’’
लाला जी के लिए खिचड़ी खाना तो दूर की बात है उन्हें तो नाम सुन कर ही उबकाईयॉ आने लगती है । उनकी धर्मपत्नि ने थाली में खिचड़ी परस दी । बस वे लाल-पीले हो गए । उनका गुस्सा सातवें आसमान पर पहुॅच गया । पत्नि ने बस इतना सा ही कहा ‘‘ खाते हो या खिचड़ीभक्तों को बुलाऊ । ’’ लाला जी ने चुपचाप थाली साफ की और उठ गए । पहले अक्सर पत्नियॉ कहा करती थी ‘‘ ऐ जी आज मूड़ नहीं है आप कहें तो खिचड़ी बना लूॅ । अब वे ही पत्नियॉ कहने लगी है ‘‘ ऐ जी आज मेरे मन में देशभक्ति की भावनाऐं हिलोरे मार रही है तो क्यों न खिचड़ी बना लूॅ । ’’ अब तो कुछ पति भी देशभक्ति की आड़ में घर का बजट बनाने के जुगाड़ में अक्सर ही खिचड़ी बनाने की फरमाईश करते रहते है ।
मुझे लग रहा है जैसे हिटलर की भक्ति जर्मनी की सीमाएँ लॉघ कर बाहर आ गई थी वैसे ही हमारे खिचड़ीभक्त सीमाऐं लॉघ कर यह ऐलान न कर दें कि बाजार में केवल और केवल खिचड़ी का सामान ही बिकेगा । होटलों में समोसे और आलू गोंड़े की जगह केवल खिचड़ी ही बिक सकेगी । फाईव स्टार होटलों के मेन्यु में एक हजार प्रकार की खिचड़ी ही होगी । भगवान भला करे अभी तक तो वे अपनी सीमाओं में ही है ।
आलोक मिश्रा मनमौजी
mishraalokok@gmail.com