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इमली की चटनी में गुड़ की मिठास - 7

भाग-7

चन्द्रेश ने लौटते समय उसकी कार में चलने का आग्रह किया।पहले तो शालिनी झिझकी पर फिर उसे लगा चन्द्रेश के साथ थोड़ा सा और वक्त बिताने को मिल रहा ये खूबसूरत मौका हाथ से जाने नहीं देना चाहिए।

छह घंटे का वो सफ़र शालिनी के जीवन का सबसे खूबसूरत सफ़र साबित हुआ! ढेर सारी बातें!किस्से,ठहाके और गीत गूंजते रहे। शालिनी को खुद पर अचरज हो रहा था कि उसके भीतर अभी ऐसी कितनी ही इच्छाएं शेष हैं जिन्हें रवि के व्यवहार ने लगभग समाप्त सा कर दिया था!

शुरुआत का सफ़र कुछ दूर तक खामोशी से गुज़रा। ठंडी हवा के झोंके शालिनी को सहलाते हुए नींद के आगोश में ले जाने ही वाले थे कि चन्द्रेश ने अपनी शादी की बात छेड़ कर शालिनी की नींद उड़ा दी।

"अच्छा!तो कब हुई थी आपकी शादी?"

"हुई थी! बस ये ही याद रखना काफ़ी है!" एक ठहाका लगाकर उसने बात आगे बढ़ाई "कुल जमा ढाई साल रही होगी शादी! मीतू के पापा पुलिस कमिश्नर थे! लाड़ प्यार में पली-बढ़ी थी। नौकर-चाकर की फौज आगे-आगे हाज़िर रहती थी।" थोड़ी देर को चुप रहा। लगा कि बीती हुई ज़िन्दगी में चला गया है! शालिनी ने भी टोका नहीं! चुपचाप उसके फिर से बात शुरू करने का इंतज़ार करती रही!

"मैं बहुत छोटे-से गाँव से हूँ। हर काम खुद करने की ऐसी आदत पड़ी हुई है कि अफसर बनने के बाद भी अपने व्यक्तिगत काम खुद ही करता हूँ। लोगों से वैसे ही मिलता जुलता हूं जैसे पहले मिलता था! अच्छा लगता है ये याद रखना कि हम कहाँ से चलकर कहाँ पहुँचे हैं! बस यही बात मीतू को पसंद नहीं थी। कहती थी 'अफसर होने से ही कुछ नहीं होता! लगना भी चाहिए कि अफसर हो!' मुझसे ये नहीं हो पाता था! मैंने बहुत गरीबी देखी है बचपन में! सूखा पड़ा था तो खेती-बाड़ी सब बर्बाद हो गई। बाबा ने शहर में छोटी-छोटी नौकरियाँ करके मुझे पढ़ा लिखा कर इस योग्य बनाया कि मैं यहाँ तक पहुँच सकूं! जानता हूँ कि छोटी छोटी नौकरी करने वालों का भी दिल होता है, स्वाभिमान होता है! मैं उन पर अफसरी दिखा ही नहीं सकता! मेरे हर अर्दली, सहायक में मुझे अपने बाबा की झलक दिखाई देती है!"

हरदम हँसते-मुस्कुराते रहने वाले चन्द्रेश का गला भर आया। शालिनी ने उसके कंधे पर हाथ रखते हुए कहा "रिलेक्स प्लीज़… हम फिर कभी बात करेंगे इस बारे में!"

"और फिर से एक मुलाक़ात का समय खराब करेंगे? नो वे! आज ही पूरी बात करेंगे!" उसने चिरपरिचित मुस्कराहट बिखेरते हुए कहा

शालिनी को भी इस अंदाज़ पर हँसी आ गई "अच्छा तो कहिए फिर क्या हुआ?"

"फिर रोज़ रोज़ तकरारें होने लगीं। बात जब तक मुझ तक सीमित थी मैं टालता रहा पर जब मीतू ने माँ-बाबा को अपने साथ रखने में आपत्ति जताई तो मुझे सोचना पड़ा! मैं उनकी एकमात्र संतान, उन्हें अपने से अलग नहीं कर सकता था!वो दोनों तो वैसे ही गाँव छोड़कर शहर लौटना नहीं चाहते थे! मेरे लिए ही तो वो शहर में टिके हुए थे।उनका एक ही सपना था, अपनी खोई हुई ज़मीन वापस पाना और बचा हुआ जीवन वहीं बिताना!समर्थ होने पर मैंने अपने गाँव में ही दो एकड़ जमीन पर फार्म हाउस बनाकर उन्हें दिया था। दोनों बहुत खुश थे। दो सहायक भी उनके साथ रख दिए थे पर वो अपने काम खुद करना ही पसंद करते थे। कहते थे जब तक हाथ-पैर चल रहे हैं,चला लें! फिर तो दूसरों से करवाना ही पड़ेगा।"

"अभी कैसे हैं वो?" अचानक शालिनी ने बीच में टोका।

"मेरी शादी टूटने के दुख से उबरे नहीं हैं! उन्हें लगता है कि मैंने उनके लिए अपनी खुशियों की कुर्बानी दे दी! कैसे समझाऊँ कि दुनिया की हर खुशी अधूरी है उनके बिना!"

उसने डैशबोर्ड में से माँ-बाबा की तस्वीर निकाल कर दिखाई।

तस्वीर देखकर शालिनी भावुक सी हो गई।वृद्ध माता-पिता कुर्सी पर बैठे हुए थे और बेटा दोनों के बीच नीचे धरती पर बैठा हुआ था! कौन कह सकता था कि ये एक आई ए एस अधिकारी का परिवार है! कोई दर्प और दिखावा नहीं! तीनों के चेहरे पर इतनी निश्छल और सहज मुस्कराहट!

"कब की तस्वीर है ये?"

"इसी दिवाली की है,जब गाँव गया था!"

"बहुत प्यारी तस्वीर है।"

"पर अधूरी है!" दर्द की लहर उठी और तुरंत ही लुप्त भी हो गई।

पर शालिनी उस लहर में भीग गई। "पूरी होगी तस्वीर एक दिन! मेरी दुआएं हैं!"

दुआएं नहीं साथ चाहिए चन्द्रेश कहना चाहता था पर धीरे से थैंक्स कहकर मुस्कुरा दिया और तस्वीर लेकर वापस डैशबोर्ड में रख दी।

"फिर क्या हुआ?" शालिनी की नींद तो उड़ ही चुकी थी।

"फिर दो साल कभी साथ रहते कभी अलग-अलग रहते आपसी सहमति से तलाक हो गया! दो साल हुए मीतू ने दूसरी शादी भी कर ली है। बॉस बहुत स्मार्ट आई पी एस अधिकारी है! अब की बार जोड़ी सही जमी है मीतू की! बहुत खुश है वो!"

"और अपने बारे में क्या सोचा है?"

"अब सोचना और प्लान करना छोड़ दिया है! जो होना होता है,हो जाता है! कब सोचा था कि जिसे इतने प्यार से ब्याह कर ला रहा था वो यूं चली जाएगी छोड़कर!"

"हम्म्… हम अच्छा सोचकर कुछ करते हैं पर ज़रूरी नहीं कि सब अच्छा हो भी!" शालिनी को अपनी शादी याद आ गई और मुंह में कड़वाहट सी महसूस होने लगी। उसने थोड़ा पानी पिया। "कितना समय और लगेगा घर पहुँचने में?"

"आपको जल्दी है क्या?"

"नहीं वो बात नहीं...बस ऐसे ही पूछ लिया!"

"आप कहें तो तेज़ चलाकर जल्दी भी पहुँचा सकता हूं!"

"आप यही रफ़्तार रखिए। घर पहुँचना है,ऊपर नहीं!" और दोनों खिलखिला कर हँस दिए।

कितने ही मौके आए पर दोनों में से कोई भी खुलकर मन की बात नहीं बोला।

"पता नहीं ये रास्ते हमेशा से इतने खूबसूरत थे या आज मुझे लग रहे हैं?" पूरी गरदन खिड़की से बाहर निकाल कर शालिनी किलक रही थी।

"आज ही हुए हैं इतने खूबसूरत!"

"अच्छा! वो क्यों?"

"हमें साथ देखकर!"

…..

"क्या हुआ? चुप क्यों हो गईं?"

"हमारे साथ होने से केवल ये सफ़र खूबसूरत हुआ है चन्द्रेश!" शालिनी की आवाज़ में कुछ गंभीरता थी।

"क्या हम हमारे जीवन का बचा हुआ सफ़र खूबसूरत बना सकते हैं?"

……

"आराम से सोचकर जवाब देना!"

ये हर बात इतनी सहजता से कैसे कह देता है? शालिनी चुपचाप सोच रही थी। हेमंत कुमार की नशीली आवाज़ में गीत बज रहा था ख़्वाब चुन रही है रात बेक़रार है…

तुम्हारा... इंतज़ार है... और चन्द्रेश साथ साथ गुनगुना रहा था।

दोनों के दिल में प्रेम पनप रहा था पर अपनी हद में,दायरे में कैद!

खिड़की पर सिर टिकाकर शालिनी को गाना सुनते हुए नींद आ गई। चन्द्रेश ने काँच चढ़ा कर एसी चला लिया जिससे उसकी नींद में वाहनों के शोर से बाधा न पड़े!

गाने की तेज़ आवाज़ से उसकी नींद टूटी तो चन्द्रेश ने फिर से वॉल्यूम कम कर दिया!

"जगाना तो नहीं चाहता था पर घर के पास आए आधा घंटा हो गया है! किरण इंतज़ार कर रही होगी। इसलिए आवाज़ बढ़ाई थी!"

"ओह चन्द्रेश! तुम इतने अच्छे कैसे हो?" शब्द भीतर ही उमड़ कर रह गए! बाहर बस एक मुस्कुराहट और थैंक्स ही निकला!

"अंदर चलिए ना!"

"अभी थक गया। फिर कभी आऊंगा! एकदम फ्रेश-फ्रेश!"

दो ठहाके गूंजते हुए एक हो गए।

क्रमशः

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