इमली की चटनी में गुड़ की मिठास - 5 Shivani Jaipur द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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इमली की चटनी में गुड़ की मिठास - 5

भाग-5

कठिन तपस्या के बाद वो भी आई ए एस अफसर बन गई।

रवि की जगह पोस्टिंग का आदेश पाकर बेहद खुश थी। पहली-पहली नौकरी थी। शालिनी सब सीख रही थी धीरे धीरे। जो जो लोग रवि को जानते थे रवि की पत्नी होने के नाते भी उसकी इज्जत करते थे और अधिकारी होने की वजह से कामकाज में भी मदद करते थे। कभी कभी सहकर्मियों से घर-परिवार की बातें भी होती रहती थी! कुल मिलाकर जीवन सही दिशा में गति पकड़ रहा था।

6-8 महीने बीतते बीतते शालिनी घर परिवार की जिम्मेदारी और नौकरी के बीच तालमेल बैठाकर सहूलियत और सलीके से सब संभालने लग गई थी। ऑफिस की दिनचर्या और कामकाज से भली भांति परिचित हो चुकी थी, अभ्यस्त हो चुकी थी। उसे लगा अब ज़िन्दगी में कुछ सुकून और ठहराव आएगा।

पर हर बार की तरह किस्मत यहाँ भी उसके लिए कुछ विशेष तय किए बैठी थी। ऑफिस में नया अधिकारी चन्द्रेश, स्थानांतरित हो कर आया। पहले दिन ही अपनी सरलता और हँसमुख स्वभाव के कारण सभी को भा गया। बराबर रैंक के होने के कारण अक्सर मीटिंग्स में मिलना होता रहता था। शालिनी भी उसके हँसमुख स्वभाव की कायल हो गई थी।

उसके आने के कुछ महीनों बाद ही शालिनी को उसके साथ एक ट्रेनिंग प्रोग्राम के लिए दिल्ली जाना पड़ा। हालांकि सरकार की ओर से फ्लाइट की सुविधा दी जा रही थी पर चन्द्रेश ने अपनी कार से जाने का ही तय किया। उसने शालिनी को भी ऑफर दिया पर शालिनी ने क्षमा सहित मना कर दिया।

शालिनी फ्लाइट से ही गई। उतरते ही उसने घर पर बात की। किरण को पहली बार इतने समय के लिए छोड़कर कहीं जा रही थी तो चिंता स्वाभाविक ही थी। पर वो तो दादा-दादी के साथ मस्त थी। मैना भी चार-छह दिन के लिए आ गई थी तो किरण की ओर से अब निश्चिंत हुआ जा सकता था।

घर बात करके निश्चिंत हो कर शालिनी ने जब एयरपोर्ट से बाहर आते ही दूर से अपने नाम की तख्ती लिए चन्द्रेश को देखा तो उस के आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा! एक बार तो मन किया कि नज़र अंदाज़ कर दे पर तकदीर को तो कुछ और ही मंजूर था! सो उसकी नज़र सीधी चन्द्रेश से टकरा गई। उसने हाथ हिलाकर अभिवादन किया और फिर उसकी ओर चल दी!

"आप यहां? मुझे लेने?" शालिनी ने आश्चर्य जताया!

"अरे भई!" उसने शालिनी से उसका सामान लेते हुए और

चिरपरिचित मुस्कराहट बिखेरते हुए आगे कहा "जब जाना एक ही जगह पर है तो अलग-अलग क्यों जाया जाए? मैं खाली गाड़ी लिए जाऊं और आप टैक्सी ढूंढती रहें! बहुत नाइंसाफी है रे!" शोले के अंदाज में डायलॉग मारकर उसने शालिनी की ओर देखकर ठहाका लगाया और पूछा "ठीक कहा ना?" मुस्कुराने के अलावा वो और कर ही क्या सकती थी! सामान डिक्की में रखकर उसने शालिनी के लिए दरवाजा खोला और एयर इंडिया के चौधरी की तरह खड़ा हो गया। बरबस ही शालिनी की हंसी फूट पड़ी। बैठने के बाद भी उसके चेहरे पर मुस्कराहट बनी हुई थी!

"अच्छा! तो आप ऐसे खुलकर भी हंसती हैं!" ड्राइविंग सीट पर बैठते हुए चन्द्रेश बोल ही पड़ा!

"आपकी बातें और हरकतें ही ऐसी थीं!" मुस्कराहट बरकरार थी। "आप को यहां देखना सचमुच बहुत सुखद आश्चर्य था! दिल्ली मेरे लिए बिल्कुल अजनबी शहर है! बहुत शुक्रिया!"

"पता है मुझे!"

"कैसे?"

"ये तो पता नहीं! पर बस पता है! शायद आपने ट्रेनिंग ऑर्डर देखते समय कहा था!"

ओह्! वो तो मैंने बस बुदबुदाया ही था और इसने सुन लिया? और यहां आ ही गया! शालिनी का मन अजीब सी खुशी से भर गया! घर-परिवार में सब कितने अच्छे हैं! सहयोगी और ख्याल रखने वाले हैं! पर फिर भी चन्द्रेश का यूं बिना कुछ कहे उसके लिए इतना सोचना और मदद करना उसे बहुत अलग और सुखद ही नहीं लगा बल्कि अंतर्मन तक भिगो गया। ऐसी खुशी उसने पहले कभी महसूस नहीं की थी। बहुत बचपन में जब पापा के साथ मेले में जाते थे तब पापा जैसे एक पल भी उंगली छोड़ते नहीं थे, बिल्कुल वैसी ही सुरक्षा और निश्चिंतता की अनुभूति आज चन्द्रेश के साथ भी महसूस हो रही थी!

उसने गाड़ी का शीशा नीचे किया और बाहर बहती ठंडी हवा को अपने चेहरे को छूने के लिए भीतर आने का जैसे निमंत्रण सा दिया! अपनी धुन में मगन वो कब कुछ गुनगुनाने भी लगी उसे खुद ही याद नहीं रहा! वो तो दिल्ली के ट्रैफिक में ढलती हुई शाम ढूंढ रही थी! और न मिल पाने पर शाम की सुंदर बेला का अपनी कल्पना में ही आनंद ले रही थी! गुनगुना रही थी… ऑफिस में इतनी कम और संतुलित बातचीत करने वाली शालिनी का ये रूप चन्द्रेश के लिए भी बिल्कुल नया और आश्चर्यचकित करने वाला था। नवंबर माह की हल्की फुल्की ठंडक लिए हुए हवा कार के भीतर शालिनी के खुले बालों से शरारतें कर रही थी। शालिनी बार-बार हाथों से बालों को इकट्ठा कर के जूड़ा बांधती और कुछ ही समय में उसके बार-बार गरदन हिला कर इधर-उधर देखने से जूड़ा ढीला पड़ कर खुल-खुल जा रहा था और फिर अंत में उसने सारे बालों को समेट कर रूमाल में कस दिया। उफ़!! चन्द्रेश का दिल भी उस रुमाल के साथ ही शालिनी के बालों में कस गया था। कसमसाहट इतनी हो रही थी कि चन्द्रेश का मन हुआ कि एक झटके में रुमाल खींच कर बालों को और खुद को मुक्त कर ले पर बस तभी उनका गंतव्य आ गया और वो गाड़ी एक तरफ रोक कर गेट पर एंट्री आदि की औपचारिकताएं पूरी करने के लिए उतर गया। शालिनी ने जगह का जायज़ा लेने के लिए इधर उधर नज़रें दौड़ाई! अच्छा हरा-भरा कैम्पस था।

औपचारिकताएं पूरी करके चन्द्रेश कार में बैठते हुए बोला "रुम नंबर 202 & 3 ...दो मेरा और तीन आपका। आप डिनर तो लेंगी ना?"

"हां! थोड़ा फ्रेश होकर ,नौ बजे तक! और आप?"

"मैं भी नहा-धोकर तैयार मिलूंगा डायनिंग हॉल में ठीक नौ बजे!"

"आप तो थक गए होंगे ना! चार-पांच घंटे की ड्राइव तो थी ही!"

"अरे ये तो कुछ भी नहीं! मैं तो रात-रात भर की ड्राइविंग करके भी मस्त रहता हूं! मैं तो हमेशा अपनी कार से ही आता-जाता हूं! जहां मन किया रुक जाओ, खाओ-पियो, चाहो तो आराम करो और फिर चल पड़ो!"

शालिनी परिवार के बारे में पूछना ही चाह रही थी कि बातों बातों में रुम तक पहुंच गए।

"सी यू देयर एट नाइन!"

शालिनी ने मुस्कुराते हुए हाथ हिलाया और कमरे में प्रवेश कर भीतर से लॉक किया।

क्रमशः