त्रिखंडिता - 15 Ranjana Jaiswal द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

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त्रिखंडिता - 15

त्रिखंडिता

15

श्यामा से आगे नहीं लिखा जाता ।हाथ में कलम लिए ही वह अतीत में खो जाती है |

अभी कुछ दिन पहले ही उसकी बहन गुड़िया ने बताया था कि उसका छोटा बेटा राम उसके पास आना तो चाहता है, पर पिता सम्राट ने उसे डरा रखा है कि शाप दे दूँगा।राम अभी तक यही मानता है कि श्यामा ने शैशवावस्था में ही उसे छोड़ दिया था। महज साल-डेढ़ साल की उम्र में । और उस समय सम्राट ने ही उसे संभाला। अकेले नहीं संभाल पाया तो दूसरी शादी की। अब राम पिता के एहसान तले खुद को दबा पाता है और नौकरी पाने के बाद पूरा वेतन उसको देकर भी उऋृण नहीं हो पा रहा है। काश, वह जानने की कोशिश करता कि वह पाँच वर्ष का था, जब सम्राट धोखे से उसे उठा ले गया था। और वह भी सिर्फ अपने पुरूष-अहंकार के कारण। तब श्यामा एम0 ए0 की परीक्षा दे रही थी, जबकि सम्राट ने सख्ती से उसकी पढ़ाई का विरोध किया था। सम्राट ऐसे संस्कारों में पला था, जिसमें स्त्री का अपना कोई मन, कोई अस्तित्व नहीं होता, व्यक्तित्व की बात तो दूर। पति की इच्छा का मान न रखने वाली स़्त्री को वह घोर पतिता मानता था, जिसे कोई भी दण्ड दिया जा सकता था। श्यामा को वह ऐसा दण्ड देना चाहता था कि वह जिन्दगी भर तड़पती रहे।वह जानता था कि श्यामा माँ भी है और एक माँ से उसके बच्चों को अलग करना सबसे बड़ा दण्ड होता है, इसलिए वह उसी दिशा में सोच रहा था। पर राम अभी पाँच साल का नहीं हुआ था, और पाँच वर्ष से पहले बच्चे को माँ से अलग करना कानूनन जुर्म था, इसलिए राम के पाँच का हो जाने का वह इंतजार करता रहा। श्याम भी सात वर्ष का होने वाला था। उन दिनों श्यामा परीक्षा की तैयारी में मशगूल थी| वह सपने में भी नहीं सोच सकती थी कि सम्राट इतनी बड़ी साजिश रच रहा है। वह तो किसी तरह अपनी परीक्षा समाप्त कर सम्राट के पास लौटने की दिशा में सोच रही थी। उसे विश्वास था कि जल्द ही सब कुछ ठीक हो जाएगा। सम्राट समझ जाएगा कि उसने अपने परिवार की भलाई के लिए पढ़ाई की है। आखिर कब तक वह अपने बच्चों के साथ अपनी माँ की मुहताज रहती? वह उनकी इकलौती संतान नहीं थी। माँ के आठ बच्चे और भी थे। पिता भी नहीं रहे थे। छोटी-सी चाय-मिठाई की दुकान के सहारे इतना बड़ा परिवार चल रहा था। वह माँ की तकलीफ समझती थी, इसलिए उसकी गालियों का बुरा नहीं मानती थी।शादी के इन दस सालों में वह सम्राट के घर मात्र दो बार गई थी, वह भी महज एक-दो महीनों के लिए और दोनों बार बेहद बीमार और गर्भवती होकर लौटी थी। तीसरी बार तो उसे भागना ही पड़ा था। पर श्यामा के दिन बहुरने का सपना तब टूट गया, जब वह उस दिन परीक्षा देकर लौटी। बच्चे घर में नहीं थे। सम्राट माँ को भरमाकर उन्हें घुमाने के बहाने ले भागा था। उसका उद्देश्य उसकी परीक्षा को डिस्टर्ब करना था। वह इस बात से आहत था कि वह मात्र बी0 ए0 है, जबकि श्यामा इस वर्ष एम0 ए0 हो जाएगी। उसके मना करने पर भी श्यामा पढ़ रही थी, यह उससे सहा नहीं जा रहा था। इतने अभावों में दो बच्चों के साथ श्यामा किस तरह पढ़ पा रही थी, वही जानती थी। एक तो पाँच वर्षों तक पढ़ाई-लिखाई से दूर रही थी, दूसरे कॉपी-किताब तक के पैसे न थे। किसी तरह अपने सोने की चेन बेचकर उसने एडमिशन लिया था। वह किसी भी हालत में पढ़ाई पूरी करना चाहती थी। सोचती थी-प्रथम श्रेणी में पास हो जाएगी, तो कहीं न कहीं लेक्चररशिप मिल जाएगी, फिर सब ठीक हो जाएगा। पर कुछ भी ठीक नहीं हुआ। बच्चों के चले जाने से वह डिस्टर्ब हो गयी, पर परीक्षा नहीं छोड़ी। एक पेपर थोड़ा खराब हो गया, जिसका असर उसके रिजल्ट और नौकरी के सपने पर पड़ा। महज दो नम्बर से उसका प्रथम श्रेणी रूक गया। सम्राट चाहता और सच्चे मन से कोशिश करता, तो वह बच्चों के पास लौट जाती, पर वह सम्राट से डरती थी। वह उसके साथ कुछ भी कर सकता था, कुछ भी। उसे सम्राट के पड़ोस की जले मुँह वाली स्त्री मीना याद आतीए जिसे उसके पति ने जलाया था और ऊपर से सभी स्त्री को ही गलत कहते थे कि दुष्चरित्र रही होगी। सम्राट की क्रूरता से वह भी दो-चार हो चुकी थी। उसे याद था कि जब उसने सम्राट की इच्छा के विरूद्व बी0 एड0 का फार्म भरा था। सम्राट ने रिश्तेदारों से दबाव डलवाकर उसे पढ़ने से रोक दिया था और भाई के साथ घर आने को कहा था। उसे जाना पड़ा था। एक तो अब उसे पढ़ना नहीं था, दूसरे उसके शैक्षिक प्रमाण पत्र सम्राट चुरा ले गया था। जब भाई के साथ श्यामा सम्राट के घर पहुँची तो वह अपनी जीत पर खुश हुआ। पर जब उसकी अनुपस्थिति में श्यामा ने उसकी सूटकेस में रखा शैक्षिक दस्तावेज भाई को देकर वापस भेज दिया, तो वह बौखला उठा और जानवरों की तरह उसकी पिटाई की। जब वह खून की उल्टी करने लगी, तब रूका। दुनिया की किसी भी लड़की को पढ़ाई की इतनी सजा ना मिली होगी।काश, राम इस बात को समझ सकता कि उसकी माँ ने किसी महत्वाकांक्षा के कारण नहीं, उसके पिता के भय के कारण वापसी का निर्णय टाला। कितना तड़पी थी वह, छटपटाई थी। जिन बच्चों को वह इतने वर्षों से अकेले सँभाल रही थी, वे ही सम्राट की बदले की भावना के भेंट चढ़ गए। सम्राट गर्भावस्था से लेकर बच्चों के सात वर्ष होने तक उसे ना तो कोई आर्थिक सहयोग कर सका था, ना भावनात्मक। वह तो जैसे बच्चों को अपना ही नहीं समझता था, समझता भी हो तो उनकी जिम्मेदारी नहीं लेना चाहता था और अब उन्हीं बच्चों का मालिक था। उसके खून से सींचे पौधों को वह जड़ सहित उखाड़ ले गया था और नफरत के जल से सींचकर बड़ा कर रहा था। उसे स्वार्थी, महत्वाकांक्षी और जाने किन-किन उपाधियों से नवाज रहा था। दस वर्षों के अभावग्रस्त वैवाहिक जीवन ने श्यामा को दिया भी तो इल्जाम, आरोप और बदनामियाँ दीं। बच्चे, जिन्हें एक-एक पल उसने संवारा था, पिता के हो गए। सम्राट ने दूसरा विवाह कर लिया, दो बच्चे और पैदा कर लिए, तब भी श्यामा के प्रति उसकी नफरत कम नहीं हुई, ना उसने बच्चों के मन से नफरत साफ करने की कोशिश की। उसके प्रति दुष्प्रचार कर वह बच्चों को भड़काता रहा। वे सारे रास्ते बंद कर दिए, जिससे होकर बच्चे उस तक पहुँच सकते थे। कहते हैं इंसान के अंदर का शैतान कभी नहीं मरता। थोड़ी-थोड़ी देर पर रूप-रंग भले बदल ले। सम्राट भी बीच-बीच में रूप बदलता। एकाध बार वह श्यामा के पास आया | उससे माफी माँगी, उसे साथ चलने को कहा। पर श्यामा उसे समझ चुकी थी। उसका असली चेहरा देख चुकी थी | पहले भी वह ऐसे ही माफी माँगकर उसे ले गया था और फिर जानवरों की तरह पीटा था। श्यामा अब कोई रिस्क नहीं लेना चाहती थी। हाँ, बच्चों के लिए वह तड़पती रहती। जब सम्राट बच्चों की बीमारी की झूठी खबर भिजवाता, तो वह खूंटा तुड़ाकर बछड़ों की तरफ भागना चाहती गाय-सी निरीह हो जाती। पर उसकी माँ उसे रोक देती। हाथ -पैर तोड़कर अपाहिज बना देगा या फिर चेहरा जलाकर बदसूरत, तब मेरे पास मत आना। वह नाग है नाग। श्यामा डर जाती, उसे वह दृश्य याद आता- जब उसने अपनी जॉघों में उसका गला फँसाकर उसकी पीठ पर जोर-जोर से मुक्के मारे थे, यह जानते हुए भी कि वह बीमार और गर्भवती है। उसने उसी दिन हैंडपैम्प के पास बैठकर उसने सिन्दूर धो डाला था, चूड़ियॉ फोड़ डाली थी और आँगन के एक कोने में सिर उघाड़ कर बैठ गयी थी। सम्राट उसके इस रूप से डर गया था, फिर भी अपनी हरकत से बाज नहीं आया था। पूरे गॉव की औरतों को बुला लाया कि देखिए सुहागन होकर भी इन्होंने कैसा वेश धारा है। औरतें श्यामा पर ही थूकने लगीं-छि: छि: :!कैसी औरत है ?अरे, पढ़े-लिखे होने का मतलब यह तो नहीं कि औरत अपना धरम भूल जाए।का गरज थी पढ़ने की, जब पति नहीं चाहता। हम तो अपने मरद से पूछे बिना एक कदम भी नहीं चलतीं.....।....श्यामा में उस वक्त ना बोलने की शक्ति थी, ना कुछ करने की। पर वह सोच रही थी कि यह कैसा समाज है ?जो स्त्रियों को इतने दबाव में रखता है कि उन्हें भी एक पीड़ित औरत से सहानुभूति नहीं होती। किसी को उसका जख्मी शरीर और घायल आत्मा नहीं दिख रही। सबको रूढ़ियों, परम्पराओं की पड़ी है। सती-मानसिकता से ग्रस्त इन औरतों को क्या पता कि कुछ घण्टे पूर्व तक वह भी सती थी? पर यदि पति की मार- गाली सहना ही सती होना है, तो नहीं कहलाना उसे सती। अब यह एक पराया पुरूष है। उसका पति नहीं हो सकता। पति का अर्थ रक्षक होता है पर यह तो उसका भक्षण करने को तैयार है। अब उसे इस आदमी से किसी भी तरह मुक्त होना है। सम्राट उसके मनोभाव समझ रहा था। उसने उसके चारों तरफ कारागार की मजबूत चारदीवारी-सी खड़ी कर दी।वह अपने पड़ोस की एक स्त्री मीना मुँहजली की कहानी जानता था | वह डर गया था कि कहीं श्यामा के जीवन में भी दूसरा पुरूष न आ जाए |

अपनो से लड़ने का दुःख क्या होता है, यह श्यामा से अधिक कौन जान सकता है ? जिस पति से वह इतना प्यार करती थी, उसी से उसे लड़ना पड़ा। क्या वह लड़ना चाहती थी ? कितना सहा था उसने। जाने कब और कैसे सम्राट के मन में इतना पुरूष अहं भर गया कि उसका प्यार कम पड़ गया। आखिर उसकी गलती क्या थी? वह आगे पढ़ना ही तो चाहती थी। वह भी तब, जब दो बच्चों के साथ इतने सालों से मायके पड़ी थी। एक-एक पैसे को मुहताज थी। सम्राट नौकरी नहीं पा सका था। अपनी माँ की मिट्टी के तेल के कोटे की दुकान की आमदनी पर आश्रित था। कभी-कभी वह माँ से पैसे झिटककर उसके पास आता, पर पैसे इधर-उधर उड़ाकर वापस चला जाता। माँ-बहनें श्यामा को कोसती कि वह सम्राट से खर्चा क्यों नहीं माँगती ? श्यामा इतनी संवेदनहीन कैसे हो जाती कि एक बेरोजगार पति से खर्च माँगती। वह और उसके बच्चे घोर अभाव में दिन गुजार रहे थे। वे सिर्फ अभाव भरे दिन ही नहीं थे, अपमान भरे दिन भी थे। माँ बार-बार उसका सामान बाहर फेंककर ससुराल चले जाने को कहती । कोसती-क्या जिंदगी भर तुम्हारा और तुम्हारे बच्चों का खर्चा उठाएंगे ? क्या इन बच्चों को मेरे भरोसे पैदा की हो ? वह रोकर रह जाती। कहाँ जाती ? सम्राट उसे अपने घर भी नहीं ले जाता था। कहता-नौकरी पा लूँगा, तो ले चलूँगा। अभी कहाँ से खाना-खर्चा चलाऊँगा? श्यामा को अपने अभाव तो कम खलते, थे पर बच्चों के अभाव नहीं देखे जाते थे। ढ़ंग के कपड़े तक उनके पास नहीं थे। खाना तो खैर किसी तरह मिल जाता, पर पाँच वर्ष का हो जाने के बाद भी वह श्याम को अच्छे स्कूल में नहीं भेज पा रही थी। छोटा राम दूध के लिए तरसता। उसी की उम्र की भाई की बेटी थी, जिसके लिए किलो भर दूध लिया जाता। भाई राम को चिढ़ाता --ले... तु.....तु.| राम दूध के लिए दौड़ताए..., तो वह दूध बेटी को दे देता। वह तड़पकर रह जाती। कैसी बदनसीब माँ है वह ! बी0 ए0 किए पाँच साल हो चुके थे। किसी ने सलाह दी बी 0 एड0 कर लो। नौकरी मिल जाएगी, तो सब ठीक हो जाएगा। बात मन को जँची, पर इन पाँच वर्षों में उसने कलम तक नहीं उठायी थी। दो साल के अन्तर पर बच्चों के जनम, उनकी परवरिश में ही सारा वक्त निकल गया था। पर अब और नहीं...| उसने बी0 एड0 का फार्म भर दिया। सम्राट इस बीच आया भी नहीं था कि उससे पूछती। वैसे भी वह सहमत नहीं होता। दोनों ने साथ ही बी0 ए0 की परीक्षा दी थी। सम्राट तो उसके बी0 ए0 करने के भी खिलाफ था। कहता- पति पत्नी एक बराबर पढ़े हुए नहीं होने चाहिए। मैं एम0 ए0 कर लूँगा, तब तुम्हें बी0 ए0 करा दूँगा। पर श्यामा जानती थी कि पढ़ाई का तार एक बार टूट गया, तो शायद वह फिर नहीं पढ़ पाए। फिर शादी की शर्त के अनुसार उसे सम्राट के आत्मनिर्भर होने तक माँ के घर ही रहना था। उसका समय कैसे कटता ? उसका बस चलता तो वह सम्राट के साथ उसके घर रहती, भले ही वह मेहनत-मजूरी करता, पर सम्राट के सपने बड़े थे।सम्राट इतना सामंती होगा, यह वह नहीं जानती थी। वह उसे अपनी मर्जी पर चलाना चाहता था। पर मायके होने के कारण उसका उस पर जोर न चला और श्यामा ने बी0 ए0 की परीक्षा दे दी। यहीं पहली गाँठ सम्राट के मन में पड़ी, जो कभी नहीं खुली। उसकी इच्छा के खिलाफ पत्नी ने बी0ए0 किया, यह सोचकर उसका पुरूष-अहं तिलमिलाता रहता। वह हमेशा उसे ताना मारताए जली-कटी सुनाता। श्यामा के दूसरे त्याग और एकनिष्ठ प्यार की उसके लिए कोई कीमत नहीं थी। श्यामा आगे ना पढ़े, इसलिए उसने दो वर्ष के अंदर ही उसे दो बच्चों की माँ बना डाला। यह भी ना सोचा कि वह बेरोजगार है, इन बच्चों की जिम्मेदारी कौन लेगा ? जानता था रो-गाकर श्यामा की माँ उन्हें पालेगी ही। सम्राट की योजना सफल हुई थी। बच्चों की परवरिश में उलझकर श्यामा अपनी पढ़ाई भूल चुकी थी। पर जिस दिन सम्राट को पता चला कि श्यामा ने बी0एड0 का फार्म भरा है तो पगला.सा गया। पहले श्यामा पर इल्जाम लगाया कि ष्किसके शह से यह कर रही होए जान रहा हूँ। तुम्हारी माँ की यह साजिश है। वह पहले तुमसे नौकरी करवाना चाहती है और फिर दूसरी शादी.....| श्यामा हतप्रभ रह गयी। सम्राट की सोच इतनी घटिया क्यों है ? वह तो सपने में भी अपने जीवन में दूसरे पुरूष का प्रवेश नहीं सोच सकती। सम्राट क्यों नहीं उसके हालात समझता? वह तो उसके हालात समझकर कभी उस पर दबाव नहीं डालती। कभी कुछ नहीं माँगती। वह सती धर्म निभाती है, पर पति की इस सनक को मानने को तैयार नहीं कि औरत को पढ़ाई या नौकरी नहीं करनी चाहिए। फिर पाँच वर्षों से उसने पढ़ाई छोड़ तो रखी है, फिर सम्राट कुछ क्यों नहीं करता ? वह दो बच्चों के साथ मायके में दुःख झेलती रहे, यह तो उसे मंजूर है, पर पढ़ाई या आत्मनिर्भर होने की कोशिश न करे।सम्राट यहीं नहीं रूका। उसने रिश्तेदारों को बुलाकर पंचायत तक करा डाली कि श्यामा बी0एड0 नहीं करेगी। माँ को छोड़कर सभी उस पर दबाव डालने लगे कि पति की बात मान लेना ही उपयुक्त है। आखिर माँ और उसे भी झुकना पड़ा। सम्राट ने सबसे कहा-मैं घर जाकर इनके रहने की व्यवस्था करता हूँ। ये भाई के साथ आ जाएँ।जाने क्यों श्यामा का मन नहीं हो रहा था कि वह ससुराल जाए। उसकी छठी इन्द्रिय कह रही थी कि कुछ बुरा होने वाला है। उसकी माँ का मन भी आगा-पीछा कर रहा था। तभी सम्राट की एक कारस्तानी देखकर माँ-बेटी चौंक पड़ी। सम्राट श्यामा के सारे अंकपत्र व प्रमाण पत्र चुरा ले गया था। श्यामा अब क्या करती। माँ ने सलाह दी-भाई के साथ चली जाओ और उसी के हाथ पढ़ाई के कागजात भेज देना। यहाँ सुरक्षित रहेगा। श्यामा को ससुराल जाना पड़ा, मन न होने पर भी। लड़की होने की विवशता पर वह रो रही थी। वह डरी हुई थी कि जाने सम्राट उसके साथ क्या करेगा ? वह उन पुरूषों में था, जो झूठी मर्दानगी के नशे में चूर रहते हैं और सारी मर्दानगी औरत पर दिखाते हैं । स्त्री की न्यायोचित व मानवीय मांग को भी नारी शक्ति का प्रदर्शन मानते हैं और उसे कुचलने के लिए साम, दाम, दण्ड, भेद सबका सहारा लेते हैं। काश, वे समझ सकते कि उनका प्यार स्त्री को उनका यूँ ही गुलाम बना सकता है।कितनी मुश्किल से वह सम्राट से मुक्त हुई थी। उसके कारागार से मुक्त होना कितना मुश्किल था, वही जानती है। उसके पिता आते तो वह मिलने नहीं देता। माँ के पत्र श्यामा तक नहीं पहुँचने पाते थे ।श्याम को भी वह अपनी माँ के पास दूसरे कस्बे रखता। वह राम के साथ उसके पुराने संसाधन-विहीन घर में अभावग्रस्त जीवन जी रही थी। वह उसे खूब प्रताड़ित करता। बात-बात पर मारता-पीटता। इसी बीच राम को डायरिया हो गया। वह परेशान हो गई। ना तो उसके पास पैसे थे, ना घर से बाहर निकलने की इजाजत । उसे रास्ता भी नहीं मालूम था। सम्राट उसे हमेशा घूँघट में ही रखता रहा था। बच्चे को इस हालत में देखकर भी सम्राट श्याम को लेकर दो दिन के लिए माँ के घर चला गया। वह खुद भी बीमार थी। उसे कुछ खाया नहीं जाता थाए सिर्फ चावल का माड़ पीकर जिन्दा थी। बच्चे की हालत बिगड़ती जा रही थी। किसी तरह एक पड़ोसन की मदद से वह राम को डॉक्टर के पास ले गई। डॉक्टर ने कहा-तुरंत जगह बदलिए। पानी ठीक नहीं है। खुली हवा, स्वच्छ पानी और दवा के साथ एहतियात बरतिए, वरना बच्चे को खो देंगी। उसने सम्राट को खबर भिजवाकर बुलाया, तो वह उल्टे उसी पर बिफर पड़ा-तुमने चौखट से बाहर कदम रखा कैसे ? जब उसने बेटे की बीमारी का वास्ता दिया, तो बोला-मेरा बेटा मर जाता, पर तुमने बाहर कदम कैसे रखा ? वह चूल्हे पर खाना बना रही थी। सम्राट के मामा.मामी अपने किशोर बेटे के साथ आए हुए थे। सम्राट बराबर उससे लड़ रहा था। लड़ते-लड़ते वह उसे मारने दौड़ा, तो उसने भी चूल्हे से जलती लकड़ी निकाल ली और खड़ी हो गयी।लकड़ी को उसने सम्राट की तरफ तान दिया। सम्राट की आँखों में धुँआ लगा तो आँख मिचमिचाते हुए पीछे हट गया। उसे उम्मीद नहीं थी कि चुपचाप मार-गाली सह लेने वाली श्यामा ऐसा प्रतिरोध भी कर सकती है। श्यामा ने यह दुस्साहस तो कर दिया पर कमजोरी और डर से कॉपने लगी। सम्राट को इस डर से बल मिला और उसने आगे बढ़कर उसके हाथ से जलती हुई लकड़ी छीनकर फेंक दी और उस पर हाथ उठाया ही था कि उसके मामा ने उसका हाथ पकड़ लिया .ष्यह क्या बदतमीजी है ? इतनी सुंदर, सुघढ़, पढ़ी-लिखी लड़की से तुम्हारा यह व्यवहार अनुचित है। खबरदार जो हमारे रहते इस पर हाथ उठाया। सम्राट तिलमिलाकर रह गया और गुस्से में फिर माँ के घर चला गया।