त्रिखंडिता
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मामा-मामी दूसरे दिन चले गए, पर उनका किशोर बेटा राम की बीमारी को देखकर रूक गया। उसे उससे सहानुभूति थी। पर सहानुभूति से ज्यादा आकर्षण था। वह एक सुंदर स्त्री को इस तरह बदहाल नहीं देख पा रहा था। श्यामा ने पहली बार अपनी स्त्री बुद्धि का इस्तेमाल किया। किशोर से प्रार्थना की कि उसे उसकी माँ के घर पहुँचा दे। किशोरों का मस्तिष्क बड़ा उर्वर होता है। उसने सम्राट के आने के पहले ही सारा इंतजाम कर दिया और वह दूसरे दिन माँ के घर आ गई। माँ के दरवाजे पर पहुँचते ही मारे खौफ, थकान और कमजोरी के वह बेहोश हो गयी थी। मरगिल्ले से राम और बेहोश बेटी को देखकर माँ फूट-फूटकर रो पड़ी और विलाप करने लगी कि उन्होंने बेटी की इच्छा के विरूद्व ससुराल भेजकर बड़ा पाप किया। इधर सम्राट घर लौटकर सदमें में आ गया। फिर उसने चारो तरफ यह बात फैला दिया कि श्यामा भाग गई। कुछ लोग मजा लेने लगेए बड़ा मर्द बनता था। पढ़ी-लिखी लड़की को गुलाम बनाकर रखा था। बाकी ने श्यामा को कोसा। सम्राट की माँ ने तो और हो-हल्ला मचाया। श्याम उनके पास था। उसे झिंझोडते हुए बोली--सुना, तेरी माँ भाग गई। श्याम रोने लगा। सात वर्ष का मासूम बच्चा क्या जानता था कि माँ के भागने की खबर उसके पूरे जीवन को नासूर बना देगी? ऐरा-गैरा, नत्थू-खैरा कभी भी उसे ताने मार सकता है। श्याम की स्मृति में वह दृश्य आज भी ताजा है। जब सब उसकी माँ को कोस रहे थे, उसे बुरा-भला कह रहे थे और वह माँ के पास जाने के लिए रो रहा था। इधर सम्राट लगातार उसे माँ से दूर रख रहा था। कोई खतरनाक योजना उसके दिमाग में थी, जो श्यामा के भाग जाने से फेल हो गई थी। उसके जैसे सामंती पुरूष के लिए यह बड़ा आघात था, अपमान था। वह जिसकी तरफ देखता, उसकी निगाहें उसे मजाक उड़ाती लगती कि-देखो, इसकी औरत भाग गई। उसकी लाख पाबंदियों, सख्त पहरे को तोड़कर एक अदना-सी सीधी-सादी लड़की निकल कैसे गई ? उसे अपने मामा-भाई पर गुस्सा आता, जो अभी तक श्यामा के मायके छिपा बैठा था। वह बौखलाहट में तमाम हरकतें कर रहा था। वह समझ गया था कि अब उसका खेल खत्म हो गया है। अब श्यामा की वापसी मुश्किल है। वह ससुराल जाकर इधर-उधर रिश्तेदारों से मिला, पर किसी ने उसको भाव ना दिया। मरणासन्न श्यामा और राम को जिसने भी देखा था, वह सम्राट की निन्दा कर रहा था। जनमत अब श्यामा के साथ था। पर जनमत बहुत जल्द सब कुछ भूल भी जाता है। जब श्यामा और राम दोनों स्वस्थ हो गए और श्यामा ने एम0 ए0 में दाखिला ले लिया, तो जनमत सम्राट के पक्ष में हो गया। सम्राट अब बच्चों को हवाला देकर श्यामा को साथ ले जाना चाहता था। वह रोता था..., बीमारी का नाटक करता था। श्याम को भी श्यामा के पास छोड़ गया था, पर श्यामा अब उस पर भरोसा नहीं कर सकती थी। श्यामा की माँ भी उसे भेजने को तैयार न थी। दो साल तक तो बिल्कुल नहीं, जब तक श्यामा एम0ए0 न कर ले। और यही तो सम्राट नहीं चाहता था। उसे श्यामा के मायके रहने से ऐतराज ना था, पर पढ़ना...। यह उसे असह्य था। उसने श्यामा को तलाक की धमकी दी। तेजाब की शीशी लेकर घूमा। बार-बार रिश्तेदारों से पंचायतें कराई। खिला-पिलाकर उसके भाई-बहनों को अपने पक्ष में कर लिया, पर श्यामा और उसकी माँ को अपने पक्ष में नहीं कर सका। माँ अपनी होनहार बेटी को नहीं खोना चाहती थी। सम्राट अब माँ के खिलाफ प्रचार करने लगा। वह उसको अपनी सबसे बड़ी शत्रु नजर आती। वह जानता था कि सिर्फ माँ ही के भरोसे श्यामा उसके खिलाफ लड़ाई लड़ रही है। श्यामा को अब भी वह कमजोर स्त्री मान रहा था।एमo एo में ही श्यामा की मुलाक़ात रमा से हुई और शीघ्र ही दोनों सहेलियाँ बन गईं | हालांकि रमा उससे पाँच साल छोटी थी | श्यामा बच्चों के कारण पाँच साल पढ़ाई में पिछड़ गयी थी | रमा के अपने संघर्ष थे उसके अपने पर स्त्री होने के कारण बहुत कुछ दोनों ने एक सा भोगा था।
टी0 वी0 पर अभिमन्यू वध देखकर श्यामा विचलित हो गई। उसने अभिमन्यू की कहानी सुनी थी, पर आँखों से साक्षात देखना बहुत पीड़ादायक था। सात महारथियों का एक साथ सोलह वर्ष के बालक को तड़पा-तड़पा कर मारना, एक बारगी ही जाने कितने दृश्य उसकी आँखों में कौंध गए। धारावाहिक का फिल्मांकन बहुत अच्छा और मर्मस्पर्शी था। अभिनेता भी अच्छे थे। वह भूल गई कि वह टी0 वी0 देख रही है। उसने देखा कि अभिमन्यू की हर चोट पर भगवान कृष्ण तड़प उठते हैं। वे घटनास्थल से काफी दूर है। अर्जुन उनको पीड़ित देख पूछता है कि-क्या आपको कहीं पीड़ा हो रही है ?भगवान कहते हैं-यह सब समय की पीड़ा है। समय को भगवान भी नहीं टाल सकता, यह बात भक्तों को अजीब लग सकती है। तो क्या उसके अपने जीवन में जो कुछ हुआ, वह समय के कारण था? एक सीधी-सादी, सती मानसिकता की लड़की आज पुरूष विरोधी और दबंग मानी जाती है। एक ममतामयी माँ निष्ठुर माँ कही जा रही है। क्या यह समय का खेल है ? और उसे भी अभिमन्यू की तरह समय की इस मार को सह लेना चाहिए। अपनी इज्जत, अपनी अस्मिता की रक्षा के लिए हर कदम पर उसे क्या-क्या ना झेलना पड़ा? एक अकेली स्त्री का पुरूष प्रधान समाज में जीना आसान नहीं होता, पर वह अकेली अभिमन्यू नहीं | उसके बच्चे भी तो अभिमन्यू की तरह लगातार लड़ते रहे हैं। किसी बच्चे के लिए इससे बड़ी गाली क्या हो सकती है कि उसकी माँ भाग गई?गनीमत यही थी कि किसी के साथ भागी- यह ठप्पा उसके पिता ने नहीं लगाया था, फिर भी उनका बचपन त्रासदीपूर्ण तो रहा ही होगा। आस-पड़ोस के बच्चे, रिश्तेदार, परिवार उनकी हर गलती को उनकी माँ से जोड़ते होंगे। जब चाहे तब तानें दे देते होंगे। कितनी तकलीफ होती होगी उन्हें, श्यामा यह जानती थी, फिर भी बच्चों की रक्षा या हिमायत में सामने ना आ सकी। वह सोचती है सम्राट क्या बच्चों की इस पीड़ा को नहीं समझते थे ? खूब समझते रहे होंगे और इस अवसर को उपयुक्त जानकर बच्चों के मन में और घृणा भरते होंगे। राम को तो और भी हर बात पर माँ का ताना मिला होगा क्योंकि वह रूप-रंग में माँ पर पड़ा था। उसके स्वभाव में भी माँ की झलक थी।
दुर्योधन का अभिमान, उसकी निर्ममता को देख श्यामा को सम्राट की याद आ रही थी। दुर्योधन कहता है-अभिमन्यू को जल्दी नहीं मारना है। उसे इतने घाव, इतनी पीड़ा देनी है कि पांडवों का मनोबल टूट जाए। अभिमन्यू को तड़पता देख उसे आनंद मिलता है। सम्राट भी तो उसे प्रताड़ित कर खुश होता था। समीप थी तब भी, अलग हो गई तब भी। क्यों ? क्या यह भी समय का दबाव था ? अब वही सम्राट दूसरी स्त्री के साथ ठीक ढ़ंग से रह रहा है। क्या उसकी ही किस्मत खराब थी? दुर्योधन खुद को सही साबित करने के लिए कहता है-भीम ने मेरे भाइयों को मारकर जो पीड़ा मुझे दी, उतनी ही पीड़ा अभिमन्यू को तड़पा-तड़पा कर दूँगा, ताकि पांडव टूट जाएॅ अपने बदले के लिए बालकों का इस्तेमाल क्या हमारी संस्कृति का हिस्सा रहा है ?सम्राट उसे प्रेम से जीत सकता था, पर वह बच्चों को मोहरा बनाकर, उसके स्वत्व को कुचलकर जीतना चाहता था। वह आहत था कि उसकी बीबी भाग गई। वह समाज में मुँह दिखाने लायक नहीं बचा। पर यह परिस्थिति भी तो उसी ने पैदा की थी और फिर यह प्रचार भी तो उसी ने किया था कि उसकी पत्नी भाग गई। वह यह सच भी तो कह सकता था कि बच्चे के इलाज के लिए अपनी माँ के घर गई है।उसने तो श्यामा के लौटने का रास्ता ही बंद कर दिया। इसके बाद भी उसका अभिमान तृप्त नहीं हुआ तो बच्चों को छीन लिया। श्यामा को तिल-तिल मारने के लिए उसने ऐसा किया, पर क्या ऐसा करके उसने बच्चों का भला किया? अपने अहंकार में उसने बच्चों को भी होम कर दिया। गनीमत रही कि उसने समाज को दिखाने के लिए ही सही बच्चों को ठीक परवरिश व शिक्षा दी। वैसे भी बच्चों में श्यामा का रक्त दौड़ रहा था। वे बुरे बन ही नहीं सकते थे। पर क्या सम्राट ने ऐसा वातावरण नहीं बना दिया था, जिसमें बच्चे गलत हो सकते थे? एक तो माँ की गाली, दूसरी सौतेली माँ, फिर सौतेले भाइयों का दंश सहते बच्चे अगर लायक बने तो क्या सिर्फ इसलिए नहीं कि श्यामा ने किसी का बुरा नहीं किया था। वह किसी के भी बच्चे को प्यार कर सकती थी। बच्चों में बेहद लोकप्रिय भी थी। वह हमेशा सोचती उसके अच्छे कर्म उसके बच्चों को ठीक रखेंगे। जब सम्राट ने दूसरी शादी कर ली, तब उसे चिन्ता जरूर हुई थी, पर वह कुछ नहीं कर सकी । वह अकेली थी और अकेले सम्राट से लड़ना मुश्किल था इसलिए चुपचाप वह अपने लिए संघर्ष करती रही ।
यह समय कितना बलवान है कि इस पर ईश्वर तक का वश नहीं। अपने बन्दे को तड़पता देख वह तड़प सकता है, पर उसकी मदद को आगे नहीं आ सकता। वह तो एक सामान्य स़्त्री थी, समय से कैसे लड़ सकती थी ? इस समय ने उसे क्या से क्या बना दिया? कभी-कभी सम्राट के लिए भी उसे अफसोस होता है। अपने झूठे दंभ के नाते उसने ना केवल उसका प्यार खोया, बल्कि जीवन भर बेचैन रहा। खुद को प्रूफ करने के लिए उसने क्या-क्या नहीं किया। उसके भागने का प्रचार करते वक्त उसने यह नहीं सोचा कि यह वह समाज है जो भाग गई स्त्री के पुरूष को भी नहीं बख्शता। लोग पीठ पीछे उस पर हँसते हैं, यह भ्रम सम्राट को सालता था और वह प्रतिशोध से भरकर श्यामा का नुकसान करना चाहता था। जिसकी औरत भाग गई हो, उस मर्द की मनोदशा का अनुमान किया जा सकता है। हर नजर उसे खिल्ली उड़ाती दिखती है। इसलिए वह जहाँ बैठता, श्यामा की बुराई करता, ताकि अपनी अच्छाई साबित कर सके। बच्चों के मन में भी उसने इसीलिए माँ के खिलाफ जहर बोया, ताकि आगे चलकर वे उससे बदला ले सके। श्यामा सोचती है कि उसे यह सब करने की क्या जरूरत थी ? यदि वह स्थितियों का सही ढ़ंग से आकलन करता, तो यह दिक्कत नहीं आती।उसने जिस औरत से दूसरी शादी की, उसकी भी पहली शादी टूट चुकी थी। गनीमत रही कि वह उससे निबाह रहा है, शायद यह साबित करने के लिए कि श्यामा ही गलत थी कि गृहस्थी में नहीं जम सकी। शायद यह भी समय की बात हो। या दोष श्यामा की किस्मत का ही हो कि उसे कहीं भी सहारा नहीं मिला। बस अपनी हथेलियों में सिर थामे वह जीवन का सफर पूरा करती रही। उसके जीवन में पुरूष आए, पर वह आगे ना बढ़ सकी। कहीं ना कहीं बच्चे उसकी आँखों के सामने आ गए। वह माँ है, यह कभी ना भूल सकी। दूसरे बच्चे के जनम के बारे में वह नहीं सोच सकती थी, इसलिए दूसरी शादी की कोशिश भी नहीं की ।
पूरे सत्रह वर्षों बाद वह अपने बच्चों से मिली है पर जब वह अपने बेटों में पिता की तरह की प्रदर्शन प्रियता, स्त्री की अवमानना और झूठा दंभ देखती है, तो उसे अफसोस होता है। यदि वे उसके पास रहे होते तो शायद ऐसे न होते। वह उन्हें ऊॅचे संस्कार देती, पर पिता के अंश का कुछ प्रभाव तो होता ही है। वैसे उनमें उसके गुण ज्यादा हैं। कला-साहित्य से प्रेम, दया, ममता, पढ़ाई-लिखाई सब कुछ ज्यों का त्यों ही नहीं, कुछ ज्यादा ही उनमें समाहित है। दोनों को गीत.संगीत में रूचि है। श्याम तो संगीत का ही शिक्षक है। राम एयरफोर्स में है, उसमें वह खुद को ज्यादा पाती है। उसका रूप- रंग ही नहीं, स्वभाव भी उसने पाया है। श्याम में पिता का चेहरा झाँकता है और दिमाग भी। पिता की तरह ही अपनी बात ऊपर रखने में माहिर है। हमेशा उसका मजाक उड़ाता है। माँ का रूप-रंग, चाल-ढ़ाल, रहन-सहन, पढ़ाई-लिखाई कुछ भी उसे पसंद नहीं है। सब पर टिप्पणी करता है। पिता ये कहते हैं .. वो कहते हैं- कहकर उसे पीड़ित करता है। वह अपनी ममता के कारण उससे जुड़ना चाहती है, पर हमेशा उसका पिता बीच में आ खड़ा होता है। जिस तरह उसने बच्चों को बचपन में ही उससे अलग कर दिया, उसी तरह आज भी अलग ही रख रहा है। वे पास आकर भी पास नहीं आते। श्याम तो हमेशा उससे पैसे खर्चाता रहता है। जैसे ऐसा करके ही वह उसका दिल जीत सकती है। उसे उससे कोई सहानुभूति नहीं, कोई प्रेम नहीं, फिर क्यों वह जबरदस्ती उनसे जुड़ने की कोशिश कर रही है ? बच्चे हमेशा अपनी सौतेली माँ, सौतेले भाइयों और पिता की बात करते हैं। उनके साथ फोटो खिंचाकर फेसबुक पर डालते हैं। जैसे वही उनका परिवार हो और वह जैसे छिपाने की चीज हो। उससे सम्बंध को वे सबसे छिपाना चाहते हैं। उसके घर नहीं आते। उससे मेल-जोल नहीं बढ़ाते। वह दिखाती है कि उसे इन सबका बुरा नहीं लगता, पर क्या सच ही नहीं लगता ? लगेगा ही, यह बात वे भी जानते हैं और बुरा लगने के लिए ही ऐसा करते है। तो फिर वह क्यों उनसे रिश्ता रख रही है ? जलाना-कुढ़ाना जिन बेटों का उद्देश्य हो। उसका सुख.दुःख जिनके लिए कोई मायने नहीं रखता, जिन्हें उसकी कोई जरूरत नहीं, चाहत नहीं, उनसे जुड़ना शायद दया माँगने जैसा है। उनका भी क्या दोष? अब उन्हें उसकी जरूरत थी? वह उनके पास नहीं थी। उन्हें जैसी परवरिश जैसे संस्कार दिए गए, उनका असर तो होना ही था। किस्मत को ना भी मानो तो वह अपना अस्तित्व मनवा ही लेती है। सुख तभी मिलेगा, जब किस्मत में होगा। जब तक श्यामा सम्राट से जुड़ी रही। सम्राट बेरोजगार रहा। श्यामा ने घोर अभाव का सामना किया और जब वह लक्ष्मीवान हुआ, तो दूसरी स्त्री ले आया और श्यामा का सारा हक उसे दे दिया, यहाँ तक कि उसके बच्चों की माँ भी उसे बना दिया। दूसरी औरत का मन रखने के लिए उससे भी दो पुत्र पैदा करके वह दशरथ की तरह गौरवान्वित हुआ। उसके बच्चे जब फलदायी वृक्ष हुए, तो वह और भी मालेमाल हो गया। बच्चे सौतेली माँ की मंशा से अनजान उसके आँचल में प्रेम-सम्मान ही नहीं, अपनी सारी कमाई भी डालने लगे और वह राजमाता बनी अपने पुत्रों की नींव मजबूत करती रही। वह औरत, जो सम्राट की रखैल ही कही जाएगी, क्योंकि श्यामा से सम्राट का कभी तलाक नहीं हुआ था, घर की मालकिन थी। सारे सुख उसे प्राप्त थे। पति, बेटे-बहुओं सबका। यह उसका भाग्य ही तो कहा जाएगा। उसके अपने बेटे भी उसे ही माँ कहते हैं।वह कभी राम से मिलने उसके आवास पर जाती है तो पोते के साथ अपना फोटो खींच कर खुश हो लेती है। एक बार वह फोटो उसने फेसबुक पर डाल दिया, तो हंगामा हो गया। राम की क्लास ली गयी। राम को बचपन में तो डराया ही गया, अब भी सम्राट डरा रहा है कि श्यामा के घर गए तो शाप दे दूँगा। इसलिए राम और उसकी बहू उसके घर नहीं आते। श्याम पहले कई बार अकेले उसके पास आ चुका है, पर पत्नी को लेकर कभी नहीं आया। एक दिन उसकी पत्नी ने न आने का रहस्य बताया कि .पापा ने कहा थाए वहाँ गयी, तो फिर यहाँ न आना।बच्चे पिता का अहसान मानते हैं कि उन्होंने उन्हें पाला। अब उनसे कौन प्रश्न करे कि फिर कौन पालता? पिता ही तो बच्चों का पालक होता है। वह तो श्यामा की माँ का अहसान था कि सात वर्ष उन्हें पाल दिया। रात-रात भर माँ.बेटी जागीं। तमाम कष्ट सहे, तब वे पले। बच्चे के लिए सबसे जरूरी और नाजुक वक्त तो वही होता है। वह भी तो माँ के फर्ज से कभी नहीं चुकी। दो-दो वर्ष दूध पिलाया। उन्हें सूखे में सुलाने के लिए गीले में सोई। उन्हीं की नींद सोई-जागी। वह भी घोर अभाव भरे दिनों में, जब ना तो पति का आर्थिक सहयोग था, ना भावनात्मक। यहाँ तक कि किताब-कॉपी तक नहीं छू पाई उन वर्षों में। उसके बाद उन्हें छीन लिया गया तो क्या करती ? ना तो उसके पास पैसा था, ना कोई नौकरी। कोई हाथ उसकी मदद के लिए नहीं था। वह तो माँ थी कि जलालत से ही सही, खाने को दो रोटी दे देती थी। कितनी मुश्किलों से वह आत्मनिर्भर हुई। एक अकेली, सुंदर स्त्री को इस बंद समाज में क्या-क्या नहीं झेलना पड़ता है ? हर तरफ गिद्ध नोचने को तैयार रहते हैं। कितना बरगलाया-फुसलाया जाता है उसे। गिराने की हर कोशिश की जाती है।काश बेटे इस बात को समझ सकते | वे कहते हैं कि उसने उन्हें ढूंढा नहीं ?| श्यामा क्या सफाई दे ? वह जानती थी कि जिद के कारण ही सही सम्राट बच्चों को अपने पास ठीक से रख रहा है। उसे तकलीफ पहुँचाने के लिए ही सही उन्हें पढ़ा-लिखा रहा है। उनकी जरूरतें पूरी कर रहा है। वह क्या कर पाती? कोई संसाधन नहीं था उसके पास। सम्राट पुरूष था, परिवार का सहयोग था उसे। फिर दिमाग भी जुगाड़ू था। जाने कैसे उसने पिछड़ी जाति का प्रमाणपत्र बनवा लिया और सरकारी मास्टर बन गया। अब उसकी परेशानियों के दिन बीत गए थे, पर वह तब भी संघर्षरत थी। फिर भी उसने बच्चों को अपने पास लाने की कम कोशिश नहीं की उसने। वकीलों से मिली पर सबने कह दिया कि पाँच वर्ष बाद बच्चों पर पिता का अधिकार होता है। वह मुकदमा लड़ती तो शायद बच्चे उसे मिल भी जाते, पर वह अकेली थीऔर परिवार वाले भी साथ नहीं दे रहे थे। कोई भी बच्चों की वापसी नहीं चाहता था क्योंकि वह अपना भी खर्चा उठाने लायक नहीं बनी थी, इसलिए उसने हृदय पर पत्थर रख लिया, काश, बच्चे उसकी मजबूरी समझ सकते।बच्चों को लगता है जिस तरह वह आज मौज में है, सम्पन्न है, हमेशा रही है। कोई जिम्मेदारी नहीं, दबाव नहीं। काश, वे समझ सकते कि सुख क्या है, वह कभी नहीं जान पाई। उनके बाद एक भी ऐसा रिश्ता नहीं बना पाईए जो दिल को सुकून दें | क्योंकि ऐसे वक्त बेटे उसके सामने आ खड़े होते थे, तमाम प्रश्न लिए, हिकारत से उसे देखते हुए। वह जानती थी कि बेटे अपने माँ के जीवन में दूसरा पुरूष बर्दाश्त नहीं कर सकते। वह अक्सर सोचती है, फिर वे पिता के जीवन में दूसरी स्त्री कैसे सह लेते हैं ? कौन सी मजबूरी उन्हें विवश करती है ? शायद बच्चे होने के कारण वे पिता से कमजोर होते हैं, उस पर आश्रित होते है या फिर भावी पुरूष होने के कारण पिता का यह कदम उन्हें पुरूषोचित लगता है।जिस तरह आज वे दूसरी स्त्री के साथ पिता की फोटो पोस्ट कर रहे हैं। क्या उसके साथ दूसरे पुरूष का कर सकते थे? जिस तरह उस स्त्री को माँ कहते हैं, उस पुरूष को पिता कहते? नहीं, वे ऐसा नहीं करते। यहीं आकर तो हार जाती है स्त्री। एकनिष्ठ माँ का ही सम्मान बच्चे कर सकते हैं। उसे याद है कि एक दिन श्याम अपनी गर्लफ्रेण्डों के बारे में बता रहा था कि वह उनसे कितना क्लोज है। उनकी गोद में सिर रखकर लेट जाता है। किस भी कर लेता है। वह इसे आधुनिक समय की माँग कह रहा था। इसी बीच श्यामा का एक परिचित किसी काम से आ गया। उसने देखा श्याम की आँखें और भौंहें चढ़ गयी । माँ के दोस्त हो सकते हैं, इस बात को आधुनिक बेटे भी सहन नहीं कर पाते। वह जब फेसबुक पर अपना फोटो डालती है, तो वह उसकी बहनों से शिकायत करता है, पर अपनी पत्नी के जींस वाला फोटो खुशी से शेयर करता है। प्रौढ़ा माँ उसे अच्छी नहीं लगती, पर युवा मौसियाँ अच्छी लगती हैं। वह बार-बार मौसियों से तुलना कर माँ को अपमानित करता है। वह उसे कंजूस, खुदगर्ज यहाँ तक कि बेवकूफ समझता है। वह कितना और क्या-क्या बर्दाश्त करे ?