मानस के राम (रामकथा) - 23 Ashish Kumar Trivedi द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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मानस के राम (रामकथा) - 23







मानस के राम
भाग 23




राम द्वारा सात वृक्षों को एक तीर से गिराना


सुग्रीव को उसका राज्य वापस दिलाने के लिए आवश्यक था कि बाली का वध किया जाए। किंतु सुग्रीव को आशंका थी कि क्या राम बाली का वध कर सकेंगे। हनुमान के समझाने पर भी सुग्रीव का संशय दूर नहीं हुआ। वह राम की शक्ति का परीक्षण करना चाहता था। लेकिन वह जानता था कि सीधे सीधे यह बात राम से कहना उचित नहीं है। अतः वह राम के पास जाकर बोला,
"मुझे आपकी शक्ति व शौर्य पर कोई संदेह नहीं है किंतु यह मेरा दायित्व है कि मैं आपको अपने भाई बाली के बल के विषय में बता दूँ। बाली का शरीर विशाल पर्वत की तरह मजबूत है। वह समुद्र का सारा जल अपनी हथेली में भर कर आचमन कर सकता है। बड़े बड़े वृक्षों को वह ऐसे उखाड़ देता है जैसे वह घास का मामूली तिनका हों। लंकापति रावण को वह अपनी कांख में दबा कर पूरी दुनिया का चक्कर लगा चुका है। एक बार दुंदुभी नामक राक्षस ने उसे द्वंद के लिए ललकारा। दुंदुभी के पास दस हज़ार हाथियों का बल था। बाली ने उसका वध कर उसका शव हवा में उछाल कर फेंक दिया। वह शव एक योजन दूर मतंग ऋषि के आश्रम में गिरा। मतंग ऋषि के श्राप के कारण वह ऋष्यमूक पर्वत पर नहीं आ सकता है। अतः मैं सुरक्षित हूँ। अन्यथा उसके क्रोध से बच पाना मेरे लिए संभव ना होता।"
लक्ष्मण सुग्रीव की बात बहुत ध्यान से सुन रहे थे। वह समझ गए कि सुग्रीव राम की शक्ति का परीक्षण करना चाहता है। वह बोले,
"वीरता और शौर्य में मेरे भ्राता राम की कोई बराबरी नहीं कर सकता है। उन्होंने भी कई राक्षसों का वध किया है। फिर भी यदि आपको कोई संदेह है तो भ्राता राम उसे दूर कर देंगे।"
राम सुग्रीव के संदेह को दूर कर देना चाहते थे। वह उस स्थान पर गए जहाँ दुंदुभी का कंकाल पड़ा था। उन्होंने उस कंकाल को अपने पैर के अंगूठे से ठोकर मारी। वह कंकाल हवा में उड़ता हुआ दस योजन दूर जाकर गिरा। सुग्रीव उनकी शक्ति से प्रभावित तो हुआ किंतु अभी भी उसे पूरी तसल्ली नहीं हुई थी। वह बोला,
"आप निसंदेह बहुत शक्तिशाली हैं। लेकिन जब मेरे भाई बाली ने दुंदुभी के शव को उछाला था तब उसमें मांस और रक्त था किंतु इस समय यह महज सूखा हुआ कंकाल था।"
राम मुस्कुराए। वह समझ गए कि सुग्रीव को संतुष्ट करने के लिए उन्हें कोई और प्रमाण भी देना पड़ेगा। उन्होंने अपने तूणीर से बाण निकाल कर चलाया। वह बाण वहाँ खड़े सात शाल वृक्षों को चीरता हुआ वापस उनके तूणीर में आ गया। यह देख कर सुग्रीव के सारे संदेह समाप्त हो गए। वह हाथ जोड़कर बोला,
"मेरी सारी शंकाएं समाप्त हो गई हैं। मुझे पूरा विश्वास है कि आप बाली का वध करके मुझे किषकिंधा का राज्य दिला देंगे।"


सुग्रीव द्वारा बाली को ललकारना

सुग्रीव की शंका का समाधान हो जाने के बाद बाली के वध की योजना बनाई गई। योजना के अनुसार सुग्रीव बाली के पास गया और उसे द्वंद के लिए ललकारा। सुग्रीव की ललकार पर बाली क्रोध में गर्जना करता हुआ बाहर आया और उसकी चुनौती को स्वीकार कर लिया।
जिस स्थान पर बाली और सुग्रीव का द्वंद हो रहा था राम वहाँ पहले से ही एक पेड़ के पीछे धनुष लेकर खड़े थे। बाली और सुग्रीव आपस में भिड़े हुए थे। लेकिन दोनों कद काठी, चाल ढाल सब तरह से इतने समान थे कि राम भ्रमित हो गए कि इनमें बाली कौन है और सुग्रीव कौन। अतः राम बाण नहीं चला पा रहे थे।
सुग्रीव बहुत कठिनाई से बाली का सामना कर रहा था। वह इस बात की प्रतीक्षा में था कि राम बाण चला कर बाली का वध कर दें। लेकिन राम बाण चला नहीं रहे थे। सुग्रीव बुरी तरह से घायल हो गया था। थकावट के कारण और अधिक नहीं लड़ सकता था। मौका मिलते ही वह बाली की भुजाओं से मुक्त हो कर ऋष्यमूक पर्वत की तरफ भागा। बाली अपने भाई का वध नहीं करना चाहता था। अतः उसने उसे भागने दिया।
हताश व दुखी सुग्रीव ऋष्यमूक पर्वत पर पहुँचा। राम तथा लक्ष्मण भी वहाँ पहुँच गए। सुग्रीव को लग रहा था कि राम ने अपना वचन तोड़ दिया। अपनी दृष्टि नीचे किए हुए वह क्रोध में बोला,
"यदि आपको मेरी सहायता नहीं करनी थी तो फिर वचन क्यों दिया था ?"
उसकी बात सुन कर राम ने उसे समझाया,
"ऐसा नहीं है मित्र की मैं तुम्हारी सहायता नहीं करना चाहता हूँ। किंतु तुम दोनों देखने में एक समान लगते हो। मैं द्वंद के समय तुमको पहचान ही नहीं पा रहा था। यदि मेरा बाण बाली की जगह तुम्हें लग जाता तो अनर्थ हो जाता।"
राम की बात सुन कर सुग्रीव शांत हुआ। यह तय हुआ कि सुग्रीव एक बार फिर बाली को उसी जगह द्वंद युद्ध के लिए ललकारे। लक्ष्मण ने पहचान के लिए सुग्रीव के गले में पुष्पों की एक माला डाल दी।
संध्या का समय था। बाली अपनी पत्नी तारा के साथ कक्ष में आराम कर रहा था। तभी सुग्रीव महल के बाहर आकर उसे पुनः द्वंद के लिए ललकारने लगा। इतनी जल्दी सुग्रीव के पुनः लौट आने पर बाली को आश्चर्य हुआ किंतु उसकी चुनौती ने उसके क्रोध को भड़का दिया। वह सुग्रीव के साथ द्वंद युद्ध के लिए जाने को तैयार हो गया।
बाली की पत्नी तारा बहुत ही बुद्धिमान स्त्री थी। उसे भी इस प्रकार सुग्रीव का पुनः वापस आना उचित प्रतीत नहीं हुआ। वह जानती थी कि सुग्रीव में बाली को परास्त करने की सामर्थ्य नहीं है। इससे स्पष्ट था कि वह किसी योजना के अंतर्गत बाली को ललकारने के लिए आया है। उसने बाली को सावधान करना चाहा। उसने कहा,
"आज आप एक बार सुग्रीव की चुनौती स्वीकार कर चुके हैं। वह आपसे परास्त होकर अपने प्राण बचाने के लिए भागा था। किंतु अब पुनः आपको द्वंद के लिए ललकार रहा है। वह इतने दिनों से ऋष्यमूक पर्वत पर भय से छिपा था। आज वह आपको ललकारने आया है। इसके पीछे अवश्य ही उसकी कोई भयंकर योजना है।"
बाली ने अहंकार में भरकर कहा,
"कोई योजना नहीं है। उस दुष्ट का काल आ गया है। इसलिए वह मुझे ललकारने आया है। तुम भय मत करो।"
अपने पति की इस तरह की बात सुनकर तारा चिंतित हो गई। उसने फिर से समझाने का प्रयास किया,
"अंगद के भेजे गुप्तचरों ने बताया था कि उन्होंने सुग्रीव को राम तथा लक्ष्मण नाम के दो राजकुमारों से भेंट करते देखा था। वह अयोध्या के राजकुमार हैं। अपने पिता के वचन को पूरा करने के लिए वन में आए हैं। उन्होंने सुग्रीव से मित्रता कर ली है। यह उन राजकुमारों की मित्रता का ही बल है जो उसकी वाणी में आत्मविश्वास बन कर फूट रहा है।"
बाली को अब उसकी बात सही लग रही थी। बाली को उसकी बात पर यकीन हो रहा है यह सोचकर तारा ने उसे आगे समझाया,
"आप सुप्रीव के वध का ख्याल अपने मन से निकाल दीजिए। माना सुग्रीव से भूल हो गई। लेकिन मेरी मानें तो उसे क्षमा कर दें। वह आपका अनुज है। उससे अच्छा सहयोगी आपको कहाँ मिलेगा। युद्ध को भूल कर अपने भाई को क्षमादान देकर साथ ले आइए।"
तारा की बात ने बाली के क्रोध को और भड़का दिया। वह क्रोध में बोला,
"तुम क्या चाहती हो कि मैं उस दुष्ट की इस दंभ भरी ललकार को अनसुना कर दूँ। वह भाई नहीं शत्रु है। अपने शत्रु की चुनौती को अनसुना कर उससे मित्रता करना कायरता है। मैं कायर नहीं हूँ। मैं जानता हूँ कि यह तुम्हारा प्रेम है जो मुझे रोकना चाहता है। किंतु तुम मेरी चिंता ना करो। मैं उस दुष्ट को जान से नहीं मारूँगा। बस उसे ऐसा पाठ पढ़ाऊँगा जिसे वह सदैव याद रखेगा।"
तारा जानती थी कि बाली मिली हुई चुनौती को स्वीकार अवश्य करेगा। अतः उसने बाली की विजय की कामना की और उसे दुखी मन से विदा किया।


बाली का वध

सुग्रीव की दूसरी चुनौती को भी स्वीकार कर बाली उसके पास पहुँच कर उस पर चिल्लाया,
"लगता है तुम्हें अपने प्रणों से प्यार नहीं है। एक बार फिर मुझसे परास्त होने के लिए आ गए। प्राण प्यारे हों तो अभी भी लौट जाओ।"
राम से मिले आश्वासन के कारण सुग्रीव में भी आत्मविश्वास आ गया था। वह बिना कुछ बोले बाली पर झपटा। दोनों के बीच भयानक द्वंद होने लगा। राम जानते थे कि सुग्रीव अधिक समय तक बाली का सामना नहीं कर सकता है। उन्होंने अपने धनुष पर बाण चढ़ाया और लक्ष्य साध कर सही अवसर की प्रतीक्षा करने लगे। जैसे ही उन्हें अवसर मिला उन्होंने बाली पर तीर चला दिया। राम का बाण उसकी छाती में धंस गया। बाली कटे हुए वृक्ष की भांति भूमि पर गिर गया।
अचानक लगे इस बाण से बाली आश्चर्य में था कि यह किसने चलाया। तभी हाथ में धनुष लिए हुए राम लक्ष्मण के साथ उसके पास आए। राम को देख कर बाली ने कहा,
"तो मुझे इस प्रकार छल से मारने वाले आप हैं। हे राम आप तो कुलीन वंश के क्षत्रिय हैं। फिर आपने ऐसा कैसे किया ? मैं सुग्रीव के साथ द्वंद युद्ध में व्यस्त था। आपने छिप कर मुझ पर बाण चलाया। यह तो क्षत्रियोचित कर्म नहीं था। मेरी और आपकी कोई शत्रुता भी नहीं थी। पर आपने धोखे से मेरा वध किया। यह सर्वथा अनुचित है। मुझे मृत्यु का दुख नहीं है। किंतु इस तरह धोखे से मारा जाना मुझे कष्ट दे रहा है।"
राम ने कहा,
"बाली तुमने अपने भाई की बात पर यकीन नहीं किया। उसके प्राण लेने का प्रयास किया। उसे भागकर ऋष्यमूक पर्वत पर शरण नन्ही परी। ‌ क्योंकी मतंग ऋषि के श्राप के कारण तुम वहाँ नहीं जा सकते थे। सुग्रीव ने मुझसे सहायता मांगी। मैंने उसकी सहायता की।"
"पर यह हम दो भाइयों के बीच की बात थी। आपने मुझे छलपूर्वक मारकर अनुचित किया।"
"मैंने जो किया वह क्षत्रिय होने के नाते किया। यह बात तुम दो भाइयों की नहीं थी। तुमने सुग्रीव की पत्नी रूमा को बलपूर्वक अपनी रानी बनाया है। अपने अनुज की वधु के साथ यह आचरण पाप है। यह संपूर्ण धरती मेरे वंशजों की है। अतः तुम्हें तुम्हारे पाप कर्म का दंड देना एकदम उचित है।"
बाली कुछ क्षण रुक कर बोला,
"आपने जो उचित समझा किया। आपके हाथों मृत्यु को प्राप्त होना मेरा सौभाग्य है।"
बाली ने सुप्रीव से कहा,
"मृत्यु के बाद मेरा पुत्र अंगद अनाथ हो जाएगा। सुग्रीव अब यह तुम्हारा दायित्व है कि तुम मेरे पुत्र के पालन पोषण का दायित्व लो। उसका पालन राज्य के उत्तराधिकारी के तौर पर करो। मेरी पत्नी तारा चाहती थी कि मैं तुम्हें क्षमा कर अनुज के रूप में अपना लूँ। अब उसकी देखभाल की जिम्मेदारी भी तुम्हारी है।"
सुग्रीव को अपने पुत्र व पत्नी का दायित्व सौंप कर बाली शांत हो गया।