लहराता चाँद
लता तेजेश्वर 'रेणुका'
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अनन्या कुछ दिन छुट्टी लेकर घर पर रही। उसकी खबर हर अखबार के फ्रंट पेज पर छपी थी। आसानी से किसी की नज़र से बच नहीं सकती थी। उसे पता था अगर घर से निकलेगी तो उसे पहले न्यूज़ रिपोर्टर्स का सामना करना होगा और वह इस के लिए तैयार नहीं थी। मामला जब ठंड़ा पड़ने लगा, अनन्या ने फिर से ऑफिस जाना शुरू किया।
महुआ के पुलिस के गवाह बन जाने से पुलिस ने उसका स्टेटमेंट लेकर उसे रिमांड रूम में भेज दिया। अनन्या जब उससे मिलने गई तो वह रो पड़ा।
- कैसे हो महुआ? ठीक हो ?"
महुआ मात्र सिर हिला कर " हाँ '' कह सका। जेल में कैदी की जिंदगी उसके लिए दूभर थी। सौभाग्यवश दिल की कुछ ही दूरी से गोली आरपार हो गई थी मगर जान बच गई।
- डरना मत महुआ हम सब तुम्हारे साथ हैं, पुलिस गवाही ले चुकी है, तुम्हें कुछ नहीं करेगी। अपनी जिंदगी सुधारने का तुम्हें एक मौका मिला है। पुलिस की मदद करके गुनाह की दलदल से बाहर निकलकर एक अच्छी जिंदगी जीने का प्रयत्न करो। तुमने अपनी जिंदगी की परवाह न करते हुए मेरी मदद की। एक भाई की तरह मेरी जान बचाई। ये ऋण मैं कभी नहीं भूल सकती। तुम जब जेल से बाहर निकलोगे एक नया महुआ बनकर एक नई जिंदगी की शुरुआत होगी।
महुआ ने कुछ नहीं कहा।
- कहो महुआ तुम गवाह बनोगे ना?"
कुछ देर चुप्पी के बाद वह सिर हिलाकर 'हाँ' कहा।
अनन्या उसे अश्वासन दे कर बाहर आ गई। उसे मालूम था इस पूरे किडनैप कांड में वह अकेला गवाह है जिसके द्वारा गुनाहगार तक पहुँचा जा सकता है। इसलिए उसकी जान की रक्षा करना भी बहुत बड़ी चुनौती है। वह कई सालों से नक्सलियों के साथ रहा है इसलिए उसे सज़ा तो मिलेगी लेकिन उसने अनन्या को वहाँ से निकलने में मदद की इसके लिए उसे न्याय भी मिलेगा। चूँ कि वह सरकारी गवाह बन गया है इसलिए सरकार से माफ़ी की उम्मीद की जा सकती है।
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अवन्तिका और सूफ़ी के कॉलेज का आखिरी साल था। वह फैशन डिजाइनिंग के साल की आखिरी परीक्षा के लिए पूरी तरह तैयार थी। सूफी के घर में तूफ़ान में फँसी नाव की तरह उसके और उसके परिवार की सारी खूशियाँ डगमगा गई। जिससे उसकी सोच में बदलाव और पापा के गैर जिम्मेदाराना हरकतों से उसके दिल पर एक गहरी चोट लगी। ऐसे घर की माहौल में अभिनव की सच्चाई को जीर्ण करपाना उसके लिए बहुत मुश्किल था। ये वह उम्र है जिसमें वह सब कुछ अच्छी तरह समझने लगी थी उसके पिता का चरित्र उसके लिए बहुत पीड़ादायक और अपमानबोध था।
घर में एक अजीब सा सन्नाटा छाया हुआ था। अब कुछ भी पहले जैसा नहीं रहा। अभिनव हमेशा की तरह परिवार से नज़र नहीं मिला पा रहा था। शैलजा पत्थर की मूरत की तरह चुप हो गई थी। शैलजा ने सब कुछ साहिल पर छोड़ दिया था। सूफी अपने पिता को देखते ही अंदर चली जाती थी। कुछ दिन यूँ ही गुजरने लगे। कुछ महीनों पहले साहिल ने अमेरिका में ऊँची शिक्षा के लिए दिए दरखास्त को मंजूरी मिल गयी थी। लेकिन घर की हालात देखते उसने अमेरिका जाना ठीक नहीं समझा। उस पत्र को यूँ ही फाइलों में बंद कर दिया।
जब उसके अपने पिता किसी और के हो गए तो अब उनके घर में रहना पराया सा महसूस होने लगा। किसी पराये घर में दो चार दिन से ज्यादा व्यवस्थित नहीं रह सकते वैसे ही जिस व्यक्ति ने अपनों को पराया बनाया है उनकी रहमों करम पर रहना आत्मग्लानि के अलावा और कुछ नहीं। जो व्यक्ति हमारा ही न रहा उसके धन-दौलत घर पर हमारा कैसा हक़? इसलिए साहिल अपनी माँ और बहन को लेकर दूसरे घर में रहने का फैसला लिया। अभिनव के अनुनय के बाद भी साहिल शैलजा अपने सूटकेस लेकर बाहर आ गए। एक पल में पराये हो चुके अपनों से अभिनव ने अनुरोध किया वे घर छोड़कर न जाएँ लेकिन जो अभिनव के दिल से ही विस्थापित हो चुके हों फिर ईंट पत्थर के घर का मोह कैसा?
- "शैलजा, साहिल घर छोड़कर मत जाओ। घर बिखर जाएगा बेटा।"
- "घर तो बहुत पहले ही बिखर चुका है पापा। राख समेटने में क्या रखा है। जो रिश्ता पहले ही टूट चुका है उससे उम्मीद क्या रखना।" साहिल ने जवाब दिया।
- ऐसा मत बोलो बेटा, तुम जो कहो करने को तैयार हूँ। पर घर छोड़कर मत जाओ।"
- तो पापा उसे छोड़ दो।
अभिनव चुप हो गए।
- आप को हममें से किसी एक को चुनना पड़ेगा डैड, हमें या उन्हें। दोनों को कभी एक साथ न्याय नहीं मिल सकता ना हम आप को किसी और के साथ बाँट सकते हैं।" साहिल ने कहा।
- मैं तुम्हारे लिए ही जी रहा हूँ शैलजा, साहिल को समझाओ न प्लीज, बताओ उसे कि आप मेरे लिए कितने मायने रखते हो। सूफी बोल न भाई को मेरे बिना क्या आप जी सकोगे?"
- इतना कुछ होने के बाद आप कह रहे हैं कि हमारे लिए जी रहे हैं। नहीं अभिनव आप खुद के लिए जी रहे हैं, ना उस ... के लिए ना ही हमारे लिए। जब आप हमारे ही न हो सके तो किसी और के क्या होंगे।" दुःख और अपमान से कंठ रुद्ध हो जाने से आगे कुछ कह न सकी शैलजा।
- ये आप का फैसला है, पापा, आप चाहो तो कभी भी हमारे साथ आकर रह सकते हैं। लेकिन सब कुछ छोड़कर सिर्फ हमारे पापा बनकर आना होगा। चलिए माँ, अब यहाँ एक पल भी रहना बेईमानी होगी।" साहिल ने कहा।
- "चलो सूफ़ी।" साहिल अपनी सूटकेस और माँ का हाथ पकड़कर मुख्य दरवाज़े की ओर बढ़ा।
अभिनव सूफी को हाथ जोड़कर कहा, "सूफी बेटा तुम भी कहदो। तुम्हारे मन में जो भी है कह दो। मैं तुम्हारा भी गुनाहगार हूँ तुम जो चाहे सज़ा दे सकती हो।"
- पापा, आपने माँ को धोखा दिया है... आपने ऐसे क्यों किया ..क्यों ... पापा क्यों? ... चाहे माँ और भाई आप को माफ़ कर दे मगर मैं कभी माफ नहीं कर सकती। कभी नहीं।"
- ठीक है, अगर आप लोग मुझसे अलग होने का तय कर ही लिया है, तो आप सब के जाने से अच्छा मैं ही चला जाता हूँ। कसूरवार मैं हूँ तो सज़ा भी मुझे होनी चाहिए। ये घर मैंने अपने परिवार के लिए बनवाया था अगर मेरा परिवार न रहे तो इस घर का मैं क्या करूँगा? आज से आप सब यहाँ रहेंगे मैं चला जाउँगा।" कहकर अभिनव घर से बाहर निकल ही रहा था साहिल उसके सामने आ खड़ा हो गया और पूछा, " आखिरकार आप ने हमें छोड़ने का फैसला ले ही लिया है डैड।" अभिनव बिना कुछ कहे घर से बाहर निकल गया।