दह--शत - 58 (6) 261 879 एपीसोड –58 अमन अभय से कहते हैं, “ऐसा क्यों नहीं करते इन्हें यहाँ से हटा दो, बेटे बहू के पास रख दो या बहू को यहाँ बुला लो।” वह चिल्ला उठती है,“मैं क्या कोई चीज़ हूँ कि उसे ये हटा देंगे?” अमन निर्णायक स्वर में कहते हैं,“आपको तो इस घर से, इस केम्पस से हटवाना पड़ेगा।” वह चिल्ला उठती है,“स्टॉप दिस नॉनसेंस। आप होते कौन हैं?” अभय अमन से कहते हैं, “मैं कह रहा था न ये साइकिक हो रही हैं।” अमन गंभीर होकर कहते हैं, “मेरे जान-पहचान के एक ‘साइकेट्रिस्ट’ हैं, उन्हें दिखा देते हैं।” “ये चले तो सही ये किसी के पास जाना नहीं चाहतीं।” बरसों से बीच-बीच में घर आने वाले अमन की उसकी पत्नी की तहेदिल से समिधा ख़ातिर करती रही है। वह उनकी इस बात से भौंचक है,“आपको मालूम है डेढ़ वर्ष से सिक्योरिटी वाले मेरा पीछा कर रहे हैं।” “अच्छा? आपको एक अच्छी बात बताऊँ मेरा एक क्लोज़ फ्रेन्ड है उसके कज़िन अमित कुमार हैं जो इन्क्वॉयरी ऑफ़िसर है। मैं सबकी अक्ल ठीक करवा दूँगा।” “अमित कुमार ही तो असली जड़ हैं। उनके कारण ही समस्या और बढ़ गई है।” “वॉट?” “बस ये सब मुझसे इसलिए डर रहे हैं यदि वर्मा का ‘लाइ डिटेक्टर टेस्ट’ हो गया तो बहुत से लोग अंदर हो जाएँगे।” अमन खिल्ली सी उड़ाते हैं,“भाभी जी इस ‘कमप्लेन’ से क्या हो गया?” “इन्हें ‘रेग्यूलरली ड्रग’ देना तो बंद हो गया वर्ना घर का वातावरण जंग का मैदान बना रहता था।” बाहर सड़क पर गाड़ी के हॉर्न की आवाज़ सुनकर वे उठ जाते हैं, “सॉरी ! भाभी जी ! मेरी गाड़ी आ गई है, आज एक मीटिंग में जाना है।” उनके जाते ही वह बिफ़र उठती है, “अमन तुम्हारा बॉस बन गया है लेकिन अमन ने क्या मुझे ऊषा समझ रखा है इतने प्रमाण देखने के बावजूद मेरा साइकेट्रिस्ट से टेस्ट करवायेगा? मैं क्या ऊषा हूँ जो उसकी गंदी हरकतों के कारण डिप्रेशन में चली गई है। मैं क्या इतनी कमज़ोर हूँ?” समिधा समझ गई है ऊषा को उससे क्यों नहीं मिलवाया जा रहा। अमन भी किस तरह के नशे में डूबे विभाग में उसे भी साइकिक करार करने में लगे होंगे। कॉलोनी वही है, झूमते पेड़ों से घिरी प्यारी सी। घिनौने खेल की ख़बर किसको है? वह नीता को फ़ोन करके कविता के बाजवा वाले मकान के विषय में बताती है वह आश्चर्य करती है,“केम्पस के मकान के किराये इतने बढ़ गये हैं। वर्मा को बेटी की शादी करनी है फिर वह केम्पस का मकान क्यों नहीं छोड़ रहा?” “उसके ‘हाई प्रोफ़ाइल कस्टमर्स’ यहाँ हैं। कविता कब किस मकान में, किस होटल या किराये के घर में होती है, कोई जान नहीं पाता।” “लेकिन बाजवा तेरह चौदह किमी दूर है।” “उसके कस्टमर्स टैक्सी का इन्तज़ाम कर देते होंगे।” “ओ...... ये तो सोचा भी नहीं था।” “नीता ! मैंने सुना है मिनिस्टर के सम्मान में हुए एक प्रोग्राम में ‘एनाउंसमेंट’ तूने किया था। काँग्रेट्स।” “थैंक यू।” “तुझे एक बात बताऊँ बाजवा की फ़ेमस स्टेट मिनिस्टर कामिनी व्यास भी एक बार कोचिंग के फ़ंक्शन में मुझसे इतनी प्रभावित हुई कि घर पर मिलने आई थीं। उनका यहाँ रहने वाला भतीजा मुझसे पढ़ता था।” “ओ....... गुड ! तू है ही इतनी इम्प्रेसिव।” उसने जो बात सहज रूप से नीता को बताई थी उसने सोचा भी नहीं था, लोग उससे डर जायेंगे। रात में अभय के साथ घूमते हुए वह अमित कुमार के बंगले से आगे निकलती है। दो तीन बंगलों से आगे खड़ी एक गाड़ी की पिछली सीट पर अमित कुमार की बौखलाई आकृति दिखाई दे जाती है।जो उनके बंगले के अंदर चली जाती है। दस पंद्रह मिनट बाद आदतन अभय और आगे घूमने निकल गये हैं, वह अकेली लौट रही है। अमित कुमार के बाँयी तरफ़ के बंगले के गेट के सामने अचानक एक सफ़ेद रंग का श्वान उसके सामने खड़ा हो जाता है तभी अमित कुमार की सफ़ेद गाड़ी भी हॉर्न बजाती बंगले के अंदर से आकर गेट तक आकर ठिठक कर अपनी तेज़ रोशनी में समिधा को जानबूझकर निहला देती है । श्वान समिधा के सामने मुँह उठाकर उसे घूर रहा है। समिधा को ऐसे श्वानों से बचकर निकलना बखूबी आता है। फिर बगल से गुजर गई है। वह सोचती है कि अमित कुमार ! तुम्हें क्या समझा जाये? विभाग ने तुम्हारे प्रशिक्षण पर जो लाखों रुपया ख़र्च कर ये बंगला, ये गाड़ी, ये पद तुम्हें क्या इन हरकतों के लिए दिया है? और तुम वास्तव में हो क्या? दो निहत्थी स्त्रियों (पद व पैसे विहीन) के बीच तुम क्या हो? एक तुम्हें ऊँगली पर नचा अपराध करने को विवश कर रही है, दूसरी तुम्हारी चालों को मात दे रही है। समिधा अनुभा की लेखिका मित्र शुभदा (शुभ्रा) से अवश्य कहेगी कि इस प्रकरण पर वह कोई किताब लिखे। तो क्या वह किताब हर प्रशासनिक प्रशिक्षण संस्थान के पुस्तकालय में इस तंत्र का चेहरा दिखाने के लिए रखी जायेगी? इस तंत्र का नंगा चेहरा दिखाने? इस तंत्र को दूषण से बचाने के लिए? कभी नहीं, लोग ऐसा कैसे होने देंगे? इसे तो एकता कपूर के स्टार प्लस के आँख खोलने वाले सीरियल्स को घटिया साबित करने वाले इसे भी घटिया सीरियल्स से प्रेरित मेलोड्रामा साबित कर खारिज़ कर करवा देंगे । वह सोचती आगे बढ़ती जा रही है। कविता के घर के एक-एक कोने की लाइट्स जल रही हैं। अमित कुमार व इस की बौखलाहट बिल्कुल वैसी ही है जब समिधा को देसाई रोड के कविता के मकान की सरगर्मियों के बारे में पता लगा था। आज की इन गुंडों की बौखलाहट देखकर उसे हर बार की तरह एक रास्ता दिखाई देता है। कामिनी व्यास कुछ रास्ता बता सके। दूसरे दिन शाम को और भी हद हो गई उसे सड़क पर अकेले घूमता देखकर अमित कुमार अपने बंगले से पैदल निकलकर सड़क के दूसरी तरफ मोबाइल पर बात करते रोड के दूसरी तरफ़ चल रहे है। लम्बे, ऊँचे, सजीले व्यक्तित्व के स्वामी अमित कुमार से पूछने का उसका दिल कर रहा है कि आप मुझे डरा रहे हैं या स्वयं डर रहे है? वह अभय को ड्रग के नशे में कविता के इशारे पर नाचते देख चुकी है। अमित कुमार ड्रग के नशे में कविता के या उसकी बेटी सोनल के मोबाइल के इशारे पर नाच रहे हैं? कविता का ब्रेन मेपिंग टेस्ट हो तो पता लगे कि वह है क्या चीज़। ये नाचते हुए लोग किस वर्ग के हैं, कोकिला के पति से लेकर अमित कुमार तक? समिधा अपने आस-पास के समाज का कौन सा ख़ौफनाक चेहरा देख रही है, एक रंडी के इशारों पर तांडव करता हुआ? अभय के विभाग वाले अपने परिवारों के साथ जब-तब त्यौहारों पर उसके घर आते रहे हैं। उनकी खातिर में समिधा का कितना समय गया है। कुछ लोगों ने अफ़वाह उड़ाई कि वह साइकिक हो गई है, सब लोगों ने उसके घर तीन वर्ष से आना बंद कर दिया। कोई ये भी पूछने नहीं आया कि यदि ऐसा हुआ है तो कैसे हुआ? वह अपना सारा जीवन परिवार के लिए गँवाकर एक चीज़ की तरह देखी जा रही है? यदि बच्चे साथ नहीं होते तो वह सचमुच साइकिक हो जाती। उसने शबाना आज़मी की एक फिल्म देखी थी ‘मंडी’। जिसमें वेश्याओं को नगर से बाहर निकालकर बसा दिया जाता है। कुछ दिनों में सारा शहर ही उनके इर्द-गिर्द बस जाता है। यहाँ तो एक रंडी ही इस छोटे से शहर यानि केम्पस के बीच आ बसी है। क्या लगभग हर गृहणी को इस ‘मंडी’ की औरतों से कभी न कभी जूझना पड़ता है, मंडीखोरों से जूझना पड़ता है? क्या बंगाल की ये प्रथा भी पुरुषों ने बनाई है कि दुर्गा माँ की प्रतिमा की मिट्टी में किसी वेश्या के घर की थोड़ी मिट्टी ज़रूर मिलाई जाये। क्या परोक्ष रूप से वह वेश्या से अपने सम्बन्ध के सामने स्त्री को सिर झुकाना सिखाना चाहते हैं? वह कामिनी व्यास को अपनी शिकायतों का पुलिंदा कॉलोनी में रहने वाले उनके भतीजे के माध्यम से भिजवा देती है व अभय से व्यंगात्मक आवाज़ में कहती है,“जब गीदड़ की मौत आती है तो वह शहर की तरफ़ भागता है और कविता का नाश होना है तो वह कामिनी व्यास के क्षेत्र में घर बनवा बैठी है।” “कौन कामिनी व्यास?” “अभय ! एक बार जो बाजवा की मिनिस्टर हमारे घर आई थीं। मैंने उनके पास कम्प्लेन भिजवा दी है।” “वॉट? साइकिक लोग और कर ही क्या सकते हैं?” वे हमेशा की तरह कटखने बन गये हैं। X X X X चार-पाँच दिन बात वह बड़ी उम्मीद से उन्हें फ़ोन करती है। कामिनी व्यास मुलायम स्वर मैं कहती हैं, “मैं सीधे ही कुछ नहीं कर सकती..... आप डी.एम. से मिल लीजिए, बहुत सुलझे हुए आदमी हैं। यहाँ मैंने अपनी जान-पहचान के पुलिस वालों व दीपक सोसायटी के कुछ लोगों को बता दिया है आप निश्चिंत रहें।” किसी पुरुष तक अपनी शिकायत पहुँचाने से अब समिधा को डर लगने लगा है। अलबत्ता तीसरे दिन वर्मा दूर से आता दिखाई दे जाता है। तो अपनी बेटी व बीवी की कमाई से बनवाये मकान में वह चैन से रह नहीं पाया। कॉलोनी वापिस लौट आया है। इन तनावों में समिधा की गर्दन में हल्की झन झनाहट आरंभ कर दी है। कुछ दिनों उसे ट्रेक्शन लेना ही होगा। वह जान-बूझकर अलग-अलग समय पर अस्पताल जाती है। अभी वह अस्पताल का लॉन पार कर पाई है कि दाँयीं तरफ़ की लेबोरेटरी के पास वाली दीवार के बीच में बने रास्ते से अभय के ऑफ़िस का प्रभाकर आता दिखाई देता है। वैसे तो यह आम रास्ता है सारे दिन कोई न कोई आता, जाता रहता है। उसकी चश्में से दिखाई देती सुरूर भरी आँखें, हल्के चेचक के दाग़ वाला चमकता चेहरा...... कविता का एक और शिकार? पाँचने दिन एक और परिचित चेहरा दिखाई देता है....फिर लालवानी.....फिर चव्हाण...ये सिलसिला और कहाँ तक पहुँच गया है ? केम्पस में अभय के विभाग के बहुत कम व्यक्ति रहते हैं। इनमें से तो कोई नहीं रहता किसी की बीवी को कुछ नहीं पता। विकेश व सुयश के अलावा ये सब भी शामिल थे अभय को ‘तलाक’, ‘तलाक’ रटाने में?..... ये नशे ऊपर से एक सुसंस्कृत परिवार से तीखी जलन, उसे मिटा देने की साज़िश। अस्पताल में ही उसे पता लगता है दीवार के बीच बने रास्ते के दाँयीं तरफ वाले क्वार्टर में कोई बदचलन नर्स आ गई है। ज़रूर वह भी विकेश व कविता के नेटवर्क का हिस्सा बन गई होगी....वह क्या कॉलोनी की जो भी बदचलन औरतें होंगी वे भी जुड़ गईं होंगी। उस नर्स के घर में हमेशा आगे ताला लगा रहता है तो? अस्पताल की ही एक कर्मचारी बताती है, “उस क्वार्टर के पीछे के दरवाज़े की कुंडी नहीं लगी होती है। इस नर्स के तीसरे पति को पुलिस ने पकड़कर मुम्बई जेल में डाल दिया है।” “तो आप लोग इसके ख़िलाफ कोई एक्शन क्यों नहीं लेते?” समिधा का सिर घूमने लगता है, जी मिचलाने लगता है, तो इस सारे घिनौने खेल को सुरक्षा दे रहे हैं अमित कुमार। अभय के ऑफ़िस के कॉलोनी से बाहर रहने वाले ये सीनियर लोग अपने परिवारों को तीन वर्ष से त्यौहारों पर भी समिधा के घर नहीं ला रहे थे। अपने घरों में ये विश्वास दिला दिया है कि समिधा साइकिक हो गई है उसके पैर ख़राब हो गये हैं,वह चल फिर नहीं पाती। उन्हें डर था कि वह उनकी पत्नियों से मिलेगी तो इस खेल की पोल खुल जायेगी। हमारे समाज का यही रूप है ?किसी भी स्त्री ने ये नहीं सोचा कि वह समिधा से मिलकर सच का पता लगाये ? हमारे समाज का यही रूप है ?किसी भी स्त्री ने ये नहीं सोचा कि वह समिधा से मिलकर सच का पता लगाये ? x x x x एक दिन कोचिंग संस्थान से फ़ोन आता है, “बीस तारीख को संस्थान का वार्षिक कार्यक्रम है, आप अवश्य आयें। कुछ ‘आउटस्टेन्डिंग फ़ेकल्टीज़’ का सम्मान होना है, उनमें से आपका भी नाम है।” “थैंक्स ! चीफ़ गेस्ट कौन हैं?” “धार्मिक गुरू मीता शाह।” “ वैरी गुड ! मैं उनसे बहुत समय से मिली भी नहीं हूँ।” समिधा उनके ट्रस्ट के कार्यक्रमों में जाती रहती है। कार्यक्रम के बाद दीप प्रज्वलन के बाद पुरस्कार वितरण के बाद मीता जी को अन्य कार्यक्रम में जाना है। वह हर एक फ़ेकल्टी का सम्मान करती जा रही हैं। समिधा के हाथ में ट्राफ़ी के साथ एक बेहद छोटी गीता उसके हाथ में थमाकर कहती हैं, “ये उपहार व आशीर्वाद हमारे मंदिर की तरफ़ से।” समिधा लाल रंग के कवर वाली गीता को माथे से लगाकर भाव विह्वल हो गई है। ज़बरदस्ती थोपे गये इस युद्ध में वह भी तो किंकर्तव्यविमूढ़ खड़ी है। क्या ये गीता उसे राह दिखायेगी ? ------------------------------------------------ नीलम कुलश्रेष्ठ ई -मेल – kneeli@rediffmail.com ‹ पिछला प्रकरण दह--शत - 57 › अगला प्रकरण दह--शत - 59 Download Our App रेट व् टिपण्णी करें टिपण्णी भेजें Mamta Kanwar 2 महीना पहले Archana Anupriya 2 महीना पहले Pratibha Prasad 2 महीना पहले Pranava Bharti 2 महीना पहले અધિવક્તા.જીતેન્દ્ર જોષી 2 महीना पहले अन्य रसप्रद विकल्प लघुकथा आध्यात्मिक कथा उपन्यास प्रकरण प्रेरक कथा क्लासिक कहानियां बाल कथाएँ हास्य कथाएं पत्रिका कविता यात्रा विशेष महिला विशेष नाटक प्रेम कथाएँ जासूसी कहानी सामाजिक कहानियां रोमांचक कहानियाँ मानवीय विज्ञान मनोविज्ञान स्वास्थ्य जीवनी पकाने की विधि पत्र डरावनी कहानी फिल्म समीक्षा पौराणिक कथा पुस्तक समीक्षाएं थ्रिलर कल्पित-विज्ञान व्यापार खेल जानवरों ज्योतिष शास्त्र विज्ञान કંઈપણ Neelam Kulshreshtha फॉलो उपन्यास Neelam Kulshreshtha द्वारा हिंदी थ्रिलर कुल प्रकरण : 60 शेयर करे आपको पसंद आएंगी दह--शत - 1 द्वारा Neelam Kulshreshtha दह--शत - 2 द्वारा Neelam Kulshreshtha दह--शत - 3 द्वारा Neelam Kulshreshtha दह--शत - 4 द्वारा Neelam Kulshreshtha दह--शत - 5 द्वारा Neelam Kulshreshtha दह--शत - 6 द्वारा Neelam Kulshreshtha दह--शत - 7 द्वारा Neelam Kulshreshtha दह--शत - 8 द्वारा Neelam Kulshreshtha दह--शत - 9 द्वारा Neelam Kulshreshtha दह--शत - 10 द्वारा Neelam Kulshreshtha