एपीसोड –60
समिधा ने बहुत जगह शिकायत की थी, पता नहीं कौन सी शिकायत ने रंग दिखाया है कि पुलिस ने नारकोटिक सेल की सहायता लेकर जाल बिछाया है । समिधा उस दिन सुबह अख़बार में बरसों बाद देख रही है जो देखना चाहती है प्रमुख पृष्ठ पर एक बड़ी फ़ोटो में हैं बिखरे हुए बालों में बिफरी हुई कविता, वर्मा, बौखलाया विकेश और प्रतिमा लटके हुए मुंह वाले अमित कुमार, सोनल, सुयश, लालवानी, अमन, प्रभाकर, चौहान व कुछ और आदमी, औरतों के हाथ में हथकड़ी लगी हुई। समिधा को लगता है कहीं कोई तप कर रही उसकी आत्मा मुस्करा उठी है।
......खुशी की या जीत की हड़ब़ड़ाहट से पसीने पसीने हो समिधा जाग गई....ओह ! इस घटना के इतने बरसों बाद भी वह अपराधियों के पकड़े जाने का सपना देख रही है ? अपराधियों के कितने नैट वर्क जेल जा पाते हैं ? क्या सुबूत जुटाना आसान होता है ? उसे यह सपना क्यों आया ?
....ओह ! कल इतवार को तो ही देखी थी फिल्म ‘उड़ता पंजाब’, ड्रग्स माफियाओं, पुलिस, फ़ार्मेस्यूटिकल कंपनियों पर किसी आला राजनेता की सरपरस्ती....जो अपराधियों के पकड़े जाने पर अपने ऊपर लगे इलज़ाम के लिये बड़ी मासूमियत भरी शराफ़त से पत्रकारों से कहता है, “मेरा नाम इस ड्रग स्कैंड्रल में क्यों घसीट रहे हैं?” ---फ़िल्म के अंत में सारे अपराधी निर्दोष करार कर दिये जाते हैं।
वह नृशंस अपराधी पकड़े जाएँ..... समिधा अपने सपने में भी यह उम्मीद नहीं छोड़ रही है और असलियत भी तो कुछ और ही है। मुम्बई में बैठे बैठे समिधा सुनती रही है कि कविता ने किसी डॉन का फ़्लैश ट्रेड संभाल लिया है। वह दोनों शहरों के बीच आती जाती रहती है। कविता की बेटी सोनल का फ़ेसबुक से अकाउंट बंद कर दिया गया है। वह एक फ़्लैट लेकर गुजरात के एक महानगर में माँ के सिखाये धन्धों पर चल रही है। एक ख़बर ज़रूर समिधा के सीने को शान्ति पहुँचाती है उसके पति को नशे की हालत में वौलंटियरी रिटायरमेंट लेने की बात सिखाने वाले बबलू जी व विकेश को अपने कारनामों के कारण, बेहद गिरते स्वास्थ्य के कारण वॉलंटियरी रिटायरमेंट लेना पड़ गया है।
एक दिन नैट पर सर्च करती वह झूम उठती है। उस समय की एम डी मैडम सुहासिनी कुमार ने भी वॉलंटियरी रिटायरमेंट ले लिया है। क्यों ?कारण जो भी हो लेकिन उन्होंने भी समिधा को फ़्रेम करने में पूरी जान लगा दी थी । बस इंतज़ार है अमित कुमार के बुरे समाचार सुनने का। तो क्या पुलिस इन्स्पेक्टर से बात करते हुये समिधा की जिव्हा पर सरस्वती स्वयं आकर बैठ गईं थीं ?तभी उसने कहा था ,`` एक रिटायर होने वाले कपल को ये सब सता रहे हैं देखना ये सब शैतान कभी भी अपनी पूरी नौकरी नहीं कर पायेंगे। ``
और व्यवस्था के खिलाफ़ एफ.आई.आर. शिकायत करती दिल्ली की रीमा भल्ला, एक सुरक्षा संस्थान की निदेशिका? इन वर्षों में उनके विभाग के `बड़े लोगों ` ने इन्हें ह्युमेन ट्रैफ़िकिंग के केस में फँसा दिया है। वह कोर्ट में क्षोभ व आक्रोश में कभी-कभी विरोध जताने के लिए अपने कपड़े उतारने की कोशिश करती है। उस केस को नैट पर सर्च करो तो उसके बिग बॉस के बयान होते हैं कि रीमा एक झगड़ालू औरत है, वह पड़ोसियों से भी लड़ती रहती है। सोचने की बात ये है कि सारे दिन ऑफ़िस में बिताने वाली महिला के पास इतना समय होता है कि वह पड़ौसियों से लड़ सके?
समिधा का मन होता है वह दुनियाँ से चीख-चीख कर कहे लाख शिकायत करने वाली औरतों को तुम पागल करार करते रहो या फँसाते रहो झूठे मुकदमों में लेकिन अब तो न जाने कितनी समिधाएँ व रीमा भल्ला रूप बदल-बदलकर जन्म लेंगी..... न जाने कितनी सदियों तक.... न जाने कितने जन्मों तक....जब तक तुम इंसान बनकर जीना नहीं सीखोगे या उन्हें इंसान के रूप में जीने नहीं दोगे।
वह सोचती रह जाती है कि कदम-कदम पर इस लड़ाई में जो उसके साथ थे क्या उन्हें भगवान कहते हैं?
सदियाँ भी गुज़र जाएँ जब तक ये केम्पस रहेगा, इसकी पेड़ों से घिरी सड़कें रहेंगी, तब तक इन सड़कों पर समिधा के पैरों की पदचाप के निशान रहेंगे। वो दो घर रहेंगे जिनमें कभी समिधा रही है, जिनमें उसने दो बच्चों को जन्म दिया, उनकी परवरिश की है। इस फ़िजा में समिधा की खुशी, आँसू, अवसाद, आह्लाद, स्वप्न से फड़फड़ाती आँखें व उनके पूरे होने पर मुस्कराती आँखें, उसकी खिलखिलाती हँसी। सभी कुछ तो जिंदा रहेगा।
जिस ‘क्रिमिनल पिग्स’ के झुण्ड ने उसे, उसके घर को बर्बाद करना चाहा उन्हीं के कारण ये भयानक दास्ताँ ज़िंदा रहेगी, सदियों तक। केम्पस के क्लब के खूबसूरत हॉल के बीच के विशाल शेन्डलियर के नीचे घुँघरू पहने द्रुत गति से समिधा के नाचते पैर व गीत की ये पंक्तियाँ इन फ़िज़ाओं में गूँजती रहेंगी......सदियों तक ‘मेरी चाहतें तो फ़िज़ा में बहेंगी, जिंदा रहेंगी, हो के फ़ना ।’
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समिधा के दिमाग के एक कोने में ये बात कैसी चिपक कर रह गई है। वह चाहे जितनी भी विचलित हो ,चाहे उसका कितना भी दिल बैठा जाये उस अपने दिमाग से निकाल ही नहीं पाती। जब तब ये बात उसे बेबसी की अंधी गुफ़ाओं में कैद कर देती है . ये दृश्य जब तब जीवंत हो उसकी आँखों में दहशत भर देते हैं ------------- तब समिधा को तीन महीने भी मुम्बई में आये गुज़रे नहीं होंगे कि मुम्बई में समिधा एक दिन शाम को लड़खड़ाते कदमों व साँय साँय करते बदहवास दिमाग़ से अपने फ़्लैट से निकलकर लिफ़्ट का स्विच दबाती है। सामने की मद्रासी पड़ौसिन गहरी नीली साड़ी में दरवाज़ा खोलती है, “वॉट जी?”
समिधा जैसे नींद से जगती है, “सॉरी, लिफ़्ट के स्विच की जगह आपके फ़्लैट की कॉल बैल पर हाथ पड़ गया था।”
वह मुँह बनाते हुए अपना दरवाज़ा बंद कर लेती है।
उसे ग्राउंड फ़्लोर पर जाना है लेकिन साथ वालों के साथ वह चक्कर खाते दिमाग़ से हकबकाई ग़लती से तीसरे फ़्लोर पर उतरने लगती है। वह खिसियाई सी, शरमाई सी लिफ़्ट के अंदर आ जाती है।
उसकी आँखों में से पीछे छूटे कैम्पस की काव्या का चेहरा हट नहीं रहा.... दुनिया के किस कोने में....कहाँ होगी वह?.....कैसी होगी वह?....उसके साथ क्या हुआ था?.... वह कहाँ गायब हो गई? सोचते हुए वह बिल्डिंग के गार्डन में एक सूना का खोज़ लेती है... फ़ुटबॉल खेलते बच्चों , सी-सौ पर सरकते या झूले पर झूलते बच्चों के शोरशराबे से दूर। मन तो हो रहा है काव्या के लिए ज़ोर से बुक्का फाड़कर रोये लेकिन अपना तमाशा कैसे बना सकती है ? घर वालों से अपना परेशान चेहरा छिपाती वह यहाँ आ गई है। अभय को उस अतीत से दूर रखना चाहती है। कुछ देर पहले ही नीता का फ़ोन मिला था, “मैं आज ही पटना से मम्मी का इलाज करवा कर लौटी हूँ। यहाँ आकर एक अंतर्कथा मुझे और पता लगी है।”
समिधा का दिल धड़क उठा है, “क्या?”
“समिधा तुझे कविता के फ़्रंट डोर नेबर पटेल याद है?”
“अरे सदियाँ थोड़े ही गुज़र गई है जो उन्हें भूल जाऊँगी? उनकी छोटी लड़की काव्या से मैं गुजराती शब्दों के अर्थ पूछा करती थी।”
“तुझे याद है न उन्हें शराब पीने की ज़बरदस्त लत थी। कविता ने ड्रामा किया था कि उसने उन्हें डि-एडिक्शन सेंटर ले जाकर उनकी शराब छुडवा दी है।”
“और हम सब बेवकूफ़ की तरह उसकी तारीफ़ के पुल बाँधते रहे थे।”
उसके बाद जो नीता ने बताया जब से उसे लग रहा है उसका सिर ज़ोर-ज़ोर से घूम रहा है या पृथ्वी घूम रही है ? दिमाग़ अपने काबू में नहीं रहा है। वह लड़खड़ाते कदमों स बदहवास नीचे उतर आई है। कविता का शिकंजा अपने पड़ौस के पटेल पर भी कसा हुआ था ? वह उनके घर भी बार-बार प्रसाद पहुँचाया करती थी। तो उसने उन्हें डि-एडिक्शन सेंटर ले जाकर कुछ महीने शराब सचमुच छुड़वा दी थी।। सीधी-सादी घरेलू सरोज बेन अक्सर इसी शहर के अपने मायके दो चार दिन रहने चली जाती थी। श्री पटेल के खाने-पीने को संभाल लेते थे बबलू जी व कविता। वह कल्पना करने लगती है किस तरह शराब छुड़वा कर कविता उस परिवार की विश्वासपात्र बन गई होगी। उसने पटेल को अपना व ड्रग का नशा देना शुरू किया होगा। अपने नाज़-ओ-नखरों से अधेड़ पटेल को घायल करके रख दिया होगा।
अरे हाँ, याद आया वे लोग अक्षत की शादी के लिए बाहर जाने के लिए सामान पैक कर चुके थे व वह एक कैलेंडर में से नंबर काट-काट कर एक-एक कर हर सामान पर लगाती जा रही थी। तभी तो पटेल की छोटी बेटी काव्या ने पीछे के दरवाज़े पर खट-खट की थी। उसने दरवाज़ा खोल कर देखा था काव्या गुलाबी रंग के चूड़ीदार सूट में महकती, लचकती बताने लगी थी, “आंटी ! हम कॉलोनी छोड़कर जा रहे हैं।”
“अरे ! अचानक?....तुम्हारे पापा तो ‘ऐसेन्शियल सर्विस केटेगरी’ में आते हैं फिर ऐसे बाहर रहने जा रहे हैं ?”
“मेरे मामा व मम्मी ने ज़ोर डालकर उन्हें वॉलंटियरी रिटायरमेंट दिलवा दिया है। हम लोग पोताने (खुद के) मकान में रहेंगे, आपको बिना बताये मैं कैसे जा सकती थी?....अच्छा नमस्ते....तमे हमारे घेर आवजो।” कहते हुए उसने एक पुर्ज़े में लिखा अपना पता दे दिया था।
“चल मैं तेरी मम्मी से मिल आती हूँ।”
“वे बद्धा (सब लोग) ट्रक के साथ चले गये हैं। मैं अपनी सनी से जा रही हूँ। ”
“ओ.के. बाय....।” समिधा उसे बाय करती कहाँ सोच पाई थी कि वह उसे आखिरी बार देख रही है।
फिर जो हुआ होगा उसका सहज अनुमान तो वह लगा ही सकती है। पटेल के घरवालों ने घर बदल लिया हो लेकिन कविता के दलाल अपने शिकंजे में आया शिकार कैसे छोड़ सकते थे ? उसे रिटायरमेंट में मिले लाखों रुपये के कारण रईस बता कर उसे सपने दिखाये गये होंगे कि वह दो बैडरूम फ़्लैट में रहने के लिए नहीं बना। उसे तो एक छोटा बंगला लेना चाहिये। नशे में वह भी ऊँचे ख़्वाब देखने लगे होंगे। किसी इलाके के बंगले के झूठे कागज दिखा दिये होंगे व कोई बनता हुआ बंगला भी दिखा दिया होगा। जिससे वह विश्वास कर ले। उस बंगले के बहाने कविता उन्हें बेशकीमती फर्नीचर व हैंडी क्राफ़्ट ख़रीदने ले जाती होगी व अपने घर में उन्हें रखती जाती होगी....टैक्सी का प्रबंध तो विकेश जैसे दलाल करते ही होंगे।.....पता नहीं श्रीमती पटेल या उनके किसी रिश्तेदार ने या किसी दोस्त ने महानगरपालिका ले जाकर उनकी आँखें खोली होंगी कि जिसमें उन्होंने अपना लगभग सारा पी.एफ. का पैसा लगा दिया है....वह बंगला उनके नाम है ही नहीं।
.........ज़हर से कैसे तड़पते हुए निकली होगी पटेल की जान ?....उनके देहांत को पन्द्रह दिन भी नहीं हुए कि अचानक काव्या गायब हो गई थी। घर के लोग सब ढूँढ़-ढूँढ़ कर हार गये। श्रीमती पटेल ने इज्ज़त बचाने के लिए बहाना बनाया कि वह अपने मंगेतर के साथ भाग गई है। ये तो सोचने की बात है कि जब दोनों परिवार की रज़ामंदी से ये विवाह हो रहा था तो बेटी क्यों भागेगी?.... कहाँ होगी काव्या.....समिधा का सोचकर ही दिल बैठा जा रहा है.....किन गन्दे हाथों में होगी?....क्या यही गर्ल्स ट्रैफ़िकिंग कहलाती है? लड़की का नामोनिशान नहीं मिलता।
........और हाँ, कुछ लोग तो गवाह है जिन्होंने अपनी आत्महत्या से एक दिन पहले पटेल को हाथ में बड़ा काला बैग लिए कॉलोनी में अन्दर आते देखा था।
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नीलम कुलश्रेष्ठ
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