भाग-2
तब से वो शालिनी को हमेशा से घर का सदस्य ही मानती आई थीं। फिर कुछ समय बाद मैना और शालिनी भी सखी-सहेलियों में ननद-भाभी की जोड़ी के नाम से जानी जाने लगी थीं। बचपन से युवा अवस्था में प्रवेश करती हुई शालिनी रवि के नाम से ही लजाने लगी थी! उसकी आँखें हर वक्त रवि को देखना चाहती थीं, उसके सपनों में ही खोए रहना चाहती थीं।
इन सब बातों से अलग, उम्र बढ़ने के साथ ही जैसे जैसे बचपन पीछे छूटता गया,रवि शालिनी से दूरी बनाता चला गया! वो रवि अब बदल चुका था जो पहले सब बच्चों के साथ खेला करता था, शालिनी से बराबरी से झगड़ता था! अब वो अक्सर उदासीनता भरा व्यवहार ही करता था। शालिनी सामने पड़ जाती तो कभी कतराकर तो कभी हल्का सा मुस्कुरा कर निकल लेता था!बात करना तो दूर ठहरकर देखता तक नहीं था। जितना रवि कतराता था वो उतनी ही जानबूझकर उसके सामने पड़ने की कोशिश करती थी! जिस दिन भी रवि मुस्कराता हुआ निकल जाता, उसकी कई रातों की नींद उड़ जाती थी। न जाने कितने सपने करवट लेने लगते थे। सपनों में बचपन की छीना झपटी जवानी की नोंक झोंक में बदल जाती। रोमांटिक फिल्मी दृश्य में हीरो-हीरोइन की जगह वो दोनों दिखाई देने लगते थे! सूखे अधरों की प्यास बुझाता रवि उसके सपनों में साधिकार प्रवेश कर जाता था! उम्र के जिस दौर से वो गुज़र रही थी उसमें जब लड़कियां अनजाने राजकुमार के सपनों में खोई रहती थीं,तब उसके पास तो अपना जाना पहचाना राजकुमार था! सो हर सपना सच होने की उसे पूरी उम्मीद रहती थी। इसलिए वो रवि को लेकर खूब सपने बुनती थी,सोते भी और जागते भी! उसकी इस दीवानगी से बिल्कुल बेखबर रवि अपनी धुन में मगन रहता था। पढ़ाई ही रवि का एकमात्र जुनून था और आई ए एस अफसर बनना एकमात्र सपना!
जबकि शालिनी का जुनून रवि का प्यार पाना था और उसकी पत्नी बनकर साथ रहना एकमात्र सपना! दोनों अपने अपने सपनों और जुनून के साथ आगे बढ़ रहे थे।
कभी कभी सुलोचना जी शालिनी के प्रति रवि की उदासीनता देखकर चिंतित हो जाती थीं और पति से इसका ज़िक्र करतीं पर वो इसे उसके उच्च संस्कार का असर और पढ़ाई पर अधिक ध्यान देने से समय की कमी कहते थे! पर शालिनी को कभी-कभी बड़ा अजीब लगता था।वो सोचती थी कि जिस तरह मैं रवि को लेकर सपने बुनती हूं क्या वो मेरे बारे में कुछ नहीं सोचता? उसका मन नहीं करता मुझे देखने का, बातें करने का, छूने का! कभी कोई फिल्म देखते हुए रोमांटिक सीन जिस तरह मुझे उसकी याद में बेकरार करते हैं,क्या उसका मन कभी ऐसे बेकरार नहीं होता? हर किताब कॉपी के पिछले पन्ने रवि के नाम से भरे रहते थे। कभी मेहंदी के डिज़ाइन में तो कभी यूं ही आड़ी-तिरछी रेखाओं में वो रवि का नाम उकेरती उसके सपने देखती हुई यौवन की दहलीज पर कदम रखकर आगे बढ़ती रही! पर मन की ये बातें वो किससे कहती? मन की कोरी स्लेट पर वो रवि के नाम अनगिनत इबारतें रचती और फिर अपने आंसुओं से स्लेट धोकर साफ कर देती!ना तो रवि के पास समय था वो सब देखने-पढ़ने का और ना अब शालिनी के पास उसे दिखाने की ललक ही बची थी।
ऐसे ही समय गुज़रता गया । शालिनी के बड़े भाई-बहन की शादी हो चुकी थी और वो खुद भी ग्रेजुएट हो गई थी। तब सबकी सहमति से उनकी विधिवत सगाई कर दी गयी। रवि आई ए एस की तैयारी कर रहा था। शालिनी ने देखा सचमुच रवि के पास पढ़ने के अलावा किसी और काम के लिए समय नहीं था। इससे उसको अपने मन में कुछ संतोष सा भी महसूस हुआ। इसलिए सगाई के बाद कभी-कभी वो ही फोन कर लेती थी और बहुत संक्षिप्त औपचारिक बातचीत के बाद रवि फोन रख देता था। आमतौर पर वो खुश रहती थी पर जब सब सहेलियाँ उसको जब रवि के नाम से छेड़ती थीं तो रवि की उदासीनता याद आ जाती थी और फिर मन करता था कि फूट-फूटकर रोए... रोज़ रोज़ के लिखने मिटाने के खेल में मन की कोरी स्लेट तो जैसे बदरंग हो चली थी।अब उस पर कुछ लिखो भी तो नज़र आना मुश्किल था। तपती धूप में झुलसे पत्ते की तरह शालिनी की प्रेमातुर आत्मा भी रवि के रूखेपन से झुलसने लगी थी। कभी कभी उसका मन करता माँ से सब कह देने का पर संकोच और शर्म से चुप रहती थी।
एक बार उसने अपनी भाभी से मन की बात कहने की कोशिश की "भाभी… रवि का व्यवहार कुछ अजीब सा लगता है मुझे!"
"अरे! क्या हुआ? कुछ कह दिया क्या उसने?" रायता बिलोती भाभी मुस्कुरा उठी
"कहता ही तो नहीं भाभी?" वो खुले बालों को सहलाने लगी
"मतलब?" भाभी की आवाज़ में कुछ आश्चर्य था।
"मतलब ये कि बहुत बचपन से हमारी शादी तय है! तो…" खुले बालों को जूड़े में कसते हुए वो कुछ कहते कहते रुक गई। जब भी वो कुछ असमंजस की स्थिति में होती थी तो बालों को कसकर जूड़े में लपेटने लगती थी।
"तो क्या?" रायता बिलोती भाभी के हाथ रुक गए।
"तो मतलब… बातचीत तो कर ही सकते हैं ना!"
"कितनी ही बार तो फोन पर बात करते हो तुम लोग! और कैसे बात करनी है?"
"वो तो बस यूं ही पढ़ाई-लिखाई की बातें होती हैं।"
"हाँ तो पढ़ने की उम्र में पढ़ाई की बात ही तो होगी!" भाभी जानबूझकर अनजान बन रही थीं।
"वो कुछ भी प्यार-व्यार की रोमांटिक बातें तो करता ही नहीं है! सूमड़ा कहीं का!" झुंझला उठी शालिनी।
"तो आप चाहती क्या हो? पढ़ाई-लिखाई और कैरियर छोड़कर रोमांस करते रहें? फिल्में देख देख कर आपका तो दिमाग ही खराब हो गया है!ज़िन्दगी कोई फिल्म नहीं होती!" भाभी ने घूर कर देखा ।
फिर शालिनी का लटका हुआ मुंह देखकर भाभी ने थोड़ा नरमाई से समझाने की कोशिश की "आपके भाई ने कौन-सा शादी के पहले रोमांस किया था मेरे साथ?पर शादी के बाद तो देख ही रही हो कि कितना प्यार करते हैं मुझे!सब लड़के ऐसे ही होते हैं! आप चिंता मत करो शादी होते ही दीवाना हो जाएगा रवि आपका "
पर वो कहाँ उस फिल्मी रोमांस की बात कर रही थी! कोई न समझ सकता था।कम से कम एक लगावट, एक खिंचाव या आत्मीयता तो महसूस हो! रवि कभी भी आगे बढ़कर न बात करता था न मिलने की कोशिश करता था! कहने को तो वो जाने-पहचाने परिवार में ब्याही जा रही थी पर वो ही जानती थी कि किस अजनबी से बँधने वाली थी उसके जीवन की डोर!मन में अनगिनत उलझनें लेकर साल बीतते बीतते शालिनी आखिर उस घर की बहू बन ही गयी। हर कोई खुश था दो लोगों के अलावा!एक थी आशंकित और एक था निर्लिप्त ! शालिनी को लगता था कि शादी की बाकी सभी रस्मों की तरह शादीशुदा जीवन की शुरुआत भी ठीक-ठाक हो ही जाएगी।
क्रमशः