त्रिखंडिता - 5 Ranjana Jaiswal द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

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त्रिखंडिता - 5

त्रिखंडिता

5

पराकर्षण

अपनी बाल.सखी सीमा के दमकते चेहरे को अनामा देखती रह गयी। इतना अपूर्व रूप! सीमा पहले भी सुंदर दिखती थी, पर इस समय उसके चेहरे पर नवयौवन की ताजगी मधुरिमा व कमनीयता एक साथ उतर आई थी। अनामा जान गयी कि सीमा प्रेम में है। प्रेम ही स्त्री को इतना सुंदर, शांत और आभामय बना सकता है। कुछ दिनों पूर्व तक वह मुरझायी और चिड़चिड़ी-सी थी। कम उम्र में शादी फिर एक-एक कर तीन बच्चे, घर-गृहस्थी की पूरी जिम्मेदारी और ऊपर से ससुराल वालों का अत्याचार। सीमा रात-दिन खपती रहती। अनामा को बड़ी तकलीफ होती। उसकी सबसे प्यारी सखी जिन्दगी जीना ही छोड़ चुकी थी। जब पन्द्रह की उम्र में उसकी शादी तय की गई, तभी अनामा ने विरोध किया था, पर सीमा के अभिभावकों के आगे उसकी एक ना चली। लड़का दुहाजू, परिपक्व और काफी खेला-खाया इंसान था, जबकि सीमा बहुत ही इन्नोसेंट थी। अनामा को यही डर लगा कि वह मासूम बच्ची उस पट्ठे को कैसे झेल पाएगी ? उसका डर गलत नहीं था। सीमा ने ससुराल से लौटकर बताया कि उसका पति अशोक बड़ी निर्ममता से उसके साथ सहवास करता है। रात होते ही वह डर से कॉपने लगती है। उसे अपने ऊपर से ढ़केलने की कोशिश करती है, पर सफल नहीं हो पाती। उधर उसकी कर्कशा सास घर के सारे काम उसी से कराती है और तरह-तरह से परेशान करती है। फूल सी बच्ची पर उसे दया नहीं आती। अनामा को यह सब जानकर दुख हुआ, पर क्या कर सकती थी ! जब उसे मात्र सत्रहवें साल में ही सीमा के गर्भवती होने की खबर मिलीं तो उसे गुस्सा आया। बहन को डॉटा तो बोली- सास रात-दिन बांझ होने का ताना मारने लगी थी, क्या करती उसकी उम्र कम है, पति की तो नहीं। अनामा उस रात सो नहीं पाई जिस रात सीमा ने बच्ची को जनम दिया। उसकी पीड़ा की कल्पना करके ही उसके रोंगटे खड़े हो गए। आखिर आपरेशन करना ही पड़ा था और सीमा एक बच्ची की माँ बन गयी थी। फिर तो साल के अन्तराल पर दो बच्चे और हुए, एक लड़की और एक लड़का। 21 वर्ष की उम्र में वह तीन बच्चों की जिम्मेदारी से लद गयी। किसी तरह उसका ग्रैजुएशन पूरा हुआ था, वह भी अनामा की दखल अंदाजी के कारण, वरना वह मात्र इंटर ही रह जाती। अनामा जब भी उससे मिली वह अपने पति का रोना रोती रही। पति शादी से पहले की प्रेमिकाओं के बारे में बताकर उसे कुढाता था। यहॉं तक कि शादी की पार्टी में उसकी एक प्रेमिका मुख्य कार्यभार सँभाले हुए थी। इतना ही नहीं वह नीली फिल्मों का आदी था और उसके सारे टिप्स सीमा पर आजमाना चाहता था। सीमा विरोध करती तो लड़ाई करता और धमकी देता कि दूसरी औरतों के पास चला जाएगा।

सीमा की सास पानमती एक दिलजली औरत थी। ऊँचे डील-डौल और भयावह चेहरे वाली। सफेद बालों और बिल्ली सी आँखों के कारण वह और भी डरावनी लगती। अनामा तो पहली बार उसे देखकर बुरी तरह डर गयी थी। किसी दानवी से कम नहीं लगती थी, ऊपर से स्वभाव भी उतना ही कठोर था | सीमा को वह ’पीस’ डालती थी। गाली देना उसके स्वभाव का हिस्सा था। पूरे घर पर उसका ही राज चलता था। बाद में पता चला कि उसे अपने जीवन में जो कड़वाहट मिली थी, उसे ही बहू को लौटा रही थी। अपने पति की भी वह खूब लानत-मलामत करती थी जैसे जवानी के दिनों का बदला चुका रही हो। उसका बाल-विवाह हुआ था। उन दिनों लड़की देखने की प्रथा न थी, खानदान, परिवार के बड़ों की इच्छा से ही शादियाँ हो जाती थीं। गौने में जब पानमती ससुराल आई, तो उसको पति और सास किसी ने पसंद नहीं किया। उसके साथ खूब दुर्व्यहार किया गया। यहाँ तक कि पति ने उसे पूरी तरह अपनाया नहीं और एक दिन उसे मायके पहुँचा दिया। शादीशुदा होते हुए भी पानमती कुमारी थी और रात-दिन अपने नसीब को रोया करती। पति दुबई में काम करता था। उसे छोड़कर दुबई चला गया पर किसी जानकार ने बताया कि वह दुबई में किसी पहाड़ी स्त्री के साथ रहता है और उसको एक बेटा भी हुआ है। पानमती यह खबर सुनकर अपने ससुराल आकर बैठ गयी। उसके पिता ने समझाया था कि वह अपना हक ना छोड़े। उसके सास ससुर को भी पुत्र की कारस्तानी का पता चल चुका था। उन्होंने उसे वापस बुलाया और नौकरी छोड़कर आने को कहा | तब फूलमती के पति ने एक अनोखा निर्णय लिया | उसने पहाड़ी स्त्री के उसके पुत्र के साथ ट्रेन में बिठाया और पानी लाने के बहाने उतर गया। ट्रेन चली गई। पहाड़ी स्त्री कहाँ गयी? उसका क्या हुआ ! बच्चे का क्या होगा? इसकी चिन्ता छोड़कर वह अपने घर-परिवार मे लौट आया। पानमती भारतीय स्त्री थी, पति के किए-धरे पर पानी डालकर पत्नी धर्म निभाने लगी। चार बच्चे हुए। उसके पति ने फिर कोई गलत काम न करने की कसम ली और दुकान खोलकर बैठ गया। पर पानमती उसकी बेवफाई को कभी भूल नहीं पाई। सीमा बताती है कि एक बार पहाड़ी स्त्री का लड़का दुकान पर आया था| पर ससुर ने उसे पहचानने से इन्कार कर दिया, जबकि वह हुबहू पिता की शक्ल-सूरत का था। इसे सामाजिक व पारिवारिक मर्यादा कहें कि अमानवीयता पर उस आदमी को कोई फर्क नहीं पड़ा। अब वह पत्नी का भक्त थ। उसके अनुसार ही उठता-बैठता था। यहाँ तक कि बहू को कोसने में सास के भी कान काटता था। ऐसे पिता का पुत्र अशोक भी कमीनेपन में पिता पर गया था। उसकी पहली शादी एक सामान्य लड़की से खूब दहेज लेकर की गयी थी। ससुराल आकर लड़की को अत्याचार सहना पड़ा, तो वह मायके जाकर बैठ गयी। अशोक देखनें में आकर्षक था। महानगर में रहने और ग्रैजुएट होने का भी उसे गर्व था। माँ-बाप के दुलार ने उसे इतना बिगाड़ दिया था कि हर महीने नयी लड़की से इश्क लड़ाता। शादी के बाद उसकी लम्पटई तो छूट गयी पर सीमा को वह मात्र देह समझता था। उसे सेक्स की जबर्दस्त भूख थी। उसकी हर नाराजगी का जवाब था देह ! सीमा उसकी इस कमजोरी को समझने लगी थी। पति से कोई बात मनवानी हो या उसे खुश करना हो तो सीमा के शब्दों में-’बिस्तर पर लेट जाती हूँ, जो चाहें कर लो ।’ पर इस विवशता ने सीमा के मन में पति के प्रति घृणा का बीज बोया। औरत को मजबूर करके उसकी देह पर काबिज़ होने वाला कभी भी उसका सच्चा प्यार नहीं पा सकता। ऐसी औरत अपने जीवन में प्यार का आगाज पाकर उसकी ओर दौड़ पड़ती है। सती धर्म, पत्नी धर्म ही नहीं मातृत्व भी उसे रोक नहीं पाता और यही सीमा के साथ हुआ था।

आजकल वह प्रेम में थी। अनामा जानती है कि सीमा का यह कदम सही नहीं है। इसका प्रभाव उसके बच्चों पर बुरा पड़़ेगा। उसकी बनी-बनायी गृहस्थी तबाह हो जाएगी, पर उसके दमकते चेहरे, खुशी से खिले मन को देखकर सोचने पर मजबूर है कि क्या किसी विवाहित स्त्री को प्रेम करने का अधिकार नहीं! क्या यह पाप है, ?अनैतिक है, अधर्म है! अगर ऐसा है तो इसमें इतना सुख......सौन्दर्य...आनन्द, तृप्ति क्यों है ? विवाहिता राधा ने भी तो कृष्ण से प्रेम किया था.... क्या वह गलत था ! मीरा भी तो कुमारी नहीं थी। अनगिनत ऐसे उदाहरण है जब विवाहिताओं ने समाज की मर्यादा के खिलाफ जाकर प्रेम किया। समाज भले ही इसे वासना का अतिरेक माने पर इतिहास गवाह है, ऐसा हमेशा होता रहा है। भले सारे केस जनता की अदालत तक न पहुँच पाए हों। छिप-छिपाकर तो आज भी ऐसे रिश्ते निभाए जा रहे हैं। शायद परकीय का आकर्षण जबर्दस्त होता है। कोई नसीहत, कोई आदर्ष कोई सबक इसका रास्ता नहीं रोक सकता। रोकने वाला शत्रु नजर आने लगता है। सीमा को रोकना भी कठिन है। अनामा को उसकी किशोर बेटियों की चिन्ता हो रही है, जो उसकी दोस्ती से वाकिफ़ है पर इस बात को पिता को नहीं बतातीं| पर अगर कल वे भी दोस्त (?) बनाएँ तो क्या सीमा उन्हें रोक पाएगी ? बेटा भी समझदार हो रहा है। वह तो पुरूष जाति का है, जिसे माँ के दोस्त कभी नहीं सुहाते ? पति को भी शायद आभास होने लगा है कि पत्नी अब सिर्फ उसकी नहीं रही। वह बूढ़े असहाय शेर की तरह दहाड़ता है, पर उसकी दाँतों व नाखूनों में पहले की तरह पैनापन नहीं रहा। उसकी ज्यादतियों का अब सीमा प्रतिकार करती है। सास-ससुर की मृत्यु तो बारह वर्ष पूर्व ही हो चुकी है। ननदें ससुराल हैं। छोटा देवर पत्नी के साथ अलग रहता है। अब वह किसके भरोसे पत्नी के खिलाफ कदम उठाए ? फिर सीमा इतनी सतर्क रहती है कि कोई सबूत नहीं मिलता। अपना फर्ज भी वह बखूबी निभा रही है। बच्चों की पढ़ाई-लिखाई, रसोईघर के ए टू जेड सारे काम, बाजार-हाट सब उसके ही जिम्मे है, जिसे वह पूरी शिद्दत और मनोयोग से निपटाती है। यहाँ तक कि बिस्तर पर भी पति को नहीं रोकती। बस वह अपने लिए फोन पर बात करने का समय निकाल लेती है ।अपने सजने-सॅवरने का ध्यान रखती है। वह दिन पर दिन निखर रही है | बस यही अशोक को खलता है। वह भूल रहा है कि सीमा अब जाकर पूर्ण युवा हुई है। यौवन के चरम पर है। उस पर प्रेम के आगमन ने सोने पर सुहागे का काम किया है। वह उसके सौन्दर्य, यौवन व खुशी से जलने लगा है, पर उसका कुछ बिगाड़ भी तो नहीं सकता। अपनी ढ़लती उम्र, विदा ले रहे आकर्षण और अकेलेपन से घबरा रहा है। अब वह चाहता है कि सीमा उससे प्रेमिका की तरह पेश आए| उससे खूब प्यार करे, पर सीमा सिर्फ देह देकर उससे मुँह मोड़ लेती है। उसके सपनों में कोई दूसरा है। कहती है जब बच्चों के प्रति सारे कर्तव्य पूरा कर लेगी, तब उसके साथ रहेगी, अभी नहीं क्योंकि वह भी अपने परिवार के दायित्यों से बँधा है। उनमें सच्चा प्यार है इसलिए दूर रहकर भी वे एक-दूसरे के पास हैं.....साथ है। जबकि देह से पास रहकर भी दोनों पति व पत्नी काफी दूर। ’नियरि रह कॉटा फूल जस चॉटा’। काँटा फूल के निकट रहकर भी उससे काफी दूर होता है। पर चींटा दूर होकर भी फूल के पास आ जाता है।

संबंधों का यह कैसा माया जाल है। किसी का स्पर्श हमें आत्मीय लगता है किसी का घृणित। आखिर क्यों ? हर इंसान के अंदर वही तो आत्मा है वही मन। वही देह। देह में भी वही आँखें, होंठ, हाथ पैर सब वही फिर क्यों किसी के साथ बिलकुल अलग-सा आभास होता है !सीमा से वह क्या कहे ! क्या समझाए ! वह नहीं चाहती सीमा का भी वही हस्त्र हो, जो अभी हाल ही में उसकी सहकर्मी सपना का हुआ। वही सपना जो प्रेम के नषे में मादक हो उठी थी...... अप्रतिम सौन्दर्य की स्वामिनी, आजकल कैसी-बुझी-बुझी सी दिखती है। डिप्रेशन की शिकार है। वह भी पति-बच्चों वाली थी, पर विवाहित शशांक के प्रेम में पड़ गई थी। दोनों ने हर सीमा पार कर ली। कार में, होटलों में कई बार शारीरिक रूप से मिल भी चुके थे, पर एक दिन शशांक ने सपना के चरित्र पर अंगुली उठा दी कि-पता नहीं तुम्हारा कितनों से संबध होगा। सपना टूट गयी। उसे आभास हुआ कि अपने पति से बेवफाई करने वाली स्त्री से कोई भी दूसरा पुरूष प्यार नहीं कर सकता। वह हमेशा यही सोचेगा कि जब यह पति को धोखा दे सकती है तो फिर उसे भी देती होगी। सपना को धक्का लगा कि जिसके लिए उसने अपना धर्म-ईमान, इज्जत-प्रतिष्ठा, घर-परिवार सब दॉंव पर लगा दिया, वह उसे कुलटा ही समझता है। गनीमत है कि उसका पति उसके बच्चे उसके साथ है पर उसके अंदर भयंकर अपराध बोध है जिसने उसे शारीरिक और मानसिक रूप से बीमार कर दिया है।

अनामा सीमा से सपना के बारे में बताती है तो वह कहती है कि-सपना अय्याशी करने लगी थी, पर वह प्रेम करती है। शारीरिक संबंध उसने नहीं बनाया हैं। अनामा उससे हाथ जोड़ती है कि कभी भूलकर भी वह यह गलती न करे क्योंकि ऐसा करते ही वह सपना वाली स्थिति में पहुँच जाएगी। सीमा आश्वस्त तो करती है, पर अनामा को पता है कि सीमा का संबंध उस स्टेज तक पहुँचेगा जरूर। स्त्री पुरूष में सिर्फ दोस्ती कहाँ रह पाती है? किसी न किसी कमजोर क्षण में दोनों के बीच की सारी दूरियाँ मिट जाती हैं । दूरियाँ मिटना बुरी बात नहीं, पर अक्सर नजदीकी के बाद पुरूष बदलने लगता है। वह उसी ऊब, एकरसता और अतिपरिचय का शिकार हो जाता है, जो अपनी पत्नी के प्रति होता है। दूसरी औरत भी उसे मात्र देह लगने लगती है और अविश्वासनीय भी | जबकि औरत अपना सर्वस्व अर्पण करने के बाद और तेजी से उसकी ओर भागती है। अधिक अधिकार जताती है। उसकी मांगें भी बढ़ जाती है। वह पत्नी जैसा हक पाना चाहती है और वह दिव्य प्रेम यथार्थ के धरातल पर आकर ’लस्ट’ कहलाने लगता है। अनामा को डर है कि सीमा के प्रेम का परिणाम भी यही न हो। अगर ऐसा हुआ तो वह अपना सौन्दर्य, आत्म विष्वास खो बैठेगी। पति और बच्चों की नजरों में भी उसके प्रति वह सम्मान नहीं रहेगा। फिर वह भी मनोरोगी हो जाएगी। पर उसे कैसे रोका जाए? सपना का परिणाम भी उसकी आँखें नहीं खोल पा रहा। वह कहती है- आत्मिक प्यार करती हूँ दुनियावी नहीं। स्वार्थ के लिए किया गया प्रेम दुख देता है। प्रेम कहानियों की नायिकाओं सा मेरा निस्वार्थ प्रेम है, सपना की तरह धन, कपड़ों -गहनों के लिए मैं प्रेम नहीं करती।’

पर अनामा देख रही है कि सीमा के रहन-सहन, गहनों-कपड़ों, खाने-खर्चे में जो शाही अंदाज आया है | वह उसके प्रेमी के कारण ही है। प्रेमी की पत्नी के बारे में वह बताती है कि 'वह उनसे प्यार नहीं करती। हमेशा पैसे की माँग करती है। बेचारे बहुत दुखी हैं ।’ अनामा जानती है पुरूष के ये सारे हथकण्डे बड़े पुराने हैं । दूसरी स्त्री के मन में जगह बनाने के लिए सदियों से वह अपनी पत्नी की बुराई करता आया है। काश, उसे दूसरी स्त्री इतनी आसानी से उपलब्ध नहीं होती, तो पत्नी के महत्व को समझता। काश, दूसरी स्त्री यह समझती कि वह जिस पहली स्त्री की बुराई सुनकर गौरवान्वित हो रही है, उसके पास ही एक दिन पुरूष लौट जाएगा, फिर वह बुरी कहलाएगी। दो स्त्रियों के बीच ईर्ष्या, घृणा व बदले की भावना भरकर हमेशा ही पुरूष मजे करते आया है।'जरूर उसका भी तुमसे कोई स्वार्थ होगा', उसकी इस बात पर सीमा कहती है-’बस मीठी बातें, प्यार की बातें, दुःख-दर्द का साझा, अपनेपन की छुअन के अलावा और कुछ नहीं।’ पता नहीं सच क्या है ! पर वह नहीं चाहती कि सीमा के जीवन में तूफान आए। पराकर्षण वह तूफान होता है जो आता दूसरे कारणों से है पर उसका खामियाजा सिर्फ स्त्री भोगती है ।