दह--शत - 54 (2) 282 867 एपीसोड -54 समिधा गुस्सा दबाती सी डी शॉप की सीढ़ी चढ़ जाती है। वह लम्बा व्यक्ति समिधा को घूरता हुआ अपनी बाइक पर उसे देखता सीटी बजाता किक लगा रहा है। अनुभा के सिवाय किसी को नहीं पता था कि वह देवदास के गाने पर डाँस करना चाह रही है तो फिर? फिर? ओ ऽ ऽ. ऽ...... उसके फ़ोन के भी कान है, यह बात तो वह भूल गई थी। वह अक्षत को फ़ोन करती है, “अक्षत ! अपनी देवदास की डीवीडी तुम अपने फ़्रेन्ड के हाथ भेज दो।” डी वी डी अक्षत से मँगाकर वह गुंडों को दिखाना चाहती है कि उसके भी अपने हैं। अनुभा को फ़ोन करती है ,``मुझे देवदास की सी डी मिल गई। `` उसे पता लगता है इस फ़िल्म के गाने पर और मिसिज पुरोहित डाँस कर रही हैं। एक फ़िल्मी शास्त्रीय गीतों की सीडी मँगवाती है। इन पुराने गानों से ज़माना बहुत आगे निकल गया है। बार-बार ‘अमि जे तो माय, शुधु जे तोमाय।’ गाना याद आ रहा है लेकिन इतना द्रुत गति से नृत्य कैसे कर पायेगी? तीज पास है, गुँडे कुछ न कुछ गुल खिलायेंगे ही। वह अभय को झूठा एस.एम.एस. भेजती है, “जल्दी ही प्रशासन वर्मा को हिप्नोटाईज़ करवा कर टेस्ट करवायेगा।” समिति की उपसचिव का फिर फ़ोन आता है,“मैडम अणिमा जी आपको याद कर रही हैं।” अब उसे उनसे बात करनी ही होगी, “मैडम ! गुडमॉर्निंग।” “भई कहाँ थीं आप? आप अपने डाँस का गाना बता दें जिससे हमें प्रोग्राम सेट करने में सुविधा हो।” “जी ! मैं ‘अमि जो तोमाय....।’गाने पर डाँस करना चाह रही थी। ये टफ़ है लेकिन इतनी जल्दी पार्टनर मिलना मुश्किल हैं।” वह अब सच ही जान छुड़ाना चाह रही है। अणिमा जी उत्साहित हो उठती है,“ये गाना बहुत प्यारा है। आप अकेले ही कर दीजिए। अलग वैरायटी हो जायेगी।” “इतनी जल्दी तैयारी नहीं हो पायेगी।” “आपके सोलो डांस के बिना तीज फंक्शन अधूरा रहेगा।” “ ओ.के.”वह घिर गई है। “आप परसों रिहर्सल दिखा दीजिए।” “ओ नो ! अभी तो मैंने ध्यान से गाना भी नहीं सुना है। सोमवार को चलेगा।” “ठीक है बुधवार को अपना फ़ंक्शन है।” समिधा ध्यान से इस गाने को डीवीडी पर देखकर बौखला जाती है। वह क्या निर्णय ले बैठी? इस द्रुत गति के शास्त्रीय संगीत की ताल पर वह नृत्य कैसे कर पायेगी? भारत नाट्यम तो कभी सीखा भी नहीं है। सोमवार को रिहर्सल दिखाने क्लब देर से पहुँचती है। कहीं उसकी हँसी न उड़ जाये वह बार-बार हाँफ़कर नृत्य करती रुक जाती है। अणिमा जी बड़ी सभ्यता से उसे समझाती हैं, “आप इसके बीच के क्लासिकल म्यूज़िक को एडिट कर कम करवा लीजिए। तब आसानी से डाँस कर पायेंगी।” क्लब से समिधा थके कदमों से लौट रही हैं कैसे ये सब होगा कविता के फ़्लैट की तरफ आदतन नज़र जाती है। उसके सारे दरवाजे खिड़कियाँ बंद हैं। रात में भी ये बंद दिखाई देते हैं। दूसरे दिन उस मार्केट की म्यूज़िक शॉप में पता लगता है। बंगाली की दो पंक्तियों वाले गाने की सीडी को रिलीज़ नहीं किया गया है। हिन्दी की लाइनें वाले गाने को कोई इतनी जल्दी एडिट करने को तैयार नहीं है। नुक्कड़ की म्यूजिक शॉप का काला व मोटा दुकानदार कहता है,“गाना एडिट तो कर दूँगा लेकिन डेढ़ सौ रुपये लूँगा। कल सुबह आपको सी डी मिल जायेगी।” “डेढ़ सौ रुपये एक गाने के?” वह आगे बढ़ जाती है लेकिन तीन-चार दुकानों पर पूछकर हारकर वहीं आ जाती हैं,“ठीक है, आप ही एडिट कर दीजिए लेकिन सी डी सुबह दस बजे ही चाहिये।” “सुबह कैसे मिल जायेगी? शाम को छः बजे दे पाऊँगा।`` “अभी अभी तो आप कह रहे थे सुबह दस बजे दे दूँगा।” “आपको एडिट करवाना हो तो बोलिए।” उस काले मोटे चेहरे की लाल आँखों में व्यंग है। बिकी हुई मुस्कान से वह बेहयाई से मुस्करा रहा है। वे तेज़ी से आस-पास नजर डालती है। कोई ख़ाकी वर्दी वाला नहीं दिखाई दे रहा है। कहीं तो कोई है जो परछाई सा केम्पस से यहाँ तक उसके साथ आ गया है। X XXX फ़ंक्शन से एक दिन पहले केम्पस का बिजली का ट्राँसफ़ॉर्मर ख़राब हो गया है। सारे केम्पस में लाइट नहीं है। समिधा बिना सी डी के प्रेक्टिस करती रहती है। समिधा तीज के समारोह में क्लब के हल्के गुलाबी रंग के हॉल में छत के गुलाबी झिलमिलाते झाड़ फानूस के नीचे पैरों में घुंघरु बाँधकर अपनी उम्र के जाने कितने वर्ष पीछे ढकेल, हरे पत्तों व फूलों से सजे तोरण बँधे मंच पर नाच उठती है। फूलों से सजे मंच के द्वार के बीच रंगोली सजी है। दोनों ओर पीले व लाल रंग के पाँच-पाँच मिट्टी के कलस रखे हैं। उपर वाले कलस में रखा नारियल व हरे पत्ते भी इस ताल पर थिरक रहे हैं। शास्त्रीय संगीत की ताल पर उसके घुंघरु ताल दे रहे हैं छन..... छन..... छन..... छन......। उसके घुंघरु की तेज़ धमक शत्रुओं की चालों को कुचल कर विजयनाद कर रही है। छन..... छन.... छन..... इन घुंघरुओं की ताल सुनो ! इस नृत्य को रोकने वालों ! समिधा जैसे मौन कह रही है मेरे पैर हर ताल पर तेज थाप देते तुम्हारे भयंकर इरादों को मसल रहे हैं। नृत्य के बाद ग्रीन रुम में तीन चार प्यारी सी बच्चियाँ उसे घेर लेती हैं, “आँटी ! आपने बहुत अच्छा डाँस किया है।” सब ओर से बधाईयाँ समेटती समिधा मुस्करा उठती है, ये एक विजयी मुस्कान है। क्लब में थिरकती समिधा को देख कौन विश्वास करेगा कि महीने भर पहले उसे ट्रक से कुचलने की कोशिश की गई थी, वह भी अणिमा जी के पति वरदहस्त के तले। इस घुंघरुओं की झनकार से दुश्मनों के कान के पर्दे थरथरा गये होंगे। अब उतना ही भयानक वार होने वाला है। वह क्या होगा? ये तो समय ही बतायेगा। X XXX शुक्रवार को अभय कहते हैं, “अश्विन पटेल अपने घर अपने बेटे की शादी की खुशी में दोस्तों को पार्टी दे रहा है।” “ठीक है।” ऊपर से शांत समिधा अंदर से विचलित हो उठी है। नृत्य की थकान है किंतु तीसरे प्रहर वह एम डी ऑफ़िस की तरफ़ चल देती है। मैडम के सामने बैठ उसे लगता है। इस बीच हुई घटनाओं के क्रम से मैडम की उसे अतिरिक्त सहानुभूति मिलेगी लेकिन मैडम काफ़ी देर तक सामने रखी फ़ाइल में निर्विकार डूबी रहती हैं। वह थोडी देर बाद पूछती हैं, “कहिये।” “मैं जो पत्र आपके पी.ए. को देती रही थी, वे आपको मिल गये होंगे।” “जी।” “मैं क्या करूँ मैडम इस में? मैं दिल्ली प्रेसीडेंट साहब को अपना केस रिप्रेज़ेन्ट करना चाह रही हूँ।” “आपने रिपोर्ट तो मल्होत्रा साहब को की थी। अब तो नये प्रेसीडेन्ट शतपथी साहब आये हैं।” “तो क्या हुआ विभाग तो वही है जहाँ से मुझे कम्प्लेन नंबर मिला था।” मैडम निरुत्तर हैं। वह पूछती है, “क्या आप मेरा केस ‘रिकमन्ड’ करेंगी? क्या आपने कुछ ‘इन्वेस्टिगेट’ किया है?” “नहीं।” वह दृढ़ता से कहती है, “यदि मुम्बई से यहाँ कम्प्लेन आयेगी तो मैं उसे देखूँगी।” “फ़ाइल पर क्या देखेंगी? झूठ ? और जो मैं आपसे कह रही हूँ वह सब.....?” “पहले केस तो देख लूँ।” वह साफ़-साफ़ नज़रें चुरा रही हैं। आमने सामने बैठी हैं दो औरतें। एक ‘फ़र्स्ट मैन ऑफ़ द केम्पस’ के ओहदा सम्भाले जिनका प्रशासन मुम्बई से इस शहर तक फैले सुरक्षा विभाग की सहायता से चलता है। उन बंदूकधारी लोगों से वह समिधा के कारण क्यों दुश्मनी मोल लें ? औरत ही क्यों यहाँ कोई पुरुष बैठा होता तो उसकी भी यही मज़बूरी होती। और समिधा ? सच ही औरत होने की मज़बूरी से घिरी बैठी है। प्रशासन व परिवार भी तो एक व्यवस्था है यानि कि ‘सिस्टम’। लत से अँधे हुए अभय। हर दिन उन्हें विकेश, सुयश व कविता अँधा बनाते हैं। समिधा चाहकर भी कोई कड़ा कदम नहीं उठा सकती क्योंकि उस कदम से कहीं उसके रोली व अक्षत आजीवन न दंशित होते रहें। प्रशासन हो या परिवार इन दोनों को सम्भाले है आमने-सामने बैठी दो स्त्रियाँ। अपनी-अपनी मज़बूरी से अंदर ही अंदर छटपटाती हुई। हर व्यवस्था में बदमाशों, मानसिक रूप से विक्षिप्त लोगों को साथ में लेकर चलना पड़ता है। समिधा उठ जाती है, “आप केस रिकमन्ड कर पायेंगी या नहीं ?” “पहले केस स्टडी कर लूँ।” वहाँ से समिधा बोझिल कदमों से लौट रही है।वह कह नहीं पाती ,इतने महीनों में आप चाहतीं तो केस स्टडी कर सकतीं थीं। लौटते में उसकी नज़र कविता के बंद घर पर पड़ती है। पता नहीं क्यों वह सशंकित है। शनिवार की दोपहर को वह अभय को मोबाइल पर एस.एम.एस. से तीर छोड़ देती है, “कल एम.डी. कार्यालय से पता लगा कि कविता शहर में ही कहीं नया अड्डा बनाये रह रही है।” शाम को अभय बहुत लापरवाह मूड में है जैसे उन्हें एस.एम.एस. मिला न हो। वह पूछती है, “आप पार्टी में कितने बजे जाँयेंगे?” “साढ़े सात बजे।” समिधा शाम को सात बजे ही नहा धोकर साढ़े सात बजे ही वह अभय के साथ घर से निकल पड़ती है, “मुझे मार्केट में ‘ड्रॉप’ कर दीजिये। ” अभय का चेहरा तन जाता है, वह बोलते कुछ नहीं है। बाज़ार के बीच में वह पूछते है, “कहाँ ड्रॉप करूँ?” “मैं तुम्हारे साथ पटेल के घर तक चलती हूँ।” “साइकिक हो रही हो क्या?” “मैं या तुम्हारे गुँडे दोस्त? तुम्हें उस बदमाश औरत से मिलवाने की नित नई साजिश कर तुम्हारा घर बर्बाद करना चाहते हैं।” “तुम क्या बकती रहती हो? तो सुन लो पार्टी पटेल के यहाँ नहीं विकेश के घर है। तुम उसके घर जाओगी नहीं ?” “क्यों नहीं जाऊँगी? देखूं तो सही उसने किन-किन लोगों को पार्टी में बुलाया है। भागते हुए स्कूटर पर दोनों के शरीर में तनाव है। विकेश ने दो वर्ष पूर्व ही नया मकान लिया है, समिधा ने देखा नहीं है। पार्टी के बहाने अभय को शनिवार को घर से बाहर निकाला है। कविता शत-प्रतिशत यहीं शहर में है। इस पार्टी में बहाने से अभय को ड्रग दी जायेगी। अभय उनके चंगुल में फँस फिर घर में तांडव मचायेंगे तो समिधा का नृत्य की सफ़लता का नशा चूर-चूर होना ही है। उनका स्कूटर विकेश के घर के सामने रुकता है। जाली वाले दरवाजे से उसका ड्राइंग रुम दिखाई दे रहा है। बाँयी तरफ सोफ़े पे बैठे हैं विकेश व प्रतिमा। दाँयी तरफ कुर्सी पर बैठे अश्विन पटेल की आधी झलक दिखाई दे रही है। विकेश उसे देखकर हड़बड़ाकर उठकर दरवाजा खेलता है व व्यंग से उस पर आँखें गढ़ा कर कहता है, “आइये...आइये।” वह भी तल्ख़ी से कहती है, “मैं आने के लिए नहीं आई हूँ।” फिर अंदर जाकर अश्विन पटेल से कहती है, “इनकी तबियत ख़राब है, पार्टी के बाद आप इन्हें घर तक छोड़ दे।” “ओ.के. प्लीज़। आप बैठिये।” “नहीं, मैं चलती हूँ।” “मैं तुम्हें मेन रोड पर छोड़ देता हूँ।” ये कहते हुए अभय का चेहरा बुरी तरह उतरा हुआ है। हल्की-हल्की बूँदों में ऑटो रिक्शे में बैठी वह घर लौट रही है। कॉलोनी की भीगी सड़क पर ऑटो बढ़ा जा रहा है। उस घर की बिजली जल रही है....तो.... उसका शक सही था। अभय रास्ते में ऐसी जगह आराम फ़र्माते जिसका उनके गुँडे दोस्त ने बंदोबस्त किया होगा, फिर देर से पार्टी में आने का कोई झूठा बहाना बना देते। कौन जान पाता सच क्या है ? इतने गवाह पार्टी में मौजूद थे जो बता सकते थे अभय पार्टी में शामिल हुए हैं। आज तो वह पकौड़े तलकर अकेले ही ‘रेनी डे’ मनायेगी। एक प्लेट में पकौड़े व सॉस की बोतल लेकर टी.वी. ऑन कर देती है। टी.वी. पर एनिमेटेड फिल्म आ रही है ‘दशावतार’। राक्षसों के नाश के लिए क्या उपर वाले ने इन सारे अवतारों की शक्ति उसे दे दी है। वह हर समय चौकन्नी रहती है, अँधेरे में चाँस लेने जैसा तीर छोड़ती है। वह सही जगह वार करता है। ऐसा कब तक चलेगा? अभय रात साढ़े ग्यारह बजे पार्टी से लौटे हैं। आँखों में खिसियाई गुँडई झलक रही है। ऐसे अवसरों पर वह अजीब से बेशर्म नज़र आते हैं। समिधा अपने को रोक नहीं पाती, “तो आ गये.......पार्टी से ?” ------------------------------------------------------------------- नीलम कुलश्रेष्ठ ई -मेल – kneeli@rediffmail.com ‹ पिछला प्रकरण दह--शत - 53 › अगला प्रकरण दह--शत - 55 Download Our App रेट व् टिपण्णी करें टिपण्णी भेजें Pratibha Prasad 3 महीना पहले Mamta Kanwar 3 महीना पहले अन्य रसप्रद विकल्प लघुकथा आध्यात्मिक कथा उपन्यास प्रकरण प्रेरक कथा क्लासिक कहानियां बाल कथाएँ हास्य कथाएं पत्रिका कविता यात्रा विशेष महिला विशेष नाटक प्रेम कथाएँ जासूसी कहानी सामाजिक कहानियां रोमांचक कहानियाँ मानवीय विज्ञान मनोविज्ञान स्वास्थ्य जीवनी पकाने की विधि पत्र डरावनी कहानी फिल्म समीक्षा पौराणिक कथा पुस्तक समीक्षाएं थ्रिलर कल्पित-विज्ञान व्यापार खेल जानवरों ज्योतिष शास्त्र विज्ञान કંઈપણ Neelam Kulshreshtha फॉलो उपन्यास Neelam Kulshreshtha द्वारा हिंदी थ्रिलर कुल प्रकरण : 60 शेयर करे आपको पसंद आएंगी दह--शत - 1 द्वारा Neelam Kulshreshtha दह--शत - 2 द्वारा Neelam Kulshreshtha दह--शत - 3 द्वारा Neelam Kulshreshtha दह--शत - 4 द्वारा Neelam Kulshreshtha दह--शत - 5 द्वारा Neelam Kulshreshtha दह--शत - 6 द्वारा Neelam Kulshreshtha दह--शत - 7 द्वारा Neelam Kulshreshtha दह--शत - 8 द्वारा Neelam Kulshreshtha दह--शत - 9 द्वारा Neelam Kulshreshtha दह--शत - 10 द्वारा Neelam Kulshreshtha