क्लीनचिट - 8 Vijay Raval द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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क्लीनचिट - 8

अंक - आठवां/८

अविनाश जोशी की एज होगी करीब पचास के आसपास। पर दिखने में लगते थे चालीस के। ६ फूट हाइट। स्पोर्ट्समैन जैसी विशाल बॉडी। जबरदस्त पर्सनैलिटी। स्माइल के साथ शेखर का स्वागत करते हुए बोले, 'प्लीज़ सीट डाउन।'
शेखर ने फैमिली फिजिशियन का रेफरेंस, अपना नाम परिचय औैर आलोक के साथ रिलेशन के बारे में बताया।
डॉक्टर अविनाश ने पूछा,
'शर्मा ट्रांसपोर्ट वाले वीरेन्द्र आपके क्या लगते है? उनका कॉल आया था।'।
'जी सर, वो मेरे अंकल है।'
'ओह, आप श्री स्वर्गीय देवेंद्रजी के सुपुत्र है ऐसा?'
'हा, सर'
यानि डॉक्टर अविनाश ने हाथ मिलाते हुए कहा,
अरे.. वो तो मेरे बड़े भाई जैसे थे। औैर आपके अंकल वीरेन्द्र के साथ तो हमारी बहुत अच्छी पहचान है। बोलो क्या तकलीफ है?
शेखर ने २९ अप्रैल से शुरू करके आज तक की आलोक के साथ घटी हुई घटनाएं और मनोस्थिति के सब लक्षण संक्षेप में बताता गया और जो जरूरी लगा वो डॉक्टर अविनाश अपनी डायरी में नोट भी करते गए। थोड़ी देर बाद आलोक को अंदर बुलाया।
डॉक्टर ने कहा, 'आईए मि. आलोक।'
आलोक ने बिना कुछ बोले सिर्फ़ हाथ मिलाया।
डॉ. अविनाश ने आलोक से दो चार सवाल पूछे। थोड़ी चर्चा की।
थोड़ी देर बाद आलोक से रहा नहीं गया तो डॉ. से पूछा,
'सर मुझे देखकर या मेरी बातों से आप को ऐसा लगता है कि मैं बीमार हूं?'
डॉ. अविनाश ने कहा, 'ओ यस, यु आर १००% राइट मि. आलोक, लेकिन आपको कुछ भी नहीं हुआ है येे कन्फर्म करने के लिए ही मि. शेखर आपको यहां लाए है। औैर हम वही कर रहे है। यू आर एब्सोल्यूटली फीट एण्ड फाइन, डॉन्ट वरी।'
एक-दो जरूरी रिपोर्ट्स करवाने की सूचना दी। औैर फिर से कल इसी समय पर आने के लिए बोला। औैर आलोक को कुछ देर बाहर बैठकर वैट करनेको बोला।
आलोक के बाहर जाते ही शेखर ने बेसब्री से डॉ. को पूछा,
'सर, आपको क्या लग रहा है?'
'देखिए मि. शेखर आपने जिस तरह से डिस्क्राइब किया और मैंने उसकी बॉडी लैंग्वेज, बिहेवियर और बातों से नोट किया तो, अभी कंडीशन उतनी सीरियस नहीं है। आई थिंक येे सिचुएशन मेडिसिंस से कवर हाे सकती है। बाकी कल रिपोर्ट्स चेक करने बाद हम फरथर डिस्कसन करेंगे। एण्ड डॉन्ट वरी।'
'शेखर ने कहा, 'थैंक यू सो मच डॉक्टर।'
शेखर ने आलोक को ड्रॉप करने के लिए कार उसके फ्लैट की ले ली।
आलोक बोला, 'बस, शांति हो गई तुझे। तू भी यार सच में गजब का है बाकी। सरदर्द के लिए कोई साईक्याट्रिक को कंसल्ट करता है क्या?'

आलोक की बातों को मजाक में उड़ाते हुए शेखर बोला, 'अब ऐसा है न मेरे साहब कि, पिछले एक हफ्ते से मुझे ऐसा लग रहा था कि मैं पागल हो रहा हूं। इसलिए मेरी ट्रीटमेंट के लिए हम यहां आए थे। तुम्हारे सिरदर्द के लिए सिर्फ एडवाइज ही ली थी मेरे हीरो। अब कल तुम्हारे रिपोर्ट्स आ जाए तो आखरी बार डॉक्टर का थोबड़ा देखने जायेंगे मेरे बाप, ओ. के.।'
आलोक ने पूछा, 'शेखर तुम्हे मुझ पर गुस्सा आ रहा है?'
शेखर जोरों से हंसता हंसते बोला...'आयेगा तो भी क्या?'
कार से उतरते हुए आलोक बोला, 'शेखर एक बात कहूं?'
'हां बोल।'
'तू यार अदिती की बात को सीरियसली क्यूं नहीं ले रहा है? इतना सबकुछ होने के बाद अभी भी तू मजाक के मूड में है?'

अब शेखर का दिमाग थोड़ा घूम गया लेकिन अपने आप पर कंट्रोल करने के बाद कार से नीचे उतरकर बोला, 'देख आलोक में सब समझता हूं। मैं मजाक इसलिए नहीं कर रहा हूं, ताकि तू हलके मूड में रहे औैर तुम्हे लगता है कि मैं अदिती के मैटर को सीरियसली नहीं ले रहा तो चल एक काम करते कर हम अभी चलते हैं, कहां जाना है बोल? कहां ढूंढेंगे? चल है कोई एड्रेस, कोई नंबर, कोई तस्वीर है? कैसे ढूंढेंगे? बैंगलुरू एक करोड़ से भी ज्यादा आबादी वाला शहर है। किसको पूछेंगे? अभी मैंने कल ही तो बोला कि इतना ज्यादा मन पर मत ले। योगानुयोग एक हप्ते में तुमने अदिती को दो बार देखा है। तो कुछ न कुछ हो जायेगा। यार थोड़ा तो पेशंस रख। चल अब मैं निकलता हूं। डिनर के बाद दवाई लेना मत भूलना औैर सोने से पहले मुझे कॉल करना। ओ. के. चल बाय।'

शेखर को पता था कि उसकी येे बातें आलोक के बर्निग इस्सु के लिए लार से जोड़ने जैसी बात है। शायद वो किसी भी तरह सरासर वास्तविकता को आलोक को गले उतारने की बात करेगा लेकिन जब तक उसके भीतर का कोलाहल शांत नहीं होता तब तक यह प्रयत्न पत्थर पर पानी साबित होगा।

नेक्स्ट डे शाम को ठीक ७ बजे आलोक और शेखर फिर से डॉ. अविनाश को मिलने उनके केर यूनिट आ पहुंचे।
डॉ. ने सिर्फ़ आलोक को ही चैम्बर में बुलाया। डॉ. अविनाश ने अपनी ही शैली में ट्रीटमेंट शुरू करते हुए बोले, 'मि. आलोक आपको क्या तकलीफ है? क्या कहना चाह रहे हैं? मुझे सबकुछ कुछ भी बिना छुपाए सबकुछ बिंदास बोल सकते हो। अदिती के बारे में भी।'

ऐसा पूछते ही लगा, जैसे मन की मुराद पूरी हुई हाे, अदिती का नाम सुनते ही आलोक के चेहरे पर चमक आ गई। बड़े उत्साह से २९ अप्रैल से शुरू करके दो दिन पहले तक की सब आपबीती सुनाई। डॉ. अविनाश ने दो-चार प्रश्न भी पूछे।
डॉ. ने बोला, 'प्लीज़ मि. आलोक आप थोड़ी देर बाहर वैट कीजिए और मि. शेखर को अंदर भेजिए।'
आलोक, 'थैंक यू डॉक्टर' कहकर बाहर आया और शेखर को अंदर जाने के लिए बोला। तब शेखर अंदर आकर डॉ. के सामने बैठ गया।

'लुक मि. शेखर, आलोक के साथ बातचीत हुई। आफ्टर कंपलीट कन्वर्सेशन आई नोट स्ट्रॉन्गली वन थिंग कि आलोक को अब सिर्फ़ और सिर्फ़ अदिती के सिवाय किसी भी टॉपिक में जरा भी इंटरेस्ट नहीं।'
शेखर ने पूछा, 'सर, रिपोर्ट्स?'
'हा, वो मैंने देखे लेकिन उसमें ज्यादा कुछ डिटेक्ट नहीं हो रहा है। आई होप कि मेडिसिंस से रिकवरी आ जानी चाहिए। इसके सिवाय अभी तो मुझे कोई सीरियस सिम्टम्स दिख नहीं रहे हैं।'
शेखर ने पूछा, 'सर मान लीजिए कि अगर मेडिसिंस से ज्यादा असर न हुआ तो...
औैर बाद में आगे चलकर कुछ ज्यादा गंभीर.....'
आगे बोलते हुए शेखर रुक गया।

डॉ. शेखर का डर समझ गए। इसलिए जवाब देते हुए बोले, 'लुक, मि. शेखर आलोक की मानसिक हालत की अभी की स्टेज को देखते हुए उसका एक ही इलाज है कि फर्स्ट टु चेंज एटमॉस्फियर, सेकेंड थिंग कि वो अकेला रहे वह थोड़ा जोखिम भरा तो है ही।
वो जब भी सोचेगा सिर्फ़ और सिर्फ़ अदिती के बारे में ही सोचेगा। इवन अल्सो इन स्लीपिंग। उसे दूसरी बातों में या किसी काम में एक्टिव रखना जरूरी है। हो सके तब तक।'
अंतमे शेखर को रिलैक्स करने के लिए बोले, 'नहीं तो अंत में एक उपाय तो है ही।'
शेखर ने उत्सुकता से पूछा, 'क्या?'

डॉ. बोले, 'अदिती।'

फिर दोनों जोर से हंसने लगे।
मेडिसिंस का प्रेस्क्रिप्शन शेखर को देते हुए बोले, 'एक वीक के इस मेडिसिंस कोर्स के बाद हम फिर मिलते हैं। इन बिटवीन कोई भी इमरजेंसी हाे तो येे मेरा पर्सनल नंबर है। एनी टाईम इनफॉर्म मी। औैर प्लीज़ चिन्ता करने जैसी कोई बात नहीं है। डॉन्ट वरी।'
डॉ. का अभिवादन करके शेखर बाहर आया तब आलोक ने कहा, 'मैं एक मिनिट में डॉ. से मिलकर आता हूं।' शेखर को लगा क्या काम होगा?
'में आई कम इन?'
डॉ. ने कहा, 'ओ स्योर।'
आलोक ने कहा, 'सॉरी टु डिस्टर्ब सर।
देखिए सर, शेखर मेरी बातों को बिलकुल भी सीरियसली नहीं ले रहा है। मुझे लगता है कि एक आप ही मेरी परिस्थिति अच्छे से समझ सकते है। तो प्लीज़ सर, अदिती को ढूंढने में आप मेरी हेल्प करेंगे? प्लीज़ सर, ईट्स माय हम्बल रिक्वेस्ट टु यू सर।'
डॉ. बोले, 'ओ व्हाय नोट ईट्स माय ड्यूटी। मेरी शेखर के साथ उसी टॉपिक पर बात हुई। वी ऑल वील ट्राय अवर बेस्ट।'
आलोक डॉ. का हाथ पकड़कर, 'थैंक यू.. थैंक यू.. थैंक यू.. सो मच सर।'
बोलते बोलते बाहर आया।
शेखर ने पूछा, 'क्या काम था?'
आलोक ने जवाब देते हुए बोला..'कुछ नहीं। वो हमारे बीच की प्राइवेट बात थी।'
शेखर जोर से हंसने लगा। आलोक को मेडिसिंस के बारे में समझाकर थोड़ी देर बाद दोनों अलग हुए।

रात को डिनर करके बाद १० बजे के बाद शेखर वीरेन्द्र के रूम में गया। रूम में सिर्फ़ शेखर और वीरेन्द्र ही थे। शेखर ने वीरेन्द्र को सारी बातें बताई।
वीरेन्द्र बोले, 'देखो शेखर जो हो गया या जाे होने वाला है सब नसीब का खेल है। डॉ. की बात भी काफ़ी हद तक सही है। लेकिन हर वक़्त उसके साथ कौन रहेगा? बैटर है कि उसे हम यहां अपने साथ ही अपने ही घर में रखें और रही बात अनियंत्रित विचारों की, अब उसे कोई कैसे काबू में रख सकता है?'
शेखर ने पूछा, 'अंकल, आलोक के पेरेंट्स के साथ बात करते हैं।'
'नहीं बेटा, अभी नहीं। वो दोनो तो आलोक से भी ज्यादा इमोशनल हैं। उन्हें आलोक की इस परिस्थिति से अवगत कराएंगे, तो तो उनकी हालत आलोक से भी ज्यादा आऊट ऑफ कंट्रोल हो जायेगी। आई थिंक कि हम ओर दो दिन प्रतीक्षा करनी चाहिए।'
फिर शेखर ने पूछा..'लेकिन अंकल सोच लीजिए कि अगर आलोक की सिचुएशन आऊट ऑफ कंट्रोल हाे गई तो?'
'देखो शेखर डॉक्टर ने कहा है कि अभी हालत उतनी गंभीर तो है नहीं। औैर अभी ट्रीटमेंट की तो शुरुआत ही कहां हुई है? फिर भी तुम्हें कोई रास्ता सूझता हाे तो बोलो। हम वही करेंगे।'
'नहीं अंकल मेरे दिमाग में तो कुछ भी नहीं आ रहा है।' बाद में हंसते हंसते बोला, 'उलटा मुझे तो ऐसा लग रहा है कि अगर ऐसा ही चलता रहा तो कहीं मुझे ही पागलखाने में एडमिट न करना पड़े। हा.. हा.. हा' दोनों हसने लगे। 'ठीक है अंकल, गुड नाईट।' शेखर जाने लगा तो अंकल ने कहा,
'बेटा जिन्दगी में एक बात हमेशा याद रखना कि जिस बात कोई उपाय नहीं होता उसका कभी दुख नहीं करना चाहिए।'
'जी, अंकल।'
अंकल की बात शेखर के दिमाग में फेविकोल के जैसे चिपक गई।
दूसरे दिन १० बजे के बाद नास्ता करते करते आलोक को कॉल लगाया।
रींग बजी लेकिन कॉल रिसीव नहीं हुआ। फिर से ट्राय किया। नो रिसीव। चार से पांच बार ट्राय किया। शेखर को लगा शायद लेट नाईट तक जागा होगा इसलिए सो रहा होगा। बाद में ऑफिस जाकर फिर से करूंगा।
ऑफिस पहुंचते ही शेखर एक के बाद एक बाकी रह गए कामों में इतना उलझ गया कि लंच टाइम पर आलोक को कॉल करने का याद आया।
अपनी केबिन आकर आलोक को कॉल लगाया। रींग गई। आलोक ने कॉल रिसीव किया।

'हेल्लो... आलोक.. हेल्लो....'
सामने से वाहनो औैर कोई भीड़भाड़ से भरी पब्लिक प्लेस के शोरशराबे के चित्रविचित्र आवाज़ें सुनाई दे रही थी।
'हेल्लो... आलोक।'
आलोक बोला, 'हेल्लो।'
'आलोक, मुझे सही से कुछ सुनाई नहीं दे रहा है। कहा है तू?'
'प्लीज़ एक मिनिट वैट।'
'हेल्लो.. कौन?' अब आलोक की आवाज़ थोड़ी स्पष्ट सुनाई दे रही थी।
'अरे मैं शेखर बोल रहा हूं। लेकिन आलोक तू कहां है?'
'मैं मॉल में हूं।'
'मॉल? कौन से मॉल में? औैर मॉल में क्या कर रहा है?'
'अरे वही मॉल जहां उस दिन हमलोगो ने अदिती को देखा था न लिफ्ट में।'
शेखर सिर पकड़कर कुर्सी में बैठते हुए बोला,
'माय गॉड।'
'अरे सून, मैं भी वहीं नजदीक में ही हू। तू कहीं मत जाना मैं अभी वहां आ रहा हूं। उसके बाद दोनो साथ मिलकर अदिती को ढूंढते हैं। तू कौनसी जगह पर खड़ा है अभी?'
'एक मिनट.. मैं उस लिफ्ट के पास आइसक्रीम शॉप है न वहीं पास में खड़ा हूं। तू जल्दी आ शेखर।'
एक तरफ़ ऑफिस के काम के बोझ से सिर उठाने की फुरसत नहीं है औैर येे आलोक के नयेे नाटक से शेखर का सिर ज्यादा घूम गया। जल्दी से कार में बैठकर कार को भगाई मॉल की ओर। पार्किंग में कार पार्क करके जल्दी से आलोक की बताई हुई जगह पर पहुंचकर बोला,
'आलोक तू कब आया यहां?'
'टाईम तो पता नहीं लेकिन सवेरे जल्दी उठकर सीधा यहीं आया हूं।'
शेखर का दिमाग चक्कर खा गया। मन हुआ कि अभी दो चार सुना दूं इसे भी।
दिमाग पर काबू रखकर शेखर बोला,'अरे यार यहां आने से पहले कम से कम मुझे एक कॉल तो करना चाहिए था।'
जवाब में आलोक बोला, 'मैंने तुझे दो से तीन बार बोला था कि चल हम अदिती को ढूंढने चलते हैं लेकिन तुने ठीक से जवाब नहीं दिया इसलिए मुझे लगा कि तुझे मेरी किसी भी बात में इंटरेस्ट ही नहीं है तो मैंने सोचा कि अब मैं अकेले ही अदिती को ढूंढ लूंगा, उसमें क्या है?'
आलोक की ऐसी बातें सुनकर शेखर सकते मेें आ गया। आलोक के साथ साथ डॉ. अविनाश पर भी गुस्सा आया। एक वीक तो क्या, यहां तो चौबीस घंटे में ही आलोक की बोलचाल औैर व्यवहार एकदम से बदल गए थे। अब आलोक को कैसे समझाया जाए? लेकिन अभी ऐसी स्थिति में दिमाग बर्फ जैसा ठंडा रखने सिवाय कोई चारा नहीं था।
'एक मिनट मैं अभी आ रहा हूं।' ऐसा कहकर नज़दीक में एक चक्कर लगाकर आने के बाद नाटक शुरू करते हुए आलोक को बोला, 'देख वहां जाे सिक्योरिटी है न वो मेरा खास दोस्त है। तो मैंने उसे अदिती का पूरा हुलिया बताकर समझा दिया है। औैर हम दोनों के फोन नंबर भी दे दिए है। अदिती जब भी आयेगी वो हमें कॉल करेगा।'
'हां.... यार येे तुने बहुत अच्छा किया देख, अब तू मेरा पक्का यार है। लेकिन यार बहुत भूख लगी है, शेखर उसका कुछ कर यार।'
शेखर ने कहा, 'चल अब घर चलते हैं।' शेखर को थोड़ी शान्ति हुई। एक अच्छे से रेस्टोरेंट से लंच का पार्सल लेकर आलोक को थोड़ी सूचनाएं देने के बाद फ्लैट पर छोड़कर शेखर चला गया।

अब शेखर के दिमाग में बहुत सारे खयाल घूम रहे थे। कहा जाऊ? किसको बोलूं? क्या करू? एक ओर कार पार्क करके डॉ. अविनाश को मैसेज सेण्ड किया। "व्हेन आई केन कॉल यू?-शेखर शर्मा। फ्रॉम शर्मा ट्रांसपोर्ट।" उसके बाद ट्रांसपोर्ट की ऑफिस में आया।
पहले वीरेन्द्र से बात करना उचित लगा। इसलिए वीरेन्द्र की केबिन की ओर गया। लेकिन वीरेन्द्र केबिन में नहीं थे। पूछने पर पता चला कि ट्रांसपोर्ट एसोसिएशन की मीटिंग में गए हैं और वहां से सीधे घर ही जायेंगे।

शेखर अपनी केबिन में दाखिल हुआ। एक, दो पार्टी उसकी राह देखकर बैठे थे। सब के लिए चा कॉफी का ऑर्डर दिया। बिजनेस से जुड़ी हुई बातचीत पूरी करके सबको रवाना किया। इतने में ही आलोक के पापा, इंद्रवदन का कॉल आया। शेखर की शक सही साबित हुआ।
शेखर को अंदाजा था कि कॉक आयेगा ही।
शेखर ने कॉल उठाया, 'जय श्री कृष्ण, अंकल। कैसे हैं?'
इंद्रावदन बोले, 'जय श्री कृष्ण बेटा। मैं ठीक हूं। तुम कैसे हो?'
'मैं भी एकदम फाईन, आंटी कैसी है?'
'हा.. वो भी ठीक है। बेटा मैंने कॉल इसलिए किया था कि आलोक को दो बार कॉल किया लेकिन उसने उठाया नहीं इसलिए सोचा कि तुम्हे पूछ लूं सब ठीक है न?'
'अंकल कब कॉल किया था आपने?'
'जी अभी दस मिनट पहले ही।'
'हां, अंकल मैंने भी किया था उसने रिसीव नहीं किया इसलिए मैंने उसके ऑफिस स्टाफ के एक मेम्बर से पूछा तो बोला कि मीटिंग चल रही है। कोई खास बात थी अंकल?'
'ना शेखर, खास तो कुछ नहीं लेकिन कल रात को कॉल किया तब किसी अदिती के बारे में कुछ गोलगोल बातें कर रहा था। लेकिन मेरी समझ में तो कुछ भी नहीं आया इसलिए सोचा कि तुम्हें पूछ लूं।'
स्वस्थ होकर शेखर ने पूछा, 'क्या बात हुई आप के साथ?'
'बोल रहा था कि किसी अदिती को ढूंढने गया था और फिर से जाना है।
मैंने पूछा कि कौन अदिती? मुझे कहने लगा कि आप नहीं पहचानते उसे। जब मिलेगी तब मुलाकात करवाऊंगा। ऐसा कुछ उल्टा सीधा बोल रहा था। कौन है येे अदिती?'
एकदन से कल्पना शक्ति के चक्रों को गतिमान करके शेखर ने स्थिति को संभालते हुए कहा, 'अदिती.. अरे.. हा.. हा.. याद आया अंकल। वो आलोक के सामने के फ्लैट में जो पाठक जी रहते हैं उनकी ८ साल की बेटी का नाम है अदिती। वो कल से गुम हो गई है तो सब उसे ढूंढने में लगे हैं। मैं भी आलोक के साथ ही था। उसमे चिंता करने जैसी कुछ भी नहीं है। बोलिए दूसरा कोई काम हो तो।'
'बस बेटा वहां घर में सब ठीक है?'
'हा.. अंकल सब ठीक है, मम्मी आप दोनो को याद कर रही थी।'
'अच्छा बेटा, सब को मेरा नमस्कार। मैं फोन रख रहा हूं।'
'जी अंकल। जय श्री कृष्ण।'
फोन रखते ही शेखर ने गहरी सांस ली। शेखर आभास हुआ कि अब येे मामला रोज नये नये पहेलियां खड़ी करके एक गंभीर मोड़ लेकर धीरे धीरे आगे बढ़ रही है। औैर किसी भी समय कोई भी अज्ञात घटना घटने से पूर्व मानसिक तैयारी के लिए अभी से सजग रहना बहुत जरूरी लगा। शेखर को एहसास हो गया कि अब इस मैटर को टैकल करने के लिए वो अकेला असमर्थ है। ज्यादा कुछ सोचे तभी डॉ. अविनाश का मैसेज आया, "यू केन कॉल मी आफ्टर नाइन पी. एम."
शेखर ने 'थैंक यू सर' का रिप्लाइ मैसेज दिया।

थोड़ी देर के लिए शेखर आंखें बंद करके आलोक के साथ की पूरी घटना का फिर से एक बार गहराई से अध्ययन के साथ मनोमंथन करने लगा।

अदिती... अदिती... अदिती... इस नाम से अब शेखर के दिमाग में हथौड़े चलने लगे। कौन होगी? इतने बड़े शहर में कोई एक व्यक्ति सिर्फ चार दिन के अंतराल में दो बार, सिर्फ़ दूर से से ही दिखाई देता है औैर वो भी कुछ ही समय के लिए? औैर दोनों बार एक जैसी ही घटना का पुनरावृत्ति? प्रथम मुलाकात से लेकर अभी तक की घटना के अंत के साथ साथ एक नये नाटकीय अनुसंधान के अध्याय की शुरुआत क्यूं हो रही है? कुछ तो गड़बड़ जरूर है। शेखर को आलोक के पीठ पीछे कोई सुनियोजित षड़यंत्र हाे रहा हाे ऐसा प्रतीत होने लगा। लेकिन ऐसा करके किसी को भी आलोक के पास से क्या मिलेगा? सपने में भी आलोक का कोई शत्रु नहीं है। आलोक की छवि तो एकदम सीधी रेखा जैसी स्वच्छ, बेदाग औैर एकदम खुली किताब जैसी है। लेकिन जितने थोड़े दिनों के अंतराल में अचानक से जिस तरह नाटकीय अंदाज में बारबार अदिती के कैरेक्टर की जिस तरह से एण्ट्री औैर एक्जिट हुई है वो संदेहजनक तो है ही। अंत में रहस्य कोई भी हो लेकिन अब शेखर का अनुमान कह रहा था कि येे अदिती का कैरेक्टर आंशिक रूप से रहस्यमय तो है ही। अगर अदिती सही में आलोक को लेकर गंभीर होती तो आलोक को ऐसे शंकाशील चक्रव्यूह में क्यूं फंसा रही है? क्या षड़यंत्र हो सकता है? लेकिन इस समय जितना जल्दी हो सके कोई ईश्वरीय चमत्कार ही इस गुत्थी औैर आलोक की जिन्दगी दोनों को सुलझा ले औैर बचा ले ऐसी ईश्वर को प्रार्थना के सिवाय शेखर के पास कोई उपाय नहीं था।

आगे अगले अंक में....



© विजय रावल

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