क्लीनचिट - 9 Vijay Raval द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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क्लीनचिट - 9

अंक - नौ/९

रात के ९:१० बजे शेखर ने डॉक्टर अविनाश को कॉल लगाया।
डॉक्टर अविनाश ने कहा,
'हेल्लो सर, मैं शेखर शर्मा।'
'प्लीज़ शेखर होल्ड ऑन फॉर जस्ट फ्यू मिनट्स।'
'इट्स ओके सर।'
थोड़ी देर बाद...
'हां अब बोलो शेखर।'
'सॉरी सर इस टाईम पर आपको डिस्टर्ब कर रहा हूं।'
इतना बोलकर शेखर ने आलोक के आज के कारनामे के बारे में जानकारी दी।
सब सुनने के बाद डॉ. अविनाश बोले, 'हम्ममम इतने शॉर्ट टाईम में आलोक का मेंटल रिएक्शन इतना जल्दी से बूस्ट हो जायेगा उसकी मुझे कल्पना भी नहीं थी। दूसरी कोई वायलेंस एक्टिविटी करी है उसने? गुस्सा करना? किसी पर हाथ उठाना? या कोई चीज़ तोड़ना या फेक देना?'
'ना सर, ऐसी कोई हरकत नहीं की है।'
'ठीक है शेखर, मैंने जो मेडिसिंस दी थी वो ली है आलोक ने?'
'सॉरी, अभी कल ही आपने दवाई दी और आज उसने अचानक अनएक्सपेक्टेड हरकत की तो उसमें मैं पूछना ही भूल गया और कोई मौका ही नहीं मिला।'
'अच्छा शेखर हम एक दिन वेट करते हैं। बाद में मैं नेक्स्ट स्टेप की ट्रीटमेंट के बारे में सोचता हूं। इसके सिवाय ओर कोई इंपॉर्टेंट?'
'नो सर।'
'ठीक है, अच्छा तो गुडनाईट शेखर।'
'जी गुडनाईट सर।'

वहां से शेखर सीधा आलोक के फ्लैट की और जाने के लिए रवाना हुआ। आलोक के किसी भी हद तक के बेहूदा व्यवहार का सामना करने की पूर्व मानसिक तैयारी के साथ ही फ्लैट पर जाकर डॉर बेल बजाई। समय था रात के ९:४०। डॉर नहीं खुला फिर से कोशिश की। करीब पांच मिनट तक लगातार डॉर बेल बजाने के बाद आलोक ने डॉर खोलकर बिना कुछ बोले शेखर की ओर देखता ही रहा।
शेखर ने पूछा,'क्या हुआ?'
'कुछ नहीं।'
'सो रहा था?'
'नहीं तो। यहां सोफ़ा पर बैठा था।'
'अरे.. यार लगातार पांच मिनट तक डॉर बेल बजाता रहा तुझे सुनाई नहीं दी?'
'ना मुझे तो सुनाई नहीं दी लेकिन तू इतनी सुबह क्यूं आया है। ओह.. याद आया, अदिती को ढूंढने जाना है इसलिए।' अब आलोक को दिन है या रात उसका भी होश नहीं था। इसलिए शेखर ने वो बात उड़ा दी।
'चल ठीक है, तेरे पापा का कॉल आया था। तेरी बात हुई?'
'हां। कल हुई थी, मैंने उन्हें बताया कि मैं अदिती को ढूंढने जा रहा हूं, लेकिन शेखर उन्होंने ऐसा क्यूं कहा कि वो अदिती को नहीं जानते?'
'उसकी तू चिन्ता मत कर मैंने उनके साथ बात करके उन्हें सब समझा दिया है।'
'कल डॉक्टर ने दवाई दी थी वो दवाई तूने ली?'
'कौन डॉक्टर? ओ.. हां, याद आया लेकिन मैंने दवाई नहीं ली।'
'क्यों?'
'वो मैं अदिती को पूछकर लूंगा, कि मुझे कुछ है?'
अब शेखर को आलोक के मानसिक स्तर के समांतर आकर बात करनी थी।
'ए तुझे अदिती को पकड़ने के लिए उसके पीछे दोड़ना नहीं पड़ेगा? औैर दोड़ने के लिए शक्ति नहीं चाहिए? अरे ये शक्ति की दवाई है मेरे हीरो। औैर तू दवाई नहीं ले रहा येे अदिती को पता चला तो वो तुझसे नाराज़ हो जायेगी और तेरे साथ बात भी नहीं करेगी पता है न तुझे?'

शेखर ने किचन में जाकर देखा। दोपहर के खाने का पार्सल लगभग वैसा ही था। बाद में आलोक को खाना खिलाकर दवाई के साथ अपने आत्मसंतोष के लिए बहुत सारी सूचनाएं भी दी औैर ११ बजे के बाद शेखर घर की ओर जाने के लिए कार में बैठा। थोड़े दूर जाकर कार साइड पर पार्क करी।

अब शेखर की सहनशीलता का बांध तूट गया। एक काबिल, बहादुर, एकदम सहज पारदर्शी व्यक्तित्व वाले आलोक की ऐसी मनोदशा देखकर शेखर रोने लगा। शेखर अपने पिता के मृत्यु के बाद शायद पहलीबार इस तरह रोया होगा। एक बहुत ही आत्मीय संबंध में अनंत शुन्यावकाश सर्जन होने के डर से पीड़ा महसूस कर रहा था। शेखर को अपने आप से नफ़रत हाे गई। भाई से भी ज्यादा विशेष जिगरजान दोस्त के लिए इतनी हद तक लाचार? कुदरत की येे अनकही कारामत के सामने शेखर के पैसा औैर पावर दोनो किनारे छोटे पड़ रहे थे। अगर कोई आलोक को बचा ले तो उस पर शेखर अपना सबकुछ न्योछावर करने को तैयार था।

घर आकर फ्रेश होने के बाद थोड़ा स्वस्थ हुआ। डिनर लेकर वीरेन्द्र के बेडरूम की ओर नजर करी। लाईट ऑन थी इसलिए लगा कि अभी तक जाग रहे होंगे ऐसा सोचकर रूम के पास जाकर देखा तो वीरेन्द्र कोई किताब पढ़ रहे थे। शेखर को देखकर बोले..
'आओ आओ बेटे बैठो। क्यूं आज इतनी देर कैसे हो गई? औैर तेरा चेहरा क्यूं इतना उतरा हुआ है? कुछ हुआ है क्या?
सुबह से लेकर अभी तक के घटनाक्रम कर वर्णन करते करते गला भर आया। वीरेन्द्र ने शेखर के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा, 'बेटा थोड़ा धैर्य औैर ईश्वर पर भरोसा रख। सब कुछ ठीक से पार हाे जायेगा। औैर ऐसे निराश होने से क्या मिलेगा। जानता हूं कि, दिन ब दिन येे मामला अब ज्यादा संगीन बन रहा है। मैं कल सुबह ही डॉक्टर अविनाश से बात कर के जान लेता हूं कि क्या हो सकता है। औैर आलोक के पेरेंट्स के साथ भी कल ही बात कर लेते हैं। औैर बेटा एक बात याद रखना बेटा, इस दुनिया में कोई भी व्यक्ति किसी की तकदीर नही बदल सकता। अब शांति से कुछ भी उल्टा पुल्टा सोचे बिना सो जा। बाकी बातें कल करेंगे, गुड नाईट।'
'गुड नाईट, कहकर शेखर अपने बेडरूम की ओर चला गया।'
वीरेन्द्र अब आनेवाली स्थिति के बारे में सोचते हुए अंत में सो गए।
थोड़े समय के बाद व्यर्थ विचारों से निजात पाने में सफल होने के बाद शेखर भी सो गया।
समय सुबह के ९। फटाफट तैयार होकर शेखर को विचार आया कि ऑफिस जाने से पहले आलोक से मिलकर बाद में अपनी ऑफिस जाऊंगा। कार में बैठते ही आलोक के कल्पना से परे चित्र विचित्र बिहेवियर के बारे में इमेजिन करने लगा। घर से निकलकर सीधा आलोक के फ्लैट पर। वहां पहुंचकर देखा तो.. फ्लैट का दरवाजा पहले से ही ओपन था.. शेखर ने आवाज़ लगाई... 'आलोक... आलोक...'
कोई रिप्लाइ नहीं। टी. वी. भी ऑन था। लिविंग रूम के वॉश बेसिन के नल में से पानी टपक रहा था। टी. वी. औैर नल दोनों ऑफ करके शेखर ने दोनों बेडरूम, किचन, बाल्कनी सब जगह घूमकर देख लिया.. फिर से आवाज़ लगाई।
'आलोक.. आलोक....' आलोक फ्लैट में नहीं था इस बात को झुठलाने की कोई गुंजाइश नहीं थी।
कहां गया होगा? कब गया होगा? बाहर आकर फ्लैट के आसपास के पड़ोसीयो को आलोक के बारे में पूछा लेकिन किसी को कोई भी जानकारी नहीं थी। कॉल करके देखा तो आलोक का फोन स्विच्ड ऑफ।
फटाफट ग्राउंड फ्लोर पर आया। नीचे फास्ट फूड ओनर बालचंद्र को पूछा।
आसपास की शॉप्स, नजदीक के गार्डन में, सब जगह ढूंढा।
प्ले गार्डन में क्रिकेट खेल रहे सब बच्चों को मोबाइल में से आलोक की तस्वीर दिखाकर पूछा..'इस आदमी को कहीं देखा है?'
उसमें से एक बच्चा बोला,
'हां, अंकल देखा है, वो जब मैं खेलने के लिए नीचे आ रहा था तो येे अंकल को मैंने टेरेस पर जाते हुए देखा था।' शेखर का दिल बैठ गया। एक सेकेंड में बिना कुछ सोचे शेखर ने लिफ्ट में घुसकर १२ वी मंज़िल पर जाने के लिए लिफ्ट स्टार्ट करी। १२ वी मंज़िल पर लिफ्ट में से बिजली की सी गति से टेरेस पर जाकर देखा तो....

शेखर की सांसे अटक गई। आलोक १२ वी मंज़िल वाली बिल्डिंग की टेरेस की दिवार पर आराम से बैठा था। नजदीक जाकर आलोक की कलाई पकड़कर दिवार पर से खींच कर नीचे उतार लिया। शेखर के शरीर में कंपकंपी छूट गईं। थोड़ी देर के लिए आंखें बंद करके नीचे बैठ गया।
आलोक ने पूछा.. 'क्या हुआ? अबे अब तुझे भी चक्कर आने लगे क्या?' ऐसा बोलकर हंसने लगा।
शेखर मन में कुढ़ गया। कुछ क्षणों में तो उसकी नज़रों के सामने कितनी सारी अकल्पनीय अमंगल घटनाएं दिख गई।
गुस्सा, डर, लाचारी, इन सब के सिवाय भी उठती हुई सारी वेदना संवेदना मिश्रित घूंट एकदम चुपचाप पी गया।
'आलोक तू यहां क्या कर रहा है? औैर यहां दिवार पर क्यों बैठा है? '
'अरे मूर्ख वो इसलिए कि इतनी ऊंचाई से तो अदिती कहीं छुपी भी हुई तो भी दिख ही जायेगी समझा?'
'तू कब यहांआया?'
'वो मुझे पता नहीं।'
'हां चल अब नीचे चल।'
'अरे, लेकिन यार अदिती चली गई तो?'
'तू चल मेरे साथ डॉक्टर साहब का कॉल आया था कि, उन्हें अदिती का पता मिल गया है। हमे अभी ही वहां जाना है, चल।'
'क्या.. सच में?'
'हां।'
'तो तो चल जल्दी जल्दी जल्दी।'

नीचे आकर शेखर ने आलोक का हुलिया थोड़ा ठीक किया। थोड़ा जरूरी सामान पेक किया। डिस्चार्ज हुआ आलोक का फोन लिया। फ्लैट को लॉक करके शेखर आलोक को लेकर अपने घर आया।
घर के मेम्बर्स को इशारों में समझाया कि, बाद में शांति से बात करेंगे।
शेखर ने अपने बेडरूम से सटे हुए गेस्ट रूम आलोक को बिठाया। बाद में आलोक को खिलाने के लिए शेखर ने भी खाना खाने का नाटक किया। आलोक को दवाई देकर टी. वी. ऑन कर दिया। दो-चार किताबें दी। उसके बाद घर के मुख्य मेम्बर्स के साथ आलोक की मानसिक स्थिति का संक्षेप में वर्णन करके सूचनाएं देने के बाद कजिन को ध्यान रखने के लिए बोला। औैर अगर उसके पेरेंट्स का कॉल आए तो बोल देना कि अभी आलोक यहां आया था और फोन यहां भूल कर चला गया है। बाद में आलोक की रूम में आकर बोला,
'सुन, मैं डॉक्टर के पास से थोड़ी देर में अदिती का एड्रेस लेकर आ रहा हूं। तब तक तू आराम कर। मैं आ जाऊ बाद में साथ में निकलते है। कुछ भी चाहिए तो किसी को भी बोल देना। तू सबको पहचानता ही है। औैर तेरा मोबाइल चार्जिंग में रखा है।
पेट में अन्न और दवा जाने के बाद आलोक को अच्छा लगा। शायद रात को देर तक जागा होगा इसलिए बेड पर जाकर सोने की कोशिश करने लगा।

देर शाम को शेखर औैर वीरेन्द्र दोनों ने डॉक्टर अविनाश को उनके केर यूनिट पर खुद जाकर आलोक की सब हरकतों औैर उसकी गंभीरता से अवगत करवाया। डॉक्टर अविनाश ने एकदम शांत मन से एक एक मुद्दों को गहराई से एनालिसिस किया फिर बोले, 'इस सिचुएशन में अब नेक्स्ट स्टेप की ट्रीटमेंट ही स्टार्ट करनी पड़ेगी। उससे उसकी याददाश्त में तो कोई रिकवरी नहीं आयेगी लेकिन वो कोई वायलेंस एक्टिविटी नहीं करेगा ऐसा हम कर सकते हैं। औैर वो इंजेक्शन भी लॉन्ग टाईम नहीं दे सकते। औैर मेरे खयाल से इस हालत में अब आलोक के पेरेंट्स को इनफॉर्म करना जरूरी है। बीकॉज कभी भी कुछ भी हो सकता है। औैर इस ट्रीटमेंट के लिए आप लोगों को मुझे राइटिंग में आलोक के बदले में परमिशन देनी पड़ेगी। इट्स लाइक ए रूटीन पेपर प्रोसीजर यू नो। एण्ड आई थिंक इट्स बैटर कि जॉब तक उसके पेरेंट्स नहीं आते तब तक आलोक को आप अपने साथ ही रखिए। कल से उसे हर तीसरे दिन एक इंजेक्शन देंगे। उसका मैं अरेंजमेंट कर दूंगा। एझ माय इंस्ट्रक्शन घर पर दिया जायेगा। ठीक है?

वीरेन्द्र बोले, 'अरे सर आप हमारे इतने अच्छे मित्र हाे। हम से तो आप ज्यादा बैटर सोच सकते है। डॉक्टर आप जो डिसीजन लेंगे वो फाइनल।'

शेखर ने डॉ. से पूछा, 'सर एक सवाल है।'
'हा, बोलो, बोलो।'

'येे जाे शुरुआत से लेकर अभी तक अदिती का जाे कैरेक्टर है, उन पर आपको कोई डाउट नहीं लगता? हर वक़्त एक ही व्यक्ति के साथ एक जैसे योगानुयोग संभव है?'

डॉक्टर अविनाश ने कहा,

'देखो शेखर.. येे मेरा मानना है कि कल्पना वास्तविकता के नजदीक हाे सकती है लेकिन वास्तविकता कल्पना से विपरीत भी हो सकती है।'
'लेट्स सी हम सब किसी चमत्कार की आशा रखनी चाहिए। आफ्टर ऑल गॉड इज ग्रेट।'

शेखर औैर वीरेन्द्र दोनों डॉ. का शुक्रिया करके बाहर निकलकर अभी जहां कार में बैठे तभी इंद्रवदन का कॉल आया।
शेखर ने कॉल रिसीव करके कहा, 'अंकल मैं ड्राइविंग कर रहा हूं। मैं घर पहुंचकर आपको कॉल बेक कर रहा हूं।'
'जी, ठीक है शेखर।'
शेखर झूठ इसलिए बोला कि उसने सोचा कि वीरेन्द्र के साथ शांति से चर्चा करके बाद में कोई ठोस जवाब देना ही ठीक लगा। वीरेन्द्र ने कहा, 'घर जाकर शांति से सोचकर बाद में उनके साथ बात करेंगे। तू चिंता मत कर।'

सब साथ में खतम करके शेखर, वीरेन्द्र और आलोक तीनों गेस्ट रूम में बैठे। आलोक को अदिती के बारे में दो-चार प्रश्न पूछे। शेखर ने बहुत अच्छे से आलोक के गले उतार जाए ऐसे प्रत्युत्तर देकर मानसिक तौर पर शांत किया।
रूम के बाहर पैसेज मेें जाकर वीरेन्द्र ने इंद्रवदन को कॉल लगाया।
इंद्रवदन बोले...
'हेल्लो।'
हेल्लो भाई, 'मैं वीरेन्द्र, शेखर का अंकल।'
'नमस्कार भाईसाहब। कैसे हैं आप?'
'सब कुशल मंगल है भाई, इष्टदेव की कृपा है। आप कैसे हाे, औैर बहनजी?'
'दोनों ठीक है। आलोक के साथ बात नहीं हुई थी तो जरा ऐसा महसूस हुआ कि....'
वीरेन्द्र ने बात की बागडोर अपने हाथ में लेटे हुए कहा.. 'उसमें ऐसा भाई साहब कि आलोक आज से थोड़े दिनों के लिए हमारे यहां हमारे साथ रहेगा। शेखर ज़िद करके लेकर आया है उसे। औैर उसकी ऑफिस में काम भी थोड़ा ज्यादा था इसलिए थक गया था। वो थोड़ी देर पहले ही डिनर लेकर सोया है। कोई खास बात हो तो जगाऊ।'

'अरे नहीं नहीं उसे आराम करने दीजिए। सुबह में बात कर लेंगे। खास बात ये है कि हम दोनों सुबह पांच बजे की ट्रेन से एक महीने के लिए चार धाम की यात्रा पर जा रहे हैं। आलोक के साथ बात हो गई है लेकिन मुझे लगाता है कि काम में ज्यादा व्यस्त हो गया होगा इसलिए ध्यान से निकल गया होगा ऐसा लगता है। आप उसे याद करके बोल देना बाकी तबियत तो ठीक है न उसकी?'
'अरे भाई एकदम ठीक है। नौजवान बेटा और सदैव आप दोनों के आशीर्वाद, औैर क्या चाहिए?'

'वो सब ठीक है लेकिन बड़ी बात ये है कि आप सब इतने प्यार और अपनेपन से उसका एक सगे बेटे से भी ज्यादा ख्याल रखते हाे। उसके लिए आजीवन ऋण नहीं चुका पाऊंगा।'

'ओह मेरे भाई अब येे आपने बहुत बड़ी बात कह दी। आप दोनों किसी भी तरह की कोर्इ चिंता किए बिना निश्चिन्त होकर यात्रा कीजिए। मैं आलोक को बोलकर आपसे बात करवा दूंगा बस। बोलिए दूसरी कोई सेवा हो तो फरमाइए।'
'जी भाई, धन्यवाद। सभी को हमारा जय श्री कृष्ण।'
'जी जय श्री कृष्ण।'

वीरेन्द्र ने पूरा वार्तालाप शेखर को कह सुनाया। ऐसा सोचा कि एक महीने की ट्रीटमेंट के दौरान आलोक फिर से नॉर्मल हो जाता है तो उसके पेरेंट्स इस आघातजनक स्थिति से बच जायेंगे। एक ओर से बहुत ही अच्छा हुआ ऐसा मानकर शांति का अनुभव किया।
अब डॉ. अविनाश की गाइड लाइन के अनुसार आलोक की नेक्स्ट स्टेप ट्रीटमेंट शुरू हुए चार दिन का टाईम बीत चुका था। जैसे जैसे दिन बीतते गए वैसे वैसे आलोक की याददाश्त कमज़ोर होने लगी। हमेशा किसी भी बात में बस एकमात्र अदिती, अदिती औैर सिर्फ़ अदिती का ही उल्लेख। आलोक का किस घड़ी कैसा रिएक्शन आयेगा उसका हमेशा सबको डर सताता रहता। सिफ्र चार दिन के कम समय में ही सब का धैर्य कम होने लगा औैर मनोबल टूटने लगा।

औैर तभी अचानक एक दिन रात को शेखर आलोक के कमरे में सोफ़ा पर बैठा था वही आंखें बंद होने लगी तो ऐसे ही लेट गया और लेटते ही नींद ने घेर लिया। आलोक दवाई औैर नींद के इंजेक्शन की असर से सो गया था। औैर थोड़ी देर बाद शेखर का मोबाइल बज उठा। आंखें मलते हुए देखा तो डॉक्टर अविनाश का कॉल। समय देखा तो रात के १२:१० । शेखर की नींद गायब हो गई। मन में बोला इस वक़्त डॉक्टर का कॉल?

'हेल्लो, सर'
'हेल्लो शेखर, आई एम सॉरी, इस समय पर आपको डिस्टर्ब कर रहा हूं।'
'अरे सर इट्स ओ.के. सर बोलिए बोलिए, क्या कोई इमरजेंसी?'
'आलोक के केस से रिलेटेड एक बहुत ही जरूरी मैटर पर डिस्कसन करनी है। अगर पॉसिबल हो तो वीरेन्द्र को लेकर अभी आ सकते हो, मेरे रेजिडेंस पर?'
'हां, सर हम अभी निकल रहे हैं दस ही मिनटों में।'
थोड़ी देर तो शेखर सोचता ही रहा। ऐसी तो जरूरी कौनसी मैटर होगी कि रात के १२ बजे बुला रहे हैं? वीरेन्द्र के रूम के दरवाजे पर दस्तक देकर उन्हें जागकर बात की।
शेखर ने कहा, 'अंकल मैं अकेला चला जाता हूं। आप आराम करो।'
फिर भी वीरेन्द्र ने साथ जाने की ज़िद की तो शेखर औैर वीरेन्द्र दोनों कार लेकर रवाना हुए डॉ. अविनाश के रेजिडेंस की ओर।

वीरेन्द्र और शेखर दोनों अपने अपने तरीके से तरह तरह के अनुमान करते रहे कि ऐसी तो जरूरी कौनसी बात होगी कि अभी बुला रहे हैं? लेकिन इस तरीके से इस समय बुलाया यानि कोई ऐसी सीरियस मैटर होगी जाे आलोक के ट्रीटमेंट में जरूर कोई अप्रत्याशित मोड़ लायेगा ऐसा ही लग रहा है। दोनों अपनी अपनी विचार शक्ति की सीमाओं तक अनेक मान्यताएं सोचते सोचते डॉक्टर के रेजिडेंस पर पहुंच गए।

स्मिता जोशी ने डॉर ओपन किया।

स्मिता जोशी जाे शहर के एक नामांकित न्यूरोलॉजिस्ट औैर अविनाश के लाइफ पार्टनर औैर बिजनेस पार्टनर जैसे दोनों की दोहरी भूमिका बखूबी निभा रही है।

दोनों को सादर प्रेम से स्वागत किया। सभी हॉल के सोफा पर बैठे।
शेखर औैर वीरेन्द्र बहुत ही बेसब्री से डॉ. अविनाश की ओर देखने लगे।
डॉक्टर बोले, 'सब से पहले मैं आप दोनों से सॉरी बोलूंगा क्योंकि इतनी देर रात को आपको परेशान किया है तो आई एम सॉरी।'
वीरेन्द्र बोले, 'अरे प्लीज़ डॉक्टर आपको सॉरी बोलने की आवश्यकता नहीं है। ऐसा बोलकर आप हमें शर्मिंदा कर रहे हैं।'
डॉक्टर दोनों की ओर देखकर बोले, 'वील यू ड्रिंक वॉटर ओर टी, कॉफी? क्योंकि चर्चा थोड़ी लंबी चलेगी इसलिए।'
दोनों ने कहा, 'नो इट्स ओ.के.।'
'बात ही कुछ ऐसी है इसलिए सोच रहा हूं कहां से शुरू करूं।'
'क्यूं सर, कोर्इ गंभीर मामला या कोई खतरा है?'शेखर ने उत्सुकता से पूछा।
'समझिए के खतरा टालने के लिए हमें एक प्रयोग करना हैं। शायद गंभीरता टल जाए या हावी भी हो जाए। लेकिन आप लोगों को मेरी मेरी सलाह सूचन के मुताबिक प्लैनिग करना पड़ेगा। औैर उसके लिए मैं न कहूं तब तक किसीने कोई भी सवाल पूछना नहीं है। सबकुछ मेरी गाईड लाईन औैर इंस्ट्रक्शन के मुताबिक ही करना पड़ेगा।'
वीरेन्द्र बोले, 'सर हमें आप पर पूरा भरोसा है लेकिन आप इस तरह पज़ल की भाषा में क्यूं बात कर रहे हैं? कुछ समझ में आए ऐसे बोलिए।'

'वीरेन्द्र मैंने मेरी २० साल की प्रैक्टिस कैरियर में ऐसा केस देखना तो दूर की बात लेकिन ऐसे केस की कल्पना भी नहीं की है। इट्स ए टोटली अनबीलीवेबल मिरेकल।'
शेखर ने बेसब्री से पूछा, 'प्लीज़ सर टेल मी। व्हाट
हेप्पन।' आपका कॉल आया तब से ऑलरेडी धड़कनें बढ़ गई है और आप सस्पेंस क्रिएट करके सिचुएशन को मोर एण्ड मोर क्रिटिकल कर रहे हैं तो प्लीज़ सर।'

डॉ. अविनाश बोले, 'कूल एण्ड लिसन यंग मैन। कल सुबह आप आलोक को लेकर मेरे केर यूनिट पर आ जाना औैर....'

थोड़ी सेकंड्स चूप रहकर बोले..

'औैर कल मै अदिती को आपके समक्ष हाजिर करूंगा। ठीक बारह बजे।
लेकिन...

अदिती आपके सामने आयेगी...
शर्तों के अनुसार।'

शेखर औैर वीरेन्द्र दोनों की आंखें औैर मुंह खुले के खुले रह गए। थोड़ी देर के लिए सन्नाटा छा गया।

आगे अगले अंक में....


© विजय रावल
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