केशर कसूरी:शिवमूर्ति राज बोहरे द्वारा पुस्तक समीक्षाएं में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

केशर कसूरी:शिवमूर्ति

कहानी संग्रह केशर कसूरी:शिवमूर्ति

स्त्री विमर्श और आमजन की सशक्त कहानियां

अपनी कम कहानियों के बूते पर ही आठवें दशक के कहानीकारों की पहली पंक्ति मे स्थान प्राप्त कर लेने वाले कहानीकार शिवमूर्ति का नाम किसी परिचय का मोहताज नहीं है। राधाकृश्ण प्रकाशन सेे शिवमूर्ति का पहला कहानी संग्रह केशर कसूरी छपा है, जो आलोचकों और पाठकों के बीच चर्चा का विशय बना हुआ।

इस संग्रह मे कुल छह कहानियाँ संग्रहीत है। पहली कहानी कसाई वाड़ा शनिचरी के उस बेदर्द गांव की व्यथा-कथा हैं, जिसे कसाई वाड़ा उपमा दिया जाना सर्वथा उचित है। चर्चा है कि गांव के परधानजी अपने गांव की दस युवतियों का आदर्श सामूहिक विवाह दस शहराती युवकों मे बड़ाी धूमधाम से करा चुके हैं, लेकिन पर्दे के पीछे का सत्य कुछ और है। दरअसल ये युवतियाँ पेशा करने के लिये शहर में बैठा दी गई है। यह खबर गांव के लीडर को लगती हैं, तो वे युवतियों के अभिभावकों को भड़का देते हैं, पर केवल शनिचरी ही ऐसी महिला होती हैं जो परधानजी की खिलाफत करती हैं और उनके दुआरे धरने पर बैठ जाती हैं। यह कहानी मंन्नू भंडारी के महाभोज की याद दिलाती है।

कहानी अकाल दंड की नायिका सुरजी पर अकाल राहत बांटने आए सिकरेटरी साहब की नजर है। निराश्रित सूरजी जब सिकरेटरी के निकट होने को विवश होती हैं तो एक हिम्मत भरा निर्णय लेकर आततायी को पुंसत्वहीन करके भाग जाती है।

सिरी उपमा जोग कहानी का ए.ड़ी.एम. हमको आज की आधुनिक जिंदगी मे कई स्थानों पर मिल जाएगा। अपनी ग्रामीण पत्नी को छोडकर शहरी लड़की से ब्याह करने वाला यह कृतघ्न व्यक्ति उसी ग्रामीण स्त्री की मेहनत और खेती का धन अपनी किताबों और शुल्क के लिए मांग-मांगकर प्रतियोगी परीक्षा मे सफल हुआ है जिसके लिए वह सौतन लेकर आया है। केवल कहने के लिए सहज भाव से अपनी जगह दूसरी साक्षर पत्नी ले आने की बात कहकर पहली पत्नी लालू की माई तब स्तंभित रह जाती हैं, जबकि वाकई दूसरी पत्नी घर में आ जाती हैं, तब कोई शिकवा-शिकायत नहीं करती। हाँ जब बात सिर से ऊपर हो जाती हैं और पेट-पूर्ति का साधन भी हाथ से जाता नजर आता हैं, तो वह अपने बेटे को एक चिट्ठी लेकर भेजती है। पढकर कुछ क्षण को वह ए.ड़ी.एम. जागता हैं पर जल्दी ही सब कुछ भूल जाता है।

चौथी कहानी “भरतनाट्यम“ का नायक एक सिंद्धातवादी युवक हैं जो पहले अध्यापन और बाद मे सचिवालय की नौकरी अपने जमीर के कारण छोड़ देता है। पिता की लगातार झिड़की, माँ और भाभी का तिरस्कार तथा पत्नी दयादृश्टि मे डूबा-चूभा वह चुपचाप दिन निकाल रहा हैं कि ठीक उसी दिन जबकि वह राशन दुकान का लाइंसेंस लेकर गांव लौटता हैं, उसकी पत्नी की पराये मर्द के साथ भाग जाने की सूचना मिलती हैं और प्रकट रूप से शांत रहता हुआ अंततः वह युवक पागल हो जाता है।

तिरिया चरित्तर शिवमूर्ति की बहुचर्चित कहानी है। इसके चरित्र, इसके प्रसंग, इतने जीवंत और मर्मस्पर्शी है कि संपूर्ण कहानी एक सत्य कथा-सी लगती है। अपनी कड़ी मेहनत से घर का खर्च चलाने वाली विमली जाने किन-किन से अपनी अस्मत बचाती, अपने पति की प्रतीक्षा मे है। पति अज्ञात परदेश गया है। ससुर विसराम गोना कराने के लिए अचानक टपक आता हैं, तो मजबूर माँ-बाप बिसली को विदा कर देते है। विमली की अछूती जवान-देह भोगने हेतु कुत्ते-सी लार टपकाता ससुर विसराम जब विनती और जोर-जबरदस्ती से काम नहीं निकाल पाता तो पांसा पलट देता है।

एक रात दूध मे अफीम घोलकर चरनामिरत (चरणामृत) के बहाने विमली को पिता देता हैं और बेसुध गाफिल विमली लुट जाती है। बिसराम भागकर मंदिर मे जा सोता है। विमली अपने मायके को भाग निकलती हैं, लेकिन कबसराम अपनी बदनामी से बचने के लिए विमली को कुल्टा बताकर पंचायत इकट्ठी कर लेता है। विमली पकड़ी जाती हैं और अंत मे जाकर उसके खिलाफ किए गए निर्णय के पालन मे उसे जानवरों की तरह दाग दिया जाता है।

अंतिम कहानी केशर कस्तूरी एक ऐसी अबोध और सरल किशोरी की कहानी हैं जो जहाँ जाती हैं हँसी और ठहाके फैला देती है। अपने मौसी के पति को वह पापा कहती है। पुत्री की तरह अपना हक समझकर खुद के लिए सामान से लेकर समय तक माँगती है। जरूरत पड़नें पर पति के लिये नौकरी भी मांगती हैं, मगर किसी कारणवश उसके पति को नौकरी न दिला पाने वाले उसके मौसाजी जब केशर की ससुराल पहुँच जाते हैं, तो उसी कोमल युवती को दृढतापूर्वक अपनी गृहस्थी के मोर्चे पर लोहा लेती हुई देखते है। तमाम तरह के कलंक झेलती केशर अपने परिवार का पेट पाल रही हैं और पिता द्वारा चरित्रगत शंका उठाने पर सीधे कुठ न कहकर रात को आटा पीसते समय लोकगीत के माध्यम से उन्हें आश्वस्त करती हुई रोती केशर पाठक को द्रवित कर देती है।

टूटडी मडइया या जिनगी बितउबै, नाही जावे आन की दुआरी जी-ई-ई’

कहानी मे मुख्य चीज हैं कथानक कहने का ढंग। कहीं जाने वाली बात मे मौजूद कबातत्व के ही कारण तो आज शिवमूर्ति सबसे ज्यादा पड़ें जाने वाले लेखक है। वे फालतू केे प्रपंचों मे नहीं पड़तें। सीधे सपाट ढंग से अपनी बात करतें हैं, जिसमे आंचलिक बोली का पुट भी रहता हैं, और शुद्ध खड़ी बोली भी। उनकी भाशा कहीं भी क्लिश्ठ नहीं होती। गांव उनमे रचा बसा। चाहे पात्रों के संवाद हों या फिर कहानीकार की निजी पंक्तियाँ, शिवमूर्ति का लहजा ठेठ ग्रामीण रहता है। उनके पास जो भाशा हैं वह अद्भूत है। कैसी भावनाओं मे ग्रामीण पात्र किस उपयुक्त और गहन-अनुभूत शब्द का प्रयोग करेगा, यह बात जैसे शिवमूर्ति को पूरी तरह पता है। फलतः उनकी कहानी कहीं भी कृत्रिम नहीं लगती। उनकी कहानियाँ ग्रामीण पृश्ठभूमि की हैं, जिसमे हमे जीता-जागता गांव मिलता है।

स्त्री पात्रों के तो शिवमूर्ति कुशल चितेरे है। उनके द्वारा सृजित स्त्री पात्र पाठक को शिवमूर्ति की मानस संतान नहीं लगते, बल्कि हमारे आसपास जीवन जीती, ऊर्जावान स्त्रियों मे से ही कोई एक स्त्री, उनकी कहानियों मे आ विराजती अनुभव होती है। शिवमूर्ति की कहानियों की स्त्रियाँ परिश्रमी भी हैं और जागरूक भी। जिरिया चरित्तर की विमली, अकाल दंड की ’सुरजी’, केशर कस्तूरी की ’केशर’, भरतनाट्यम और सिरी उपमा जोग के नायकों की पत्नियाँ ऐसी अविस्मरणीय बनकर कहानियों मे आई हैं, कि पाठक के स्मृति पटल पर उनकी अमिट छवि अंकित हो जाती है। ये सभी स्त्रियाँ अपनी सहज हार नहीं मान लेती, बल्कि परिस्थितियों से बाकायदा लोहा लेती है। इनका जीवन सराहनीय है।

शिवमूर्ति की कहानियों पर बात करते हुए इस तथ्य को अनदेखा नहीं किया जा सकता कि उनकी कहानियों मे समाज का यथार्थ और उसके अनेक रूप् होने के बाद भी प्रायः उनका मूल मुद्दा सैक्स रहा करता है। उनके पुरूश पात्र शरीर संसर्ग को प्रयः बेचैन दिखते हैं, जबकि स्त्री पात्र अपनी शुचिता बनाए रखने को जागरूक दिखती हैं, चाहे ऐसे पात्र अकांल दं़ड के सिकरेटरी व सुरजी हो, चाहे तिरिया चरित्तर के ड्राइवर, बिसराम और विमली हों। इस चीज से दो बातें प्रकट होती हैं, एक तो यह कि शिवमूर्ति सैक्स को सबसे बड़ा मुद्दा मानते हैं, दूसरा यह कि यौन शुचिता के मामले मे उनके विचार शुद्ध भारतीय संस्कृति की परम्परा के है। दोनों मुद्दों पर अच्छी चर्चा और बहस की जा सकती है। शिवमूर्ति इन मुद्दों पर पूरे ’बोल्ड़’ होकर लिखते हैं, और यह उनकी एक और निजी विशेशता है।

इन चिजों के बाद भी शिवमूर्ति की कहानी की पठवीयता पर कोई फर्क नहीं पड़ता है। उनकी हर कहानी पढनें योग्य और गुनने लायक है। इस संग्रह को कम-ज्यादा गंध वाले कई तरह के फलों का एक मनोरम गुलदस्ता कह सकते है।

पुस्तक-केशर कस्तूरी (कहानी संग्रह