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बैल-हैं-बैल

लघु-कथा--

बैल-हैं-बैल

राजेन्‍द्र कुमार श्रीवास्‍तव,

जमाना था, जब बैलगाड़ी का उपयोग आम बात थी खासकर ग्रामीण व्‍यक्ति किसान के लिये, उस समय वही उसके लिये मोटरकार हुआ करती थी। और सम्‍पन्‍नता की सवारी होती थी। बैलगाड़ी कोई हंसीखेल नहीं था। उसके बैल बहुत ही कीमती होते थे। और उसकी खरीदी बिक्री के लिये दूर-दूर हाट-बाजार, मेला-ठेला, सजा करते थे, किसी तीज त्‍यौहार पर साल में एक-दो बार पास-पड़ोस और दूर-दराज के भी किसान अपनी आवश्‍यकता अनुसार सामानों और घरेलू उपयोगी जानवरों के लिये इन मेलों में जाया करते थे। फिर बहुत ही उत्‍साह से उसे दूल्‍हे की तरह सजाया जाता था। गॉंव के लोग देखकर वाह-वाह कह उठते थे। गले में, और पैरों में सुरीली घन्टियॉं बॉंधी जाती थीं, जो चलते और दौड़ते समय एक अद्भुत मनमोहक ध्‍वनि के साथ प्राकृतिक संगीत की स्‍वरलहरी, पूरे वातावरण में गुंजा करती थीं। यह कर्णप्रिय सरगम सुनकर लोग सुधबुध खोकर उस गुन्‍जन में रम जाते थे। स्‍वर जैसा-जैसा दूर होता जाता, वैसा-वैसा वातावरण को और मदमस्‍त करता जाता, काफी देर तक दिल-दिमाग पर आनन्‍द सा छाया रहता। किसान अभूतपूर्व गौरव से हर्षित मेहसूस करता था। शानो-शौकत के साथ सवार किसान अपने विचारों के आसमान पर उड़ान भर रहा था कि एक अनअपेक्षित हिचकोले के साथ, वगैर किसी हीला-हवाले के जुता हुआ बैल जमीन पर पसर गया.....!

....पहले तो किसान ने सोचा खुर में कुछ चुभ तो नहीं गया। अचानक तबियत तो नहीं बिगड़ गई। आखिर हुआ क्‍या? झट से नीचे उतरकर निरीक्षण किया, मगर शंका के अनुसार कोई कारण नज़र नहीं आया। बैल तो अच्‍छा खासा जुगाली कर रहा था। पूर्णत: स्‍वस्‍थ। किसान को क्रोध आया, चामटी हाथ में थी, दिया सटा-सट दो-चार, मगर बैल पर कोई असर नहीं। फिर उसने चामटी के डण्‍डे की नोंक पर लगी ‘आल’ (नुकीली कील) को चुभोया; कोई अन्‍तर नहीं पूँछ को ऐंठा-मरोड़ा कोई प्रतिक्रिया नहीं लगी। हुँकारा दिया....हिस्‍स..हिस्‍स....मगर कोई बदलाव नहीं। थकहार कर अपना माथा पकड़कर बैठ गया किसान, उकड़ूँ....!

‘’डुबा दिया इस लीचड़ बैल ने! ऐन वक्‍त पर धोखा दे दिया। तत्‍काल कोई रास्‍ता नहीं सूझ रहा है। हाय ये मेरी किस्‍मत.....! सारी जिन्‍दगी से बाँध रखी आस, एक पल में हो गई, क्रच-क्रच बिखर गई माहैल में, ऐसा लगता है, शरीर में चारों तरफ से चुभ रही है।‘’

ऐसे ही बैल की भॉंति अगर किसी की औलाद की हकीकत सामने आ जाये तो.........

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संक्षिप्‍त परिचय

नाम:- राजेन्‍द्र कुमार श्रीवास्‍तव,

जन्‍म:- 04 नवम्‍बर 1957

शिक्षा:- स्‍नातक ।

साहित्‍य यात्रा:- पठन, पाठन व लेखन निरन्‍तर जारी है। अखिल भारातीय पत्र-पत्रिकाओं में

कहानी व कविता यदा-कदा स्‍थान पाती रही हैं। एवं चर्चित भी हुयी हैं। भिलाई

प्रकाशन, भिलाई से एक कविता संग्रह कोंपल, प्रकाशित हो चुका है। एवं एक कहानी

संग्रह प्रकाशनाधीन है।

सम्‍मान:- विगत एक दशक से हिन्‍दी–भवन भोपाल के दिशा-निर्देश में प्रतिवर्ष जिला स्‍तरीय कार्यक्रम हिन्‍दी प्रचार-प्रसार एवं समृद्धि के लिये किये गये आयोजनों से प्रभावित होकर, मध्‍य-प्रदेश की महामहीम, राज्‍यपाल द्वारा भोपाल में सम्‍मानित किया है।

भारतीय बाल-कल्‍याण संस्‍थान, कानपुर उ.प्र. में संस्‍थान के महासचिव माननीय डॉ. श्री राष्‍ट्रबन्‍धु जी (सुप्रसिद्ध बाल साहित्‍यकार) द्वारा गरिमामय कार्यक्रम में सम्‍मानित करके प्रोत्‍साहित किया। तथा स्‍थानीय अखिल भारतीय साहित्‍यविद् समीतियों द्वारा सम्‍मानित किया गया।

सम्‍प्रति :- म.प्र.पुलिस से सेवानिवृत होकर स्‍वतंत्र लेखन।

सम्‍पर्क:-- 145-शांति विहार कॉलोनी, हाउसिंग बोर्ड के पास, भोपाल रोड, जिला-सीहोर, (म.प्र.) पिन-466001, व्‍हाट्सएप्‍प नम्‍बर:- 9893164140 एवं मो. नं.— 8839407071.

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