कहानी--
वंचित
राजेन्द्र कुमार श्रवास्तव,
‘’यही ऑफिस है.......शायद कॉलोनाइजर का!’’
‘’हेल्लो, दानेश्वरजी।‘’
‘’हॉं.....। आपको मेरा नाम?’’
‘’बड़े साहब ने बताया,......आप ही का वेट कर रहे हैं; अन्दर।‘’
लगता है, यह यहॉं का सेफ्टी ऑफिसर है। लम्बा-लछारा; हृष्ट-पुष्ट एवं अलर्ट! मैं उसके पीछे-पीछे चल दिया, ‘’बड़े साहब का नाम तो होगा कुछ?’’
‘’हॉं है ना, रामराज.....’’
मुझे तुरन्त याद आया, इसी से तो मोवाईल पर बात हुई थी!’’
शानदार, वेलफर्निशड ऑफिस में प्रवेश करते ही; मेरा ऐसा वेलकम हुआ, जैसे मैं कोई अतिविशिष्ट, व्ही.आई.पी. या कोई सेलिब्रेटी हूँ।
स्वभाविक, मैं गद्गद् हो गया।
‘’ये ब्रोसर है। इसमें सम्पूर्ण जानकारी विस्तार से दी गई है। पूर्व निर्मित कॉलोनी बसी हुई, निर्माणाधीन एवं प्लॉट्स आगे प्लानिंग हेतु!
मुझे कुछ रंगीन आर्ट पेपर छपे रखे पारदर्शी फाईल फोल्डर थमाते हुये, रामराज, अपनी रिवालविंग चैयर से उठखड़ा हुआ, ‘’आइये स्टूडियो रूम; कुछ विडियोज और देख लें!’’
चलते-चलते बोला, ‘’सम्भावित कॉलोनी का, ग्राफिक द्वारा चित्रांकन’’
‘’जी।‘’ मैं सम्मोहित सा उसके साथ चलने लगा।
कॉलोनी की डाक्यूमेन्ट्री देखकर अभिभूत व ललायित हो गया।
‘’बैठिए!’’ रामराज ने मुझे हाल में बैठने का इशारा किया, ‘’चाय पीकर साइट चलेंगे, लोकेशन देखने।‘’
प्लॉट तो प्राईम लोकेशन पर काटे हैं। बहुत ही शॉंत परिवेश, प्यूर एवं नेचुरल प्राणवायु; हमेशा स्वास्थ्य वर्धक। ट्राफिक बहुत कम पूर्णता-खुला एवं हरा-भरा वातावरण। नेशनल हाईवे एकदम वाक्येबल डिस्टेन्श! सच कहूँ तो मुझे ‘भा’ गया लोकेशन!
जैसा सपना था स्वयं आवास का उससे भी कई गुना दिव्य स्वप्न इस बिल्डर ने दिखा दिया। जल्दी करो बुक!
जिन्दगी के अन्तिम छोर पर तो सर्वसुविधायुक्त सुन्दर घर में सुख-शॉंति पूर्वक बसने का आनन्द उठाने का अवसर क्यों ना अपनाऊँ!
पिछली जिन्दगी तो डेरा के नाम पर गुजर-बसर करके काट दी। किसी भी ऋतु में कष्टकर रहते आये हैं। ठण्ड हो तो आस-पास की ठण्डी हवा से बचने हेतु हमेशा गर्म कपड़े पहने-लपेटे रहे। ज्यादा हो तो सिगड़ी सुलगा ली। गर्मी हो तो सारी-सारी धूप पूरे झौंपड़े को तपा देती है। उबलते रहो। हाय-तौबा करते रहो, ‘’ऊफ! कमाल की गर्मी है! पसीना-ही-पसीना!’’ और बरसात! अहा...हा...हा, इतना पानी घर के अन्दर; उतना ही बाहर! सीलन भरी दिवालें, कपड़े और सबकुछ बरसाती महक सराबोर! टप-टप टपकती बूँदों के नीचे बर्तन रखते-रखते रात बीत जाती। टॉयलेट होने के बाद भी किसी काम का नहीं पानी-पानी लबालब! बदबू ही बदबू! शुद्ध पेयजल भी दुर्लभ! शुद्धता पूर्वक भोजन बनाना अत्यन्त कष्टकर.....इन सब आपदाओं से निजात् एक झटके में.....’’
अगर कोई आदर्णिय या नाते-रिश्तेदार आ धमके, तो असहनीय शर्मिन्दगी के साथ उसका स्वागत-सत्कार करना मजबूरी है।
आर्थिक स्थिति का आंकलन किया काफी टाईट मेहसूस हुआ। चलो देखा जायेगा की तर्ज पर आगे बढ़ गया।
परिवार से विचार-विमर्श किया। उन्होंने तुरन्त स्वीकार कर लिया। खुशी-खुशी! अन्धा क्या चाहे दो ऑंखें!
तत्काल मैंने अपनी आवश्यकता अनुसार वर्गफुट का आवासीय प्लॉट बुक कर लिया। बहुत संतोष का आभास हुआ।
प्रतीक्षा प्रारम्भ हो गयी। कब बनेगा, कब रहना शुरू करेंगें। सारा खाका दिल-दिमाग में अंकित कर लिया; हॉल, बेडरूम, किचिन, पूजा रूम और लेटबाथ कम्बाइन एवं अटैच। सब कुछ ख्यालों में तैरने लगा! चित्रवत्!
कॉलोनाइजर कम बिल्डर के पास दोनों विकल्प उपलब्ध।
मैंने बेटे से सलाह ली, वह तत्पर था, बोलने लगा, ‘’हॉं पापा, मकान अपनी देख रेख में, अपनी मनमर्जी का सामान, अपने पसन्द का डिजाइन और अपनी सुविधानुसार बनबाना ही उत्तम रहेगा।‘’
मैंने उसे फ्रीहेन्ड दे दिया। वह जुट गया जी-जान से। अनेकों व्यवहारिक अड़चनें आईं, मगर वह सूझ-बूझ से सुलझाता हुआ, आगे बढ़ता गया, निर्माण की गुणवत्ता अनुसार। आर्थिक स्तर पर मैं उसे प्रोत्साहित करता रहता था। जहॉं से जो जुगाड़ बनी उसे अपनाते हुये आगे बढ़ते गये।
दिल दिमाग में एक ही इच्छा या संकल्प था कि बेटे को एक ठौर-ठिकाना अपना घर तो बनवा दूँ। वह तो शुकून से, एक स्तरीय जिन्दगी आत्मसम्मान व स्वाभिमान से रह सके समाज में, निश्चिंत होकर।
कॉलोनाइजर ने आहिस्ता-आहिस्ता ऐन-केन प्रक्रेण (प्रकरेण) अपनी पूर्ण राशि बसूल कर ली। इसके बावजूद भी निर्धारित इन्फ्रास्ट्रक्चर के नाम पर कुछ भी सुविधा उपलब्द्ध नहीं करवाई। और ना ही निकट भविष्य में कोई उम्मीद दिख रही थी। सामान्य शिष्टाचार के अनुसार उसे आगाह करते, तो वह निरन्तर टाल-मटोल करते-करते लम्बा समय गुजार चुका था।
बुकिंग से पूर्व, ब्रोसर देकर डाक्यूमेन्ट्री दिखाकर, प्राईम लोकेशन पर ले जाकर और मनोवैज्ञानिक जाल में फंसाकर भोले-भाले, सज्जन व्यक्तियों के अरमानों को साजिश के तहत नजर अन्दाज करने लगा।
मैंने निश्चय किया, इस स्वार्थी व धोकेवाज कॉलोनाइजर को बेनकाब करूँगा।
कॉलोनी के अन्य रहवासियों को अपने साथ मिलाने की कोशिश की, लेकिन वे अज्ञात भय से पीडि़त मेहसूस हुये! ना-नुकर करते हुये, किनारा कर गये। हालॉंकि वे सबके सब सुविधाऍं चाहते हैं। रहन-सहन में कष्ट भुगत रहे हैं। फिर भी...।
एग्रीमेन्ट में दर्शाई गई सम्पूर्ण सुविधाओं को पूरा करने हेतु स्थानिय अथार्टियों को शिकायत-पत्र दिया तथा उसकी पैरवी की; अंतिम छोर, रेरा तक गया।
कॉलोनाइजर को जब नोटिस मिला, तो उसके पैरों तले जमीन खिसक गई। हाथों के तोते उड़ते हुये नजर आये। तब वह माफी मॉंगने लगा। गिड़गिड़ाने लगा, ‘’शीघ्र-अति-शीघ्र शेष महत्वपूर्ण कार्य करवाने का आश्वासन देने लगा। दया की भीख दो। एक अंतिम मौका! बर्बाद हो जाऊँगा।
सज्जन व्यक्तियों को क्षमा देना बड़प्पन लगता है। यही संस्कृति व परम्परा है।
कॉलोनाइजर ने मुखौटा पहनकर अपने आप को मुक्त कर लिया, मगर पीडि़त निवासी शेष सुविधाओं से वंचित हैं..... आज तक..!
न्न्न्न्न्
संक्षिप्त परिचय
नाम:- राजेन्द्र कुमार श्रीवास्तव,
जन्म:- 04 नवम्बर 1957
शिक्षा:- स्नातक ।
साहित्य यात्रा:- पठन, पाठन व लेखन निरन्तर जारी है। अखिल भारातीय पत्र-पत्रिकाओं में
कहानी व कविता यदा-कदा स्थान पाती रही हैं। एवं चर्चित भी हुयी हैं। भिलाई
प्रकाशन, भिलाई से एक कविता संग्रह कोंपल, प्रकाशित हो चुका है। एवं एक कहानी
संग्रह प्रकाशनाधीन है।
सम्मान:- विगत एक दशक से हिन्दी–भवन भोपाल के दिशा-निर्देश में प्रतिवर्ष जिला स्तरीय कार्यक्रम हिन्दी प्रचार-प्रसार एवं समृद्धि के लिये किये गये आयोजनों से प्रभावित होकर, मध्य- प्रदेश की महामहीम, राज्यपाल द्वारा भोपाल में सम्मानित किया है।
भारतीय बाल-कल्याण संस्थान, कानपुर उ.प्र. में संस्थान के महासचिव माननीय डॉ. श्री राष्ट्रबन्धु जी (सुप्रसिद्ध बाल साहित्यकार) द्वारा गरिमामय कार्यक्रम में सम्मानित करके प्रोत्साहित किया। तथा स्थानीय अखिल भारतीय साहित्यविद् समीतियों द्वारा सम्मानित किया गया।
सम्प्रति :- म.प्र.पुलिस से सेवानिवृत होकर स्वतंत्र लेखन।
सम्पर्क:-- 145-शांति विहार कॉलोनी, हाउसिंग बोर्ड के पास, भोपाल रोड, जिला-सीहोर, (म.प्र.) पिन-466001, व्हाट्सएप्प नम्बर:- 9893164140 एवं मो. नं.— 8839407071.
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