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अधूरा खत

अधूरा ख़त

बन्ते का इंतजार करती करती सन्तो कोअब नींद आने लगी थी । उसका दिल किया कि चादर ओढ कर सो जाये पर कैसे सो सकती है । अभी तो बन्ते को आना था फिर उन्होंने रोटी खानी थी । उसके बाद बर्तन चौका... ये सब । आज कल तो बारह बजना आम बात हो गयी है । उसने पलट कर घडी देखी । घङी की सुईयाँ अभी तो सिर्फ साढे दस ही बजा रही हैं । बन्ते को आने में बहुत देर है । समय कटने में आ ही रहा । सास और ननद रोटी खा कर अपने बिस्तर पर लेट गयी हैं ।

वक्त काटने के लिए उसने सोचा - 'चलो माँ को खत ही लिख लेती हूँ . बहुत दिनो से लिखने का सोच रही थी ,आज ही सही "।
उसने खत लिखने के लिए कागज और पैन उठा लिया और लिखने बैठ गयी - ” माँ तू मेरी फिकर न करना . …....... यहाँ सब बहुत अच्छे हैं । सब मेरा बहुत ख्याल रखते हैं । . मै यहाँ बहुत खुश हूँ …............... . उसकी आँखों से टप टप आँसू बह चले । धुँधलाई आँखों से अक्षर दिखाई देने बंद हो रहे थे । उसने दुपट्टे के छोर से आँसू पौंछे और हौंसला करके दुबारा लिखना शुरू किया ही था कि दरवाजा खटका । खत उसने मेज पर रखा । पल्लू से आंसू पौछ् कर लगभग दौङते हुए दरवाजा खोला । देकते ही बन्ते ने मोटी सी गाली दी " कब से दरवाजा खटका रहा हूँ । बहरी हो गयी थी क्या , इतनी देर से अंदर बैठी कर क्या रही थी ? “ बंता शराब के नशे से टुन्न हुआ लड़खड़ा रहा था . संतो सहारा दे कर बड़ी मुश्किल से उसे कमरे तक ले कर आई। हाथ धोने के लिए लोटा पानी का थमा तौलिया बढाया और खुद रसोई में चली गई रोटी लाने ।
पहला कौर मुँह में डालते ही बन्ते ने थाली फेंक दी – “ ये दाल बनाई है तूने . जा मैंने नहीं खानी तेरी रोटी । “

रोटी और दाल उछल कर फर्श पर बिखर गयी । थाली दूर जा गिरी । वह जवाब में कुछ बोल ही नहीं पाई । तब तक अंदर से छोटी ननद की आवाज सुनाई दी - ' कुछ आता जाता हो तभी न बनाये । बेचारा सुबह से गया अब घर आया था । ' सास अलग बङबङा रही थी -' मेरी तो किस्मत ही ख़राब है . सोचा था ,ढ़ंग की बहु आ जाएगी तो बेटे को रोटी का सिख हो जाएगा । पर य़हाँ तो ढाक के वही तीन पात हैं ।.
संतो परेशान है । उस बेचारी को कौन बताए कि ये जनाब तो अभी अभी फाइव स्टार में मुरगे दावत में उडा कर चले आ रहे है .
बंता जूतों समेत ही बिस्तर पर लुढक गया । उसने धीरे से उसके जूते उतारे । रसोई में जा कर रसोई समेटी । मटके से एक गिलास पानी पिया और पलंग पर ढेर हो गई ।
पास की मेज पर पङी ्अधूरी चिट्ठी पंखे की हवा से अधूरी ही फङफङा रही थी

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