आखा तीज का ब्याह - 13 Ankita Bhargava द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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आखा तीज का ब्याह - 13

आखा तीज का ब्याह

(13)

तिलक होटल के कमरे में कुर्सी पर बैठा सिगरेट के धूंए के छल्लों के साथ अपने मन का गुबार निकाल रहा था, उसकी आँखें लाल सुर्ख हो रही थी| आज बहुत दिनों बाद उसने शराब पी और बेहिसाब पी| मानों उस रंगीन पानी की बोतल में ही उसकी हर समस्या का हल था| उसका मोबाईल बार बार बज रहा था और वह बार बार फोन काट देता, पर फोन बजाना बंद नहीं हुआ तो आखिर उसने खीज कर फोन उठा ही लिया|

“हेलो”, नशे में तिलक की आवाज़ बहुत भारी हो गई थी

“पापा”, फोन उठाते ही एक मधुर आवाज़ तिलक के कानों में रस घोलती चली गयी|

समझ रहा था वह, श्वेता ने ही बेटे को फोन मिला कर दिया है उसे घर बुलाने को। यह उसका अचूक हथियार था जिसे वह यदा कदा ब्रह्मास्त्र की तरह इस्तेमाल किया करती थी, वह अच्छे से जानती थी रानू तिलक की कमजोरी है और अक्सर इसी कमजोरी का फ़ायदा उठा जाती थी| “पापा अभी थोड़ी देर में घर आ रहे हैं बच्चा, मम्मा को फोन दो|”

“हैलो|” श्वेता के स्वर में एक उदासी थी|

“सुधरना मत तू! तू समझती क्या है खुदको? चैन से दो घड़ी मरने भी नहीं देती मुझे! क्या दिखाना चाहती है? यही कि तुझे मेरी कितनी फ़िक्र है, ये ड्रामा किसी और के सामने करना मेरे सामने नहीं मैं| खूब समझता हूँ तुम औरतों को| क्यों फोन किया जब मैंने मना किया था?” दूसरी तरफ़ श्वेता की आवाज़ सुनते ही वह उबल पड़ा|

“क्या करूँ! आप कभी कभी और कोई रास्ता ही नहीं छोड़ते मेरे लिए|” श्वेता की आँखों में आंसू आ गए और उसने फोन रख दिया|

रानू की आवाज़ ने तिलक के जलते दिल पर मरहम सा लगा दिया| वह घर की और निकल पड़ा, सारे रास्ते रानू को बताने के लिए घर देर से आने का कोई अच्छा सा बहाना सोचता रहा कि तभी उसे मुंह से आती शराब की गंध का अहसास हुआ| घर के बाहर गाड़ी खड़ी कर दिल ही दिल में रानू के सो जाने की प्रार्थना करते हुए, लड़खड़ाते कदमों से सावधानी से छुपते छुपाते उसने घर में प्रवेश किया|

“रानू सो गया है| आराम से आ जाईये|” श्वेता ने कहा तो तिलक ने राहत की साँस ली| “खाना लगा दूं?”

“नहीं|”

“थोड़ा तो खा लीजिये|” श्वेता ने फिर इसरार किया| तिलक ने कोई जवाब नहीं दिया बस गुस्से से घूरते हुए उसका हाथ झटक कर कमरे में चला आया और बिना कपड़े बदले ही बिस्तर पर पसर गया| श्वेता की आँखों में आंसू आ गए नौकरानी से डाईनिंग टेबल साफ़ करने को कह कर वह भी कमरे में आ गयी| उसने भी सुबह से कुछ नहीं खाया था सोचा था तिलक के साथ ही खा लेगी पर अब तिलक की ऐसी हालत देख कर उसकी भी भूख मर गयी|

बत्ती बुझा कर वह भी लेट गयी पर नींद उसकी आँखों में दूर दूर तक कहीं नहीं थी| क्या मिला उसे तिलक से शादी करके, जाने कौनसी जिद में आकर तिलक ने उसे शादी के लिए प्रपोज़ किया और जाने वो कौनसा कमजोर पल था कि वह हाँ कर बैठी। तिलक और श्वेता की शादी का कारण चाहे कुछ भी रहा हो मगर आज के दिन उनके रिश्ते का सच यह भी कि वासंती आज भी उनके बीच मौजूद थी, तिलक आज भी वासंती को नहीं भूल पाया था। इस सच को श्वेता जितना स्वीकार करने की कोशिश करती उतना ही वह उसके लिए और अधिक तकलीफ़देह बनता जाता|

कभी कभी श्वेता सोचती क्या रजत भी उसे याद करता होगा? क्या उसके जीवन में भी अभी तक श्वेता के लिए एक खास जगह होगी? ठीक उसी तरह जैसे तिलक के जीवन में वासंती की है| शायद नहीं! क्योंकि रजत ने जहां अपने लिए सोच समझ कर एक बेहतर विकल्प चुना, वहीं तिलक ने उससे शादी करके एक समझौता किया| तिलक को क्या दोष यह शादी खुद श्वेता के लिए भी तो एक समझौता ही थी। कैंसर की आखिरी स्टेज पर खड़े पापा की बंद होती आंखों में एक ही सपना था उसका घर बसते हुए देखने का। ऐसे समय में जब उसके लिए तिलक का प्रस्ताव आया तो उसने भी पापा की खुशी के लिए स्वीकार कर लिया।

इधर तिलक के माता पिता अपने बेटे का घर बसना चाहते थे, उनकी इच्छा थी श्वेता और तिलक का रिश्ता जुड़े। उसने उनकी बात मान ली, या फिर शायद वासंती के जाने के बाद भी खुद को खुश दिखाने की जिद में खुद तिलक ने यह फैसला किया। वह कहता भी तो है अक्सर कि उसे अपने जीवन से कोई शिकायत नहीं है घर तो उसका भी बस ही गया वासंती ना सही श्वेता सही| हां घर तो तिलक का बस गया मगर जब यह समझौता उसके लिए असहनीय हो जाता है तो वह जानबूझ कर ऐसी हरकतें करने लगता है जिससे श्वेता को दुःख पहुंचे|

अब तो वासंती यहीं आ जाएगी| कहीं उसका इतना नजदीक होना श्वेता के लिए खतरा ना बन जाये| कहीं सहेली के रिश्ते संभालने की श्वेता की कोशिश उसकी अपनी गृहस्थी टूटने का कारण ना बन जाये| नहीं! श्वेता अपने बिस्तर पर उठ कर बैठ गई एसी की ठंड में भी वह पसीने से नहा गई| यह क्या सोच गई वह! नहीं ऐसा कुछ नहीं होगा, चाहे स्वभाव का कैसा भी हो पर तिलक अपने और श्वेता के रिश्ते को लेकर हमेशा ईमानदार रहा है। वह रानू भी बहुत प्यार करता है। वह ऐसा कोई काम नहीं करेगा जो उसके हित में ना हो| इतनी छोटी सी बात से वह तिलक पर अविश्वास नहीं कर सकती| उसे तिलक पर अपना विश्वास बनाये रखना होगा। तभी हालत ठीक हो पाएंगे अन्यथा सब बिखर कर रह जायेगा| श्वेता अपनी सोच को विराम दे सोने की कोशिश करने लगी, कल सुबह जल्दी उठना था वासंती और प्रतीक पहुँच रहे थे उनके स्वागत की तैयारी करनी थी, बहुत काम था|

सुबह जब तिलक जागा तो उसका सर दर्द से फटा जा रहा था| श्वेता उसके लिए ब्लैक कॉफ़ी बना कर लायी और चुपचाप साइड टेबल पर रख कर वापस मुड़ गयी| उसे यूँ चुपचाप देख तिलक समझ गया आज श्वेता उससे बहुत नाराज़ है| उसकी आँखें भी लाल है, शायद रात को बहुत देर तक रोई भी है| उसकी हालत देख कर तिलक को रात का वाकया याद आ गया और साथ ही यह भी कि उसने कैसे श्वेता के साथ फिर से दुर्व्यवहार किया| बहुत अफ़सोस हो रहा था उसे अपने व्यवहार पर। वह हमेशा सोचता है अब ऐसा कुछ नहीं करेगा जिससे श्वेता को दुःख हो पर हर बार कुछ ना कुछ गड़बड़ कर ही बैठता है| खैर जो हो गया सो हो गया, आगे से ध्यान रखेगा पर अब सबसे पहले श्वेता को मनाना होगा। उसके चेहरे पर छाये उदासी के ये बादल अच्छे नहीं लगते, इन्हें हटाये बिना तिलक को चैन भी तो नहीं मिलेगा| तिलक ने उससे बात करने की कोशिश की पर श्वेता ने कोई जवाब नहीं दिया| वह अलमारी में से तिलक के लिए कपड़े निकलने लगी|

तिलक एक अच्छे बच्चे की तरह मुंह हाथ धो कर कॉफ़ी पीने लगा| बीच बीच में कनखियों से श्वेता की ओर भी देख लेता कि कब वह उसकी ओर देखे, और उसे बात करने का मौका मिले पर आज श्वेता सच में बहुत नाराज़ थी उसने एक बार भी तिलक की ओर नहीं देखा| जब तिलक से नहीं रहा गया तो उसने हाथ पकड़ कर श्वेता को अपने पास बैठा लिया और बिस्किट की प्लेट उसके सामने करते हुए बोला, “मैं जानता हूँ तुमने कल से कुछ नहीं खाया है ये खा लो वरना एसीडीटी हो जाएगी। इतना नाराज़ हो मुझसे कि बात भी नहीं करेगी|” श्वेता फिर भी कुछ नहीं बोली पर उसके आंसुओं ने उसके दिल का हाल सुना दिया|

श्वेता को इस तरह रोते देख तिलक ने उसे अपने सीने से लगा लिया और बोला, “श्वेता माफ़ कर दे मुझे प्लीज़, कल नशे में मैं पता नहीं तुम्हें क्या क्या कह गया| सच में बहुत ज्यादा पी ली थी मैंने| मैं जानता हूँ तुम्हें मेरा पीना पसंद नहीं पर कल मेरा खुद पर नियन्त्रण ही नहीं रहा| तुम मेरी गलतियों पर मुझसे झगड़ लो पर मुझसे रूठा मत करो, प्लीज़। जब रूठ जाती हो तो लगता है तुम मुझसे दूर हो रही हो| मैं सब बर्दाश्त कर लूँगा, पर तुम्हारा खुदसे दूर होना बर्दाश्त नहीं कर पाऊँगा|”

तिलक की बातें सुन कर श्वेता हैरान सी उसे देखती रही| कैसा अजीब है यह आदमी| कभी तो यह भी भूल जाता है किसे क्या कहना चाहिए और क्या नहीं और कभी कितना मासूम बन जाता है, बिलकुल एक बच्चे की तरह|

“श्वेता!” तिलक ने श्वेता का चेहरा अपनी हथेलियों में भर कर ऊपर उठाया और बोला, “मैं तुम्हारे पढ़े लिखे दोस्तों की तरह नहीं हूँ| मैं एक साधारण सा ग्रामीण आदमी हूँ| मुझे मैनर्स की समझ नहीं है और ना ही बात करने का सलीका आता है मुझे| श्वेता तुम मेरे लिए क्या हो यह मैं नहीं बता सकता क्योंकि मुझे अपनी भावनाओं को फूलों की तरह खूबसूरत शब्दों की माला में पिरोना नहीं आता। मगर इतना जरुर कह सकता हूँ कि मेरे पास तुम्हारे और रानू से ज्यादा कीमती और कुछ नहीं है| तुम मुझसे दूर हो गयी तो मैं जी नहीं पाऊँगा| मैं नहीं रह सकता तुम्हारे बिना| वादा करो मुझसे तुम कभी मुझसे दूर नहीं जाओगी|”

“ये आपसे किसने कहा आप साधारण हैं| इतने कम समय में आपने जो हासिल किया है, लोग उसके बारे में सोच भी नहीं सकते, इतना बड़ा बिसनेस एम्पायर आपने अपनी मेहनत से खड़ा किया है| जिस इंसान की वजह से आज सैंकड़ों लोगों के घरों में चूल्हा जलता है, वह साधारण कैसे हो सकता है| ये हॉस्पिटल जो आप बनवा रहे हैं उससे कितने लोगों का भला होगा सोचा है कभी? और ये किसने कहा कोई आपको पसंद नहीं करता? आप क्या हो यह अपने नीचे काम करने वाले लोगों से पूछो जाकर जो दूसरी जगह दुगना पैसा मिलने पर भी आपका साथ नहीं छोड़ना चाहते क्योंकि आप में उन्हें अपने भाई, अपने बेटे की छवि दिखाई देती है|”

“और रही आपसे अलग होने की बात तो मिस्टर तिलक राज मुझे अगर आपसे कोई अलग कर सकता है तो वो आप खुद हो, हमेशा मुझे परेशान करते हो, बिना बात गुस्सा करते रहते हो, शराब पीना जरुरी है पर खाना खाना नहीं, खुद तो भूखे रहो सो रहो मुझे भी अपने इंतज़ार में भूखा रखते हो|”

“पर तुमने कल खाना क्यों नहीं खाया? मैं कह कर गया था ना मेरा इंतज़ार मत करना|”

“आपके कहने से क्या होता है?”

“अच्छा बाबा! अब झगड़ा बाद में करना अभी जल्दी से ये बिस्किट खाओ|” तिलक ने सामने रखी प्लेट से एक बिस्किट उठा कर श्वेता को खिलाने की कोशिश की|

“नहीं मुझे नहीं खाना|”

“अरे अब ये क्या बात हुई? माफ़ी मांग रहा हूँ ना मैं|”

“अच्छा पहले दिल दुखाओ और फिर माफ़ी मांग लो ये आपका अच्छा है| नहीं चाहिए आपकी माफ़ी अपने पास रखो| आप हमेशा ये ही करते हैं| जाइए मुझे आपसे बात भी नहीं करनी है|” श्वेता की आँखों में रात से कैद सावन की बदलियाँ फिर बरसने लगीं|

“अरे बाबा! अब ये मत करो| तुम्हारे आंसू तुम्हारे गुस्से से भी ज्यादा खतरनाक हैं| बह जाऊँगा मैं इनमें| इस बार माफ़ कर दो आगे से ध्यान रखूँगा देखो कान पकड़ता हूँ| कहोगी तो ऊठक बैठक भी लगा लूँगा|” तिलक ने कान पकड़ कर उठक बैठक करने का उपक्रम किया तो श्वेता हंस दी|

“एक बात आज साफ़ साफ़ कह दूं मिस्टर तिलक राज अगर आपने मेरे पति को किसी से भी कमतर कहने की हिमाकत की तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा| और हाँ मैं आपको छोड़ कर कहीं नहीं जाऊंगी, मैं ऐसी बला हूँ जो कम से कम इस जन्म में तो आपका पीछा नहीं छोड़ने वाली, समझे| इसलिए ऐसी वाहियात बातें सोचने में वक्त बर्बाद करना छोड़ो और नहा धो कर तैयार होने के बारे में सोचो|”

“अरे बाप रे तुम तो एक ही पल में झाँसी की रानी बन गयी| अभी नहीं जाता नहाने| पहले कुछ काम करना है|”

“अब इस वक्त क्या काम करना है?”

“माँ तो मान गयी अब बेटे की बारी| मैं जानता हूं वो भी रूठा है| तुमने तो फिर भी सस्ते में छोड़ दिया वो तो सच में ऊठक बैठक करवा कर ही मानेगा|”

“अच्छा है कोई तो है आप पर लगाम कसने के लिये| कोई तो है मुझ बेचारी का दर्द समझने वाला, मुझे आपके अत्याचारों से बचाने वाला| वैसे जब वासंती और प्रतीक आ जायेंगे तो मुझे थोड़ा सहारा उनका भी हो ही जायेगा|”

“अच्छा है कोई तो है आप पर लगाम कसने के लिये| वैसे जब वासंती और प्रतीक आ जायेंगे तो मुझे थोड़ा सहारा उनका भी हो ही जायेगा| कोई तो होगा मुझ बेचारी का दर्द समझने वाला, मुझे आपके अत्याचारों से बचाने वाला|”

वासंती के जिक्र से तिलक की मुखमुद्रा कुछ पर को बदली मगर फिर उसने तकिया उठा कर श्वेता पर दे मारा, “अच्छा! मैं तुझ पर अत्याचार करता हूँ! ठीक है अब बताता हूँ तुझे, मैं कितना खतरनाक आदमी हूँ| ये ले|” श्वेता भी कहाँ पीछे रहने वाली थी, वह भी अपना हथियार उठा कर तैयार थी| फिर दोनों रानू के नींद से जागने तक बच्चों की तरह पिलो फाइट करते रहे| रानू के उठते ही तिलक उसके साथ खेलने में व्यस्त हो गया और श्वेता ने रसोई का रुख किया| दोपहर के खाने के समय तक प्रतीक और वासंती पहुँच जाने वाले थे और वह उनके आने से पहले भोजन तैयार कर लेना चाहती थी|