आखा तीज का ब्याह - 4 Ankita Bhargava द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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आखा तीज का ब्याह - 4

आखा तीज का ब्याह

(4)

कैसा है ये प्रतीक भी! उसके मन की हर बात को भांप जाता है और उनका हल भी निकल लेता है| इन दिनों उसे अपने माता-पिता की बहुत याद आ रही थी, और शायद प्रतीक समझ गया था, तभी उसने यह ऑफर स्वीकार किया था| प्रतीक ने हमेशा उसकी मदद की है| हालाँकि पहले उसे वह अधिक पसंद नहीं आया था| उनकी पहली मुलाकात हुई ही कुछ ऐसे हालात में थी कि वह प्रतीक के लिए अपने मन में गलत धारणा बना बैठी|

वासंती को अपने मेडिकल कॉलेज का पहला दिन याद आ गया| और साथ ही याद आई सहमी सी, सकुचाई सी बसंती नाम की एक ऐसी लड़की जिसने अपने गाँव से बाहर पांव बस एक बार धरा था जब वह मेडिकल की प्रवेश परीक्षा देने जिला मुख्यालय गयी थी, पर तब की बात अलग थी तब तो साथ में गुरूजी हजारीरामजी थे, उन्होंने सब संभाल लिया था| पर इस बार जब वह गाँव से बाहर निकली तो उसे सीधे इतने बड़े शहर जयपुर की ओर रुख करना पड़ा, वो भी अकेले, यहाँ गुरूजी साथ नहीं आए थे| दादाजी की यही शर्त थी, साफ़ साफ़ कहा था उन्होंने, ‘डाक्टरी में पढ़णो है तो एकली जैपर जाणो पड़सी, सो कीं एकली करणो पड़सी| मंजूर है तो बोल’ दादाजी के इस फरमान के पीछे का कारण वह जानती थी, समझ भी रही थी, दादाजी उसे आगे पढ़ने नहीं भेजना चाहते थे|

गुरूजी के दबाव देने से दादाजी बसंती को पढ़ाने को हाँ तो कर बैठे पर अब उन्होंने ऐसा तरीका निकाला था कि सांप भी मर जाए और लाठी भी ना टूटे, वे बसंती के सामने इतनी परेशानियाँ खड़ी कर देना चाहते थे कि वह उन्हें पार ही ना कर सके और खुद ही जयपुर जाकर आगे पढ़ने से मना कर दे| एक बार तो दादाजी की इस युक्ति ने लगभग अपना काम कर ही दिया था। दादाजी की शर्त सुन कर एक बार तो बसंती ने हिम्मत हार ही दी थी। उस समय गुरुजी ने उसकी हिम्मत बढा़ई, वह खुद तो बसंती के साथ जयपुर नहीं आ पाए पर कविता का रूप देकर उसके कानों में चुपके से एक मंत्र फूंक दिया-

तू ख्वाब सजा, तू जी ले ज़रा

है बेखौफ परवाज़ों का

कुछ अलग सा मज़ा

बन कर पंछी इन काली घटाओं संग

उड़ कर देख तो ज़रा

हां सामना अंधेरों से है

तो भी डरना कैसा

बन कर एक बार

ख़ुद अपना जुगनु देख तो ज़रा

देखना तुझ ही से होगा रोशन

हर ज़र्रा यहां

माना राह कठिन है तेरी

पर हौसला तो कर

देखना एक दिन तेरे ही

कदमों में झुक ही जाएगा ये सारा जहां

तू ख्वाब सजा, तू जी ले ज़रा

गुरुजी के इस मंत्र ने एक जादू सा किया और बसंती की टूटी हिम्मत फिर सांस लेने लगी और वह अपने सपनों का दामन पकड़ अकेली ही जयपुर चली आई| यहाँ आ कर उसने मुश्किलें भी कम नहीं देखी, पर फिर दोबारा कभी उसने हार नहीं मानी, आखिर गुरुजी ने उसे यही तो सिखाया था कि ऊंचे सपने साकार करने के लिए संघर्ष भी बड़ा करना पड़ता है। जब उसके सपने बहुत बड़े थे तो फ़िर उसका संघर्ष छोटा कैसे होता|

कुछ गवांर सी, घबराई सी वह लड़की बसंती उस बड़े से कॉलेज को देख कर हैरान रह गयी थी| इतनी बड़ी बिल्डिंग तो उसने आज से पहले कभी देखी ही नहीं थी| उसकी हालत तो ऐसी थी जैसे एक छोटे तलाब की मछली को कोई समुद्र में फेंक दे और वह मछली समुद्र में तैर ही ना पाए| उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था वह क्या करे, कहाँ जाये? “भैया प्रिंसिपल साहब का ऑफिस कहाँ है|” कुछ देर असमंजस की हालत में खड़ी रहने के बाद बसंती ने पास से निकलते एक लड़के से पूछ लिया|

यह एक सवाल बसंती की उस दिन की सबसे बड़ी भूल साबित हुआ| उस लडके ने उसे उपर से नीचे तक अजीब सी नज़रों से देखा फिर पलट कर उसी पर सवाल दाग दिया| “नयी आई हो?” बसंती के ‘हाँ’ कहते ही उसे अपने पीछे आने का इशारा कर आगे बढ़ गया|

“हे गायिज़! नई बकरी|” कह कर हंसते हुए वह लडके, लड़कियों के झुण्ड में घुस गया| उन सबने बसंती को घेर लिया ओर उस पर हंसने लगे| कभी वे उसके कपड़ों पर फब्तियां कस रहे थे तो कभी उसके बालों का मज़ाक उड़ा रहे थे| झुण्ड में मौजूद लड़कियां भी कम नहीं थी, वे भी लड़कों का भरपूर साथ दे रही थी| उन मोर्डन, खूबसूरत और सजी-धजी शहरी लड़कियों को बहुत साधारण सा सलवार कमीज़ पहने, बालों में ढेर सारा तेल चुपड़ कर दो चोटी बांधे बसंती किसी नमूने से कम नहीं लग रही थी|

“हाँ तो, क्या पूछ रही थी आप, ‘भैया, प्रिंसिपल साहब का ऑफिस कहाँ है,’ वह लड़का उसकी नकल करते हुए बोला, “बहनजी ऐसा है यहाँ कुछ भी मुफ्त में नहीं मिलता| जानकारी भी नहीं| तो अगर आपको हमसे मदद चाहिए तो टैक्स देना पड़ेगा|”

“टैक्स! कैसा टैक्स?”

“तुम्हें जो हम कहेंगे वो करके दिखाना होगा| जाओ जाकर वहां खड़ी हो जाओ| बारी आने पर तुम्हें बुला लिया जायेगा|” इस बार एक दूसरे लड़के ने कहा जो शायद उन सबका लीडर था, सब उसे ‘प्रतीक सर’ कह कर बुला रहे थे|

बसंती चुपचाप बताई गयी जगह पर जाकर दूसरी लड़कियों के साथ खड़ी हो गई और अपनी बारी का इंतजार करने लगी|

“ये क्या हो रहा है?” उसने अपने पास खड़ी एक लड़की से धीरे से पूछा|

“रैगिंग! सीनियर्स, फ्रेशर्स की रैगिंग कर रहे हैं|” वह लडकी धीरे से फुसफुसाई|

“ये रैगिंग क्या होता है?”

“किसी गाँव से आई हो क्या? लगाती भी हो|” इस बार उस लड़की ने व्यंगात्मक लहज़े में कहा, फिर वह बसंती को समझाने लगी, “बड़े कॉलेजेज़ में सीनियर्स, मतलब, बड़ी क्लास के स्टूडेंट्स, फ्रेशर्स यानी नए आये लडके लड़कियों की रैगिंग करते हैं| इसमें जो वो कहें करना पड़ता है, तुम भी चुपचाप उनकी बात मान लेना वरना आगे चल कर ये और परेशान करेंगे| ध्यान से देखो इन लोगों को, तुम्हें सब पता चल जायेगा|”

प्रतीक और उसके दोस्त नए लड़के लड़कियों के झुण्ड में से किसी को बुलाते और फिर या तो उससे अजीब अजीब सवाल पूछते या ऊटपटांग हरकतें करने को कहते, और फिर सब मिल कर उसका मज़ाक उड़ाते| बसंती वहां खड़े खड़े थक गयी थी साथ ही उसे उन लोगों पर गुस्सा भी आ रहा था| शायद प्रतीक समझ गया था इसीलिए उसे चिड़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहा था| आखिर बसंती की बारी भी आ ही गयी|

“हे यू! विलेज गर्ल, कम हेयर|” प्रतीक ने बसंती को घेरे के बीच में खड़ी होने को कहा| “ क्या नाम है तुम्हारा?”

“ जी बसंती?”

“व्हाट? बसंती! बसंती! तुम्हारी धन्नो कहाँ है बसंती?” प्रतीक के इतना कहते ही एक बार फिर हंसी का फुहारा छूट गया| सब लोगों को इस तरह अपने ऊपर हँसते देख बसंती रूआंसी हो गयी, पर इससे उन लोगों को कोई फ़र्क नहीं पड़ रहा था|

“ऐसा है तुम देख ही रही हो हम इतनी देर काम कर रहे हैं और काम कर कर के थक गए हैं तो अब कुछ रिलेक्स करना चाहते हैं और इसिलए अभी हमारा मन गाना सुनने का और डांस देखने का हो रहा है तो तुम हमें डांस करके दिखाओ वो भी खुद गाना गाते हुए|” उसने बसंती को आदेशात्मक अंदाज़ में कहा|

बसंती को उस लड़की श्वेता की कही बात याद थी अत: उसने बिना किसी विरोध के सुरीले स्वर में प्रसिद्ध राजस्थानी लोक गीत ‘म्हारी घूमर छै नखराली ऐ माँ,’ गाते हुए उस पर घूमर करना शुरू कर दिया| किंतु वह हैरान रह गयी जब प्रतीक और उसके दोस्त इसके लिए भी उस पर हंसने लगे|

“ये डॉक्टर बनने आई है! ऐ गंवार जा जाकर किसी तबेले में गाय भैंसों को चारा खिला| गाईज़ ये लड़की तो हमारे कॉलेज का नाम ख़राब कर देगी|” रिया नाम की सीनियर ने बसंती को ताना देते हुए ऊंचे स्वर में कहा| सारे सीनियर्स ने उसे घेर लिया हँसते हुए और उसके नृत्य की भोंडी नकल करने लगे| बसंती रुआंसी हो गयी| उसने फ्रेशर्स की ओर देखा पर आश्चर्य, वे सब भी बसंती का मज़ाक उड़ाने में सीनियर्स का ही साथ दे रहे थे|

“हे गायिज़! जल्दी निकलो! प्रिंसिपल सर इधर ही आ रहे हैं|” भीड़ में से किसी की आवाज़ आई और सारे के सारे सीनियर्स गधे के सर से सींग की तरह गायब हो गए| बसंती ने देखा एक सूटेड बूटेड प्रभावशाली व्यक्तित्व के व्यक्ति इधर ही चले आ रहे थे| ‘ओह तो ये हैं प्रिंसिपल साहब, जिनके डर से सभी सीनियर्स भाग गए|’ बसंती ने सोचा|

“क्या हो रहा था यहाँ?” एक कड़क आवाज़ सुनाई दी|

“कुछ नहीं सर हम फ्रेशर्स हैं एक दूसरे का इंट्रोडक्शन ले रहे थे ताकि आगे कुछ दिक्कत ना हो|”

“बस यही बात थी, या कुछ और भी हो रहा था यहाँ?”

“नहीं सर|” बसंती कुछ कहने ही जा रही थी कि श्वेता ने उसका हाथ धीरे से दबाते हुए उसे चुप रहने का इशारा किया|

“तुमने मुझे प्रिंसिपल साहब को बताने क्यों नहीं दिया?” प्रिंसिपल साहब के जाते ही बसंती श्वेता पर भड़क गयी|

“ओ झाँसी की रानी मरवाएगी क्या? तेरा तो पता नहीं पर हम यहाँ डॉक्टर बनने आये हैं| पूरे पांच साल काटने हैं यहाँ, इन्हीं लोगों के साथ| ये लोग तेरे साथ साथ हमारा भी जीना हराम कर देते| ये तो हर साल सबके साथ होता है तू क्या निराली है| बसंती.....!” श्वेता आगे बढ़ी फिर वापस आ कर बोली, “चल चल अभी बहुत काम हैं | एडमिशन लेना है और होस्टल में कमरा भी|” इस बार बसंती भी ये सोच कर कि वह किसी और मुसीबत में ना फंस जाये के श्वेता के साथ ही हो ली|

श्वेता के साथ रहने से बसंती को आगे कोई मुश्किल नहीं आई, सब काम आराम से हो गए, उसका एडमिशन भी हो गया और उसे कमरा भी मिल गया पर मुश्किल यह थी कि उसे रूम पार्टनर के रूप में श्वेता मिली थी| यह पता चलते ही श्वेता का मुंह फूल गया कि उसे अपनी बेस्ट फ्रेंड ऋतू के बजाय एक गंवार बसंती के साथ रूम शेयर करना पड़ेगा| बसंती को तो खैर इससे कोई ऐतराज नहीं था, होता भी तो क्या और क्यों सभी लड़कियां उसके लिए उतनी ही अजनबी थीं जितनी कि श्वेता| पर बसंती का मन ख़राब हो गया, क्या ग्रामीण इलाके का होना इतना बुरा है कि उसे अछूत माना जा रहा है|

कैसे सब उसका मज़ाक बना रहे थे सब, उसके पहनावे का, उसकी संस्कृति का| कितना अच्छा नाचती है वह, गाती भी कितना अच्छा है, गाँव में तो सब कहते हैं उसके गले में कोयल का वास है पर यहाँ तो उसके गुणों की किसी को कदर ही नहीं है| उसके नाम का भी कितना मज़ाक उड़ाया उन लोगों ने| नाम उसने थोड़े ही रखा, उसके दादा दादी ने रखा, इसमें उसकी क्या गलती| गलती तो उनकी भी नहीं है, कितने बुजुर्ग हैं दोनों वे भी, उन्हें जो नाम अच्छा लगा रख दिया|

फिर इंसान की असली पहचान उसके नाम से नहीं काम से होती है पर उसे तो यह साबित करने का मौका ही नहीं दिया जा रहा, सब पहले ही माने बैठे हैं कि वह केवल कुछ दिन के लिए वक्त पास करने आई है, मेडिकल जैसी मुश्किल पढाई उसके बस की नहीं| उससे बात करना भी वक्त की बर्बादी है और कुछ नहीं| जबकी ऐसा कुछ भी नहीं था डॉक्टर बनना उसके लिए भी इतना ही जरुरी था जितना की उन सबके लिए, बल्कि अगर सच कहे तो शायद उनसे भी ज्यादा जरुरी क्योंकि यह उसके लिए ख़ुदको साबित करने का एक आख़िरी मौका था| उसने यहाँ तक पहुँचने के लिए उन लोगों से ज्यादा मेहनत और संघर्ष किया था| परिवारवालों को घर से इतनी दूर रह कर पढने के लिए मनाना किसी युद्ध से कम नहीं था बसंती के लिए, ये लोग क्या जाने उसने कितने पापड़ बेले थे अपनी पढाई को लेकर|

बसंती उदास हो गई, उसे अपने घर और माँ की बहुत याद आ रही थी| एक बार मन किया माँ से बात कर ले, मोबाईल से नंबर भी लगा लिया उसने, पर फिर लगा अगर माँ ने उसकी आवाज़ सुन कर उसकी उदासी ताड़ ली तो यहाँ के बारे में हर बात बताने के लिए मजबूर करेंगी और सब बातें जान कर ही दम लेंगी, माँ घबरा भी तो कितनी जल्दी जाती है, अगर उन्होंने बापू को उसकी परेशानी बता दी तो बापू और दादाजी दोनों सब छोड़कर तुरंत वापस आ जाने का फ़रमान जारी कर देंगे| नहीं अब वह ये ख़तरा मोल नहीं ले सकती, इतना आगे आने के बाद वह पीछे नहीं हट सकती| डॉक्टर बनने का सपना उसने अकेले देखा था और इस राह में आने वाली मुश्किलों का सामना भी उसे अकेले ही करना होगा|

खैर कुछ दिनों में बसंती की मुश्किलें धीरे धीरे कम होने लगी उसकी और श्वेता की बातचीत होते होते थोड़ी बहुत दोस्ती भी होने लगी| इसमें भी कुछ नया भी नहीं था, दो अजनबियों में साथ रहते रहते अक्सर दोस्ती हो ही जाती है| उन्हें भी अब साथ रहना था, साथ ही हर मुश्किल झेलनी थी तो दोस्ती तो बनती थी|