दह--शत
[ नीलम कुलश्रेष्ठ ]
एपीसोड ----35
डॉ.पटेल थोड़ा आश्चर्य कर उस सुपरवाइज़र से कहतीं हैं, “बिचारी के ख़ून निकल रहा था ऐसे कैसे भगा देती? उनको मैंने दवा लगाई, उन्हें हिम्मत दी। एक अफ़सर की बीवी या कॉलोनी की कोई औरत ऐसे आ जाये तो उसे कैसे निकाल सकते हैं? "
"कॉलोनी में एक आदमी अपनी बीवी को पीट रहा है और सब तमाशा देख रहे हैं?” समिधा बोल पड़ती है।
“ये मामला बड़ा अजीब है। बाहर का व्यक्ति समझ की नही सकता है। वह चाहे तो पुलिस में जा सकती हैं ।”
श्रीमती सिंह स्वयं ही पुलिस बनकर रास्ता निकाल लेती हैं या वह सच ही दिमागी संतुलन खो बैठी हैं। एक शाम को शोर मच उठता है श्री सिंह पिट रहे हैं। समिधा व अभय रक्षाबेन के घर की खिड़की से देखते हैं। सड़क पार के घर के कम्पाउंड में श्रीमती सिंह डंडे से श्री सिंह की ताबड़तोड़ पिटाई कर रही हैं।
समिधा को वहीं पता लगता है कि ऐसा तो पहले भी होता रहता है। उन्हें जब भी दौरा पड़ता है वह पिटाई आरम्भ कर देती हैं, चाहे वह किसी का घर हो, अपना घर हो या सड़क।
रक्षाबेन खुशी-खुशी बताती है, “जब से उन्होंने अपने पति की पिटाई शुरू की है तब से ये मुझे फ़ोन नहीं करती।”
“लेकिन इसका कोई कारण तो होगा ही।”
“इनके पास रहने वाली सुषमा ने श्रीमती सिंह की डायरी पढ़ी थी। उसी से पता लगा कि इनके पिता ने बीस वर्ष बड़े अफ़सर से इनकी इसलिए शादी कर दी थी कि गाँव में उसका रुतबा बढ़ेगा व वे और लोगों को भी नौकरी दिलवायेंगे। सिंह बहुत निर्दयी व्यक्ति है। उनकी पहली पत्नी जलकर मर गई थी। घर चलाने के लिए रुपये नहीं देते थे। इसलिए ये सब गड़बड़ होती चली गई। कहते है इसका पिता भी आया था। वह भी कह गया ये तो पिटने लायक है।”
अभय कहते हैं, “अगर पिता कह रहा है तो सच ही ये पिटने लायक होगी।”
समिधा उन्हीं से पूछती है, “वह पिता क्या पिता कहलाने लायक है जिसने बीस वर्ष बड़े आदमी से अपनी बेटी की शादी कर दी?”
“फिर भी यदि पिता भी बेटी की बुराई करे तो बात सच ही होगी।”
“जो पिता लालच में बेटी का जीवन बर्बाद कर दे वह पिता नहीं राक्षस है।”
रक्षा बेन घबराई सी उन्हें देखने लगती हैं। सिंह दम्पत्ति के कारण ये दोनों क्यों गर्म बहस में उलझ गये हैं।
अभय सही बात तक करना भूल गये हैं। समिधा का गुस्सा विकेश की पत्नी प्रतिमा को फोन करके निकालना है, “प्रतिमा ! हैपी बर्थ डे।”
“थैंक यू भाभी जी! आपको सच ही थैंक्स। एक आप ही मेरी बर्थ डे याद रखती हैं।”
“क्यों नहीं रखूँगी ? हमारा तो बरसों का साथ है। तुम्हें आज के दिन एक विशेष उपहार देना चाहती हूँ। तुम हमारे पड़ौसी वर्मा को जानती हो न।”
“हाँ । बहुत पहले आपके यहाँ ही मुलाकात हुई थी।”
“वे लोग ‘इज़ी मनी’ कमाने वाले लोग हैं।”
“ओ नो।”
“उन पति-पत्नी ने अभय को ट्रेप कर लिया है। उनका साथ दे रहा है विकेश । वर्मा तो मिट्टी के माधो है। हमारा घर बर्बाद करने की कोशिश में विकेश व कविता का मास्टर माइंड लगा है। मैं वर्मा को इनके पास ग्राउंड में अपनी बीवी को छोड़ते देख चूकी हूँ।”
“आप क्या उल्ट-सीधा बोल रही हैं। अभी मुझे ऑफ़िस जाना है, शाम को बात करिए।”
“प्रतिमा ! ऑफ़िस थोडी देर से पहुँचोगी तो चलेगा। इन तीनों ने हमारे घर ख़ून की होली खेली है। तुम सोच नहीं सकतीं हम दोनों कितनी बड़ी मुसीबत में थे। इन तीनों ने अभय को गुंडा बना दिया था। मैं चार गुंडो से अकेली टक्कर ले रही हूँ।”
“आप भाभी जी मेरा बर्थ डे क्यों खराब कर रही हैं?”
“तुम्हे अपनी बर्थडे की परवाह है। इन राक्षसों ने डेढ़ वर्ष से हमारे यहाँ मौत का तांडव मचा रखा है। भगवान हमारे साथ था इसलिए हम दोनों में से किसी की जान नहीं गई है। कविता जब इन्हें
नहीं छोड़ रही तो विकेश को उसने छोड़ा होगा क्या? उसने दोनों से रिलेशन्स बना रक्खे हैं।”
“विकेश ऐसे नहीं है।”
“तुम्हारा विकेश हमारी आस्तीन का साँप है। जब ‘अनमेरिड’ था ये पहला परिवार है जिसने उसे सहारा दिया था। सारे रिश्तेदार जो इस शहर में आते थे, उसके दोस्त, जाने कितने लोगों को हमने खाना खिलाया था। उसे ये छोटे भाई की तरह मानते थे। तुम्हें याद है जब उसे हार्ट अटैक आया था। मैं दो दिन तुम्हारे साथ हॉस्पिटल में सोई थी। देखना उसका जीवन नर्क बन जायेगा। मैंने तीनों गुंडों के नाम एम.डी. को दे दिए हैं।”
“नाम तो बताइए किन गुंडों के नाम एम.डी. को दिए हैं।”
“तीन गुंडे कौन हैं, अब भी नहीं समझी?” कहते हुए उसने फ़ोन काट दिया। उसके सिर फट जाने जैसे तनाव को जैसे राहत मिली।
लंच के लिए घर आकर अभय पूछते हैं, “तुमने क्या ऑफ़िस फ़ोन किया था?”
“नहीं।”
“लालवानी बता रहा था कि किसी लेडी का फ़ोन आया था।”
समिधा समझ गई है प्रतिमा ने विकेश को सुबह की बात बताई होगी। विकेश ने कविता को फ़ोन किया होगा। कविता ने विभागीय फोन पर अभय को सम्पर्क करके आग लगाने की कोशिश की होगी।
शाम को अभय का फूला चेहरा देखकर समिधा तैयार हो चुकी है। अभय कुछ देर बाद पूछते हैं, “तुमने प्रतिमा को फ़ोन किया था?”
“हाँ।”
“उसको फ़ोन करने की क्या ज़रूरत थी?”
“उसे पता तो लगना चाहिए कि उसका पति कितना बड़ा गुंडा है, वह आस्तीन का साँप बनकर एक बदमाश औरत के साथ मिलकर हमारा घर बर्बाद कर रहा है।”
“कोई हमारा घर बर्बाद नहीं करना चाहता है...... घर बर्बाद कर रही है तू..... तू बदमाश है..... तू सुअरिया..... तू कुतिया है।”
“अभय तुम जिनकी बातों से बहक गये हो वही ये सब है।”
“क्या है?”
“वही जो तुम कह रहे हो।”
“मैं क्या कह रहा था?” अभय के चेहरे पर भोलापन सा है।
समिधा समझ जाती है अभय का दिमाग ठीक से काम नहीं कर पा रहा, “तुम अपने गुंडे दोस्तों को छोड़ दो। सब ठीक हो जायेगा।”
“गुंडे वे नहीं है, गुंडी तू है।”
“जो तुम समझो। आज नीता ने दीपावली का गेट टु-गेदर अपने यहाँ रखा है। मैं जा रही हूँ।”
गुस्से से उसकी शिरायें छटपटा रही हैं लेकिन घर से तैयार होकर निकलते ही वह अपने को सहज कर लेती है। बरसों से पहचाने अभय के साथ एक भयानक दुर्घटना हो गई है यदि वह ही साथ छोड़ देगी तो अभय का क्या होगा? ऐसी गालियाँ तो अभय ने कभी छोटे बच्चों तक को नहीं दी कभी।
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“हाँ, तो बताइए आप कॉल्स ट्रेस करवा पाई या नहीं।” एम.डी. अपने सामने रखी मेज़ पर रखे फ़ाइलों के ढेर पर साइन करते हुए पूछ रहे हैं।
“नो सर!” उसकी आवाज़ मायूस है।
“वॉट?”
“यस सर! भल्ला साहब का लगवाया सिस्टम खराब हो गया था।” अकस्मात् उसके मस्तिष्क में बिजली कौंधती है। उसे साइकिक साबित करने की कोशिश की जा रही है। कॉलोनी में एक औरत सच ही साइकिक होकर पेड़ की टहनी या डंडा लेकर पति को पीटती रहती है। कहीं समिधा को भी साइकिक समझ कर प्रशासन ने ‘कॉल्स ट्रेस’ करने का नाटक तो नहीं किया? बिग बॉस से वह पूछ भी तो नहीं सकती।
“अब बताइए मैं क्या करूँ?”
“आपने जो ‘हेल्प’ माँगी थी वह हमने देने की कोशिश की।”
“उसके लिए थैंक्स ! सर, मैं डर्टी गेम में फँस गई हूँ कोठे वाली वर्सेज हाऊस वाइफ़ मैच चल रहा है।”
“तो कहिए पुलिस बुलाकर उसे पकड़वा दे।”
“ओ नो, वह ऐसी नहीं है। जहाँ लोगों की लाइन लगी रहे। वह एक-एक को ट्रेप कर अपना ख़र्च निकालने वाली है।”
तभी फ़ोन की घंटी बज उठती है। वह फ़ोन पर बात करने के बाद पूछते हैं, “तो आप क्या कह रही थीं?”
“सर ! हमारे यहाँ दीवाली की रात को व उसके बाद भी दो-तीन दिन रिंग आती रही थी। मैंने वर्मा के ऑफ़िस पता किया था। उसकी ड्यूटी दीवाली की रात बारह बजे तक थी।”
“तो आप इस रिंग से क्या ‘प्रूफ’ कर सकती है।”
“वर्मा के यहाँ फोन नहीं है। कविता बारह बजे किसी के घर से फ़ोन करने नहीं जा सकती। वर्मा ड्यूटी खत्म होते ही हमारे घर रिंग देकर निकला होगा यानि कि वह भी कविता के खेल में शामिल है।”
“कहिए तो वर्मा को ऑफ़िस बुला लूँ।”
“ओ नो, वह ऐसी नहीं है। जहाँ लोगों की लाइन लगी रहे। वह एक-एक को ट्रेप कर अपना ख़र्च निकालने वाली है।”
तभी फ़ोन की घंटी बज उठती है। वह फ़ोन पर बात करने के बाद पूछते हैं, “तो आप क्या कह रही थीं?”
“सर ! हमारे यहाँ दीवाली की रात को व उसके बाद भी दो-तीन दिन रिंग आती रही थी। मैंने वर्मा के ऑफ़िस पता किया था। उसकी ड्यूटी दीवाली की रात बारह बजे तक थी।”
“तो आप इस रिंग से क्या ‘प्रूफ’ कर सकती है।”
“वर्मा के यहाँ फोन नहीं है। कविता बारह बजे किसी के घर से फ़ोन करने नहीं जा सकती। वर्मा ड्यूटी खत्म होते ही हमारे घर रिंग देकर निकला होगा यानि कि वह भी कविता के खेल में शामिल है।”
“कहिए तो वर्मा को ऑफ़िस बुला लूँ।”
“नहीं..... नहीं।” उसे चीखतीं, चिल्लाती कविता याद आ जाती है। रो-रोकर सबको अपनी तरफ़ कर लेगी, समिधा का ही तमाशा बनेगा। उसे एम.डी. के पास आकर संकोच भी होता है। इतने व्यस्त व्यक्ति का समय नष्ट कर रही है, “सर! आप भी सोच रहे होंगे इस शहर का ये कैसा केम्पस है? पहले विकास रंजन की समस्या के कारण कोई एम.डी. यहाँ आने को तैयार नहीं था। मैं अपनी समस्या लेकर आपके पास आ गई। बाद में एक महीना बाढ़ का प्रकोप रहा। सुना है मिसिज सिंह भी पिटकर आपके या मैडम के पास भागी चली आती थीं।”
राजा के सिर काँटों का भी ताज़ होता है। वही लाचारी उनकी सर्द जावाज़ में उभर उठी, “क्या करें? एक और मैडम ज़ेरोक्स पकड़ा गई हैं।”
उसके मुँह से बेसाख़्ता निकल जाता है, “सर! एक नारी सुरक्षा सेल खुलवा दीजिए।”
वह अपनी पद की गरिमा के कारण खुलकर मुस्कराते भी नहीं है। इस केम्पस में बरसों से रही है उसे भी पहली बार पता लगा है केम्पस प्रमुख के पास, पति से परेशान महिलायें शिकायत लेकर आती रहती हैं, जबकि उनकी ड्यूटी में ये बात शामिल भी नहीं होती।
एम.डी. कहते हैं, “हमने तो मिसिज सिंह को समझा दिया है वे पिटती क्यों हैं, सिंह की पिटाई क्यों नहीं कर डालतीं?”
ओहो! तो सिंह साहब के पिटने का ये राज़ है वह सोचती है लेकिन कहती ये है, “ये जब इन लोगों से इन्फ्लूएंस होते हैं बिल्कुल पागल गुंडे हो जाते हैं।”
“मैं मान ही नहीं सकता कोई औरत ऐसा कर सकती है?”
“वर्मा का ट्रांसफ़र नहीं हुआ तो हम दोनों में से एक मर जायेगा।”
“ऐसा क्यों कहती हैं? मैं आपके पति का ट्रांसफर कर सकता हूँ।”
“सर! मेरा यहाँ वर्षों का सेट अप है। मैं क्यों पैक अप करके जाऊँ? यदि वर्मा को प्रशासन की चोट नहीं पड़ी तो वह बीवी को लेकर हमारे पास दूसरे शहर भी पहुँच सकता है।”
“आपको यहाँ रहना है तो सब भगवान पर छोड़ दीजिए, धीरे-धीरे सब ठीक हो जायेगा।”
“इज़ी मनी वाले दरिंदे व एक गुंडा हमें तबाह करने पर तुले हैं भगवान पर सब नहीं छोड़ा जा सकता। अभी मैंने कुछ दिनों के लिए शांति कर ली है।”
“कैसे?”
“मैंने ठीक दीपावली के दिन वर्मा के घर एक स्लिप भेज दी थी कि तीनों गुंडों की शिकायत एम.डी. से कर दी हैं।”
“ओ नो!” एम.डी. आश्चर्यचकित हो उसे गौर से देखते हैं, “मैंने सुना था आप बहुत शालीन महिला हैं। हायर क्लास की ट्यूशन लेती हैं और आपने ऐसी हरकत की है?”
वह झुंझला पड़ती है, उसका गला भर आया है। आँखों से आँसू झिलमिलाने लगे हैं लेकिन उन बूंदों को आँखों में ही सम्भाल लेती है। वह किसी को भी विश्वास नहीं दिला पा रही कि इन गुंडों के कारण उनका घर असुरक्षित हो रहा है।
उसकी लाचार रुँआसी सूरत देखकर एम.डी. को मुसीबत में भी अकड़ती पिछली मुलाकात वाली समिधा याद आ रही होगी जो कह रही थी कि मैं लड़ूँगी क्योंकि इस लड़ाई में मेरा सच मेरे साथ है। वे कहते हैं, “देखिये.... देखिये.... आप अपनी लड़ाई में कमज़ोर पड़ रही हैं। आप अपने आपको संभालिये..... कमज़ोर मत पड़िये।” वे एक हाथ उठाकर उसे हिलाते हैं, “इन छोटी-मोटी स्लिप्स से कुछ नहीं होने वाला। उठाइए एक बड़ा धनुष और लक्ष्य को एक बड़े तीर से भेद डालिए।” कहते हुए उन्होंने घंटी बजा दी। चपरासी के आने पर वे तेज़ी से उठ गए व उसे आदेश दिया, “ड्राइवर से कहो वह गाड़ी लगाये।”
वे अपने विशाल ऑफ़िस के पीछे के दरवाजे से लम्बे-लम्बे डग भरते निकल गए।
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नीलम कुलश्रेष्ठ
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