राजनीति का धर्म - नजरिये अपने अपने Abhinav Singh द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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राजनीति का धर्म - नजरिये अपने अपने

दृश्य एक
( एक प्रतिष्ठित न्यूज चैनल का डिबेट रूम )

बहस का विषय : राजनीति का धर्म या धर्म की राजनीति

एंकर- नमस्कार दोस्तों। आपका स्वागत है देश के नम्बर वन न्यूज चैनल फलाना ढिमका पर। दोस्तों आज देश की राजनीति में धर्म के बढ़ते प्रभाव को हर कोई महसूस कर सकता है। अपनी राजनैतिक महत्वाकांक्षा की पूर्ति के लिए प्रत्येक दल किसी न किसी धर्म का हितकर बन कर बैठा है। आज हमारी बड़ी बहस का मुद्दा भी यही है "राजनीति का धर्म या धर्म की राजनीति"। इस विषय पर चर्चा करने के लिये हमारे साथ हैं सत्ता पक्ष से XYZ जी और विपक्ष से ABC जी साथ ही हमारे साथ जुड़ रहे हैं राजनीतिक विश्लेषक श्री PQR जी। इससे पहले कि हम बहस को प्रारम्भ करे दोस्तों आज का सवाल आपके सामने रखता हूँ " क्या राजनीति में धर्म का प्रभाव हानिकारक है?" 1) हाँ 2) नहीं 3) कह नहीं सकते

दोस्तों आप अपने जवाब रात दस बजे तक हमें एसएमएस कर सकते हैं। फिर देर किस बात की उठाइये अपना फोन अपना उत्तर टाइप करिये और भेज दीजिये 121212 पर। आइये बहस शुरू करते हैं।

XYZ जी विपक्ष का आरोप है कि आप सिर्फ की राजनीति करते हैं। विकास से दूर दूर तक आपका कोई संबंध नहीं है। इनका कहना है कि आपकी पार्टी अपने हितों के लिये समाज को बाँट रही है।

XYZ - विपक्ष का आरोप निराधार है। ये लोग खुद समाज में ज़हर घोलते रहे हैं। इसी का परिणाम है कि जनता ने इनको सिरे से ख़ारिज किया है।

एंकर- धर्म की राजनीति पर आप क्या कहेंगे? आप पर ये आरोप हमेशा लगता रहा है।

XYZ- हम सर्वधर्म सम्भाव में विश्वास करते हैं। धर्म की राजनीति विपक्ष करता है। धार्मिक तुस्टीकरण इनकी हमेशा की नीति है।

एंकर- ABC जी आप क्या कहना चाहेंगे इस विषय पर XYZ जी का कहना है कि धर्म की राजनीति आपका काम है?

ABC - ये तो वही बात हुयी उल्टा चोर कोतवाल को डांटे। साहब रिकार्ड देखिये कितने दंगे हुये हैं इनकी सरकार में। हमने खूब धरने दिये कि इसकी सीबीआई जाँच हो लेकिन नहीं हुयी क्योंकि होती तो पता चल जाता कि इसमें सत्ता का हाथ है। धार्मिक कट्टरता को बढ़ावा देने रहे हैं ये।

XYZ- अपने गिरेबां में झाँकिये आप खून से सना हुआ है। हम पर आरोप मढ़ने से कुछ नहीं होगा। जनता ने नकारा है आपको। आत्म विश्लेषण कीजिये नहीं तो नेस्तां नाबूत हो जायेंगे।

ABC- आप झाँकिये। देश को लूटने में लगे हुये हैं। शर्म कीजिये कुछ जनता ने विश्वास किया है तो उस पर खरा उतरने का प्रयास करिये। धर्म के नाम पर एक दूसरे को लड़ा कर कुछ हासिल नहीं होगा। रही बात हमारी तो जब आप नहीं थे तब भी हम थे आज भी हैं और कल भी रहेंगे।

( आवाज़ तेज होने लगती है। एंकर दोनों पक्षों को शान्त कराता है। )

एंकर- मैं आपके पास आऊँगा पहले PQR जी से एक बाइट ले लूँ। PQR जी आपकी राय क्या है इस विषय पर?

PQR- जी धर्म का प्रभाव राजनीति में बढ़ रहा है इस बात से कोई मना नहीं कर सकता और इसके दूरगामी परिणाम हानिकारक हैं। दोनों पक्षों को इस विषय पर गम्भीर चर्चा करनी चाहिये। धार्मिक कट्टरता का बढ़ना भारतीय राजनीति के लिये शुभ संकेत नहीं है।

एंकर- माफ़ करिये यहाँ मुझे एक ब्रेक के लिये रूकना पड़ेगा। सत्ता और विपक्ष का एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप जारी है। कहीं मत जाइयेगा बने रहिये हमारे साथ हम लोटते हैं एक छोटे से ब्रेक के बाद।

दृश्य दो-

उत्तर प्रदेश में किसी गाँव में एक चाय की टपरी।

हरिया भट्टी पर चाय पका रहा है। मातादीन सामने रखी छोटी टीवी में बहस देख रहा है।

मातादीन- साले इतने सालों से खाली हमको लूटते आये हैं। अब जा के कोई बढ़िया नेता मिला है।
हरिया- सही कहे माता भैया।
मातादीन- और नहीं तो का अब तक तो साला सब एक ही जात के पीछे जीभ लटकाये घूम रहे थे ससुरे। उन्हीं का विकास में सारा बजट घुस जाता था।
'लाओ चाय पिलाओ'
हरिया- इ लो भैया।
मातादीन- "वाह गज़ब" चाय की एक चुस्की लेते हुए।

(जुम्मन का प्रवेश)
जुम्मन- का माता भाई। का हाल है?
मातादीन- ठीक है तुम सुनाओ?
जुम्मन- कट रही है बस। का चल रहा टीवी पर?
हरिया- बहस चल रही जोरदार धर्म पर।
जुम्मन- इ सरकार निकम्मा है एकदम खाली धर्म धर्म करती रहती है।
मातादीन- अच्छा औ जो आज तक सब सरकारें करती थी ऊ धर्म धर्म नहीं था। तब तुम्हारी सुनी जाती थी तो अच्छा था। आज सबकी सुनी जा रही तो सरकार निकम्मी हो गयी।
जुम्मन- का सुनी जाती थी औ का सुनी जायेगी। हम कल भी वहीं थे आज भी वहीं हैं। मजा तो आप लोग का है।
मातादीन- चुप करो यार आज तक तुम ही लोग की तो सुनी गयी है।
( इस बार आवाज बहुत तेज होती है। फिर माहौल में सन्नाटा पसर जाता है। )

मातादीन और जुम्मन एक दूसरे को कनखियों से देखते हैं। मन ही मन में कुछ गालियाँ देते हैं। दोनों उठकर अपने अपने राह चल देते हैं।

हरिया- अरे जुम्मन भाई चाय तो पी लो।
जुम्मन- बाद में। अभी चलते हैं काम है जरूरी।

हरिया का पाँच रूपये का नुकसान हो गया। वो दोनों पक्षों को खरी खोटी सुनाता है और अपने काम में लग जाता है।

जुम्मन और मातादीन अपने अपने घर पहुँच कर अपनी अपनी पत्नी से एक दूसरे को भला बुरा कह के मन हल्का करते हैं। अपनी अपनी पसंदीदा पार्टी की तारीफ भी करते हैं।

दृश्य तीन:

डिबेट रूम में ब्रेक चल रहा, सब चाय पी रहे हैं। XYZ और ABC जी आप में बात कर रहे हैं।

ABC- अरे साहब वो रोड का टेण्डर देखियेगा बात करके दिला दीजिये कुछ मलाई हम भी खा लें आप तो मजे ले ही रहे हैं।

XYZ - बिल्कुल हम बात करते हैं मिल जायेगा आपको। हमारा हिस्सा मत भूलियेगा बस। आपका ख़्याल रखेंगे तभी न आप हमारा ख़्याल रखेंगे।

दोनों जोर से हँसते हैं। एंकर ब्रेक ख़त्म होने की घोषणा करता है। कैमरा आन हो जाता है।

एंकर- स्वागत है आप सब का एक बार फिर इस बहस पर जिसका मुद्दा है "राजनीति का धर्म या धर्म की राजनीति"

बहस शुरू होती है। सवाल जवाब होते हैं। आवाजें तेज धीमी होती हैं। कई बार भाषा की शुचिता तार तार होती है। अंत में प्रश्नों के साथ ही बहस समाप्त हो जाती है। परिणाम शून्य ही रहता है।