आखा तीज का ब्याह - 7 Ankita Bhargava द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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आखा तीज का ब्याह - 7

आखा तीज का ब्याह

(7)

जाने अनजाने प्रतीक और वासंती की दोस्ती कुछ अलग मोड़ लेने लगी थी| उन्हें एक दूसरे का साथ अच्छा लगने लगा था| उनके दोस्त भी अब उन दोनों के बारे में बातें करने लगे थे| जिन्हें सुनकर प्रतीक खुश होता पर वासंती ग्लानी अनुभव करती| इन लोगों के लिए यह कोई बहुत बड़ी या गलत बात नहीं थी बल्कि वहाँ तो सभी का नाम किसी ना किसी के साथ जुड़ा था फिर चाहे रिया हो या रजत, या फिर शशांक, हर किसी का कोई ना कोई खास दोस्त था, जिसके साथ वह सिर्फ़ कॉलेज में ही नहीं जीवन में भी कदम ताल करते हुए अपनी मंजिल तक पहुँचने का ख्वाब सजा रहा था| पर वासंती को ऐसे सपने देखने की इजाज़त नहीं थी क्योंकि उसके घरवालों ने उसकी मंजिल पहले से ही तय कर रखी थी| उसे तो बस उनके बताये रास्तों पर चलना भर था| पर यह बात प्रतीक को कैसे बताये उसे समझ नहीं आ रहा था| उसे डर था सच बता कर कहीं वह अपना सबसे अच्छा दोस्त ही ना खो दे|

एक रविवार प्रतीक और उसके दोस्तों ने घूमने का प्लान बनाया सबकी परीक्षा भी खत्म हो चुकी थी तो सभी एन्जॉय करने के मूड में थे| फिर आज तो प्रतीक का जन्मदिन भी था, पार्टी तो बनती थी| नवीन अपने दोस्त से एक दिन के लिए कार मांग लाया था| सभी दोस्त सुबह सुबह ही तैयार होकर निकल गये| गाड़ी बड़ी थी पर लोग ज्यादा होने के कारण जगह थोड़ी कम पड़ रही थी पर फिर भी सब सुकड़ कर ठुंस गए | वासंती ने पहले जाने से मना कर दिया था, वह प्रतीक से थोड़ी दूरी बना कर रखना चाहती थी इसलिए प्रतीक के बर्थडे के आयोजन से भी दूर रहना चाहती थी, पर श्वेता के जोर देने पर वह भी साथ चलने को तैयार हो गयी|

किसी ने उस दिन नाश्ता भी नहीं किया| होस्टल का खाना खा खा कर सब बोर हो चुके थे| भूख तो लगी थी इसलिए नवीन ने एक ढाबे पर कार रोक दी| रिया ढाबे को देख कर नाक भों सिकोड़ने लगी तो वह बोला, ‘यार रेस्टोरेंट में अंग्रेज़ी खाना तो हम हमेशा ही खाते हैं चलो आज कुछ अलग करते हैं| इस बार ढाबे पर देशी खाना खा कर भाई का बर्थडे नहीं जन्मदिवस मानते हैं| मैंने इस ढाबे का खाना पहले भी खाया है बहुत टेस्टी है एकबार खा कर देखो मज़ा आ जायेगा|” सभी गाड़ी से उतर पड़े तो रिया को भी उतरना पड़ा पर वह जैसे नवीन को घूर रही थी लग रहा था उसे नवीन पर बहुत गुस्सा आ रहा था|

खाना सच में बहुत अच्छा था| बेड़मी पूरी और आलू की सब्जी का तो जवाब ही नहीं था| सबने खूब छक कर खाया| रिया ने कुछ कहा तो नहीं पर उसके हाव भाव देख कर साफ़ पता चल रहा था की उसे भी खाना पसंद आया| “देखा रिया मैडम मैंने कहा था ना खाना अच्छा है तुम्हें पसंद आया ना|” नवीन ने बड़ी अदा से सर झुकाते हुए पूछा|

“इतना भी अच्छा नहीं था| वो तो मुझे तुम लोगों के कारण खाना पड़ा वरना मैं ऐसी डाउन मार्केट जगहों पर खाना खाना पसंद नहीं करती|” रिया ने मुंह बनाते हुए जवाब दिया|

“मतलब कुछ भी हो लड़कियां अपनी बात तो नीचे गिरने ही देनी|” नवीन के इतना कहते ही रिया उससे नाराज़ होकर वहां से उठ कर चली गयी| नवीन भी उसके पीछे पीछे उसे मनाने चला गया| उन दोनों के बीच झगड़ा कोई नयी बात नहीं थी| रिया और नवीन की जोड़ी थोड़ी अलग ही थी| दोनों का स्वभाव एक दूसरे से बिलकुल अलग था| रिया थोड़ी नकचढ़ी थी जबकि नवीन हंसोड़| वह रिया को छेड़े बिना नहीं रहता और वह नाराज़ हो जाती थी फिर नवीन का ज्यादातर समय उसे मनाने में ही चला जाता था| आज भी यही होने वाला था सब जानते थे|

“ये तो बिज़ी हो गया यार, अब गाड़ी कौन चलाएगा|” प्रतीक ने कहा तो सब ठहाका मार कर हंस पड़े पर रिया और नवीन को अपनी ओर आते देख चुप हो गए|

“क्या हुआ? क्यों हंस रहे हो?” नवीन कुछ उखड़ा हुआ था, उसे सबका यूँ हँसना पसंद नहीं आया|

“नहीं कुछ नहीं फेसबुक पर जो नया जोक आया है प्रतीक वही सुना रहा था|” रजत ने बात बदलने की कोशिश की| कई दिनों से वासंती फेसबुक के बारे में बहुत सुन रही थी| कुछ नयी सी चीज़ थी और उसके सारे दोस्त इसके दीवाने थे| सबने अपना अकाउंट फेसबुक पर बना रखा था, श्वेता ने भी| वह श्वेता से इसके बारे में जानना चाहती थी पर उस वक्त उसे पूछना सही नहीं लगा|

वो लोग पूरा दिन शहर में घूमते रहे| प्रसिद्ध पर्यटन स्थल हवामहल देखा, मौल घूमे, फ़िल्म देखी, शाम को रेस्टोरेंट गए जहाँ रजत और नवीन ने प्रतीक के लिए सरप्राइज़ बर्थडे पार्टी की तैयारी कर रखी थी| रेस्टोरेंट में प्रतीक के बाकी दोस्त भी पहुँच गए| यह सरप्राईज़ पार्टी देख कर प्रतीक बहुत खुश हुआ, उसने केक काटा, सबने उसे गिफ्ट दिए वासंती भी उसके लिए घड़ी लायी थी| “अरे ये तुमने कब ली|”

“अभी कुछ देर पहले मॉल से|”

“थैंक्यू वैरी मच| बहुत सुन्दर है|” वासंती जानती थी घड़ी बहुत महंगी नहीं है फिर भी प्रतीक ने उसकी प्रशंसा की तो उसे अच्छा लगा| “आप सबने मिलके आज मेरे बर्थडे को सच में बहुत अच्छा बना दिया, इसके लिए आप सबका बहुत बहुत धन्यवाद| मुझे हमेशा से अपना जन्मदिन शानदार तरीके से मनाना पसंद है| मम्मा पापा हर साल मेरे लिए बड़ी सी पार्टी रखते हैं| इस साल वे दोनों शहर से बाहर हैं तो मैं सोच रहा था इस बार मम्मा पापा के बिना मेरा जन्मदिन कौन मनायेगा, ये मेरे लिए आज के दिन उदास होने की एकमात्र वजह थी पर मेरे दोस्तों ने मेरा बर्थडे हर साल से भी अच्छा बना दिया थैंक्यू सो मच| मैं भी आप लोगों के लिये रिटर्न गिफ्ट लाया हूँ|” उसने सबको एक एक पैकेट पकड़ा दिया पर वासंती को कुछ नहीं दिया|

“वासंती के लिए कुछ नहीं लाये|” रजत ने पूछा|

“शायद प्रतीक को वासंती का गिफ्ट पसंद नहीं आया इसलिए उसे कोई रिटर्न गिफ्ट भी नहीं मिला|” रिया वासंती को ताना मारने का इतना अच्छा मौका कहाँ चूकने वाली थी| वासंती उस समय बहुत अपमानित महसूस कर रही थी, पर उसने कुछ नहीं कहा बस हमेशा की तरह मुस्कुरा दी| रिया हमेशा उसे नीचा दिखने की कोशिश करती पर वह उसे कोई जवाब नहीं देती थी, बस मुस्कुरा देती थी, वही उसने आज भी किया| पर आज उसकी मुस्कान हमेशा से थोड़ी ज्यादा उदास थी, क्यों? पता नहीं! वह खुद भी जानती थी कि बाकी लोगों के गिफ्ट के सामने उसकी घड़ी हल्की है पर फिर भी उसे रिया की बात बुरी लगी|

“नहीं ऐसी बात नहीं है मुझे घड़ी सच में बहुत अच्छी लगी और मैंने वासंती के लिए भी रिटर्न गिफ्ट लिया है पर घर पर है, कल उसने हमारे साथ आने से मना कर दिया था तो मैं उसका गिफ्ट साथ नहीं लाया कि उसका गिफ्ट मैं उसे कल कॉलेज में दे दूंगा|” प्रतीक ने कहा तो वासंती होले से मुस्कुरा दी और रिया ने मुंह बना दिया|

“भाई श्वेता को तो डबल गिफ्ट मिलना चाहिये| इस पार्टी का आयोजन उसी ने किया है| पूरी सजावट केक सब उसी की देखरेख में हुआ है|” रजत श्वेता पर निहाल हुआ जा रहा था|

“सच में! वाओ! यार श्वेता, तुमने तो कमाल कर दिया, कितना खुबसूरत सजाया है हॉल, तुम भी कहाँ इस बोरिंग से मेडिकल प्रोफेशन में आ गयी, तुम्हें तो इन्टेरियर डिज़ाइनर होना चाहिए था|”

“हाँ! मैं भी इंटीरियर डिज़ाइनर ही बनना चाहती थी, पर मेरे मम्मा पापा का सपना था मुझे डॉक्टर बनाने का, सो मैं यहाँ आ गयी|”

“और तुम्हारे सपने का क्या?” रिया की आवाज़ में थोड़ी सी तल्खी थी सब जानते थे वह अभिनेत्री बनना चाहती थी पर उसके पापा इसके ख़िलाफ़ थे क्योंकि उन्हें लगता था इस प्रोफेशन का कोई भरोसा नहीं| यदि फ़िल्म चल जाये तो लोग सर आँखों पर बैठा लेते हैं और यदि ना चले तो पता ही नहीं चलता कि फ़िल्म के अभिनेता या अभिनेत्री का क्या हुआ| और वे अपनी बेटी के लिए एक सुरक्षित भविष्य चाहते थे|

“मेरा सपना भी पूरा ही जायेगा, जब मैं अपना घर सजाऊँगी|” श्वेता ने कनखियों से रजत को देखते हुए कहा| रजत भी मुस्कुरा रहा था|

“भाई तू तो गया काम से|” प्रतीक ने उसकी कमर पर एक धौल जमा दिया|

“पार्टी कुछ फीकी फीकी सी नहीं लग रही| अरे भाई प्रतीक का जन्मदिन है कुछ हंगामा तो बनता है|” नवीन ने कहा| उसे उम्मीद थी कि रजत, प्रतीक आदि सब लड़के अभी गाड़ी में रखी बियर की बोतलें निकाल कर लाने को कहेंगे, पर कोई इस बारे में कुछ नहीं बोला, साथ आई लडकियों की वजह से सभी झिझक रहे थे|

“चलो आज संगीत की मह्फ़िल जमाते हैं| आज हमें हमारे प्यारे प्रतीकजी गाना सुनायेंगे|” रजत ने सुझाव दिया|

“ठीक है जरुर सुनाऊंगा पर मेरी एक शर्त है पहले वासंती अपनी मधुर आवाज़ में गाना गाएगी|” प्रतीक ने वासंती का मूड बदलने की कोशिश की| जाने क्या बात थी कि वह अब उसे उदास देख ही नहीं पाता था|

‘हर ख़ुशी हो वहां तू जहाँ भी रहे

जिंदगी हो वहां तू जहाँ भी रहे’

थोड़ी ना नुकर के बाद वासंती गाने के लिए तैयार हुई और उसने अपनी मधुर आवाज़ में यह गीत गाकर समां बाँध दिया|

“यार अब तो इज्जत का सवाल है तुम्हें भी कुछ कमाल ही करना होगा|” रजत ने प्रतीक की तरफ़ उसकी गिटार बढ़ा दी|

‘झुकी झुकी सी नज़र बेक़रार है के नहीं

दबा दबा सा सही, दिल में प्यार है के नहीं’

प्रतीक गिटार को एक तरफ़ रख कर गाने लगा| बिना किसी वाद्य यंत्र के हॉल में उसकी गूंजते स्वर सीधे दिल में उतर रहे थे|

श्वेता ने वासंती की ओर मुस्कुरा कर अर्थपूर्ण नज़रों से देखा तो उसने शर्मा कर नज़रें झुका लीं| जब सब प्रतीक की रूमानी आवाज़ में जगजीत सिंहजी की इस खूबसूरत गज़ल का मज़ा ले रहे थे तो वासंती के मन के किसी अँधेरे कोने में छुप कर बैठा तिलक दबे पांवों से बाहर आ गया| तिलक भी तो कितना अच्छा गाता है| रावण हत्था की धुन पर जब वह लोकगीत सुनाता है तो गाँव के लोग ही नहीं पर्यटक भी झूमने लगते हैं|

वो लोग देर रात वापस होस्टल पहुंचे| पूरा दिन घूम कर इतनी बुरी तरह थक गये थे कि कब सो गए पता ही नहीं चला| अगले दिन प्रोफेसर अय्यर का लेक्चर खत्म होने के बाद वासंती और श्वेता कॉफ़ी पीने कॉलेज कैंटीन पहुंचे तो प्रतीक, रजत और नवीन पहले से बैठे थे| रजत हमेशा की तरह रिया का नाम लेकर नवीन को तंग कर रहा था जबकी प्रतीक लैपटॉप खोले बैठा था, उसने वासंती की दी घड़ी पहनी हुई थी, यह देख कर वासंती खुश हो गई| वासंती और श्वेता के पीछे रिया भी आ गयी| रिया को देख कर नवीन ने रजत को चुप हो जाने का इशारा किया|

“आईये आईये प्रोफेसर अय्यर की सताई हुई कन्याओं आप दोनों का स्वागत है| बताइए आपके लिए ऐसा क्या किया जाये कि आपको तनिक राहत मिल सके|” रजत नवीन को छोड़ उन दोनों के पीछे शुरू हो गया|

“दो कप कॉफ़ी ला दीजिये प्लीज़|” श्वेता ने ज़रा अदा के साथ कहा|

“दो नहीं तीन और साथ में सेंडविच भी|” रिया ने नवीन के पास वाली कुर्सी पर बैठते हुए कहा|

“हाँ! हाँ! क्यों नहीं अभी ले कर आता हूँ| वो क्या है ना ये कैंटीन मेरे बाप की है|” रजत के इस डायलोग ने सबके होठों पर हंसी लादी| वह अपनी बातों से अपने आस पास का माहौल हमेशा हल्का फुल्का बनाये रखता था|

“वासंती इधर आओ|” प्रतीक ने वासंती को आवाज़ दी| “यह देखो मैंने तुम्हारी फेसबुक आई डी बनायी है, ताकि तुम हमेशा हमारे साथ जुड़ी रहो| आओ तुम्हें सिखाता हूँ| यही मेरी तरफ़ से तुम्हें अपने बर्थडे पर रिटर्न गिफ्ट है| मैं कल इसी की बात कर रहा था|” प्रतीक अब वासंती को आप नहीं तुम कह कर संबोधित करने लगा था, शुरू में वासंती को थोड़ा अजीब लगा पर उसने प्रतीक को टोका नहीं उन दोनों के बीच अब ओपचारिकता की इन दीवारों का टूटना वासंती को भी पसंद आ रहा था|

वासंती ने देखा प्रतीक शायद कल उसकी फेसबुक के बारे में जानने की उसकी इच्छा समझ गया था| वह हमेशा उसकी मन की बात समझ लेता है| वासंती की परेशानी में सहायता करने वाला वह पहला शख्स होता है| अभी कुछ दिन पहले वासंती को दवाओं की महक के कारण अचानक उबकाई आने लगी तो प्रोफेसर रोहिणी ने उसे क्लास से बाहर भेज दिया| तब प्रतीक ने ही वासंती को संभाला था|

“क्या हुआ?”

“आज सुबह से बुखार जैसा महसूस हो रहा था| क्लास में इम्पोर्टेन्ट टॉपिक डिसकस होना था इसलिए आना जरुरी था| पर यहाँ दवाओं की इतनी तेज़ महक आ रही है कि मुझसे खड़ा भी नहीं हुआ जा रहा|”

“कोई बात नहीं, हो जाता है कभी कभी| चलो कुछ देर कैंटीन में बैठ कर आराम करो अगर ठीक लगे तो फ़िर क्लास में चली जाना वरना होस्टल में अपने रूम में जा कर आराम करना|”

नीबू पानी पीकर वासंती को कुछ अच्छा लगा पर अब भी उसका जी मिचला रहा था| उसे उदास सा सर झुकाए बैठे देख प्रतीक कहने लगा, “अरे भाई इतनी सी बात पर ऐसे मुंह लटका कर क्यों बैठ गयी| कोई खास बात नहीं है कभी कभी डॉक्टर्स भी बीमार पड़ जाते हैं और हम तो अभी डॉक्टर बने भी नहीं|”

“नहीं मैंने आज का लेक्चर मिस कर दिया|”

“ओह तो ये बात है| श्वेता से टॉपिक डिसकस कर लेना सिम्पल|”

“अरे वासंती मेरी बात मानो पढ़ाई को इतना गंभीरता से मत लिया करो| ये प्रोफेसर्स तो अपने प्रोफेसर्स की खुन्नस हम बेचारों पर निकलते है और कुछ नहीं| ये चार दिन की ज़िन्दगी मज़े करने के लिए है टेंशन ले कर वक्त से पहले बूढ़ा हो जाने के लिए नहीं|” प्रतीक की बात बीच में काट कर रजत वासंती को अपना नजरिया समझाने लगा, “बच्चा यदि समस्याओं से मुक्ति चाहिए तो प्रतीक बाबा की नहीं रजत बाबा की शरण में जाओ उनके पास सारी परेशनियों का हल मिल जायेगा|

“वाह! रजत मेरे भाई! गज़ब! क्या ज्ञान पेला जा रहा है| खुद तो पढ़ते नहीं ऊपर से जो पढ़ता है उसका भी ध्यान भटका रहे हो|” प्रतीक ने उसकी कमर पर एक धौल जमा दिया|

“अच्छा वासंती तुम्हीं बताओ तुम्हें किसका नजरिया ज्यादा ठीक लगा|” रजत ने वासंती से पूछा तो वासंती ने उसके आगे हाथ जोड़ दिए| “देखा मेरी बात ही ज्यादा सही है| मैं भी कहाँ ये डॉक्टर बनने आ गया मुझे तो चिकित्साशास्त्र की बजाय दर्शनशास्त्र पढ़ना चाहिए था|” रजत ने अपनी कमर सहलाते हुए कहा तो प्रतीक और वासंती दोनों हंस पड़े|

“तो क्यों पढ़ रहा है भाई, यहाँ से किसने तुझे इनविटेशन अर्थात निमंत्रण पत्र भेजा था चिकित्साशास्त्र पढने के लिए|” अभी रजत का भाषण चल ही रहा था कि बाकी की पलटन भी आ गयी थी और आज नवीन रजत की टांग खींचने के पूरे मूड में था|

“किसीने नहीं, पर मेरी माँ ने विनती की थी कि वे दो दो दर्शनशास्त्र के ज्ञाताओं को नहीं झेल सकती अत: मैं चिकित्सा अर्थात मेडिकल फिल्ड में चला जाऊं|”

“ये दूसरा कौन है?”

“दूसरा तो मैं होता, वो तो पहले हैं|”

“चल पहला कौन है वो ही बता दे|”

“मेरे पिताजी!” रजत ने जवाब कुछ इस तरह दिया कि हंसते हंसते सबके पेट में दर्द हो गया|

अब वासंती को अपने इन दोस्तों का साथ पसंद आने लगा था| उसके मन में बस एक ही कसक थी जिसका नाम था तिलक राज| कभी कभी वह सोचती काश शायरों का कहा सच हो जाये और ज़िन्दगी सच में एक किताब हो जाये| इस किताब में से जो पन्ना हमें पसंद न हो, हम उसे हटा सकें| यदि यह संभव होता तो वह उस आखा तीज के दिन का पन्ना हमेशा हमेशा के लिए अपनी ज़िन्दगी से फाड़ कर अलग कर देती, जो उसके सातवें जन्मदिन के महज़ कुछ दिन बाद आया था| और जब दादाजी ने अपने सबसे अज़ीज़ दोस्त के साथ अपनी दोस्ती को रिश्तेदारी में बदलने के लिए उसे ब्याह के मंडप में ला कर बैठा दिया था| पर यह सम्भव नहीं था| तिलक राज नाम के उस व्यक्ति के साथ उसका भाग्य जोड़ा जा चुका था और इस गठबंधन की गांठ खोलना उसके बस में नहीं था|

जब भी कॉलेज की छुट्टियाँ होती वासंती तनाव में आ जाती| इन दिनों में उसे घर जाना ही पड़ता था| वहां के लोगों की घूरती निगाहें उसे अपने परिधान का ही नहीं उसके सम्पूर्ण अस्तित्व का जायज़ा सा लेती महसूस होती थी| औरतें उसमें आये हर एक छोटे से छोटे परिवर्तन पर एक व्यंगात्मक मुस्कान दादी और माँ की ओर उछाल देतीं मानो कह रही हों ‘हमने कहा था ना छोरी हाथ से निकल जाएगी! देखा वही हुआ ना| अब कैसे इसका घर बसाओगे? ससुराल में निभा ना सकेगी, माँ का नाम निकाल कर ही मानेगी|’ वासंती का जी घबराने लगा तो वह श्वेता के पास जा बैठी वह अपनी पैकिंग कर रही थी|

“श्वेता क्या मैं इस बार कुछ दिनों के लिए मैं तुम्हारे साथ चल सकती हूँ?”

“ख़ुशी से चलो पर क्या तुम्हरा अपने घर जाने का मन नहीं है? तुम्हारे घरवाले बेसब्री से तुम्हारी राह देख रहे होंगे ना|”

“हाँ! देख तो रहे हैं|” वासंती के स्वर में उत्साह नहीं एक अजीब सी उदासी थी|

“क्या बात है वासंती परेशान लग रही हो? तुम मेरे साथ अपने मन की हर बात शेयर कर सकती हो, अपनी हर परेशानी मुझसे बाँट सकती हो| हम दोस्त हैं ना वासंती! हो सकता है मैं तुम्हारी कोई मदद ना कर पाऊँ, पर मुझे बताने से तुम्हारा मन हल्का हो जायेगा|” श्वेता ने होले से वासंती का हाथ थाम लिया| वासंती ने उसे गहरी उदास नज़रों से देखा और फिर अपने मन की हर गांठ उसके सामने खोल कर रख दी| श्वेता सब सुन कर चुपचाप बैठी रही उसे समझ नहीं आया वह क्या कहे| वासंती और उसके परिवारवालों में से किसकी सोच गलत है और किसकी सही यह तय करने का अधिकार उसे नहीं था| वह इतना तो जानती थी कि उसकी प्यारी सहेली दर्द में थी पर उसके इस दर्द को दूर करने का कोई उपाय श्वेता के पास नहीं था|