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निपुणनिका--भाग(२)

अब मेरी उम्र पचास साल की है,जब वो भयानक दिन मुझे याद आते हैं तो मेरे शरीर में मुझे अब भी झुरझुरी महसूस होती है।
मैं बेहोश होकर वहीं पड़ा रहा, मनोज ने मुझे ढूंढने की कोशिश की लेकिन मैं नहीं मिला, क्योंकि वो महल के अंदर नहीं गया,घर जाकर उसने सबको बता दिया, मुझे ढ़ूढने मामा के साथ भी काफी लोग आए और मुझे महल के अंदर ढूंढ लिया गया,ये तो थी दो साल पुरानी घटना जब मैं सात साल का था.....
लेकिन अब मैं दो साल बाद नानी के घर आया, यानि अब मैं नौ साल का हूं,उसी पुराने महल ने मुझे फिर अपनी ओर आकर्षित किया लेकिन मौसी ने मुझे रोक लिया, क्योंकि दो साल पहले की घटना के बारे में मैंने सबको बताया था कि मेरे साथ वहां क्या हुआ था तो सभी परेशान थे कि मैं वहां से सबको सुरक्षित मिला।
और मुझे किसी ने वहां दोबारा नहीं जाने दिया,सब मुझ पर नज़र रखते थे कि मैं वहां ना जा पाऊं और दो चार दिन रूककर मैं वापस आ गया।
फिर मौसी की शादी हुई तब भी मैं नहीं जा पाया था, क्योंकि मेरे इम्तिहान चल रहे थे फिर नानी भी नहीं रही तो मां का भी बहुत कम जा पाना होता था, वो खुद ही अकेले जाती थी और हम बहन-भाई को नहीं ले जाती थीं।
लेकिन बारह साल बाद अब मैं इक्कीस साल का हो गया हूं, मैं अपनी नानी के घर जा रहा हूं,वो इसलिए की मनोज की शादी तय हो गई है,हां वहीं बचपन वाला मनोज ,गांव में शादियां जल्दी हो जाती है, तो मनोज की भी शादी तय हो गई, लड़की मेरी नानी के गांव की है , लड़की वालों ने कहा कि सगाई और शादी दोनों वहीं से होगी।
हम सब नानी के गांव पहुंचे, मेरी नकचढ़ी मौसी भी, लेकिन प्यार भी बहुत करती है, अच्छा लग रहा था वहां, इतनी सारी भीड़भाड़ देखकर,मामी की दो बेटियां और मौसी के भी दो बच्चे और मैं सबसे बड़ा,बस भइया-भइया कहकर मेरी जान खाते थे , मुझे भी अच्छा लगता था उनके ऊपर धौंस जमाना।
गर्मियों के दिन है मई का महीना है और अब भी नानी के गांव में बिजली नहीं पहुंचीं और अब भी वहां कुछ-कुछ खपरैल वाले मिट्टी के घर है,शाम और सुबह घर की कुछ रिश्तेदार महिलाएं उसी पुराने महल वाले कुंए से पानी भरती है क्योंकि सारे गांव में उसी कुएं का पानी मीठा और पीने लायक है और वो कुआं है भी राजे-रजवाड़ों के समय का, बूढ़े-पुराने लोग कहते हैं कि वहां पर राजकुमारियां स्नान किया करती थी।
शाम को घर के आंगन में खूब चहल-पहल रहती है ,सारी औरतें मिलकर खाना बनाती है ,कभी ढेंर सारे कच्चे आम चूल्हे में भूनें जाते और पना बनता पुदीने की तीखी चटनी डालकर, पानी लगी हाथ से बनी मोटी-मोटी रोटियां,चने की घी से तड़का लगी दाल,कभी लौकी की सब्जी,कभी भुने हुए आलू का ढ़ेर सारा प्याज डालकर भरता बनता और शाम को काली मिर्च का शरबत या नींबू का शरबत,पहले रूहअफजा और बाकी आजकल की तरह पेय पदार्थ नहीं होते थे और हम बच्चे सब बड़ो को परोसते हैं फिर हम खाते है, बहुत मजा आ रहा है, खाना खा कर सारी महिलाएं और बच्चे छत पर सोते हैं और बाकी घर के बाहर भी बहुत मैदान है तो,सब बडे बाहर ही चारपाई डालकर सो जाते हैं, बाहर मैदान में एक नीम का पेड़ है जो छत से भी दिखाई देता है।
पहले तो हम सब छत पर बातें करते रहे, फिर सब सो गये, मैंने अपनी हाथ में बंधी घड़ी में देखा तो बारह बज रहे थे, मेंरा ध्यान फिर उसी पुराने महल पर गया, मैंने सोचा कल मैं जरूर जाऊंगा, फिर मुझे नींद आ गई।
दोपहर में सब सो गए और कुछ सगाई की तैयारी में ब्यस्त थे तो मैं भरी दोपहरी में चुपके मुंह पर गमछा बांध कर निकल गया, इतनी लू थी,धूल भरी गर्म हवा चल रही थी और मैं पुराने महल पहुंच गया।
मैं डरते-डरते अंदर गया, तो महल अंदर से तो साफ दिख रहा था, तभी मुझे कुछ आहट सुनाई दी,वो चूड़ियों के खनकने की आवाज थी, मैंने थोड़ा और अंदर जाकर देखा तो एक लड़की लहंगा चोली पहने ढ़ेर सारे अमलतास के फूलों से कुछ बना रही थी, उसके पास में सुराही रखी थी।
उसने मुझे देखा और पूछा, तुम कौन हो? तो मैंने कहा मेरा नाम अपारशक्ति है, और तुम्हारा क्या नाम है?
तब उसने कहा, मेंरा नाम निपुणनिका है
मैंने कहा इतना बड़ा और पुराना नाम
तो उसने कहा तुम्हारा नाम कौन सा छोटा है
मैंने कहा पानी पिला दो,प्यास लगी है, तो उसने एक मिट्टी के बर्तन (सकोड़े) में पानी भरकर दिया, मैं पी गया।
उसने पूछा यहां क्यो आए हो, वो भी दोपहर में
मैंने कहा मुझे अच्छा लगता है, ये टूटा-फूटा पुराना महल, मुझे लगता है कि इससे मेंरा सालों का नाता है,
फिर उसने पूछा, तुम यहां के तो नहीं लगते,
मैंने कहा हां, मैं तो यहां शादी में आया हूं
बस ऐसे ही हम बातें करते रहे, और दोपहर से शाम हो गई
मैंने कहा अब मैं जा रहा हूं,सब इन्तजार कर रहे होंगे
और मैं घर आ गया__
रात में सब खाना खा कर छत में,आ गये, बातें-बातें करते-करते सब सो गए, लेकिन मेरा मन तो निपुणनिका में अटक गया था, मैं सोने की कोशिश करता तो , निपुणनिका का चेहरा मेरी आंखों के सामने आ जाता,वो है भी तो कितनी खूबसूरत, कोई भी देखें तो पागल हो जाए,यही सोचते-सोचते पता नहीं मुझे कब नींद आ गई।
मैं जब तक गांव में रहा,बस दोपहर होने का इंतजार करता रहता और बस सबके हो जाने और काम में लग जाने के बाद मैं निकल जाता पुराने महल, निपुणनिका से मिले वगैर मेरा जी ही नहीं लगता था,वो भी हर दोपहर मेरा इन्तजार करती। मैंने उससे पूछा भी कि तुम कहां रहती हो जो दोपहर में मुझसे मिलने आ जाती हो, लेकिन उसने बात को टाल दिया और मैंने भी ज्यादा दिलचस्पी नहीं दिखाई, मैंने सोचा क्या करना है? बस मुझे वो अच्छी लगती हैं और इस बात पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया।
शायद मुझे निपुणनिका से प्रेम हो गया था और वो भी मुझे पसंद करने लगी थी मैंने सोचा अब कह देना ही ठीक है और जाने से पहले इजहार करना जरूरी था और मेरे जाने के दो-तीन दिन पहले ही मैंने कह दिया कि मैं तुमसे प्रेम करता हूं, निपुणनिका!
क्या तुम भी मुझे पसंद करती हो?
उसने भी शरमाते हुए 'हां' में जवाब दिया और मेरे गले लग गई लेकिन वो जब मेरे गले लगी तो उसके बदन से सड़े मांस की बदबू आई, मुझे थोड़ा अजीब लगा लेकिन__
और एक दिन, मेरे जाने के पहले मैं दोपहर में निपुणनिका से मिलने गया तो वो रोने लगी कि मुझे छोड़ कर मत जाओ, मैंने उसे चुप कराया और कहा कि मैं रात में भी तुमसे मिलने आऊंगा और मैं भारी मन से चला आया,सच तो ये है कि मैं भी उसे छोड़कर नहीं जाना चाहता था।
मैं दुःखी था और ये मेरे चेहरे से झलक रहा था तो मुझे देखकर मनोज ने पूछा कि क्या बात है,तू इतना उदास क्यों हो?
मैंने उसे सारी बात बता दी, उसने कहा परेशान मत हो यार, मैं भी तेरे साथ चलूंगा, पुराने महल,तू जरूर उससे मिलेगा।
और रात को हम गये, मनोज ने कहा कि मैं बाहर हूं ,तू जल्दी से मिलकर आजा, मैं ने कहा ठीक है___
मैं अंदर गया तो दिए का हल्का उजाला था, और वो पीठ किए हुए खड़ी थी, उसने पूछा आ गये तुम__
मैंने कहा_ हां
उसने कहा कि, अच्छा तो तुम मुझे छोड़ कर जा रहे हो, अभी मेरा बदला पूरा नहीं हुआ।
उसका इस तरह से बात करना, मुझे थोड़ा अजीब लगा।
मैंने कहा, कैसी बातें कर रही हो।
और वो धीरे -धीरे बढ़ने लगी, वो इतनी लंबी हो गई की उसका सर महल की छत से जा लगा, मैं चीखा तो उसने अपनी शक्तियों से मुझे छत के बराबर लाकर छोड़ दिया, और बोली मैं तुम्हें अब नहीं छोडूंगी,एक बार पहले भी तुम मुझसे बच गए थे,तुम्हे मारकर ही मेरी आत्मा को शांति मिलेगी, तभी मेरा वर्षों पुराना बदला पूरा होगा।
मेरी चीख सुनकर मनोज भी अंदर आ गया, वो सब देखकर उसने हिम्मत से काम लिया और हनुमान चालीसा पढ़ने लगा,मेरा हाथ पकड़ा और हनुमान चालीसा पढ़ते-पढते वो मुझे बाहर ले आया और हमने घर की तरफ भागना शुरू किया।

क्रमशः____

सरोज वर्मा___🥀


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