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निपुणनिका--भाग(३)

उस दिन मैं और मनोज उस पुराने महल से जान बचाकर भागे,घर पहुंच कर ही हमने सांस ली, मनोज ने कहा कि ये सब अभी किसी से मत कहना, नहीं तो बहुत डांट पड़ेगी कि तुम लोग रात को वहां क्यो गए।
मैंने कहा ठीक है, लेकिन मुझे अभी भी भरोसा नहीं हो रहा कि वो चुड़ैल थी, इतने दिन मैं एक चुड़ैल से मिलने जाता रहा, तभी उस दिन वो मेरे गले लगी तो सड़े मांस की बदबू आ रही थी, अजीब तो लगा था लेकिन मैं उसके प्यार में अंधा हो गया था।
फिर मां ने बताया कि हम एक हफ्ते और रूक रहे हैं, मैंने कहा ठीक है,छत पर सब सोने गए, मैं भी।
लेकिन डर के मारे नींद कहां से आए,सब बातें करते-करते सो गए थे, मैंने अपनी handwatch देखी तो रात के साढ़े बारह बज रहे थे, मैंने पुराने महल की तरफ नजर दौड़ाई तो एक रोशनी सी दिख रही थी, मुझे लगा कोई दिया जल रहा होगा, लेकिन आज से पहले तो वहां कोई दिया नहीं जलता था, फिर मैंने ध्यान से देखा।
देखा तो वो रोशनी मेरी तरफ बढ रही है और अचानक सर्र से मेरे बगल में वो चुड़ैल अपने बालों को अपने चेहरे पर बिखेरे हुए बैठी है, मैंने हिम्मत करके उसके चेहरे से उसके बाल हटाते ही इतना भयानक चेहरा देखकर मेरी डर के मारे चीख निकल गई, और सब चौंककर जग गए, पूछने लगे कि क्या हुआ?
अब मैं क्या बताऊं कि क्या हुआ? और मैंने किसी से कुछ नहीं कहा,बस कहा कि शायद कोई बुरा सपना देखा है।
मुझे रात भर डर के वजह से नींद नहीं आई , बस सुबह होने का इंतजार था, बहुत ही डर गया था मैं, किसी काम में मन ही नहीं लग रहा था, मैंने मनोज से बताया तो वो बोला कि कोई सिद्ध बाबा है पास के गांव में,वो भूत-प्रेत को दूर करते हैं, लेकिन वो सिर्फ रविवार को ही ये काम करते हैं अभी तो आज सोमवार ही है, हमें रविवार तक इंतजार करना पड़ेगा, मैंने कहा ठीक है, फिर शाम हो गई और फिर से मुझे रात होने पर क्या होगा,इसका डर सताने लगा,रात भी हो ही गई, तो मैंने सबसे कहा कि आज मैं छत पर नहीं सोऊंगा,आज मैं घर के बाहर मैदान में सोऊंगा ,नीम के पेड़ के नीचे,सबने कहा सो जाओ।
उस दिन चांदनी रात थी, मैंने अपनी चारपाई बिछाई और मामा से बातें करते-करते सो गया, तभी अचानक नीम के पेड़ पर कुछ सरसराहट हुई, मैंने ज्यादा ध्यान नहीं दिया, मुझे लगा कोई पंछी होगा, फिर ऊपर से कुछ पानी जैसा गरम-गरम गिरा, मुझे बहुत जोर से नींद आ रही थी, क्योंकि पिछली रात सोया नहीं था, मैंने फिर भी ध्यान नहीं दिया, फिर अचानक ढेर सारा कुछ गर्म-गर्म
गिरा, मैंने आंखें खोली तो वहीं चुड़ैल मुंह से लार टपका रही थी और दोनों पैर पेड़ की डाल से अटका कर मेरी तरफ मुंह करके उल्टी लटकी थी,जब तक मैं कुछ समझ पाता,वो पेड़ की डाल पर फिरकी की तरह दो- चार बार घूमी और लट्टू की तरह उचक कर मेरे ऊपर धम्म से गिर गई, फिर क्या था, मेरी जोर से चीख निकली और मैं आंखें बंद किए हुए जोर-जोर से बचाओ-बचाओ चिल्ला रहा था, मेरी चीख सुनकर,सब भागकर मेरी ओर आए,मामा के कहने पर मैंने आंखें खोली, मैंने सब बताया तो सब लोग हंसने लगे सिवाय मनोज के,सबने कहा सपना होगा।
सुबह होते ही मैं और मनोज सोचने लगे कि अब क्या होगा,क्या करें,क्या ना करें, रविवार को भी अभी काफी दिन है, लेकिन तभी अचानक मनोज को कुछ याद आया, उसने कहा आज मंगलवार है और मैं हनुमान जी के मन्दिर जाता हूं, और मेरा व्रत भी है,तू मेरे साथ मन्दिर चल, वहां मन्दिर में कोई ना कोई उपाय मिल जाएगा, हम मन्दिर गये, भगवान के दर्शन किए और हम वापस आते समय दूसरे रास्ते से आ रहे थे ,हमारी नजर एक मजार पर पड़ी, हमने सोचा इस मजार पर सबका बहुत विश्वास है,चलो माथा टेक लेते हैं मजार पर,हम गये और वहां हमें एक फकीर बाबा मिलें , उन्होंने हमें देखते ही भांप लिया कि हमें कोई परेशानी है, उन्होंने कहा कि घबराने की बात नहीं है, मैं एक ताबीज बाजू में बांध देता हूं, लेकिन बगल के गांव में एक सिद्ध बाबा है,वो ही तुम्हारी मदद कर सकते हैं और उनके पास जाने से पहले ये ताबीज उतार देना, फिर हम घर आ गए।
रात को खाना खाकर सब सोने चले गए, लेकिन मैं ना छत पर सोया और ना बाहर, मैंने कहा कि मैं आज घर के आंगन में ही सोऊंगा,सब सो गए और मुझे भी नींद आ गई, लेकिन रात में अचानक नींद खुली, मुझे प्यास लग रही थी, मैंने घड़े से गिलास में पानी भरा और पी गया, मैंने सोचा देखूं कितना बज रहा है, लेकिन मुझे याद आया कि घड़ी तो कोठरी में ही रखी रह गई, मैंने लालटेन की रोशनी बढ़ाई और कोठरी में गया देखा तो मौसी पीठ करके खड़ी थी, मैंने कहा मौसी आप यहां क्या कर रही हो, उन्होंने कहा कि तेरी घड़ी ढूढ रही हूं।
मैंने कहा कि आपको कैसे पता?
उन्होंने कहा कि मुझे तेरे बारे में सब पता है।
वो घड़ी देने लगी, तभी मुझे उनके उनके बड़े-बड़े नाखून वाले गंदे हाथ दिखे।

क्रमशः___

सरोज वर्मा__ 🐾


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