दह--शत - 32 Neelam Kulshreshtha द्वारा थ्रिलर में हिंदी पीडीएफ

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दह--शत - 32

एपीसोड ----32

दूसरे दिन ऑफ़िस से लौटकर अभय बताते हैं, “आकाश सर का ट्रांसफ़र बम्बई हो गया है।”

उसे उस घर के रात में पर्दे खुलने व रोशनी होने के जश्न का उत्तर मिल गया है।

एक और परिवर्तन समिधा को एक सप्ताह में समझ में आता है। वह व अभय चाहे शाम को सात बजे से लेकर रात के ग्यारह बजे कभी भी घूमकर घर आते हो, उस घर के पहले कमरे की बिजली यदि जल रही हो तो उनके अपनी लेन में घूमते ही बंद कर दी जाती है, यदि बुझी हो तो जला दी जाती है। क्योंकि जब वह अपनी लेन में घूमकर आते हैं तो उस घर का पीछे का थोड़ा हिस्सा दिखाई देता है। तो सारा घर ही उन दोनों की चौकीदारी कर रहा है। ये कैसे घटिया लोग हैं ? इससे दो फायदे उन्हें नज़र आ रहे होंगे कि समिधा चिढ़े व अभय का नशा न उतर जाये।

अभय में धीरे-धीरे बदलाव के लक्षण शुरू हो रहे हैं। शॉपिंग करते हुए एक दुकान में जैसे ही वह जाने लगती है, वे कहते हैं, “तुम शॉपिंग करो, मैं एक ट्यूब लाइट लेकर आता हूँ।”

“पकड़ोगे कैसे? मैं भी साथ चलूँगी।”

अभय की खूँखार, खा जाने वाली दृष्टि को वह पहचानती है। वह उनके स्कूटर का हैंडिल पकड़ लेती है, “तुम कहीं नहीं जाओगे।”

 दो दिन बाद वह देखती है वर्मा रात के आठ बजे अपनी लेन में से निकल रहा है, “देखो अभय ! देखो बबलू जी ड्यूटी पर जा रहे हैं।”

“जा रहा है तो तुम्हें क्या?”

“तुम ही तो कह रहे थे कि मेरी आँखें कमज़ोर हैं। उसकी लम्बाई के कारण ही मैंने सोलह मार्च को भी पहचान लिया था।”

“घूमते समय फ़िज़ूल की बातें मत किया करो।” फिर वह रास्ते में जाते रोहित को पुकारने लगे, “हलो रोहित ! जरा रुकना । बहुत दिनों से नहीं दिखाई दे रहे?”

“हाँ, सर, नमस्कार ! सॉरी मैंने आपको देखा नहीं था।”

“कोई बात नहीं।”

“आपको खबर लगी? आपके पड़ौसी बबलू जी बीमार हैं।”

“नहीं, वैसे अभी-अभी मैंने उन्हें ड्यूटी पर जाते देखा है।”

“आज ठीक हो गये होंगे । परसों सुबह अस्पताल आये थे। भाभीजी साथ थीं। उन्हें बेहद घबराहट के कारण साँस की तकलीफ़ हो रही थी।”

समिधा मन ही मन सोचती है, घबराहट तो होनी ही थी `ज़हर फ़िल्म देखकर .बीबी ने फिर खेल शुरू करना चाहा, समिधा ने उसकी कोशिश नाकाम कर दी।

ये नियति समिधा के साथ कैसा खेल खेल रही है, समिधा को कुछ संकेत देती चल रही है।

x x x x

“हिश....हिश....।” सड़क पर जाता मानसिक रूप से अविकसित वह तीस वर्ष का लड़का उन दोनों को देखकर आवाज़ निकालता है। साथ चलने वाले उसके पिता अभी नये ही यहाँ रहने आये हैं। रात में रोज़ अपने इस बेटे को लेकर घूमने निकलते हैं । उस लड़के का मूड होगा तो चुप चलता रहेगा। नहीं तो आने जाने वालों को “हिश्.....हिश्।” करता रहेगा।

उन अनजान व्यक्ति के लिए वह करुणा से भर उठती है। रात में वह और अभय इस तरह कॉलोनी में घूमते हैं। उन सज्जन को क्या पता कि वह भी एक मानसिक रुप से आंशिक विकलांग कर दिये व्यक्ति के साथ घूम रही होती है। वह उस लाचार बाप जिसकी किस्मत में ऐसा बेटा लिखा है, जो सहारे की जगह बोझ है, को देखकर वह उनके दुर्भाग्य को देखकर, अपने को ढ़ाढस बँधाती रहती है। उसके अभय को तो बीच-बीच में कोई विकलांग कर रहा है। वह उन्हें बीच-बीच में झटके देकर इस सबसे बाहर कर लेती है। सामाजिक समारोहों में हँस लेती है, खिलखिला लेती है। कहीं बात फिर बिगड़े एम.डी. से मिलना आवश्यक है। बाढ़ का पानी, लगभग निकल गया है, कॉलोनी सुरक्षित है, पर वह नहीं।

एम.डी. अपने ऑफ़िस में उसकी बात सुनकर आश्चर्यचकित हैं, “आप दो महीनें से नहीं मिलीं तो मैं ये सोच रहा था आपके जीवन में सब सही हो गया है।”

“जब तक ये लोग यहाँ है कैसे ठीक हो सकता है ? इन्हें बुरी तरह ‘तलाक’ ‘तलाक’ रटा दिया गया था। मुझे तलाक का ड़र नहीं है। मेरे बच्चे सैटल हैं। मैंने तो कह दिया चलो तलाक की ‘एप्लिकेशन’ देने, तब ये ज़मीन पर आये हैं। इनका दिमाग़ ऐसे ख़राब किया गया था कि सोच ही नहीं पा रहे थे कि इस उम्र में तलाक का मतलब क्या होता है?”

“स्ट्रेन्ज।”

“अब तो आपको समझ में आ गया कि उसका पति साथ है वर्ना एक औरत ऐसे कैसे हिम्मत कर सकती है।”

वे मुस्करा उठते हैं, “तो आप ये कहना चाह रही हैं उसक पति ये करवा रहा है।”

“नहीं, सर ये कोई भयानक स्त्री है इसी ने ये रास्ता अपने पति को दिखाया है। बबलू जी के परिवार से मैं परिचित हूँ।”

“मैं देखता हूँ ट्रांसफ़र के लिए क्या कर सकता हूँ।”

“मैं जब आपके पास पहली बार आई थी उसके दस दिन बाद मुझे पता लगा कि विकेश भी इसमें शामिल है।”

“कौन विकेश?”

“इनका तीस वर्ष पुराना दोस्त है। जब मुझे पता लगा कि वह भी इनकी सहायता कर हमें बर्बाद करना चाह रहा है तो मैं आपके ऑफ़िस आई थी लेकिन आप दिल्ली गये थे। ये बहुत भयानक हो रहे थे इसिलए मैंने इनके मैनेजर से भी कह दिया।”

वे चौंकते हैं, “आपने उनसे भी कह दिया?”

“जी हाँ।” वह उनका चेहरा देखकर समझ गई है कि वे सोच रहे हैं कि ये औरत बिना किसी शर्म अपने पति की बदनामी कर रही है।

“देखिए! मैं आपकी ‘हेल्प’ करना चाहता हूँ। मैंने ‘एन्क्व़ॉयरी’ की है, वर्मा का ट्रांसफ़र नहीं हो सकता। आप चाहें तो आपके पति का ट्रांसफ़र हो सकता है। आप जिस शहर जाना चाहें मैं ट्रांसफ़र कर दूँगा।” 

“आप क्या समझ रहे हैं एक बदमाश स्त्री से डरकर मैं अपना सत्ताइस अठ्ठाइस वर्ष का ‘सेट अप’ बिगाड़ कर चल दूँगी?”

“बट इट’स ए फ़ेमिली मैटर ।”

“सर! इस केम्पस में एक ‘इज़ी मनी’ वाला कपल व एक और व्यक्ति मेरा घर बिगाड़ने पर तुले हैं मैं प्रशासन के पास नहीं जाऊँगी तो कहाँ जाऊँगी? सर ! इनका मोबाइल मॉनीटर करवा दीजिये।”

“ठीक है, मैं देखता हूँ क्या कर सकता हूँ लेकिन ‘मोबाइल मॉनीटर’ तो ऑफ़िशियल मैटर्स में ही किया जा सकता है।” 

***

इस बार भी सावन में बूँदें पड़ रही हैं सूरज के बादलों से ढ़ँके सुरमई उजाले में हवायें सनसना रही हैं लेकिन समिधा का मन मयूर नहीं मचल रहा है, कोने में बुझा पड़ा है। अजिता को अपनी बेटी के लिए दो तीन लड़के देखने बिहार जाना है। नीता के ससुर का निधन हो गया है। वह अब क्या करेगी नृत्य करके? एकल नृत्य तो किया ही जा सकता है कोई गाना ही समझ में नहीं आ रहा। रोली जब भी आती है कुणाल गंजवाला का एक ही गाना सुनती रहती है। वह गाना क्या बुरा है ? एक गुंडे को तो उसने अस्पताल पहुँचा दिया है। पत्नी हैरान होगी, साथ ही दूसरा गुंडा भी। उसके तो जश्न के दिन है, वह झूम-झूम कर अकेले ही प्रेक्टिस करती है। उतने ही जोश से तीज समारोह में नृत्य करती है।

 तीज का उन्माद अभी उतरा ही नहीं है कि विभागीय फ़ोन ब्लैंक कॉल्स आनी शुरू हो गईं हैं। उसकी चिन्तायें विभागीय फ़ोन से आती रिंग व मोबाइल के आस-पास घूमने लगती हैं।

वह पुलिस विभाग पर तो नहीं हाँ, पुलिस कमिश्नर पर तो भरोसा कर सकती है .वे भी अपने विभाग के एम.डी. को शिकायती पत्र दे चुकी है तो पुलिस की दहशत से क्या डरना? कभी इस कदम को उठाने से पहले घबरा जाती है। पुलिस वालों के नाम से ही डर लगता है लेकिन कुछ तो करना ही होगा।

बड़ी हिम्मत जुटाकर पुलिस कमिश्नर के कार्यालय में प्रवेश करती है, उसके साथ एम.डी. को दिये हुए पत्र की दी हुई हिम्मत है।

पुलिस कमिश्नर के पी.ए. को नाम नोट करवा कर वह वहाँ के वेटिंग रुम में बैठी पसीने पसीने हो गई है। ये किस्मत के सितारे हैं जो उस जैसे कुछ लाचार लोग वहाँ बैठे हैं। ब्रीफ़केस लिए दो सेल्समैन अलबत्ता अलमस्त बैठे हैं। वह भयाक्रांत है कहीं कोई परिचित न मिल जाये।

कमिश्नर के सहज व्यवहार के कारण उसका डर निकल जाता है। वह सीधे ही बता देती है, “मैंने इस पत्र में किसी तीसरे व्यक्ति की तरह शिकायत की है किन्तु ये समस्या मेरी ही है। मेरी बात पर कोई विश्वास नहीं कर रहा कि एक औरत ने मोबाइल से ‘वल्गर टॉक्स’ करके मेरे पति की सोचने समझने की शक्ति छीन ली है।” फिर वह संक्षेप में सारी स्थिति बताने लगती है।

“मैं करता हूँ आपकी बात पर विश्वास।” वह जैसे घोषणा करते हैं। “कहिए मैं आपकी क्या मदद कर सकता हूँ?”

  “सर! बस आप कविता के मोबाइल की आने जाने वाली ‘कॉल्स’ चैक कर हमारे एम.डी. साहब को बता दीजिए कि मेरी विकेश व कविता के बारे में शिकायत सही है तो हमारा विभाग उनका ट्रांसफ़र कर देगा।”

“ वैरी सिम्पल ! आपने एम.डी. को लिखकर दिया है, तो यह मैं कर दूँगा।”

  वह अश्रुपूरित आँखों से उन्हें हाथ जोड़कर अभिवादन करती है, “सर ! आपका ये एहसान मैं कभी नहीं भूलूँगी। अब मैं आपसे कब मिलूँ?”

  “पंद्रह बीस दिन का समय तो दीजिए।”

घर आकर पानी भी नहीं पी पाती कि आऊटहाऊस में रहने वाली बाई पीछे का दरवाजा खटखट करती है,“आंटी ! आंटी ! मैं बर्तन धो रही थी, इतना बड़ा काला साँप मेरे पास से निकल गया।” वह हाथ को नापते हुए कहती है।

  उसकी सास पीछे से कहती है, “आंटी ! वह नागिन थी।”

  “क्या?” उसका खुशी से दिल झूम उठता है कि कितना अच्छा शगुन हुआ है। आज ही वह पुलिस कमिश्नर से मिलकर आई है।

  पुलिस के पास सहायता लेने के बारे में सोचना व उसके पास जाकर प्रार्थना पत्र देने में अंतर होता है। एक तनाव निरंतर शरीर की नसों को ऐंठता रहता है। पुलिस वालों का क्या भरोसा कहीं कुछ ऊँच नीच न हो जाये। सिर है कि घूम रहा है। बच्चों को ये बतायेगी तो घबरा जायेंगे। क्या करें? बीपी की गोली उसे दो बार लेनी पड़ती है।

दूसरे दिन वह महिला समिति की अध्यक्ष एम.डी. की पत्नी को बता देती है, “मैडम, मैंने पुलिस कमिश्नर से हेल्प माँगी है।”

  “आप में बहुत हिम्मत है।”

  “मैडम ! मैं पहले उस औरत को फ़ोन करती थी तो काँपने लगती थी। ये तो उसकी हैवानियत ने मुझे हिम्मत दे दी है। सर को ये बात बता दीजिए।”

“ज़रुर।”

दिन निकल नहीं रहे बेहद धीमी गति से रेंग रहे हैं, उधर वह अपने तनाव को साधने की कोशिश करती रहती है। बड़ी आशायें लेकर पुलिस कमिश्नर के पास जाती है। वे कहते हैं,“हमने मोबाइल मॉनीटर की कोशिश की लेकिन कुछ मिल नहीं रहा है। आप अपने पति पर केस कर दीजिए।”

“सर ! मुझे उनसे अलग थोड़े ही होना है। उन्हें गुंडों के शिकंजे से निकालना है।”

“तो ऐसा करिए वह जगह तो बताइए वे जहाँ मिलते हैं।”

“क्या? सर ! मुझे कोई तमाशा नहीं करना! आप बस मोबाइल के कनेक्शन ‘कन्फ़र्म’ करके एम.डी. को बता दीजिए मैं तो एक छोटी सी ‘हेल्प’ के लिए आई हूँ।”

  तभी वे घंटी बजा देते हैं। एक पुलिस इंस्पेक्टर अंदर आकर उन्हें सेल्यूट करता है। वे उससे कहते हैं, “ये मैडम समिधा है। इनके पति अपने ऑफ़िस में एक ‘थॉरो जेन्टलमेन’ की तरह फ़ेमस हैं। वहाँ सब इन्हें साइकिक समझते हैं।”

“वॉट?” समिधा का ख़ून जम सा गया है तो बड़ी तेजी से जानकारी जुटाई गई है, “क्या मैं आपको साइकिक लगती हूँ?”

   वह बात टालकर उस इंस्पेक्टर से कहते हैं,“इनके स्टेटमेंट ले लो।”

  वह सिर्फ मोबाइल कॉल्स की जानकारी के लिए आई थी और यहाँ बुरी तरह फँस चुकी है। पुलिस कमिश्नर की अवज्ञा नहीं कर सकती इसलिए एक कमरे के एकांत में वही कथा शुरु कर देती है जिसे कहते-कहते वह थक चुकी है। हाँफ चुकी है। इंस्पेक्टर भी ज़ोर दे रहा है, “वह मिलने वाली जगह बताइए, साब भी जानना चाहते हैं।”

X X X X

वह एम.डी. के रिसेप्शन में बैठी है। वह उसको ख़बर भिजवाते हैं उसे सिर्फ़ पाँच मिनट दे पायेंगे। क्या वे नाराज़ हैं क्योंकि वह उनकी पत्नी को बता चुकी हैं वह पुलिस कमिश्नर से मिल आई है ?

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नीलम कुलश्रेष्ठ

ई -मेल ---kneeli@rediffmail.com