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बड़े और छोटे लोगों की पार्टियां

बड़े और छोटे लोगों की पार्टियां

आर० के० लाल

“अरे सुनती हो! आज बड़े साहब शर्माजी के यहां उनकी बेटी की बर्थडे पार्टी है। हम लोगों को भी जाना है। तुम तैयारी कर लो, बड़े साहब ने अपने ऑफिस के सभी लिपिकों में से केवल मुझे ही निमंत्रण दिया है जो मेरे लिए बड़े गौरव की बात है। उन्होंने विशेष रुप से कहा है कि सपरिवार आइएगा। उनकी नजरें इनायत बनी रहे इसलिए हम लोगों का चलना नितांत आवश्यक है । शाम को ठीक सात बजे हम लोग यहां से चलेंगे और उनके यहाँ डिनर करके वापस आएंगे। अपनी गुड़िया को भी तैयार कर लेना उसे अच्छा लगेगा और तुम्हें भी पता लगेगा कि बड़े लोग कैसे पार्टी करते हैं ”। अशोक ने अपनी पत्नी अनुभा से कहा।

अनुभा ने उत्तर दिया कि आप चले जाइएगा, मैं वहां पर क्या करूंगी? मुझे वहां कोई जानता भी तो नहीं है । शर्माजी ने तुम्हारा मन रखने को ऐसे ही कह दिया होगा कि सपरिवार आना । उनका हम लोगों से क्या बराबरी वे बड़े लोग और हम छोटे लोग ? अशोक ने समझाया, “नहीं भई ! उन्होंने बहुत जोर दे कर बोला था कि खासतौर से तुमसे कह रहा हूँ, सपरिवार ही आना और फिर तुम्हीं ने तो इसका सारा बंदोबस्त किया है। तुम चिंता मत करो, हमारे पहुँचने पर वे बहुत प्रसन्न होंगे , वे हम लोगों को पूरा तबज्जो और इज्जत देंगे ”। अशोक अपनी पत्नी को दिखाना चाहता था कि उनकी अपने कार्यालय में कितनी इज्जत है।

शाम को ऑफिस से लौटते समय अशोक ने शर्माजी की बेटी के लिए एक अच्छा सा गिफ्ट एक जान-पहचान वाले की दुकान से उधार ले लिया और उससे कहा कि वेतन मिलते ही उसके पैसे चुका देंगे । गिफ्ट की पैकिंग के ऊपर अपना नाम लिख कर उसे लग रहा था कि जैसे पार्टी में जाने का बीजा उसे प्राप्त हो गया हो । घर पहुँच कर उसने अनुभा को निर्देश दिया कि जब वहाँ केक कट जाए तो तुम बड़े साहब की पत्नी को दिखाते हुए उनकी बच्ची को यह गिफ्ट दे देना ताकि यह बात उनके संज्ञान में आ जाए।

ठीक सात बजे तीनों लोग तैयार होकर शर्माजी के यहां पहुँच गए । अभी वहां पर तैयारियां चल रही थीं , कई बैरे बार-बार अंदर बाहर आ जा रहे थे । अशोक ने वहां खड़े अर्दली से कहा, “शर्माजी को बता दो कि हम सपरिवार आ गए हैं। यदि मेरे लिए कोई काम बचा हो तो मैं उनकी सहायता कर सकता हूं”। थोड़ी देर में अर्दली बाहर आया और बोला कि साहब ने कहा है आप लोग आराम से बैठे , अभी कार्यक्रम शुरू होने में थोड़ा विलंब है। अशोक, अनुभा और उसकी गुड़िया लॉन में ही पड़ी कुर्सियों पर बैठ गए और वहां की सजावट, और गार्डन की तारीफ करने लगे । अशोक बोला साहब को प्रकृति से कितना प्रेम है , देखो उन्होंने अलग-अलग नस्ल के कई कुत्ते भी पाल रखे हैं । अनुभा ने मजाक करते हुए कहा तब तो ऑफिस में भी कुत्ते पाल रखे होंगे । अशोक को यह बात अच्छी नहीं लगी।

लगभग एक घंटे तक सभी लोग गार्डन में बैठे कुढ़ते रहे । कई दूसरे लोग भी आकर वहीं बैठ रहे थे जबकि कुछ खास मेहमान सीधे घर के अंदर जा रहे थे। अशोक ने सोचा कि शायद कुछ नाश्ता पानी लेकर कोई आएगा अथवा शर्माजी ही बाहर आएंगे। इस इंतजार में उसकी आंखें घर के मेन गेट पर ही लगी रहीं परंतु कोई नहीं आया तो अशोक ने अर्दली से पानी लाने के लिए कहा। काफी देर बाद शर्माजी बाहर निकले और अशोक से बोले, “ बहुत देर हम तुम्हारी प्रतीक्षा कर रहे थे। अगर तुम जल्दी आते तो कुछ काम में हाथ बटा देते । चलो अब केक काटने का समय हो रहा है। अशोक सब समझ रहा था लेकिन कुछ बोल नहीं सका। उसने अनुभा और अपनी बेटी का परिचय शर्माजी से कराया। यह भी बताया कि उनकी बेटी बहुत अच्छा गाना गाती है और आर्ट-वर्क करती है।

भीतर एक हाल में लोग एक टेबल पर एक बड़ा सा केक रखा था उसके चारों तरफ लोग जमा थे। अति विशिष्ट सजावट को दिखते हुये अशोक ने अपनी बेटी को बताया कि जन्मदिन वाली पार्टियों में बच्चों के लिए एक थीम रखी जाती है जिसके आधार पर ही पार्टी की सजावट की जाती है। पार्टी की सजावट के लिए गुब्बारे, बैनर, कन्फेट्टी, पार्टी ब्लोवर्स, हैट्स, वॉल सजावट और कटआउट्स जैसी चीजें लगाई जाती हैं । अशोक और अनुभा भी सबसे पीछे खड़े हो गए और अपनी बेटी को अन्य बच्चों के पास भेज दिया। मिसेज शर्मा अपनी बेटी हर्षिता के लिए लाये गए गिफ्ट सभी से लेकर एक अलग टेबल पर रख रहीं थी। अनुभा ने भी गिफ्ट उनकी तरफ बढ़ाया तो उन्होंने मुस्कराते हुये ले लिया। अशोक और अनुभा दोनों को बड़ी तसल्ली हुयी मगर उन्हें समझ में नहीं आया कि वे गिफ्ट किसके लिए लाये थे। कुछ देर बाद हर्षिता ने केक पर लगी कैन्डल को बुझाते हुये केक काटा, सबने ताली बजकर हैपी बर्थड़े कहा और उसका गाना गया। गुब्बारे फोड़े गए, और सभी बच्चे मस्ती करने लगे। एक बैरे ने प्लेट में केक के कुछ पीसेज रख कर के सबके सामने पेश किया । अशोक और अनुभा को समझ नहीं आ रहा था कि वे कितना बड़ा केक उठाएँ । जब शर्माजी ने उनसे कहा कि आप लोग भी केक खाओ तो अशोक फूला नहीं समाया पर उसने बहुत छोटा सा टुकड़ा ही उठाया । उसका मन हो रहा था कि एक और टुकड़ा ले ले मगर संकोच वश नहीं लिया।

बच्चों के कार्यक्रम जैसे तरह तरह के गेम, किराए पर आए मैजिशियन के प्रोग्राम आदि हो जाने के बाद बड़े साहब ने सभी लोगों को नाश्ते पर बुलाया। बरामदे पर एक लंबी मेज पर तरह-तरह के नाश्ते जैसे समोसा, ढोकला, रसमलाई, छोले-भटूरे आदि रखे थे। बच्चों के लिए पीजा, बर्गर, आइसक्रीम, चाउमीन जैसी चीजे थीं । सभी ने अपनी अपनी प्लेट में अपने आप खाने का सामान लेकर नाश्ता करने लगे । बड़े साहब और उनकी पत्नी एक किनारे से दूसरे किनारे तक चहलकदमी कर रहे थे और साथ ही मेहमानों से और लेने के लिए कह रहे थे, बैरे को बुला कर कुछ और देने का निर्देश भी दे रहे थे। अनुभा ने महसूस किया कि वहां पर संकोच का वातावरण ज्यादा था और शायद बड़े लोग कम ही खाते हैं इसलिए उतने से ही सबका पेट भर गया था। अंत में बच्चों को रिटर्न गिफ्ट दिया गया, अशोक की बेटी को भी एक पैकेट मिला । इस प्रकार पार्टी समाप्त हो गयी और लोग जाने लगे ।

वापसी रास्ते में अनुभा ने कहा यार, पार्टी में तो कुछ मजा नहीं आया, पूरा पेट भी नहीं भरा। अशोक ने कहा बड़े लोगों की पार्टी ऐसी ही होती है। हमारी हाजिरी लग गई यही हमारे लिए काफी है। तुम चिंता मत करो चलो किसी होटल में डिनर करके घर चलते हैं। तीनों ने एक होटल में जाकर खाना खाया और घर आ गए।

कुछ दिनों बाद अशोक ने अपने बेटे का बर्थडे मनाया तो वह शर्माजी के घर गया और बड़ी विनम्रतापूर्वक उन्हें , उनकी वाइफ़ और हर्षिता को इनवाइट किया इसके लिए उन्होंने अपनी बेटी किरण द्वारा बनाया हैंडमेड इन्विटेशन कार्ड भी दिया और बोला कि आप लोगों का आना अत्यंत आवश्यक है वरना पार्टी ही नहीं होगी। अशोक ने डिनर में भी शामिल होने का विशेष अनुरोध किया। पहले तो वे ना- नुकुर करते रहे लेकिन अशोक के आग्रह को टाल नहीं सके।

पार्टी के दिन शर्माजी, उनकी पत्नी और बेटी हर्षिता निश्चित समय पर उनके घर पहुंचे। उन्होंने देखा कि अशोक का परिवार दरवाजे पर उनके स्वागत के लिए खड़ा था। उनका स्वागत उचित पद्धति से हाथ जोडकर मुस्कुराते हुए किया गया । अशोक के पिताजी ने शर्मा जी को टीका लगाया फिर उन लोगों को आदर पूर्वक ले जा कर अपने रूम में सोफा दिखाकर बैठने की विनती की। शर्माजी ने देखा कि बर्थ डे की सजावट के सामान मार्केट से लाने के बजाय घर में ही बनाएं गए थे। घर के बुजुर्गों ने उनसे प्रेम एवं अपनत्व के भाव से उनका कुशल-मंगल पूछें । तत्पश्चात पीने के लिए कोल्ड ड्रिंक, चाय - कॉफी और कई तरह के नाश्ते पेश किए गए। उनके दुबारा लेने के आग्रह में एक आदरभाव व्यक्त होता था । शर्माजी ने अपनी पत्नी को दिखाया कि वहाँ जो भी मेहमान आ रहे हैं उन सभी के साथ ऐसा ही व्यवहार किया जा रहा था ।

बर्थडे के अवसर पर वहाँ किसी केक की व्यवस्था नहीं थी, बल्कि सभी लोग घर के आंगन में एक सुंदर छोटे मंदिर के सामने एकत्रित हुये। अशोक की मम्मी ने भगवान जी की सूक्ष्म पूजा और आरती की । जिसका बर्थडे था उस बच्चे को टीका लगाकर माला पहनाया। अशोक की मम्मी ने सभी को प्रसाद दिया, सबका पुनः स्वागत किया, शर्माजी के परिवार से परिचय भी किया। वहाँ लगभग दस गमले और कुछ पेड़-पौधे रखे थे। बच्चों ने उन्हें लगाकर पानी डाला। बच्चों ने सबके साथ म्यूज़िकल चेयर, क्विज आदि किए । फिर मेहमानों ने बच्चे को आशीर्वाद देते हुये गिफ्ट दिये। बच्चा स्वयं गिफ्ट लेता और थैंक यू बोल कर सभी का चरण स्पर्श कर रहा था। उसने वहाँ उपस्थित बच्चों से कहा यदि कोई चाहे तो इनमें से कोई गिफ्ट ले सकता है। सबके साथ फोटो सेशन हुआ। शर्माजी और उनकी मैडम को यह सब देख कर बहुत अच्छा लगा कि आज के जमाने में भी भारतीय पद्धति और संस्कृति इस घर में कायम है।

इसके बाद सभी से भोजन करने का अनुरोध किया गया जिसमें भारतीय और पाश्च्यात के मिश्रित तरीके से व्यवस्था की गयी थी। एक ओर बड़ी-बड़ी थालियों में कई कटोरियाँ लगा कर कई तरह के व्यंजन परोसे गए थे तो दूसरी ओर डाइनिंग टेबल पर भी क्रॉकरी और कटलरी सहित डोंगे सजाये गए थे। कुछ लोगों को जमीन पर बैठा कर खिलाने के लिए दरी और आसनी बिछी थी । जिसे जो पसंद हो वह उस तरह से बैठकर खाना खा सकता था। यह सब देख कर शर्मा जी ने भी थाली में खाने की इच्छा जाहीर की।

प्रयास किया गया था कि सबकी पसंद का खाना वहाँ हो, जिसे अशोक ने पहले से पता कर लिया था । शर्माजी की पसंद वाली दाल-पूरी तो उनकी वाइफ की पसंद वाली बिरयानी, खान साहब के पसंदीदा कबाब और पराठे और शुक्ला जी के लिए दही भल्ले आदि ब्यंजनों में रखे गए थे। अपनी पसंद का खाना देख कर सब बड़े प्रसन्न हुये । मिसेज शर्मा देखकर चकित थीं कि अशोक के घर का कोई न कोई सदस्य अपने हाथ से गरम गरम खाना परोस रहा था और बार-बार व्यंजन लेने के लिए पूछ रहा था। इतनी विनम्रता, मधुरता और आदर भाव से भोजन कराया गया कि सभी ने खाने को पूरा एंजॉय किया। अंत में सभी मेहमानों की बिदाई विधिवत की गयी। अशोक के पिताजी मेहमानों को विदा करने बाहर गेट तक जा रहे थे ।

रास्ते में शर्माजी ने अपनी पत्नी से कहा, इसे आतिथ्य कहते हैं। लग रहा था कि सभी मेहमानों का बराबर ख्याल रखा जा रहा था , कोई अपने को इग्नोर नहीं फील कर रहा था। । हम लोग तो बहुत सारे लोगों को बुला लेते हैं जिससे मात्र औपचारिकताएं ही रह जाती हैं । हम लोग भी तनाव में रहते हैं और मेहमान भी एंजॉय नहीं कर पाते। शर्मा जी की पत्नी ने कहा कि आगे से हम लोग भी छोटा फंक्शन ही करेंगे और इसी तरह करते हुये सभी का भरपूर ध्यान रखेंगे।

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